घनश्याम सिंह को आखिर क्यों बचा रहा है रेलवे बोर्ड विजिलेंस?

शिकायतकर्ता की प्रत्येक गतिविधि की खबर घनश्याम सिंह को कैसे है?

शिकायत के करीब एक साल बाद भी कोई कार्रवाई सुनिश्चित ने नहीं की गई

भावी मेंबर इलेक्ट्रिकल होने की धौंस देकर नीचे के अधिकारियों को डराया जा रहा है

शिकायत वापस लेने का भारी दबाव और शिकायतकर्ता को बरबाद करने की मिल रही हैं धमकियां

सुरेश त्रिपाठी

वर्ष 1981 बैच के वरिष्ठ आईआरएसईई अधिकारी घनश्याम सिंह वर्तमान में उत्तर रेलवे के मुख्य विद्युत् अभियंता (सीईई) के पद पर कार्यरत हैं. इससे पहले वह सीईई/सी के पद पर उत्तर रेलवे निर्माण संगठन, तिलक ब्रिज में कार्यरत थे और यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्दी ही जीएम बनने जा रहे हैं. प्रशासनिक मामलों में भले ही वह अक्षम हैं, मगर जोड़तोड़ करने और अत्यंत चालबाजी से कमीशन खाने के मामलों में उन्हें अति-चतुर माना जाता है. पूर्व सीआरबी अरुणेंद्र कुमार की ही तरह वह भी कभी किसी कागज या फाइल पर अपने हस्ताक्षर नहीं करते हैं, जिससे वह राइट्स से लेकर अब तक किए गए तमाम कमीशनखोरी के मामलों में लगातार बचते रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जाता है कि वह लगातार अपने मातहतों को यह समझाने में कामयाब रहे हैं कि वह भावी मेंबर इलेक्ट्रिकल हैं, यदि उनका कहा नहीं माना तो इसके लिए उन्हें भविष्य में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. इसी डर से उनके मुंहजबानी आदेशों का पालन करते हुए कई अधिकारी अब तक अपना भविष्य ख़राब कर चुके हैं और कई अधिकारियों का भविष्य निकट भविष्य में ख़राब होने जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि उत्तर रेलवे निर्माण संगठन के एक टेंडर में लोएस्ट-1 आने के बावजूद क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (क्युईसी) नामक फर्म को संबंधित डिप्टी सीई/सी ने घनश्याम सिंह के कहने पर सिर्फ इसलिए बायपास कर दिया, क्योंकि घनश्याम सिंह को उक्त टेंडर अपनी एक चहेती फर्म (लोएस्ट-2) को देना था. ऐसा क्युईसी का लिखित आरोप है. क्युईसी ने 15 अगस्त 2015 को सीवीसी की गई लिखित शिकायत में भी यही आरोप लगाया है. सीवीसी ने इस मामले को अपने यहां पंजीकृत करके रेलवे बोर्ड विजिलेंस को इसकी जांच के लिए फॉरवर्ड करते हुए 25 अगस्त 2015 को इसका कंप्लायंस भी क्युईसी को भेजा था. आरटीआई में भी सीवीसी और रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने क्युईसी को जवाब दिया है कि मामले की जांच जारी है. इस मामले से संबंधित समस्त कागजात ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित हैं.

उधर, रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने इस मामले में अब तक किसी प्रकार की जांच की शुरुआत ही नहीं की है. यहां तक कि इसकी फाइल तक अब तक बोर्ड विजिलेंस में नहीं बनी है. इस बीच क्युईसी ने रेलमंत्री, सीआरबी सहित सीवीसी और रेलवे बोर्ड विजिलेंस को न सिर्फ कई पत्र लिखे हैं, बल्कि ई-मेल से भी शिकायत भेजी है कि उसे लगातार न सिर्फ धमकाया जा रहा है, बल्कि शिकायत वापस लेने के लिए दबाव भी डाला जा रहा है. इसके अलावा इस मामले में क्युईसी की शिकायत पर केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी और अनंत गिते ने भी रेलमंत्री को पत्र लिखे हैं. इसके बावजूद रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने न तो उक्त दोनों केंद्रीय मंत्रियों को इसका कोई जवाब भेजा है, जो कि प्रोटोकॉल के तहत जरुरी है, और न ही मामले की जांच को अंजाम देना जरुरी समझा है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 जून 2016 को क्युईसी के मालिक सतीश मंडावकर ने एडवाइजर विजिलेंस, रेलवे बोर्ड से फैक्स करके मिलने का समय मांगा था, मगर जब वह उन्हें मिलने के लिए रेल भवन के पांचवें माले पर पहुंचे, तो उनको ईडी/वी/इलेक्ट्रिकल को मिलने के लिए कहा गया. उन्होंने ईडी/वी/इले. को मिलने से स्पष्ट मना कर दिया और वहां से चले गए. इसका पता चलते ही बताते हैं कि एडवाइजर विजिलेंस ने उन्हें पुनः बुलाया. मगर जब वह उन्हें मिलने वहां पहुंचे, तो उससे पहले एडवाइजर विजिलेंस ने ईडी/वी/इले. ए. के. राय को बुलाकर अपने पास बैठा लिया और उसके बाद सतीश मंडावकर को अंदर बुलाया तथा उनसे अपनी बात कहने को कहा. इस पर सतीश मंडावकर ने श्री राय की उपस्थिति में कोई भी बात करने से साफ मना कर दिया और उठकर बाहर जाने लगे. तब एडवाइजर विजिलेंस ने उन्हें बैठाकर श्री राय को चैम्बर से बाहर भेज दिया.

बताते हैं कि इसके बाद सतीश मंडावकर ने एडवाइजर विजिलेंस को बताया कि यह श्री राय ही हैं, जिनसे घनश्याम सिंह को उनकी सारी गतिविधियों की जानकारी मिल रही है. इसी वजह से उन्हें न सिर्फ धमकियां मिल रही हैं, बल्कि शिकायत वापस लेने के लिए उन पर भारी दबाव डाला जा रहा है. बताते हैं कि एडवाइजर विजिलेंस, जिन्हें एक नेक-नीयत और ईमानदार अधिकारी माना जाता है, ने पूरे धैर्य के साथ सतीश मंडावकर की सारी बात सुनी. मगर उनका कहना था कि विभाग का काम ईडी और डायरेक्टर के माध्यम से चलता है, अब यदि वह उन्हें ही इस मामले में दोषी बता रहे हैं, तो काम कैसे होगा. इस पर सतीश मंडावकर ने कहा कि यह उनकी और विभाग की जिम्मेदारी है, मगर उन्हें इस मामले में अब तक न्याय नहीं मिला है और उनकी वास्तविक शिकायत पर रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने अब तक कोई भी पुख्ता कार्रवाई नहीं की है. ऐसे में न्याय पाने के लिए वह कहां जाएं और यदि जेनुइन शिकायत पर भी विजिलेंस का यह रवैया है, तब सर्वसामान्य आदमी किस पर भरोसा करेगा? इस पर बताते हैं कि एडवाइजर विजिलेंस ने उन्हें उचित कार्रवाई का भरोसा देकर रुखसत कर दिया, मगर आज करीब सवा महीना बीत जाने के बाद भी इस मामले में रेलवे बोर्ड विजिलेंस की कोई जमीनी कार्रवाई नजर नहीं आ रही है.

इस संबंध में जब ‘रेलवे समाचार’ ने घनश्याम सिंह से उनके मोबाइल पर संपर्क करके उनका पक्ष मांगा, तो उनका सिर्फ इतना ही कहना था कि ‘इस मामले से उनका कोई संबंध नहीं है, वह क्युईसी को जानते भी नहीं हैं और न ही उन्होंने उसका कोई टेंडर बायपास करवाया है.’ बहरहाल, इस मामले में घनश्याम सिंह पूरी तरह से झूठ बोल रहे हैं. उनका प्रयास यह है कि वह किसी तरह से जीएम और मेंबर बन जाएं और इसमें उनकी पूरी मदद ईडी/वी/इले. श्री राय कर रहे हैं. यही कारण है कि सीवीसी और एडवाइजर विजिलेंस द्वारा उन्हें फॉरवर्ड की गई इस मामले की लिखित शिकायत पर उन्होंने पिछले एक साल में कोई संज्ञान नहीं लिया. जबकि सीवीसी के नियमानुसार दर्ज हुई प्रत्येक विजिलेंस शिकायत की जांच छह महीनों में पूरी किया जाना अनिवार्य है.

अभी यह मामला बहुत लंबा चलने वाला है और ‘रेलवे समाचार’ ने इसकी परत-दर-परत उधेड़ने का निश्चय किया है, जिसमें यह सुनिश्चित होगा कि घनश्याम सिंह ने अपनी सेवा की शुरुआत से लेकर अब तक क्या-क्या किया है और किस तरह बचते रहे हैं? उल्लेखनीय है कि क्युईसी ने 10 जून को इस मामले में सीबीआई को भी एक लिखित शिकायत दी है और कहा है कि यदि शीघ्र ही विजिलेंस ने इस मामले में कोई उचित कार्रवाई नहीं की, तो सीआरबी, सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड और एडवाइजर विजिलेंस सहित सीवीसी के खिलाफ जल्दी ही मुंबई हाई कोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल करने की भी तैयारी दर्शाई है. क्रमशः….