घनश्याम सिंह को जीएम बनाने की जल्दी में है रेलवे बोर्ड?
करप्ट प्रैक्टिस और करप्ट लोगों को बढ़ावा देने में लगा हुआ है पूरा सिस्टम
साम, दाम, दंड, भेद सहित घनश्याम सिंह द्वारा ‘डैमेज कंट्रोल’ की नई मुहिम शुरू
ईडी/वी/इले. राय को रेलवे बोर्ड विजिलेंस डायरेक्टरेट से फौरन बाहर किया जाना चाहिए
सुरेश त्रिपाठी
वर्ष 1981 बैच के वरिष्ठ आईआरएसईई अधिकारी घनश्याम सिंह के विरुद्ध सिर्फ क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (क्युईसी) की ही एक अकेली शिकायत नहीं रही है, बल्कि उनके खिलाफ गुड़गांव, हरियाणा के अजय चौधरी की भी 30 जून 2016 को की गई लिखित शिकायत भी है, जिसकी प्रतियां रेलमंत्री सहित प्रधानमंत्री, रेल राज्यमंत्री, कैबिनेट सचिव, सीवीसी, सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, सीआरबी, मेंबर इलेक्ट्रिकल और एडवाइजर विजिलेंस को भी भेजी गई हैं. अजय चौधरी ने अपनी इस लिखित शिकायत में घनश्याम सिंह द्वारा रिश्वत लेकर दो मंडल अभियंताओं का ट्रांसफर रद्द किए जाने सहित राइट्स लिमिटेड में उनके द्वारा की गई घपलेबाजी सहित पटना, काठमांडू, राजगीर और कई अन्य स्थानों पर उनकी बेनामी संपत्तियों तथा रेलवे से वीआरएस लेकर रेलवे के ही कांट्रेक्टर बने अपने भाई की फर्म ‘जय माता दी कंस्ट्रक्शन कंपनी’ में लगाई गई उनकी तमाम काली कमाई इत्यादि की विस्तृत जानकारी दी गई है.
जानकारों का कहना है कि माना कि अजय चौधरी की शिकायत घनश्याम सिंह का जीएम पैनल में एम्पनेल्मेंट होने के बाद अथवा पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उनका प्रमोशन रोके जाने के उद्देश्य से की गई होगी, परंतु क्युईसी की शिकायत तो लगभग एक साल पहले 14 अगस्त 2015 की है, जो कि न सिर्फ जेनुइन है, बल्कि इसमें शिकायतकर्ता खुद प्रभावित पार्टी है, जिसका घनश्याम सिंह के सीधे या घुमा-फिराकर दिए गए आदेशों के कारण न सिर्फ कई करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, बल्कि इसमें क्युईसी को बायपास करके उनकी चहेती फर्म को टेंडर दिए जाने से भारी भ्रष्टाचार होने और कमीशनखोरी का स्पष्ट संकेत मिलता है. जाहिर है कि क्युईसी की यह शिकायत बिना किसी पूर्वाग्रह और बिना किसी सोच-समझी रणनीति के तहत सिर्फ घनश्याम सिंह और उनके आदेश के गुलाम जूनियर अधिकारियों द्वारा किए गए अन्याय के निवारण के उद्देश्य से की गई थी. ऐसे में एक साल तक रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा इस मामले में कोई भी कार्यवाही न किए जाने का यही अर्थ निकलता है कि उन्हें जानबूझकर बचाया जा रहा है अथवा घनश्याम सिंह सारी गतिविधियों को अपनी पहुंच और पैसे की बदौलत ‘मैनेज’ कर रहे हैं?
जानकारों का यह भी कहना है कि एडवाइजर विजिलेंस, रेलवे बोर्ड द्वारा यह कहने का कोई अर्थ नहीं है कि उनका काम तो ईडी/वी. और डायरेक्टर की बदौलत ही चलता है. उनका कहना है कि एडवाइजर विजिलेंस की नेक-नीयती पर कोई संदेह नहीं है, मगर उनकी यह नेक-नीयती तो तब समझ में आती जब वह संबंधित मामले में वाजिब प्रगति होती न देखकर उसे अन्य निदेशक या कार्यकारी निदेशक (ईडी/विजिलेंस) को सौंप देते ! उनका यह भी कहना है कि किसी सरकारी कार्यालय का प्रशासनिक कामकाज संबंधित कार्यालय के प्रमुख अधिकारी की सिर्फ नेक-नीयती से नहीं, बल्कि प्रशासनिक क्षमता की बदौलत चलता है. ऐसे में अब जब एडवाइजर विजिलेंस के समक्ष यह स्पष्ट हो चुका है कि उनके मातहत अधिकारियों ने न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह पूरी ईमानदारी से नहीं किया है, बल्कि वह घनश्याम सिंह एंड कंपनी के एक ‘टूल’ बनकर रह गए हैं, तब उन्हें फौरन से पेश्तर विजिलेंस डायरेक्टरेट से निकाल बाहर करना चाहिए और संबंधित मामला आगे की जांच एवं कार्यवाही के लिए किसी अन्य ईडी/वी. को सौंप देने के साथ ही खुद भी उसकी दिन-प्रतिदिन मोनिटरिंग करनी चाहिए.
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार, 14 जुलाई को जिस दिन जीएम पैनल एसीसी से अप्रूव होकर रेलवे बोर्ड पहुंचा था, उसी दिन देर शाम करीब 8 बजे रेलवे बोर्ड द्वारा घनश्याम सिंह सहित आठ जीएम की पोस्टिंग का प्रस्ताव डीओपीटी/पीएमओ को भेज दिया गया था. इसका मतलब यह है कि रेलवे बोर्ड ने इन आठ अधिकारियों का विजिलेंस क्लियरेंस पहले से ही ले रखा है. यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक बार में ही जीएम पैनल अप्रूव हो गया और उसके आते ही रेलवे बोर्ड ने आनन-फानन में पोस्टिंग प्रस्ताव भी भेज दिया. इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि रेलवे बोर्ड भी घनश्याम सिंह को जल्दी से जल्दी जीएम बनाने की तैयारी में है.
जानकारों का कहना है कि पूरा सिस्टम करप्ट प्रैक्टिस और करप्ट लोगों को बढ़ावा देने में लगा हुआ है. यदि ऐसा नहीं होता तो रेलवे बोर्ड ने घनश्याम सिंह से संबंधित शिकायतों का समस्त विवरण भी एसीसी को भेजा होता और उन्हें जीएम पैनल में रखे जाने का निर्णय एसीसी पर छोड़ दिया होता, तब हो सकता है कि एन. के. अम्बिकेश की ही तरह एसीसी ने घनश्याम सिंह का प्रमोशन या उनकी जीएम पोस्टिंग को भी ‘सील्ड कवर’ में रखा होता. उनका कहना है कि इसका साफ मतलब यह है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस और खुद रेलवे बोर्ड उन्हें बचा रहा है, जबकि घनश्याम सिंह की समस्त करप्ट गतिविधियों सहित उनके खिलाफ हुई शिकायतों की जानकारी रेलमंत्री, रेल राज्यमंत्री, पीएमओ, सीवीसी, सीबीआई, सीआरबी, एमएल, बोर्ड विजिलेंस इत्यादि सभी सक्षम संस्थाओं और अधिकारियों को काफी पहले से ही रही है.
अब ताजा स्थिति यह है कि पूरी भारतीय रेल में ‘भ्रष्ट शिरोमणि’ का ख़िताब प्राप्त कर चुके घनश्याम सिंह ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए साम, दाम, दंड, भेद के सर्वकालिक आजमाए हुए हथियार लेकर पुनः पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं. इसके लिए सर्वप्रथम उनके बचाव में पूरे एक साल से लगातार काम कर रहे उनके सबसे बड़े सहयोगी ईडी/वी/इले./एसएंडटी आर. के. राय सहित कई अन्य लोग भी सक्रिय हो गए हैं. हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि लगभग रोजाना शाम को दिल्ली के किसी पॉश होटल में घनश्याम सिंह के साथ बैठकर ‘सोमरस’ का सेवन करने वाले आर. के. राय ही समस्त विजिलेंस गतिविधियों से उन्हें अवगत कराते रहे हैं. उनका कहना है कि इस सोमरस पार्टी का खर्च घनश्याम सिंह की किसी न किसी चहेती कांट्रेक्टर फर्म के जिम्मे होता था. सूत्रों का यह भी कहना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस की तो हैसियत नहीं है इन सबकी जांच कर पाना, मगर सीबीआई इन सबकी जांच बखूबी कर सकती है कि उनकी मीटिंग्स कब-कब और कहां-कहां हुई हैं?
क्युईसी के मालिक और शिकायतकर्ता सतीश मंडावकर ने रेलमंत्री को भेजे गए संदेश में मांग की है कि ईडी/वी.इले. आर. के. राय को रेलवे बोर्ड विजिलेंस डायरेक्टरेट से फौरन बाहर किया जाना चाहिए और उनकी अब तक की समस्त संदिग्ध गतिविधियों की भी जांच की जानी चाहिए. ‘रेलवे समाचार’ से बात करते हुए श्री मंडावकर का यह भी कहना है कि घनश्याम सिंह जैसे महाभ्रष्ट अधिकारी यदि जीएम और बोर्ड मेंबर बनने में कामयाब होते हैं, तो यह न सिर्फ पूरी व्यवस्था के लिए अत्यंत शर्मनाक है, बल्कि इससे भ्रष्टाचार को भी और अधिक बढ़ावा मिलता है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि घनश्याम सिंह जीएम और बोर्ड मेंबर बनने में सफल हो जाते हैं, तो निश्चित रूप से यह पूरी व्यवस्था की हार होगी और रेलवे के इलेक्ट्रिकल विभाग में भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं रह जाएगी. इसके अलावा व्यवस्था से सर्वसामान्य आदमी का भरोसा भी उठ जाएगा. क्रमशः…