विभाग प्रमुख का रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा जाना क्या जीएम और व्यवस्था की नाकामी नहीं है?
जीएम, एसडीजीएम सहित पूर्वोत्तर रेलवे विजिलेंस में कार्यरत सभी अधिकारियों और इंस्पेक्टरों को तुरंत प्रभाव से उनके मूल कैडर में रिवर्ट करते हुए अभी अगर अन्य जोनों में ट्रांसफर कर दिया जाए तो एक बहुत गहरा संदेश जाएगा! परंतु प्रश्न यह है कि क्या रेलमंत्री और रेल प्रशासन में यह संदेश देने का इतना साहस और इतनी इच्छाशक्ति है?
गोरखपुर ब्यूरो: पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक चंद्रवीर रमण स्वयं जिस स्टोर्स कैडर से हैं, उसी कैडर/विभाग के उनके #PCMM #KCJoshi को अपने बंगले पर एक फर्म के मालिक से तीन लाख की रिश्वत लेते सीबीआई ने बुधवार, 13 सितंबर 2023 को रंगेहाथ पकड़ा और ₹2.61 करोड़ की नकद राशि भी बरामद किया। क्या यह जीएम की नाकामी नहीं है कि उसकी नाक के नीचे उसका ही समकक्ष ऐसी भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त रहा और उन्हें तथा उनकी इंटेलिजेंस को इसकी रत्ती भर भी भनक नहीं लगी? कर्मचारियों एवं जूनियर अधिकारियों का कहना है कि “कैसे लगेगी उन्हें भनक, वह तो हर जगह अपने और अपनी पत्नी के नाम के पत्थर लगवाने में व्यस्त रहते हैं, और जिसे पत्थर लगाकर अमर हो जाने की ललक लगी हो, उसे व्यवस्था की नैतिकता और सुचिता से कोई सरोकार नहीं रह जाता है!”
श्रीमान रमण महाशय स्वयं रेलवे बोर्ड में पीईडी/विजिलेंस रहकर आए हैं, मगर सात-आठ महीने के कार्यकाल में इन्होंने ऐसा कोई सतर्कतापूर्ण कार्य नहीं किया जो कि उल्लेखनीय हो! अब इनके मातहत एक विभाग प्रमुख का रंगेहाथ लाखों की रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाना पूर्वोत्तर रेलवे के विजिलेंस प्रकोष्ठ की भी भारी नाकामी को प्रमाणित करता है। यही विजिलेंस प्रकोष्ठ और इसके अधिकारी एवं इंस्पेक्टर जो बुकिंग क्लर्कों, टीसियों की चिंदी-चोरी के केस बनाकर अपना कोटा पूरा करने में लगे रहते हैं, वही के. सी. जोशी जैसे बड़े-बड़े भ्रष्ट मगरमच्छों की तरफ से आँखें बंद कर लेते हैं।
विभाग प्रमुख जैसे वरिष्ठ अधिकारी के रंगेहाथ पकड़े जाने का सीधा अर्थ है रेलवे विजिलेंस और इंटेलिजेंस की नाकामी! और इसका अर्थ है पूरी व्यवस्था की नाकामी, अर्थात् व्यवस्था काम नहीं कर रही है! इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जीएम/एसडीजीएम सहित पूर्वोत्तर रेलवे विजिलेंस में कार्यरत सभी अधिकारियों और इंस्पेक्टरों को तुरंत प्रभाव से उनके मूल कैडर में रिवर्ट करते हुए अभी अगर अन्य जोनों में ट्रांसफर कर दिया जाए तो एक बहुत गहरा संदेश जाएगा! परंतु प्रश्न यह है कि क्या रेलमंत्री और रेल प्रशासन (रेलवे बोर्ड) में यह संदेश देने का इतना साहस और इतनी इच्छाशक्ति है?
कर्मचारी बताते हैं कि #भ्रष्टाचार की जड़ें पूर्वोत्तर रेलवे की नसों में समा चुकी हैं। वह कहते हैं कि जिस जीएम को अपनी नाक के नीचे अपने ही विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के भ्रष्टाचार की भनक न हो, उसे डॉक्टरों के और अन्य अधिकारियों के भ्रष्टाचार की भनक कैसे होगी! उन्होंने बताया कि केवल पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय, गोरखपुर में 37 डॉक्टर कार्यरत हैं। ये सभी डॉक्टर रेल से नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस (#NPA) का भुगतान लेते हैं। #NPA पूरी तरह से वेतन माना जाता है, अर्थात वेतन पर मिलने वाले सभी लाभ इस पर भी देय होते हैं।
आश्चर्य यह है कि ये सभी के सभी डॉक्टर खुलकर और डंके की चोट पर प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं, प्रति मरीज ₹300 पर, सुबह-शाम इनके बंगलों पर रेलवे मरीजों की एक लंबी लाइन लगी दिख जाएगी। कुछ डॉक्टरों के निजी नर्सिंग होम हैं, तो कुछ निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों में कंसल्टिंग के साथ उनकी दलाली भी करते हैं, अर्थात् बीमार और रेल अस्पताल से असंतुष्ट रेलकर्मियों को वहाँ जाने को प्रेरित करते हैं! हरेक आम-खास रेल कर्मचारी/अधिकारी इन सब बातों/तथ्यों को बहुत अच्छे से जानता है और कभी न कभी इन डॉक्टरों की सेवा भी लेता है। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि इस संबंध में न तो रेल प्रशासन अर्थात् जीएम को कुछ मालूम है, और न ही विजिलेंस को। यह अलग बात है कि विजिलेंस विभाग की मासिक आय का एक प्रमुख स्रोत ये डॉक्टर भी हैं।
वह कहते हैं कि यह तो एक नमूना है। जिधर भी निगाह डालेंगे, पूर्वोत्तर रेलवे में इसी तरह की कोई न कोई अवैध गतिविधि होती दिख जाएगी। कर्मचारी यह भी कहते हैं कि केवल मूँछों में ताव देने अथवा सुबह-शाम गोरखनाथ मंदिर में माथा टेकने से व्यवस्था नहीं चलती, इसके लिए प्रशासनिक दक्षता और अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना पड़ता है, मगर प्रशासनिक क्षमता नाम की इस चिड़िया के दर्शन पूर्वोत्तर रेलवे में होते कहीं दिखाई नहीं देते हैं! ऐसी स्थिति में क्या यह संभव है कि इस रेल से भ्रष्टाचार को कभी समाप्त किया जा सकता है?
रेलवे के डॉक्टरों और उनके करप्शन को रेलवे बोर्ड, जोनल जीएम और डीआरएम ही प्रोटेक्ट करते हैं, यह तथ्यात्मक सत्य है, इसीलिए इनके रोटेशनल ट्रांसफर नहीं होते! रेल प्रशासन अगर कभी इनके ट्रांसफर का यत्किंचित प्रयास भी करता है और दो-चार डॉक्टरों का ट्रांसफर कर देता है, तो ये नौकरी छोड़ देने की धमकी देते हैं, कुछ तो कैट में जाकर प्रशासन को शीर्षासन कराने लगते हैं। अन्य जोन में जाने की तो बहुत दूर की बात है, दूसरे डिवीजन में भी जाने को तैयार नहीं होते हैं रेलवे के ये डॉक्टर! जानकार बताते हैं कि सिक-फिट के धंधे से लेकर निजी एवं एम्पैनल्ड हॉस्पिटल्स में भी रेफर करने तक रेलवे के मेडिकल डिपार्टमेंट की हर गतिविधि में करप्शन समाया हुआ है। मेडिकल डिपार्टमेंट की हर खरीद में अन्य विभागीय ऑफिसर्स की ही तरह डॉक्टरों का भी कमीशन रहता है। यही स्थिति सभी जोनल रेलों और उत्पादन इकाईयों में भी है।
वर्तमान में रेलकर्मियों को अच्छी मेडिकल सुविधा देने हेतु हर जोन और डिवीजन में सैकड़ों प्राइवेट अस्पतालों को रेलवे के साथ अटैच किया गया है, परंतु यह व्यवस्था भी रेलवे के डॉक्टरों के करप्शन की भेंट चढ़ गई है। वहां से भी इनके कमीशन की व्यवस्था चालू हो गई है। इन्हीं की मिलीभगत या लापरवाही के कारण पैनल्ड निजी अस्पताल उमीद कार्ड को सफल नहीं होने दे रहे हैं। रेलकर्मियों और खासकर रिटायर्ड रेल कर्मचारियों एवं अधिकारियों के लिए यह उमीद कार्ड एक छलावा भरा सिरदर्द बनकर रह गया है। रेलवे के डॉक्टरों की मनमानी हमेशा चरम पर रहती है। यह तभी समाप्त होगी जब रेलवे बोर्ड, जीएम और डीआरएम इन्हें संरक्षण देना बंद करेंगे और अन्य रेल अधिकारियों की ही तरह इनका भी रोटेशनल ट्रांसफर सुनिश्चित किया जाएगा।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी