सीमा कुमार: जो लेवल-16 में रिजेक्ट हुईं, वह लेवल-17 में फिट कैसे हुईं?
#IRMS एक आड़ बन गई है अपनी मर्जी के ‘यसमैन’ को उच्च पदों पर बैठाने की! इसमें पारदर्शिता और सबके लिए समान अवसर का नितांत अभाव है! इसकी पूरी प्रक्रिया भी इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि जिन लोगों को पहले-दूसरे चयन में रिजेक्ट कर दिया गया था, वह पहले रिव्यू में भी रिजेक्ट होने के बावजूद दूसरे रिव्यू में सोर्स-सिफारिश या अन्य तरीकों का जुगाड़ करके न केवल पास हो रहे हैं, बल्कि ऊँचे पद प्राप्त कर रहे हैं! जबकि योग्य, सक्षम, कर्मठ और निष्ठावान अधिकारी इससे साइड लाइन हुए हैं और लगातार हो रहे हैं या जानबूझकर किए जा रहे हैं!
खबर है कि #SeemaKumar, #IRTS 1986 बैच को L-17 में ‘फिट’ करके मेंबर/ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट (#MOBD) में पोस्टिंग के लिए इनका एक अकेला नाम पीएमओ (#ACC) को भेजा गया है! जानकारों का कहना है कि समझ में नहीं आता कि आखिर मोदी सरकार रिजेक्टेड डिजेक्टेड लोगों को उच्च पदों पर बैठाकर चुनावी वर्ष में जनता को क्या संदेश देना चाहती है, जबकि यह सभी जानते हैं कि इस अ-नीति से न देश का कोई भला होने वाला है, न व्यवस्था का, और न ही रेल का!
उनका यह भी कहना है कि पता नहीं इनमें ऐसी क्या विशेष योग्यता, विशेषता और क्षमता देखी गई है? जबकि बताते हैं कि ये L-16 (#GM) मेन में बायपास हुई थीं और दोनों अपील (रिव्यू) में भी रिजेक्ट हो चुकी थीं! तो जब इन्हें #IRMS मिला ही नहीं था तो इन्हें L-17 (#Member) में कंसीडर ही कैसे किया गया? L-17 में अवैध(?) रिव्यू में भी बताया जाता है कि इनके मार्क्स 80 ही आए हैं! जबकि कट-ऑफ 90+ का है! फिर भी इन्हें बोर्ड मेंबर बनाने के लिए इनके नाम का सिंगल प्रपोजल भेजा गया है! जबकि L-17 में पहले से फिट कुछ लोग पिछले कई महीनों से पोस्टिंग की कतार में हैं!
इसके अलावा, बताते हैं कि L-17 में रिव्यू में जो दूसरे लोग क्वालिफाई किए हैं, उनके मार्क्स सीमा कुमार से काफी अधिक बताए गए हैं- 90 से अधिक! यही नहीं, आठ महीने के लिए इन्हें मेंबर बनाने का औचित्य क्या है? जबकि आईआरटीएस में ही इनसे अधिक कार्यकाल वाले, योग्य और सक्षम अधिकारी उपलब्ध हैं, और कौन है जो ऐसे लोगों को प्रमोट कर रहा है? क्या आठ महीने के लिए सीआरबी बनाने का परिणाम देखकर भी अभी रक्त की प्यास नहीं मिटी? नीति विशेषज्ञों का मानना है कि “#IRMS की व्यवस्था पूरी तरह से अव्यवहारिक और अपारदर्शी है, जिसमें सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं है, यह पूरी व्यवस्था मनमानी मनमर्जी पर आधारित है जो कि रेल की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो रही है।”
वर्तमान बोर्ड भी जब पुराने पैटर्न पर ही फुलफिल हुआ था तब भी यह सवाल उठा था कि फिर #IRMS की आवश्यकता क्या थी? और अब फिर से वही सवाल सामने है जब #MOBD के रिक्त हुए पद पर पुनः एक और अयोग्य #IRTS को बैठाने की तैयारी कर ली गई है, वह भी तब जब #IRMS के जरिए ही उससे अधिक योग्य और वरिष्ठ अधिकारियों का चयन – रिव्यू में भी हुआ – और पहले से भी हुआ पड़ा है!
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सीमा कुमार जब #PCSO/NR थीं तब 19.10.2018 को अमृतसर में एक बड़ा रेल हादसा हुआ था, जिसमें 60 से अधिक लोगों की जान चली गई थी! तब तत्कालीन #GMNR और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हवाई मार्ग से सीमा कुमार भी अमृतसर गई थीं, जहां जीएम सहित बाकी अधिकारीगण तो घटनास्थल पर गए, हॉस्पिटल जाकर घायलों के इलाज की व्यवस्था की और मृतकों के परिजनों को सांत्वना दी, मगर वहीं सीमा कुमार सीधे ऑफिसर्स रेस्ट हाउस में जाकर चादर तानकर सो गई थीं! इसकी एक फोटो भी तब मीडिया की चर्चा में आई थी, जिसे किसी तरह वरिष्ठ अधिकारियों ने हस्तक्षेप करके और यह मानकर मैनेज किया था कि इससे सीमा कुमार की कम, रेलवे की बदनामी अधिक होगी!
सीमा कुमार वर्तमान में #AM/T&C, रेलवे बोर्ड और लुकिंग ऑफ्टर #CMD/#IRCTC भी हैं! #RailSamachar का इनके कार्य-व्यवहार के बारे में 360 डिग्री यह है कि क्रास-कैडर जितने भी अधिकारियों से पूछा गया, उनमें से एक भी अधिकारी ने सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, #डीआरएम में छोड़कर बाकी किसी ब्रांच ऑफिसर में इनका कोई खास एक्सपोजर नहीं रहा, तो क्या यह माना जाए कि ‘ऊपर’ के मुंहजबानी आदेशों पर जो डॉटेड लाइंस पर साइन करने को तैयार हो, इंगित-इच्छित क्राइटेरिया बनाकर निर्देशित कांट्रेक्ट अलॉट करने को तैयार हो, वही अब सबसे बड़ी क्वालिफिकेशन बन गई है? और क्या केवल इसीलिए सिंगल नाम मेंबर/ओबीडी के लिए भेजा गया है? सीएमडी/आईआरसीटीसी की पोस्ट लंबे समय से नहीं भरे जाने के निहितार्थ भी स्पष्ट हैं!
जानकारों का कहना है कि #IRMS एक आड़ बन गई है अपनी मर्जी के ‘यसमैन’ को जीएम/मेंबर के ऊपरी पदों पर बैठाने की! इसमें पारदर्शिता और सबके लिए समान अवसर का नितांत अभाव है! इसकी पूरी प्रक्रिया भी इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि जिन लोगों को पहले-दूसरे चयन में रिजेक्ट कर दिया गया था, वह पहले रिव्यू में भी रिजेक्ट होने के बावजूद दूसरे रिव्यू में सोर्स-सिफारिश या अन्य तरीकों का जुगाड़ करके न केवल पास हो रहे हैं, बल्कि ऊँचे पद प्राप्त कर रहे हैं! इससे भी उपरोक्त तथ्य की पुष्टि होती है! जबकि अधिकांश योग्य, सक्षम, कर्मठ और निष्ठावान अधिकारी इससे साइड लाइन हुए हैं, और लगातार हो रहे हैं, या जानबूझकर किए जा रहे हैं!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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