डीआरएम पोस्टिंग: विधाता-सिंड्रोम की सनक का सटीक उदाहरण!
विधाता की व्यवस्था में नैसर्गिक न्याय और अवसर की समानता सबको सहज सुलभ हैं; जबकि विधाता–सिंड्रोम से ग्रसित मनुष्य की व्यवस्था में उसकी सनक और पसंद–नापसंद पर! आनन–फानन में शनिवार, 15 जुलाई को की गई 35 #DRM की पोस्टिंग सत्ता की हनक में जो सनक चढ़ती है, उसी का उदाहरण है!
रेलवे के बहुसंख्यक अधिकारियों और कर्मचारियों में सत्ता के लिए और रेलवे को चला रहे लोगों के प्रति इतना क्षोभ और आक्रोश इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। यह क्षोभ और आक्रोश अब ‘आह’ में बदल चुका है जिससे न सिर्फ प्रधानमंत्री और रेलमंत्री को चिंतित होना चाहिए, बल्कि रेलमंत्री के साथ असली सत्ता सुख भोग रहे उनकी टीम के लोगों और #DOB वाली काबायली योग्यता से शीर्ष पर बैठे लोगों को और ज्यादा चिंतित होना चाहिए!
मनुष्य के हाथ में जब पॉवर (अधिकार) आता है तो वह विधाता-सिंड्रोम से ग्रस्त हो जाता है। वह अपने को विधाता ही समझने लगता है और इस विधाता-सिंड्रोम से ग्रसित व्यक्ति जितने भी अन्यायपूर्ण और मनमाने तरीके होते हैं उनका उपयोग करता है और उन्हें ही वह सही मानता है।
ठीक रावण की तरह ये अपने को #विधाता ही मानते हैं और इस हनक में विधाता को भी चुनौती दे डालते हैं कि “जाओ तुम्हारी भी ऐसी की तैसी!” ये विधाता-सिंड्रोम से ग्रसित लोग यह नहीं देखते हैं कि उनके निर्णय से कितनी धरती हिली, कितना रक्तपात हुआ, कितनी आर्त चीखें निकलीं और कितनी आहें उद्धवस्त हुईं!
अपने को रेलवे का विधाता समझने वाले लोग अपने को रेल अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए त्रिदेव ही समझते हैं। ये विधाता लोग समझते हैं कि रेल अधिकारियों और कर्मचारियों का जीवन-मरण सब उनके ही हाथ में है, इसलिए ये जैसा भी अत्याचार और अन्याय करें, आप चुपचाप सह लें, नहीं तो भस्म होने को तैयार रहें। इस व्यवस्था में भस्म करने की और टार्गेट किलिंग की परंपरा स्थापित की जा चुकी है।बाकायदा फोन करके शीर्षस्थ स्थान के अधिकारी द्वारा डराया धमकवाया जाता है, ठीक डी-कंपनी की तर्ज पर!
हालाँकि वे भूल जाते हैं कि अगर सचमुच के विधाता ने उनके साथ उनके विधाता सिंड्रोम वाली मानसिकता से व्यवहार किया होता और व्यवस्था बनाई होती, तो डेढ़ अरब की आबादी वाले देश में ये सभी अपनी नैसर्गिक योग्यता के बूते पर तो अंतिम पंक्ति में ही खड़े होते। इनकी तरह अगर विधाता कोई क्राइटेरिया बना देता तो ये जो शीर्ष पर बैठे हैं और अपने को ही विधाता समझ बैठे हैं, ये लोग अपनी “नेत और नियत” के बूते पर मनुष्य योनि में तो आ ही नहीं पाते, बल्कि अपनी दुष्ट-वृति के कारण किसी गटर में पीलू ही होते।
लेकिन वास्तविक विधाता ने इन्हें इनकी योग्यता से परे जाकर इन्हें मनुष्य योनि में जन्मने का और उसमें भी बड़े और जिम्मेदार पदों पर बैठने का अवसर दिया। यही अन्तर है “विधाता” में और “विधाता-सिंड्रोम” से ग्रसित लोगों में! विधाता की व्यवस्था में नैसर्गिक न्याय और अवसर की समानता सबको सहज सुलभ हैं; जबकि विधाता-सिंड्रोम से ग्रसित मनुष्य की व्यवस्था में उसकी सनक और पसंद-नापसंद पर!
आनन-फानन में शनिवार, 15 जुलाई को की गई ये 35 #DRM की पोस्टिंग सत्ता की हनक में जो सनक चढ़ती है उसी का उदाहरण है। इसमें न तो जनवरी/फरवरी 2022 में आई #EQI लिस्ट वाले पैनल में अपनाई गई क्राइटेरिया को माना गया है, और न ही ठीक 52 साल वाली क्राइटेरिया का ही पूर्ण रूप से पालन किया गया है।
ऐसा लगता है कि “चुप्पा और छुप्पा” रेल के विधाता-सिंड्रोम से ग्रसित लोगों के मन को जो भाया और उनके मन ने जो तर्क गढ़ लिया, उसे ही अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर इसका एक नया क्राइटेरिया बना डाला और दसियों की हत्या कर डाली तथा आने वाले बैचों के सैकड़ों लोगों के भी #DRM बनने के अवसर का गला घोंट दिया।
ये वह विधाता लोग हैं जिनके विषय में ये लोग जहां के #DRM रहे हैं, और बाद में जहां-जहां पदस्थ रहे हैं, वहां इन्हें इनके काम के कारण नहीं, बल्कि अन्य ही कारणों से ये जाने जाते हैं।
#RailSamachar बार-बार #DRM सेलेक्शन की विसंगतियों और कमियों को उजागर करता रहा है और इसीलिए जब लगा कि लीक से हटकर कुछ होने जा रहा है तो हजारों लोगों की फीडबैक मिलने के बाद सरकार की पहल की प्रशंसा और समर्थन किया गया। लेकिन अब सचमुच लग रहा है कि यह सरकार ही विधाता-सिंड्रोम से ग्रसित है, इसीलिए इसके अधिकारी भी इस सिंड्रोम से ग्रसित हो गए हैं।
ये विधाता लोग संविधान से नहीं, बल्कि ये बॉलीवुडिया भांड़ों से ज्यादा प्रभावित हैं, जो कहते हैं- “एक बार जो डिसाइड कर लिया तो अपुन का भी नहीं सुनता।”
माननीय प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी, शनिवार, 15 जुलाई को जारी #DRM पोस्टिंग की इस लिस्ट को एक बार जरा गौर से देखिये या जिस पैनल के आधार पर यह हुआ है और पिछले पैनल को, जिसके आधार पर मार्च 2023 की पोस्टिंग हुई, और जो पैनल खुद डेढ़ साल विलंब से बना और उतने ही विलंब से पोस्टिंग भी हुई थी!
कैसे 53 साल 8 महीने वाले को आप इसी मार्च में #DRM बना देते हो? और कैसे इसी 15 जुलाई को जो #DRM पोस्टिंग के ऑर्डर निकालते हो, उसमें जानबूझकर ऐसा कटऑफ डालते हो कि 4 दिन, 10 दिन, 1 माह, 2 माह, और अधिकतम मार्च से लें, तो 3 माह के अंतर से लोग पुराने पैनल में होने के बाद भी #DRM बनने से वंचित हो जाते हैं?
आपके नीति-नियम और उनके क्रियान्वयन में एकरूपता क्यों नहीं है? आपके नियम, प्रक्रिया और पालन में पारदर्शिता क्यों नहीं है? आप बता सकते हैं कि 10 सालों में #DRM पैनल बनाते समय क्राइटेरिया क्या रखा था, और कटऑफ-डेट क्या रखी गई थी?
पैनल बनाने का कौन सा समय है? और आपने 10 सालों में किस-किस महीने में पैनल बनाया? इन 10 सालों में पैनल कब-कब विलंब से बना? कब-कब #DRM की पोस्टिंग विलंब से हुई? और कितने विलंब से हुई? और यह विलंब क्यों हुआ?
क्या आपने कभी कोई विश्लेषण किया कि विलंब से पैनल बनने और विलंब से पोस्टिंग होने से आगे कितने अधिकारियों पर इसका कितना कुप्रभाव होता है? इसके लिए क्या किसी को दोषी ठहराया गया? या इसकी भरपाई के लिए कोई कदम उठाया गया?
विलंब से #DRM पैनल बनने और विलंब से पोस्टिंग होने के कारण कोर्ट गए लोगों की संख्या और कोर्ट के आदेश से #DRM बनाए गए लोगों की संख्या क्या है?
माननीय प्रधानमंत्री जी, रेल मंत्रालय और रेलमंत्री के पास इस बात का क्या जवाब है कि इस बार यह डीआरएम पोस्टिंग करने की इतनी जल्दी क्या थी? अभी तो वर्तमान डीआरएम के कार्यकाल भी पूरे नहीं हुए थे, जहां डीआरएम पोस्टिंग में महीनों ही नहीं, बल्कि सालों की देरी होती रही है, वहां डेढ़ महीने पहले यह पोस्टिंग करने की जल्दबाजी क्यों थी?
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, रेल मंत्रालय और सरकार के पास इस बात का क्या जवाब है कि 52 साल के विधान को समाप्त करने में दिक्कत क्या है? इसे समाप्त करने पर रेल का क्या नुकसान हो जाएगा? जब 75 साल बाद जम्मू कश्मीर से धारा 370 एवं सेक्शन 35A खत्म हो सकता है, तब 170 साल बाद भारतीय रेल से 52 साल का भेदभावपूर्ण पक्षपाती क्राइटेरिया क्यों नहीं समाप्त हो सकता?
इस बार 1 जुलाई 1970 का क्राइटेरिया रखने का मतलब ही यह हुआ कि आप 52 साल की क्राइटेरिया को फॉलो न करके, 53 साल की अस्पष्ट क्राइटेरिया बना दिए हैं, क्योंकि अगर 52 साल का क्राइटेरिया होता तो आप इस बार 1 जुलाई 1971 का कटऑफ-डेट रखते!
इस चालाकी या चालबाजी का एक निहितार्थ यह भी है कि आप 1 जुलाई 1970 से लेकर 1 जुलाई 1971 के बीच आने वाले कुछ खास लोगों को ‘एडजस्ट’ करने के लोभ को नहीं छोड़ पाए! कुछ सर्विसेस में अपने चहेतों को ओब्लाइज/फेवर करना था जिसके लिए कई लोगों की बलि दी गई।
#Electrical में आपकी इस अन्यायपूर्ण और विधाता-सिंड्रोम वाली स्ट्रैट्रेजी से पुराने पैनल के बचे सभी 7 अधिकारी एक झटके से सीधे बाहर हो गए। इसमें कुछ अधिकारी बहुत ही बेहतरीन #DRM होते, लेकिन उससे तो आपको मतलब ही नहीं है। मगर हाँ, इसमें शीर्ष अधिकारी और #KMG ने अपने लोगों को सबसे महत्वपूर्ण और कमाऊ डिवीजन बांट लिया।
इसका परिणाम यह हुआ है कि जो जितना बड़ा नमूना और भ्रष्ट है, उसे उतना ही महत्वपूर्ण डिवीजन मिला है। इनमें आपके अधिकांश #DRM पैसे के पीछे किसी भी हद तक जाने वाले हैं और इसमें से अधिकांश ने अपनी अब तक की पूरी सर्विस एक या दो जगह पर ही की है।
डिवीजन देने मे योग्यता और अनुभव की जगह आपने बाकी सब चीज को महत्व दिया है। रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में यह चर्चा बड़े जोर पर है कि राजस्थान के एक #कथावाचक का भी #DRM पोस्टिंग में कोटा है, भले ही #BJP के बड़े-बड़े नेताओं की भी न सुनी जाती हो। #DRM अहमदाबाद जैसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर जो पोस्टिंग हुई है, वह इसकी मिशाल है।
#RailSamachar ने पहले ही मंत्री जी को आगाह कर दिया था कि ये माफिया सिंडिकेट अपने लोगों को आगे 10 साल तक का रोडमैप सेट करके #DRM पैनल बनाएगा और पोस्ट कर जाएगा। कायदे से वर्तमान #CRB, जिनका कार्यकाल अगले माह पूरा हो जाएगा और सुधीर कुमार के रहते तो #DRM की यह पोस्टिंग होनी ही नहीं चाहिए थी। अगर थोड़ी सी भी नैतिकता इनके अंदर रहती तो ये पुराने पैनल में घोर अन्यायपूर्ण असंवैधानिक खुरपेंच नहीं करते और अगर मंत्री में थोड़ी सी भी समझदारी होती तो वे इन्हें वैसा नहीं करने देते!
कई वरिष्ठ पत्रकारों और राजनेताओें, जिनमें सत्ताधारी पार्टी के भी हैं, का कहना है कि “जिस दिन इस देश में गैर-भाजपा सरकार बनेगी उसके बाद #BJP के जितने बेलगाम और ब्लू आईड मंत्री रहें हैं, और उसमें भी जो लोग रेल मंत्रालय सम्भाले हैं, उनकी और उनके साथ के लोगों की उससे भी बुरी गति होगी जो इस सरकार में लालू यादव और विपक्ष के अन्य नेताओं की हो रही है!”
उनका यह भी कहना है कि “लालू के पास तो जनाधार भी है और उन्होंने वही किया जो पहले के मंत्री करते थे और शायद रेल को कुछ बेहतर ही दिया, लेकिन इस तरह की संगठित तरीके से लूट, अराजकता और निरंकुशता का माहौल बनाकर रेल को इस तरह से बर्बादी और निराशा के मुहाने पर नहीं पहुंचाया था। इसलिए लालू के साथ तो बहुतों की सहानुभूति भी है और उन्हें शायद उतना नुकसान न हो जितना पहुचाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जब ये सरकार बदलेगी तो रेल चलाने वाले और रेल चलाने वालों को भी उंगली पर नचाने वालों में से कोई नहीं बचेगा और न ही किसी की सहानुभूति इनके साथ होगी।”
आज रेलवे में हर तरफ चंद लोगों का कब्जा है, चाहे वह व्यापारी हो या अधिकारी! कुछ चुनिंदा अधिकारी ही चुन-चुनकर चुनिंदा पोस्ट्स पर म्यूजिकल चेयर खेलते रहते हैं और अधिकांश कर्मठ, ईमानदार और समर्पित अधिकारी हासिये पर पड़े सड़ा दिए जा रहे हैं। कोई कितना भी बोले, कितना भी बताए, लेकिन सत्ता के दंभ में ऊपर बैठे लोगों पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ रहा है, बल्कि बोलने वालों को और समर्पण से काम करने वालों को, असहमति जाहिर करने वालों को धमका दिया जाता है, #Vigilance से लेकर #sedition तक के चार्ज लगाने की धमकी देकर खामोश कर दिया जाता है। और तो और, 360 डिग्री के रिव्यू के अमोघ अस्त्र का प्रयोग कर ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनके कैरियर को खत्म ही कर दिया जाता है।
इसलिए इस निरंकुश और अन्यायपूर्ण माहौल में जितने भी पीड़ित लोग हैं, वे सत्ता की हनक में बैठे ऊपर और उनके साथ के एक-एक आदमी की छोटी से छोटी जानकारी पुख्ता सबूत के साथ इकट्ठा किए जा रहे हैं, पूरी जन्मकुंडली खंगाल रहें हैं। अधिकांश लोगों का यह भी कहना है कि कभी तो समय बदलेगा, कभी तो ये सरकार बदलेगी, और न्याय होगा!
#RailSamachar ने अपने तीन दशक से अधिक के सफर में रेलवे के बहुसंख्यक अधिकारियों और कर्मचारियों के अंदर से सत्ता के लिए और रेलवे को चला रहे लोगों के प्रति इतना क्षोभ और आक्रोश इससे पहले कभी नहीं देखा था। रेल में कोई इतना बेवकूफ भी नहीं हैं कि उन्हें पता न हो कि असली चाभी किसके पास है! अब यह क्षोभ और आक्रोश ‘आह’ में बदल चुका है जिससे न सिर्फ प्रधानमंत्री और रेलमंत्री को चिंतित होना चाहिए, बल्कि रेलमंत्री के साथ असली सत्ता सुख भोग रहे उनकी टीम के लोगों और कबायली मानसिकता तथा #DOB वाली योग्यता से शीर्ष पर बैठे लोगों को और ज्यादा चिंतित होना चाहिए, जिसके परिणाम से उन्हें मुक्ति रेलवे छोड़ने के बाद भी नहीं मिलेगी!
अति कभी न करना प्यारे, अति कभी न करना।
अति कभी न करना प्यारे, इति तेरी हो जाएगी॥
बिन पंखों के पंछी जैसी, गति तेरी हो जाएगी!
अति सुंदर थी सीता मइया, जिसके कारण हरण हुआ।
अति घमंडी था वो रावण, जिसके कारण मरण हुआ॥
अति सदा वर्जित है बन्दे, क्षति तेरी हो जाएगी।
बिन पंखों के पंछी जैसी, गति तेरी हो जाएगी॥
अति वचन बोली पांचाली, महाभारत का युद्ध हुआ।
अति विश्वास कभी ना करना, मति तेरी फिर जाएगी॥
बिन पँखों के पँछी जैसी, गति तेरी हो जाएगी!
अति बलशाली सेना लेकर, कौरव चकनाचूर हुए।
अति लालचवश जाने कितने, सत्कर्मों से दूर हुए॥
अति के पीछे हर्ष ना भागो, अति अंत करवाएगी।
बिन पंखों के पँछी जैसी, गति तेरी हो जाएगी॥
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी