वरिष्ठ नागरिकों के रेल किराए में छूट पर सुप्रीम कोर्ट का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला

जनता की सारी सुविधाएं समाप्त करनी हैं मगर विधायकों, सांसदों की कोई सुविधा खत्म नहीं होगी, वैधानिक संस्थाओं की यह विसंगतिपूर्ण कार्य प्रणाली देश और समाज को दुविधा में डाल रही है!

कोविड महामारी से पहले रेलवे द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को रेल किराए में दी जाने वाली छूट (#कंसेशन) की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। केंद्र सरकार की तरफ से 2020 में कोविड-19 के दौरान लोगों की आवाजाही कम करने के लिए रेलवे ने ये फैसला वापस ले लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 से पहले रेलवे द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को दिए जाने वाले कंसेशन की याचिका को खारिज कर दिया है। मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पॉलिसी का मामला है और कोर्ट इसके लिए सरकार को निर्देश नहीं दे सकता।

जस्टिस एस के कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने एम के बालाकृष्णन द्वारा इस संबंध में दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में महामारी के प्रसार को रोकने के लिए बंद की गई रियायतों की बहाली की मांग की गई थी। इस याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि ये राज्य नीति का मामला है। इस पर कोर्ट कुछ नहीं कह सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका में परमादेश की रिट जारी करना, इस अदालत के लिए उचित नहीं होगा। सरकार को वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं और राजकोषीय नतीजों को ध्यान में रखते हुए इस मामले पर फैसला करना चाहिए।” पीठ ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि बुजुर्गों को रियायतें देना राज्य का ‘दायित्व’ है।

संसदीय स्थायी समिति ने की थी सिफारिश

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों की आवाजाही कम करने के लिए वरिष्ठ नागरिकों की रेल किराए में छूट को वापस ले लिया था।

हाल ही में एक संसदीय स्थायी समिति ने कोरोना महामारी की शुरुआत से पहले वरिष्ठ नागरिकों को दी गई रियायतों को फिर से शुरू करने की सिफारिश की थी। बीजेपी सांसद राधा मोहन सिंह की अध्यक्षता वाली रेल मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई थी।

कोरोना से पहले भारतीय रेल द्वारा 60 साल या उससे अधिक आयु के पुरुषों को किराए में 40 प्रतिशत की छूट और 58 साल से अधिक आयु की महिलाओं को 50 प्रतिशत की छूट दी जा रही थी। यह छूट मेल, एक्सप्रेस, शताब्दी, दूरंतो, राजधानी इत्यादि ट्रेनों में सभी वर्गो के लिए दी जाती थी।

वरिष्ठ नागरिक देश की थाती हैं!

वरिष्ठ नागरिक देश की अनुभवी थाती हैं और इनकी जमा पूंजी पर सरकार करोड़ों का मुनाफा कमाती है। इसके अलावा सरकार का जनता के प्रति सामाजिक सरोकार भी है। संपूर्ण परिप्रेक्ष्य के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट धार्मिक मामलों में बहुसंख्यकों के हितों को दरकिनार करते हुए अति-सेकुलर दिखाई देता है, वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ नागरिकों की रियायत और व्यापक सामाजिक सरोकार जैसे मामलों पर सरकार के सामने नतमस्तक होता नजर आता है।

सामान्य जनता की रियायतों और सुविधाओं को लगातार कम किया जा रहा है, मगर विधायकों, सांसदों की सुविधाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, नेताओं की चल-अचल संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है, वह जितनी बार विधायक या सांसद बनेंगे उन्हें उतनी बार की पुरानी पेंशन मिलेगी और यात्राओं में आजीवन एक अटेंडेंट के साथ प्रथम श्रेणी की सुविधा मिलेगी! सारे करों से छूट मिलेगी, उनका पैन/आधार बैंक खाते से लिंक नहीं होगा! मगर सामान्य जनता की हर गतिविधि पर सरकार नजर रखेगी, उसे हर चीज-वस्तु पर कर देना है, अपना पैन-आधार बैंक खाते से लिंक करवाना है, वरना सरकार उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करेगी! सरकार और वैधानिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली में यह विसंगति देश और समाज को दुविधा में डाल रही है!