पू. म. रे. के सभी कोटेशन/सिंगल/लिमिटेड टेंडर्स की सीबीआई द्वारा जांच होनी चाहिए

सर्विस कंडक्ट रूल में बहुत बदलाव की जरूरत है, वरना अधिकारीगण अधीनस्थों की प्रताड़ना और शोषण करते रहेंगे

पूर्व पीसीई एस. सी. झा और जी. एस. तिवारी के कार्यकाल में घोषित हुए सभी परीक्षा परिणामों की गहराई से जांच होनी चाहिए

यदि राजनीतिज्ञ, मीडिया और न्यायालय नहीं होते, तो सिंडिकेट के तहत होने वाले भ्रष्टाचार, लूट-खसोट पर कोई अंकुश नहीं हो पाता

विशेष प्रतिनिधि, पटना

हाजीपुर : आखिर पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक ए. के. मित्तल ने अपनी आंखों से निर्माण कार्य की वास्तविक स्थिति (असलियत) को 27 जुलाई 2015 को अपने निरीक्षण के दौरान खुद देखा. इस मौके पर महाप्रबंधक श्री मित्तल के साथ उनके दोनों मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/नार्थ बी. पी. गुप्ता और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/साउथ एल. एम. झा भी थे. ‘रेलवे समाचार’ द्वारा प्रकाशित सभी तथ्यपरक खबरें पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन सहित ओपन लाइन के कर्मचारियों एवं अधिकारियों के बीच गंभीर चर्चा का मुद्दा बनी हुई हैं. पिछली सभी खबरों पर इंगित कमियों की तरफ महाप्रबंधक द्वारा भी बार-बार आवश्यक सुधार के निर्देश दिए गए हैं.

तथापि कुछ अधिकारी इस बात से बहुत दुखी हो रहे हैं कि ‘रेलवे समाचार’ ने उनकी तमाम कमियों और लापरवाहियों को उजागर करके उन्हें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है. कर्मचारियों द्वारा उनको यह भी ‘कानाफूसी’ करते सुना गया है कि यदि सीबीआई और विजिलेंस द्वारा इन सभी कोटेशन/सिंगल/लिमिटेड टेंडर्स की जांच शुरू कर दी गई, तो उनमें से कोई नहीं बचेगा. कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से भागने या बचने के उद्देश्य से नए निरीक्षकों पर दवाब डालकर उनसे एमबी भरवाते हैं और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाते हैं. अतः रेल प्रशासन को चाहिए कि इंजीनियरिंग कोड में दिए गए प्रावधान के अनुसार ही निर्माण संगठन और ओपेन लाइन में मेजरमेंट बुक (एमबी) भरवाई जाए, क्योंकि एमबी उसी निरीक्षक से भरवाए जाने का नियम है, जिसे निर्माण कार्य का पर्याप्त अनुभव और तकनीकी ज्ञान हो.

कर्मचारियों का यह भी कहना है कि सर्विस कंडक्ट रूल में बहुत बदलाव की जरूरत है. उनका कहना है कि यदि इसमें बदलाव नहीं किया जाएगा, तो इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि अधिकारीगण हिटलर से भी एक कदम आगे जाकर अपने अधीनस्थों की प्रताड़ना और शोषण करते रहेंगे. उनका कहना है कि विभिन्न राजनीतिज्ञों और मीडिया द्वारा जो कई मुद्दों पर सकारात्मक अनुसंशा या सुझाव दिए जाते हैं, वह वास्तव में रेलवे और राष्ट्र के हित में होते हैं, यदि राजनीतिज्ञ, मीडिया और न्यायालय नहीं होते, तो अधिकारियों एवं ठेकेदारों की सिंडिकेट के तहत होने वाले भ्रष्टाचार, लूट-खसोट पर कोई अंकुश नहीं हो पाता. इसका उदाहरण रिटायरमेंट तक पास/पीटीओ बंद करने का आदेश या अन्य जैसे मनमानी निर्णय सिर्फ सम्बंधित कदाचारियों को बचाने के उद्देश्य से ही किए जाते हैं.

उनका कहना है कि अनुसंशा या सिफारिस तो कोई भी कर सकता है, परंतु उसके तथ्य की जांच और सही अवलोकन सम्बंधित उच्च अधिकारियों द्वारा किया जाना रेलवे के हित में है. स्थानांतरण एवं पोस्टिंग के लिए मानवीय आधार पर कर्मचारियों के पारिवारिक सदस्य सांसद या महाप्रबंधक को निवेदन कर ही सकते हैं, यह उनका मौलिक अधिकार है. मगर राजनितिक और मीडिया का उपयोग किसी के साथ दुर्व्यवहार अथवा किसी की छवि खराब करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. कर्मचारियों का कहना है कि कुछ अधिकारी कई मामलों में अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए या किसी ठेकेदार को फेवर करने के लिए अपने अधीनस्थ के साथ गाली-गलौज करते हैं, उसके खिलाफ जबरन चार्जशीट और दंड लगाते हैं, ऐसे में उन्हें राजनीतिज्ञों और मीडिया एवं माननीय न्यायालय का ही भय होता है, इन तीनो में से एक की ही मदद से कर्मचारियों को न्याय मिल पाता है. यही जमीनी सचाई है.

उधर पू.म.रे. के दो पूर्व प्रमुख मुख्य अभियंताओं (पीसीई) एस. सी. झा और जी. एस. तिवारी के कार्यकाल में हुए ‘महापाप’ यानि एलडीसीई-2009 में हुए चयन को कैट ने अगस्त के दूसरे हप्ते में दिए गए अपने एक आदेश में अवैध ठहराया है. कैट ने इस परीक्षा में नए सिरे से दुबारा इंटरव्यू लेने का आदेश दिया है. इसके अलावा इस इंटरव्यू में तीन नए नाम जोड़ने और तीन पुराने नामों को हटाने का भी निर्देश कैट ने दिया है. जबकि यह मामला अभी-भी सीबीआई के पास पेंडिंग है. अब कर्मचारियों की मांग है कि श्री झा और श्री तिवारी के कार्यकाल में सभी उत्तीर्ण हुए या पदोन्नति पाए लोगों की उत्तरपुस्तिकाओं सहित उनके समस्त परीक्षा परिणामों की गहराई से जांच होनी चाहिए. कर्मचारियों का कहना है कि कैट के आदेश की प्रति मिल गई है. इस मामले में रेल प्रशासन द्वारा किए गए अन्याय और घपलेबाजी के खिलाफ पूर्व मध्य रेलवे के कुछ निडर और जुझारू निरीक्षकों की यह लड़ाई लगातार जारी है.