वर्षों पहले की गई एडवांस परचेज से पूर्व मध्य रेलवे को हुई करोड़ों रुपए की क्षति
टेंडरों की हाई रेट पर बंदरबांट करके डंप किए गए मटीरियल के उपयोग में वर्षों बीत जाएंगे
एसएंडटी स्टोर में शेड के बिना और वर्षों पहले से केबल खरीदकर रखने का औचित्य क्या है?
कीमती केबल को बरसात और धूप में सड़ने के लिए क्यों छोड़ा गया? यह किसकी जिम्मेदारी है?
पू.म.रे. में ‘भ्रष्टाचार के शिष्टाचार ’ के तहत जातिगत चापलूसों और गैर-अनुभवी लोगों को फील्ड ड्यूटी में लगाया गया है
विशेष प्रतिनिधि, हाजीपुर/पटना
हाजीपुर : पूर्व मध्य रेलवे में वित्तीय औचित्य के सिद्धान्तों को जीरो टॉलरेंस पर लागू किए जाने की सख्त जरूरत है, जिससे कि यहां व्यवस्थित (सिस्टमेटिक) काम हो सके और काम के अनुरूप ही परचेज मटीरियल स्वीकार किया जा सके. यहां सिर्फ फार्मेशन कार्य पूरा होने और बिल्डिंग बनाने में ही कई वर्ष बीत जाते हैं. जबकि तीन महीने या छह महीने की अवधि में निर्माण कार्य पूरा किए जाने के आधार पर टेंडर तो आवंटित कर दिए जाते हैं, जबकि ऐसे लगभग सभी कार्यों में कम से कम 14 महीने और अधिकतम सात वर्ष से भी अधिक समय लग रहा है. यहां फील्ड में अनुभवी कर्मचारियों की घोर कमी है. इसके बावजूद यहां ‘भ्रष्टाचार के शिष्टाचार’ के तहत ज्यादातर जातिगत चापलूसों और नए एवं गैर-अनुभवी लोगों की भीड़ जमा करके उन्हें फील्ड ड्यूटी में लगाया गया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व मध्य रेलवे में अधिकांश टेंडरों में 25 प्रतिशत तक और कुछ में उससे भी अधिक कार्य दिखाकर अधिकांश टेंडर्स की अनुमानित लागत जबरन बढ़ाकर दर्शाई गई है. जांच में इसका सत्यापन ऐसे अधिकतर टेंडर, जो क्लोज कर दिए गए हैं, की राशियों से मिलान कर किया जा सकता है. वास्तविकता यह है कि फील्ड में फार्मेशन का काम नहीं हो पा रहा है और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा आवंटित फंड को फालतू मटीरियल की खरीद के लिए भुगतान करके यहां लगभग सभी उच्च पदस्थ अधिकारी अपनी पदस्थापना बचा रहे हैं. जबकि फार्मेशन कार्य को पूरा किए बिना ही मटीरियल की खरीद करके उसे वर्षों तक केवल बरसात और खुले आसमान के नीचे रखकर राजकोष को सिर्फ नुकसान ही नुकसान पहुंचाया जा रहा है.
इन सभी गंभीर मामलों में रेल राजस्व को वित्तीय औचित्य के सिद्धान्त के तहत ही उपलब्ध धनराशि को खर्च करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी. इसके भौतिक सत्यापन, जांच और दंड के प्रावधान को महाप्रबंधक, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण (सीएओ/सी) और वरिष्ठ उपमहाप्रबंधक एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी (एसडीजीएम/सीवीओ) को सुनिश्चित करना चाहिए. चूंकि पूर्व मध्य रेलवे मुख्यालय में इन तीनों वरिष्ठ रेल अधिकारियों की यह वर्तमान टीम अत्यंत सक्षम और अनुभवी है. अतः आवंटित धनराशि या फंड का उपयोग सुनियोजित तरीके से क्रमबद्ध कार्यों में किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए. जैसे सर्वप्रथम लैंड, फार्मेशन और छोटे-बड़े रेलवे पुल आदि.
जब ऐसे सभी बुनियादी निर्माण कार्य 75 प्रतिशत तक पूरे हो जाएं, उसके बाद ही रेलवे ट्रैक, बिल्डिंग और सिग्नल विभाग के लिए कार्य आरम्भ करवाना रेलहित में होता है. इतनी बुनियादी जानकारी तो रेलवे के तथाकथित प्रशिक्षित इंजीनियर्स को होनी ही चाहिए. सभी आवश्यक मटीरियल की आपूर्ति डाइरेक्ट सम्बंधित स्टेशन यार्ड या प्रोजेक्ट के अस्थायी स्टोर में ही की जानी चाहिए. इसका टेंडर करते समय ही यह प्रावधान किया जाना रेलहित में है.
रेल प्रशासन द्वारा विभिन्न प्रकार के मटीरियल के मूल्यों की जानकारी या अपडेट अन्य जोनल रेलों से ली जानी चाहिए तथा समय-समय पर मार्केट से भी इसका सत्यापन अवश्य करवाया जाना चाहिए. क्योंकि यहां खरीदे गए कई मटीरियल का मूल्य कम वजन होने के बाद भी ज्यादा है, जबकि अधिक वजन वाले मटीरियल, जो बाद में खरीदा गया है, का वजन कम है, जो कि सम्बंधित स्टोर नियमावली का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है. यदि बाद में खरीदे गए मटीरियल का रेट कम है, तो पुराना मटीरियल, जो कि मंहगे रेट पर खरीदा गया है, की शार्ट क्लोजिंग कर देनी चाहिए अथवा बाद वाले से ही कम दाम पर रेलवे को मटीरियल देने के लिए निगोशियशन अवश्य किया जाना चाहिए. ऐसा प्रावधान सभी टेंडर की ‘स्पेशल कंडीशन’ में ही किया जाए और यदि टेंडर्स में यह प्रावधान पहले से ही किया गया है, तो सम्बंधित अधिकारियों/कर्मचारियों से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने वर्षों पहले हाई रेट पर मटीरियल लेकर क्यों डंप किया?
कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों का कहना है कि यदि ऐसे कुछ महत्वपूर्ण सुधार अभी नहीं हो पाए, तो फिर आगे कभी नहीं हो पाएंगे, यह निश्चित है. एसएंडटी डिपार्टमेंट द्वारा 2010 में बिना इंजीनियरिग वर्क किए ही पैनल बना दिया गया, जो बिना उपयोग के ही पिछले पांच वर्षों से बेकार पड़ा हुआ है. जबकि अब यार्ड प्लान चेंज होने के चलते इसे पूरी तरह और नए सिरे से दुबारा बनाना पड़ेगा. इस तरह पू.म.रे. के इस नए निर्माण प्रोजेक्ट में रेलवे का करीब पांच करोड़ रुपए से भी ज्यादा कीमती फंड मिट्टी में मिल गया है. बताते हैं कि उक्त कार्य सीएसटीई श्यामलाल की यहां पदस्थापना के समय ही करवाया गया था.
अतः वित्तीय औचित्य के सिद्धान्त के तहत सम्बंधित से पूछा जाना आवश्यक है और दोषी पाए जाने पर उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई किया जाना भी अत्यंत जरूरी है. इसी तरह स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) से बड़ी मात्रा में रेल भी एडवांस में खरीदकर करके डंप की गई है. जबकि रेलवे बोर्ड द्वारा इसकी खरीद और उपयोग बहुत पहले से बंद कर दिया गया है. इसके अलावा पू.म.रे. में भी वर्षों तक इन रेलों का उपयोग नहीं होने वाला है. यह रेलवे और देशहित में नहीं है. केवल आवंटित फंड का समायोजन हो जाए, इसके लिए राजकोष से सप्लायर को एडवांस में धनराशि दे दी जा रही है, जो घोर निंदनीय है.
उल्लेखनीय है कि एक ‘रेल रैक’ लगभग 2500 मीट्रिक टन (एमटी) का होता है और उसकी कीमत करीब 18 करोड़ रुपए होती है. जानकारों का कहना है कि राजकोष से बिना कार्य किए ही सिर्फ फंड का उपयोग दर्शाने के लिए फालतू मटीरियल खरीदकर वर्षों तक उसे कहीं भी लावारिस छोड़ देना घोर अपराध की श्रेणी में आता है. बताते हैं कि यहां प्रति वर्ष कम से कम 8 से 10 ‘रेल रैक’ एडवांस परचेज के तहत मंगाए जा रहे हैं, जिसका उपयोग होने में कई वर्ष बीत जाएंगे, क्योंकि नई रेल लाइनों के फार्मेशन का कार्य ही पूरा होने में अभी कई वर्ष लगने वाले हैं. निर्धारित अवधि में सम्बंधित ठेकेदार द्वारा कार्य नहीं करने पर उसके खिलाफ कोई करवाई नहीं की जाती है. केवल सिंडिकेट के अधीन पीवीसी क्लॉज का गलत हवाला देकर उसे समय विस्तार दे दिया जाता है, इससे भी बड़े पैमाने पर रेलवे फंड का नुकसान किया गया है.
पता चला है कि ‘रेलवे समाचार’ द्वारा पूर्व मध्य रेलवे में चल रहे उपरोक्त जैसे तमाम गड़बड़ घोटालों को उजागर करने का पर्याप्त संज्ञान लिया जा रहा है. हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि महाप्रबंधक ए. के. मित्तल ने सभी सम्बंधित अधिकारियों से इन मामलों में संवाद स्थापित करके प्रकाशित खबरों/तथ्यों से सम्बंधित जानकारी तलब की है. जबकि सीएओ/नार्थ बी. पी. गुप्ता और सीएओ/साऊथ एल. एन. झा भी अब काफी सतर्क हो गए हैं. पता चला है कि ये वरिष्ठ अधिकारी इन सभी मामलों से अब तक अनभिज्ञ थे. उन्हें यह विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि 40 प्रतिशत तक अधिक अथवा अनावशयक आईटम डालकर टेंडर किए जा रहे थे. कुछ ठेकेदार भी यह कहकर अब इन मामलों को उठा रहे हैं कि यह तो उनके साथ धोखा है. जबकि ‘सिंडिकेट’ के तहत टेंडर लेने वाले ठेकेदार ‘रेलवे समाचार’ की तथ्यात्मक खबरों और उन पर जीएम सहित वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे संज्ञान के कारण इस बात को लेकर बहुत दुखी हो गए हैं कि अब वे फाल्स पेमेंट नहीं ले पाएंगे.