Updated : वर्ष 2015-16 के लिए प्रस्तावित जीएम पैनल

पहले डीआरएम/जीएम पैनल की पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए -डीओपीटी

अधिकारियों की आपत्तियों को क्लियर करके ही उसके पास फाइनल पैनल भेजा जाए

जीएम पोस्टों को लेकर एक बार फिर सतह पर आ गए हैं रेल अधिकारियों के आपसी मतभेद

मैकेनिकल कैडर का ‘आरक्षण’ अब स्वीकार्य नहीं, सभी कैडर के जीएम बनने सुनिश्चित किए जाने चाहिए

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड द्वारा तैयार किए गए वर्ष 2015-16 के जीएम पैनल की पर्याप्त पुख्ता जानकारी ‘रेलवे समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त हुई है. हालांकि अभी तक यह सुनिश्चित नहीं है कि यह प्रस्तावित जीएम पैनल डीओपीटी को रेलवे बोर्ड द्वारा भेजा गया है अथवा नहीं, परंतु सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने यह प्रस्तावित पैनल में तैयार कर लिया है और इसमें शामिल सभी वरिष्ठ रेल अधिकारियों की सीवीसी एवं सीबीआई से क्लेअरेंस भी प्राप्त कर ली गई है.

परंतु डीओपीटी के साथ अभी तक रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) का पंगा खत्म नहीं हुआ है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार डीओपीटी का कहना है कि डीआरएम/जीएम पैनल पर पहले पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए और इन्हें सर्वप्रथम वेबसाइट और इंटरनेट पर डाला जाए, जिससे उस पर आने वाली आपत्तियों, यदि कोई हों, को क्लियर किया जा सके, इसके बाद ही उसके पास फाइनल पैनल भेजा जाए. ज्ञातव्य है की यह मांग बहुत पहले से की जाती रही है. ग्रुप ‘ए’ रेल अधिकारियों के मान्यताप्राप्त संगठन फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन (एफआरओए) भी इसकी मांग लिखित रूप से कई बार कर चुका है. डीओपीटी की इस जिद के कारण ही रेलवे बोर्ड डीआरएम का पैनल अपनी वेबसाइट पर डालने को मजबूर हुआ है.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में हुई चार महाप्रबंधकों की नियुक्तियां रेलमंत्री द्वारा सीधे प्रधानमंत्री के स्तर पर बात करने के बाद ही हो पाई हैं. डीओपीटी का कहना है कि उनके पास रेल मंत्रालय द्वारा जीएम पैनल भेजे जाने के बाद रेल अधिकारियों द्वारा भेजे जाने वाले ज्ञापनों को देखने अथवा उन्हें निपटाने का उसका काम नहीं है. इसके चलते होने वाले कानूनी विवादों को रेल मंत्रालय को खुद अपने स्तर पर निपटाना चाहिए. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार फिलहाल रेलवे बोर्ड और डीओपीटी के बीच जीएम पैनल को लेकर भारी रस्साकसी चल रही है. इस वजह से अब तक यह नहीं तय हो पाया है कि किस नियम-कानून के तहत जीएम पैनल बनेगा या बनाया जाएगा.

सूत्रों का कहना है कि जीएम पैनल बनाए जाने के रेलवे बोर्ड के जो भी वर्तमान नियम-कानून हैं, उन पर डीओपीटी संतुष्ट नहीं है. सूत्रों ने बताया कि कुछ दिन पहले डीओपीटी के अधिकारियों के साथ मेंबर स्टाफ की बैठक हुई थी और 8-10 दिन पहले रेलमंत्री ने भी इसी मुद्दे पर कार्मिक मंत्री के साथ मुलाकात की थी. सूत्रों का कहना है कि इस मुलाकात में रेलमंत्री के साथ सीआरबी भी मौजूद थे. इसके मद्देनजर दोनों मंत्रालयों के बीच कुछ तो आपसी सहमति तो हुई है, परंतु यह सहमति कैसी और किस स्तर पर बनी है, इस बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाया है. तथापि सूत्रों का कहना है कि इन मुलाकातों से यह संकेत मिलता है कि दोनों मंत्रालयों के बीच कुछ मॉडलिटीज तय हुई हैं, जिनके आधार पर अब जीएम पैनल बनाया जाएगा.

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड में जीएम पैनल को लेकर रेलवे की सभी 8 संगठित सेवाओं के अधिकारियों के आपसी मतभेद भी एक बार फिर उफन कर सतह पर आ गए हैं. बताते हैं कि अधिकारियों का यह विवाद मैकेनिकल बनाम अन्य सभी कैडर चल रहा है. इसमें मैकेनिकल कैडर के अधिकारी जीएम स्तर पर 24 जीएम पोस्टों में से अपनी 10 पोस्टों का दावा छोड़ने या कम करने को तैयार नहीं हैं, जिसके विरोध में बाकी सभी सातों कैडर के अधिकारी एकजुट हो गए हैं. उनका कहना है कि सभी कैडर को जीएम स्तर पर कुछ न कुछ प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. अब ऐसा नहीं चलेगा कि किसी कैडर का सालों तक कोई एक भी जीएम नहीं बन रहा है, जबकि कोई एक कैडर के 10 के 10 जीएम बनते रहेंगे. उनका यह भी कहना है कि मैकेनिकल कैडर का यह ‘आरक्षण’ अब किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं होगा, यह अब खत्म होना ही चाहिए और सभी कैडर के जीएम बनने सुनिश्चित किए जाने चाहिए.

बहरहाल, सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर रेलवे बोर्ड में काफी घमासान मचा हुआ है. इस मामले में मैकेनिकल अधिकारियों को छोड़कर बाकी सभी सातों कैडर के अधिकारियों ने एकजुट होकर रेलमंत्री के समक्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया है. सूत्रों का कहना है कि अब रेलमंत्री को यह तय करना है कि जीएम स्तर पर किसको कितना प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रेलमंत्री को प्रस्तुत किए गए प्रतिवेदन में अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि या तो मैकेनिकल की जीएम पोस्टें 10 से घटाकर 6 कर दी जानी चाहिए अथवा सभी कैडर के लिए रेवेन्यु पोस्टों के आधार पर जीएम की न्यूनतम संख्या तय की जानी चाहिए, जिससे सभी कैडरों के साथ न्याय हो सके.

इस सुझाव में यह भी कहा गया है कि मैकेनिकल, सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, एस एंड टी और ऑपरेटिंग/कमर्शियल जैसे जो बड़े विभाग हैं, उनके जीएम की संख्या एक-दो ज्यादा रखी जा सकती है, मगर पर्सनल, एकाउंट्स और स्टोर्स जैसे छोटे विभागों के जीएम की भी न्यूनतम संख्या एक या दो से कम नहीं होनी चाहिए. उनका कहना है कि बाकी बची हुई जीएम पोस्टें अंततः मैकेनिकल अधिकारियों को ही मिलनी हैं. इन अधिकारियों का यह भी कहना है कि 24 जीएम पोस्टों पर अब ओपन लाइन और साइड लाइन (प्रोडक्शन यूनिट्स) का भी भेदभाव खत्म होना चाहिए. उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर भी अधिकारियों के बीच न सिर्फ काफी समय से विवाद चलता आ रहा है, बल्कि डीओपीटी भी रेलवे बोर्ड के इस ओपन लाइन/साइड लाइन के खेल से कभी सहमत नहीं रहा है.

सूत्रों का कहना है कि स्थिति यह है कि अब सारा दारोमदार सीआरबी सेल पर है, जहां से किसी को कुछ पता नहीं चल पाता है. उनका कहना है कि सीआरबी को ही जीएम पैनल बनाना है और रेलमंत्री को अप्रूव करना है. उसके बाद डीओपीटी को यह भेजा जाएगा. सूत्रों ने यह आशंका भी जताई है कि यदि आज जीएम पैनल में सभी संगठित सेवाओं के लिए जगह सुनिश्चित नहीं की जाती है, तो आने वाले समय में हो सकता है कि सिविल इंजीनियरिंग सहित कुछ अन्य कैडर के अधिकारी भी जीएम बनने से वंचित हो जाएं, जिस तरह से आज ट्रैफिक कैडर की दुर्दशा हो रही है, वही स्थिति आने वाले समय में सिविल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिकल एवं एस एंड टी की भी हो सकती है. इसका कारण यह बताया जा रहा है कि मैकेनिकल के अधिकारी कम आयु (21-22 साल) में ही सर्विस में आ जाते हैं, जबकि बाकी कैडर के अधिकारी कोठारी कमीशन के लागू होने से 26-28 साल की आयु में सर्विस ज्वाइन कर रहे हैं.

इस मामले में कुछ अधिकारियों की यह भी राय है कि डीआरएम/जीएम स्तर पर अब स्क्रीनिंग होनी चाहिए. इसमें भी सेलेक्शन पद्धति लागू की जानी चाहिए, जिसमें योग्य और सक्षम अधिकारियों का साक्षात्कार भी हो और उनकी एसीआर एवं उपलब्धियां भी देखी जानी चाहिए, क्योंकि जो अधिकारी 20-25 साल पहले सर्विस में आए थे, आज उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी है? कहीं वे पूरे पागल अथवा अर्ध-पागल या विक्षिप्त तो नहीं हैं? वह कितना और क्या-क्या पढ़ते-लिखते हैं? उन्होंने अपनी सर्विस के दौरान किस-किस तरह के और कैसे निर्णय लिए हैं? उनकी बौद्धिक और निर्णय लेने की क्षमता कैसी है? सर्विस के दौरान उन्होंने कैसे और कितने जोखिम वाले निर्णय लिए हैं? यह सब भी देखा जाना चाहिए.

इन अधिकारियों की यह बात बिलकुल वाजिब है, क्योंकि निकट विगत में कुछ ऐसे जीएम बनकर गए हैं और आज की तारीख में भी एक-दो ऐसे जीएम हैं, जिन्होंने अपनी पूरी सर्विस के दौरान कोई भी जोखिम वाला निर्णय नहीं लिया. वे अपना सारा दायित्व अपने मातहतों पर डालकर खुद निर्णय लेने से बचते हुए यहां तक पहुंच गए हैं. ऐसे में रेल सेवा की गुणवत्ता को काला धब्बा लगना ही था. उनका कहना है कि अन्य केंद्रीय सेवाओं की तरह ही यहां भी पर्याप्त स्क्रीनिंग होनी चाहिए. अब यह कितनी और कैसी हो, यह रेलवे की बेहतरी के लिए लगातार जूझ रहे रेलमंत्री को तय करना है.