डीआरएम और जीएम की छाया से हटकर अधिकारियों से सीधा संवाद स्थापित करें रेलमंत्री!
एक साल के अंदर अपनी ही नीतियों को गलत, अव्यावहारिक बताकर बदलने से सरकार की ही साख खत्म हो जाती है, इसके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिणाम दूरगामी होते हैं, इससे इस बात पर भी मुहर लगती है कि पुराने वाले मंत्री अक्षम थे और पीएमओ भी, उसमें कितने सक्षम लोग बैठ हैं!
रेलमंत्री महोदय के सामने दोनों पक्ष स्पष्ट हैं, देखना अब यह है कि वह अपने विवेक से दोनों पक्षों के मंतव्यों का परीक्षण करके उचित निर्णय लेंगे, या फिर प्रेशर ग्रुप के दबाव और केएमजी की सलाह से पीछे हटकर सरकार (कैबिनेट) को तथा पूर्व रेलमंत्री की मंशा को गलत करार देकर सिस्टम की ही किरकिरी कराएंगे!
#Railwhispers में “Railway Minister Gives Important Clarification on IRMS“ शीर्षक से 07.11.2022 को प्रकाशित खबर पर सैकड़ों रेल अधिकारियों की कड़ी प्रतिक्रिया मिली है। देखें, उनकी प्रतिक्रिया के कुछ अंश, शायद इस प्रतिक्रिया के परिप्रेक्ष्य में रेल प्रशासन और रेलमंत्री का कुछ मार्गदर्शन हो सके!
अधिकारियों का कहना है कि यह क्लेरिफिकेशन नहीं है, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि ये सरकार और रेलमंत्री महोदय रेलवे को लेकर कितना कन्फ्यूज्ड हैं, और कितनी सतही समझ के साथ ये ठीक उस बंदर की तरह काम कर रहे हैं जो घाव को ठीक करने के नाम पर उसे बुरी तरह गींज देता है और इतना बड़ा नासूर बना देता है कि वही प्राण घातक हो जाता है।
वह कहते हैं कि वस्तुतः मंत्री जी को यह बुद्धत्व स्वतः प्राप्त नहीं हुआ है बल्कि एक दूसरी लाबी के अथक प्रयास का परिणाम है जो काफी पहले से इस प्रयास में लगी थी कि केवल इंजीनियर और वो भी सिविल इंजीनियर्स का ही वर्चस्व बना रहे और सिविल सर्विसेस से आने वालो का इनटेक बंद कर दिया जाए। लेकिन साथ में खुद का यह भी स्वप्न था कि जो इंजीनियर रेलवे में आएं वे सिविल सर्विसेज से ही आएं और वे खुद को आईएएस एक्जाम से चयनित होने का गौरव प्राप्त कर सकें।
उनका कहना है कि इसी “बेस्ट ऑफ द बोथ वर्ल्ड” वाली सियारबुद्धी के कारण और यूपीएससी की सिविल सर्विसेज का मैनडेट नहीं समझने के कारण इनकी स्ट्रैटेजी उल्टी पड़ गई। और यूपीएससी ने आईआरएमएस को सिविल सेवा में इस साल से शामिल कर लिया।
उन्होंने कहा कि अब सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड (तत्कालीन) की अगुआई में पूरे देश में काम कर रही इंजीनियरिंग लाबी फिर अपनी बात से रेलमंत्री को कन्फ्यूज करने में सफल होती दिख रही है। रेलमंत्री को कन्फ्यूज करने में खान मार्केट गैंग (केएमजी) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वह कहते हैं कि अब मसला यह नहीं है कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, और कैसे हो रहा है? बल्कि विचारणीय और महत्वपूर्ण यह है कि होना क्या चाहिए? #RailSamachar ने इस पर कई सीरीज में बड़े विस्तार से हर तरह के फीडबैक के आधार पर लिखा है। उसका पुनरावलोकन ही रेलमंत्री को इसका विहंगम 360 डिग्री का व्यू दे देगा। लेकिन एक बार संक्षेप में यह बताना समीचीन होगा कि पहले तो रेल और डिफेंस जैसी संस्थाओं में बंदर वाला मेडिकल मैनेजमेंट सही नहीं होता है। बड़ी जटिल, वैज्ञानिक और तर्कसंगत ढ़ांचे पर ये संस्थाएं खड़ी की गई हैं। इसलिए मूल ढ़ांचे को छेड़ा ही नहीं जाना चाहिए।
छेड़ना ही था, तो भ्रष्टाचार, अयोग्यता, अक्षमता, विभागवाद, संघवादी सोच (यूनियनबाजी) को बढ़ावा देने वाली मानसिकता को छेड़ा जाता। जो तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि रेलवे का हर आदमी अपना दायित्वबोध केवल और केवल रेल और देश के प्रति ही रखे, न कि अपने व्यक्तिगत हित, जातिगत हित, विभागीय/कैडर हित, गुट/गिरोह हित के प्रति। आपको करना तो ये था, लेकिन कुछ क्षुद्र हितों वाले लोगों के जाल में फंसकर रेलवे का सत्यानाश कर डाला। अब कोई पूछे कि ऐसा कैसे कर सकते हैं जिससे सब अपने-अपने भेड़ियों-सियारों वाले गिरोह वाली मानसिकता से हटकर रेल के और देश के प्रति दायित्वबोध से काम कर सकें?
उन्होंने कहा कि यही #RailSamachar का चिंतन, आग्रह और कलम का संघर्ष रहा है जिसको ध्यान में रखकर ही लिखा जाता रहा है जो हमेशा रेल में अत्यंत शक्तिशाली रहे क्षुद्र दायित्वबोध वाले लोगों और गिरोहों को अत्यंत अप्रिय और घृणा की हद तक अरुचिकर लगता रहा है, और इसीलिए #RailSamachar हर समय उनके निशाने पर रहता है।
संक्षेप में बिना ढ़ांचे में कोई छेड़छाड़ किए समाधान का रास्ता था, जिससे स्वतः ही रेल और देश हित में ‘मनसा वाचा कर्मणा’ से काम करने की मानसिकता को बढ़ावा मिलता और तब बृहत्तर दायित्वबोध के साथ काम करने वाले सिविल सर्वेंट्स, इंजीनियर्स, डॉक्टर्स का एक गुट होता और क्षुद्र दायित्वबोध के साथ काम करने वालों का दूसरा।
अधिकारियों के सुझाए कुछ उपाय—-
1. बिना अपवाद, बिना भेदभाव, बिना पक्षपात के आर्मी की तर्ज पर रोटेशनल ट्रांसफर पोस्टिंग, सभी की। शुरुआत ऊपर से हो।
2. एसजी/जेएजी और इनसे नीचे के पदों पर 3 साल बाद स्थान परिवर्तन और पद परिवर्तन बिना अपवाद के हो। और महत्वपूर्ण/संवेदनशील पद पर काम करने के बाद से किसी गैरमहत्वपूर्ण/असंवेदनशील पद पर ही पोस्टिंग हो। संवेदनशील और असंवेदनशील या कम संवेदनशील पद भी उसी तरह से ब्लैक एंड व्हाइट में लेकर आए जाएं, जिससे कोई अपनी शातिर बुद्धि से कोई खेल न कर सके। कोई भी विभाग मेडिकल आदि इसका अपवाद न हो।
3. इसी तरह क्लास 3 में 4 साल में जगह का और पद का परिवर्तन हो, बिना अपवाद के।
4. ग्रुप ‘बी’ की प्रोन्नति ग्रुप ‘ए’ में होने पर अनिवार्य रूप से दूसरे जोन में भेजा जाए और ठीक उसी तरह कंफर्म जेएजी, एसएजी और एचएजी मिलने पर दूसरे जोन में बिना अपवाद के भेजा जाए।
5. डीआरएम के लिए 52 साल की आयु सीमा (एज क्राइटेरिया) को अविलंब समाप्त करना रेल में सभी सुधारों की जननी साबित होगी और सभी अधिकारियों में बेहतर कर बेहतर पाने की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
6. किसी भी काम का एक थर्ड पार्टी ऑडिट अवश्य हो, जिसमें काम के औचित्य से लेकर गुणवत्ता तक सभी चीजें शामिल हों। कोई भी गड़बड़ी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों की कम से कम 10 साल तक संवेदनशील पद पर पदस्थापना न की जाए। साथ ही डीएंडएआर की विभागीय कार्यवाही अलग से हो।
7. योग्य अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए कुछ प्रोत्साहन योजनाएं होनी चाहिए। जैसे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन, आउट ऑफ टर्न मकान अलॉटमेंट, मनपसंद स्थान पर पोस्टिंग इत्यादि।
8. एसएजी और इसके ऊपर के पदों पर कुछ इक्के-दुक्के पदों को छोड़ सभी को सबके लिए खोल दिया जाए। इसलिए सेलेक्शन कम सूटूबिलिटी के आधार पर एसएजी में प्रमोशन हो। जो लोग क्वालिफाई कर जाएंगे वे सभी पदों के लिए एलिजिबल माने जाएंगे और जो नहीं कर पाएंगे, वे अपने ओरिजनल कैडर के पदों पर ही पदस्थापित होंगे।
9. नियमों को दुरुस्त कर सभी ट्रांसफर पोस्टिंग कंप्यूटर के माध्यम से ही हो। ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस जमाने में एक सॉफ्टवेयर बनाकर यह करना बहुत आसान है। इससे आदमी के खेलने का स्कोप खत्म हो जाएगा। किसी अन्य तरीके से मेन्युपुलेशन का कोई रास्ता नहीं बचने पर कुछ विशेषाधिकार प्राप्त मठाधीश बने लोगों की जमात खत्म हो जाएगी और नियमों के अनुसार विकसित किए गए लॉजिक से कंप्युटर ट्रांसफर और पोस्टिंग करेगा। समय भी बचेगा, नाकारा लोगों की फौज भी घटेगी और पक्षपात तथा गिरोहों के शिकार बहुसंख्यक काम में विश्वास रखने वाले लोगों को न्याय एवं सिस्टम में भरोसा भी बढ़ेगा।
10. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग यह नैरेटिव खड़ा करके मंत्री के दिमाग और मुँह में अपनी बात ठूँस रहे हैं जिससे मंत्री जी जो बोल रहे हैं कि “a seasoned civil engineer will be required for CAO construction post”, तो फिर मोदी सरकार में तमाम पीएसयू में वैसे लोग क्यों सीएमडी बने बैठे हैं जिनके पास कोई तकनीकी डिग्री नहीं है? कुछ महत्वपूर्ण रेलवे पीएसयू के सीएमडी तो सीए लोग बने बैठे हैं, और तो और पीईएसबी बोर्ड की चेयर पर्सन ही एक ऐसी महिला है जिसे न तो सरकारी तंत्र में काम करने का अनुभव है और न ही अंदरुनी बारीकियों का पता है, इसीलिए आज जितने भी पीएसयू में सीएमडी या डायरेक्टर आदि का सेलेक्शन हो रहा है वह घोड़े के धड़ पर गधे का सिर और गधे के धड़ पर घोड़े का सिर लगाने जैसा है।
11. अगर सरकार मान रही है कि पीईएसबी की चेयरमैन का चयन सही है तो रेलमंत्री जी फिर से नए प्रेशर ग्रुप के चक्कर में नया एक्सपेरिमेंट न करें, और कुछ साल तक जो नई व्यवस्था है उसका असर देखें। एक साल के अंदर अपनी ही नीतियों को गलत, अव्यावहारिक बताकर बदलने से सरकार की ही साख खत्म हो जाती है। इसके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिणाम दूरगामी होते हैं। यह इस बात पर भी मुहर लगाता है कि पुराने वाले मंत्री अक्षम थे और पीएमओ भी, जो हर कदम पर इन्वाल्व रहता है, उसमें कितने सक्षम लोग बैठ हैं!
12. दूसरी बात यह कि अभी से किस विभाग में अकाल पड़ गया? उसी कैडर के अधिकारी की? जो कहा जा रहा है कि कौवा कान ले गया? अभी 15-20 साल तो यही लोग सिस्टम को चलाएंगे और अभी सिस्टम में तो यही लोग हैं। अभी तो न जेएजी में कमी है, न एसएजी में, और न ही एचएजी में। और नीचे जो कमी है वह रिस्ट्रक्चरिंग के कारण थोपी गई कमी है। तो हल्ला किस बात का? मठाधीशी खत्म होने की ही आशंका है न? अभी जब सब भरा था, वास्तव में इफरात में थे, तभी तो रेल डूबने लगी। इसलिए बिना कन्फ्यूज हुए और पहले अपना कन्फ्यूजन दूर करते हुए ही आगे बढ़ना उचित है; और व्यक्तिपरक हितों से ऊपर उठकर सिस्टम के हित पर फोकस करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि अभी रेलमंत्री को कन्फ्यूज करने और दबाव में लेने की एक बड़ी सुनियोजित एवं फुल प्रूफ प्लानिंग के तहत काम किया जा रहा है, जिसका असर रेलमंत्री के जयपुर, वाराणसी और लखनऊ की यात्रा में उनके संवाद के दौरान दिखाई दे गया। हो ये रहा है कि मंत्री जी जहां-जहां जा रहे हैं, वहां-वहां के जीएम और डीआरएम उनके कान में यह फूंकते हैं कि साहब रेल अधिकारियों में बड़ी हताशा का वातावरण व्याप्त है।
वह कहते हैं कि अब चूंकि अधिकांश तकनीकी विभाग के ही जीएम और डीआरएम हैं तो फिर नैरेटिव हर जगह पर एक जैसा ही होता है और जो भी तथाकथित संवाद मंत्री जी करते हैं अधिकारियों से, उसमें प्रायोजित लोग ही बोलते हैं और 90/95% जीएम और डीआरएम के द्वारा टार्गेट किए जाने के भय से चुप रह जाते हैं। लेकिन मंत्री जी इस आभासी भाव से भर जाते हैं जैसे कि शत-प्रतिशत लोगों से निर्भीक खुला संवाद कर लिए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रोटोकॉल के तहत अधिकारियों की शत-प्रतिशत उपस्थिति को मंत्री जी शत-प्रतिशत ओपिनियन मान ले रहे हैं, भले ही उसमें एक-दो प्रायोजित लोग ही बोले हों। कुछ लोगों की ओपीनियन को वे अधिकांश लोगों की ओपीनियन समझ ले रहे हैं। मंत्री जी को अगर रेल अधिकारियों का मनोभाव समझना है और उनसे सार्थक संवाद करना है तो अधिकारियों से अकेले में संवाद करें – डीआरएम और जीएम की छाया से दूर हटकर!
बहरहाल, माननीय रेलमंत्री महोदय के सामने अब दोनों पक्ष स्पष्ट हैं, देखना अब यह है कि वह अपने विवेक से दोनों पक्षों के मंतव्य को सोच-समझकर, परीक्षण करके उचित निर्णय लेंगे, या फिर प्रेशर ग्रुप के दबाव और केएमजी की सलाह से पीछे हटकर सरकार (कैबिनेट) को और पूर्व रेलमंत्री की मंशा को गलत करार देकर सरकार और सिस्टम की ही किरकिरी कराएंगे!
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