October 16, 2022

त्रिपाठी जी, बीत गई रैना, अब काहे का डर! कड़े निर्णय लें, वस्तुस्थिति बयान करने से न घबराएं!

आदरणीय विनय त्रिपाठीजी,
चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड !

मैं कुछ पीड़ा के साथ आपके संज्ञान में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे लाना चाहता हूं। आपके काम को मुझे मुंबई में नजदीक से देखने का अवसर मिला। आप काम के मामले में काफी कड़क रहे हैं, ये मेरा भी, और सबका मानना है। सभी अधिकारी और कर्मचारी एक मत से यह भी स्वीकार करते हैं कि आपने कभी अपने निजी फायदे के लिए काम नहीं किया, और न ही व्यवस्था का कभी दुरुपयोग किया। आपका अपना कोई एजेंडा कभी नहीं रहा। लोको शेड से रनिंग रूम तक आपको आज भी पश्चिम रेलवे और प्रयागराज मंडल के कर्मचारी याद करते हैं।

आज ईश्वर ने आपकी साफ-सुथरी छवि के कारण एक बहुआयामी रेलमंत्री के साथ संलग्न किया है। हम सबका मानना है कि प्रधानमंत्री जी को ये अवश्य लगा होगा कि रेल में जमीनी स्तर पर काम किए अधिकारी की आवश्यकता है। 2014 से देखें तो आपके पूर्व के रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष जमीनी स्तर पर काम नहीं किए थे, तभी रेल का ये ‘खान मार्केट गैंग’ फलता-फूलता रह पाया, जिसकी कीमत केवल और केवल राजनैतिक नेतृत्व ने चुकाई है। आपने जिस प्रकार लोडिंग और सेफ्टी पर फोकस रखा, उससे आए सकारात्मक परिणाम निश्चित रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय की निगाह में होंगे।

आप रेल परिवार के मुखिया हैं, रेलवे के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं, और आप उस दर्द को समझ सकते हैं जिससे आज पूरी व्यवस्था गुजर रही है। क्या आपको नहीं लगता कि रेगुलर जीएम और लुक आफ्टर जीएम में कितना अंतर होता है? आपके बारे में रेल में माना जाता रहा है कि आप बजट पर कठोर नियंत्रण रखते थे और हर खर्चे पर आपकी पैनी दृष्टि रही है। क्या आपको नहीं लगता कि रोलिंग स्टॉक की खरीद के बारे में थोड़े गहरे अध्ययन की आवश्यकता है? आप तो जानते हैं कि बोर्ड स्तर की लुक आफ्टर व्यवस्था में ये सम्भव नहीं। और तो और, अब मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर का काम एक गैर सिविल इंजीनियर के हाथ दे दिया गया है, लुक आफ्टर अरेंजमेंट में!

आप हमेशा रोटेशन के पक्षधर रहे हैं – आपने ने ये अवश्य देखा होगा कि हर मंत्रालय में सारी प्रशासनिक व्यवस्था एक लिमिटेड टेन्योर (सीमित कार्यकाल) में काम करती है। लेकिन रेल अधिकारी और कर्मचारी उसी व्यवस्था में जीवन निकाल देते हैं – क्या इन्हें रोटेट नहीं कर सकते? अथवा इन्हें दरबदर क्यों नहीं किया जा सकता?

आपसे रेलकर्मियों/अधिकारियों की अपेक्षा-

1. आप रेलवे बोर्ड से लेकर नीचे डिपो तक रोटेट करें – अधिकारी-कर्मचारी सब, शहर भी बदलें। लोकेशन भी बदलें! स्टेशन भी बदलें! क्यों नहीं किया जा सकता – संदेश जाएगा कि सिस्टम व्यक्ति से बड़ा है। क्या ये अपेक्षा अधिक है?

2. आप बेहतर जानते हैं, और मानते भी रहे हैं कि रेल एक समंदर की मानिंद है, यहां प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी को व्यवस्था के सुधार पर ध्यान देना होगा, तभी यह सुधरेगी, यह किसी एक के वश का काम नहीं है। आप शुरुआत तो करें।

3. आप जानते हैं कि बोर्ड से लेकर डिपो तक सालों से एक ही जगह एक ही शहर में जमे अधिकारियों, सुपरवाइजरों के कारण भ्रष्टाचार और कदाचार की बहुत मोटी काई जम गई है। क्या यह काई खुरचकर निकाली नहीं जानी चाहिए? अगर इस काम की शुरुआत आप जैसा साफ-सुथरी छवि वाला सीआरबी नहीं करता है, जिसका अपना कोई एजेंडा नहीं है, तो फिर यह कोई नहीं कर पाएगा!

4. मंत्री जी को इस बात की फीडबैक दें, कि बोर्ड के कुछ अधिकारी 2014 से लगातार चले आ रहे हैं। कृपया उन्हें यह भी बताएं कि इन सबकी क्या विश्वसनीयता रही है! क्या ऐसे अधिकारियों से पूरा सिस्टम भयभीत नहीं है? क्या इन अधिकारियों के द्वारा अपने कैरियर में किए गए काम आप उन्हें नहीं बता सकते? क्या आप उन्हें फीडबैक नहीं दे सकते कि आपके ही विद्युत विभाग में इन लोगों को किस दृष्टि से देखा जाता है?

5. मंत्री जी को कृपया यह भी बताएं कि क्या उनके सलाहकार महोदय ने अपने बैचमेट्स को सुपरसीड करने और उनकी एपीएआर के साथ छेड़छाड़ करने में इन्हें सफलता नहीं मिली थी? अपने ही विभाग में इनकी क्रैडिबिलिटी क्या रही है?

6. आप मानते रहे हैं कि डीआरएम में 52 साल का क्राइटेरिया योग्य, सक्षम और निष्ठावान अधिकारियों के साथ अन्याय करने जैसा है। इस अन्यायपूर्ण क्राइटेरिया को खत्म करने, और अगर अधिकारी सक्षम है, तो उसे रिटायरमेंट तक भी डीआरएम में काम करने का अवसर दिए जाने के पक्षधर रहे हैं। फील्ड से हमारा फीडबैक यह है कि डीआरएम में 52 साल के क्राइटेरिया को तुरंत समाप्त किया जाए, अथवा दो साल बढ़ाकर 54 साल करने पर भी काफी हद तक इससे लोगों की ग्रीवांस एड्रेस हो सकती है। मंत्री जी को बताएं कि यह निर्णय राजनीतिक रूप से भी ठीक रहेगा, क्योंकि इससे जितने प्रतिभाशाली लोगों को अवसर मिलेगा, उतना ही समाज के दलित और पिछड़े वर्ग को भी फायदा होगा।

7. आप जानते हैं कि फील्ड में कार्यरत अधिकारियों के लिए बंगला प्यून की क्या महत्ता है। ऐसे में रिटायर होने से पहले मंत्री जी को इसके लिए सहमत करने का प्रयास करें, क्योंकि आप यह भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि कुछ ब्लैक सीप हर जगह होती हैं, मगर उनकी सजा व्हाईट सीप को नहीं दी जाती!

आप कड़े निर्णय लेने के लिए जाने जाते रहे हैं, क्योंकि आउटपुट ही हमेशा आपकी प्राथमिकता में रहा है। अतः आप रेल के हित में कड़े निर्णय लेने से अब भी नहीं घबराएं, वैसे भी आपका कार्यकाल साढ़े तीन महीने ही बचा है। संभवतः अपना निजी एजेंडा लागू करने, निजी हित साधन और खुंदक निकालने के चलते ‘खान मार्केट गैंग’ ने रेल के प्रशासनिक सुधार या रिफार्म पर मंत्री जी का ध्यान कभी जाने ही नहीं दिया। कहीं न कहीं यह गैंग आपके भी निर्णयों में बड़ी बाधा रहा है। उपरोक्त बिंदुओं पर लिए गए निर्णय सीआरबी के रूप में आपको रेल में अविस्मरणीय बना देंगे। आपसे निवेदन है – कृपया ऊपर दिए गए बिंदुओं पर आदरणीय रेलमंत्री जी को पॉजिटिव फीडबैक देकर उन्हें कन्विंस करने का प्रयास अवश्य करें।

धन्यवाद
सादर अभिवादन
सुरेश त्रिपाठी, संपादक

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