October 15, 2022

खराब परफार्मेंस की कीमत केवल रेलमंत्री ही कब तक चुकाते रहेंगे?

माननीय रेलमंत्री महोदय,
सादर नमस्कार!

#Railsamachar, हम ये मानते हैं कि रेल सुरक्षित और स्वस्थ रहेगी, तो लाखों रेलकर्मी और उनके परिवार सुरक्षित रहेंगे। इसके साथ ही रेल में प्रतिदिन यात्रा करने वाले करोड़ों रेलयात्री भी आपको साधुवाद देंगे। ट्रैकमैन से लेकर सर्वसामान्य रेलकर्मी, रेलवे बोर्ड के मेंबर्स, महाप्रबंधक, डीआरएम से लेकर सभी अधिकारी हमसे जुड़ें हैं। हमसे प्रतिदिन सैकड़ों रेलकर्मी और अधिकारी बात करते हैं। रेल के भीतर से ही नहीं, बल्कि इसके बाहर रेल से जुड़े सैकड़ों लोग, यात्री, और यात्री संगठनों के लोग भी बात करते हैं। ये सभी न केवल हमसे चर्चा करते हैं, बल्कि हमारी आलोचना करके हमारी दिशा भी ठीक रखते हैं – हम इन सबके प्रति सदैव आभारी रहते हैं।

हम न कभी रेलकर्मी रहे हैं, न ही हमारे परिवार का कोई सदस्य कभी रेलवे में रहा, न है। हम इन सबके प्रति इसलिए भी आभारी रहते हैं, क्योंकि 32 सालों में इन्हीं लोगों से हमने रेल सिस्टम को जाना-समझा है। हम उस पीढ़ी से संबंध रखते हैं, जिसमें ‘निंदक नियरे रखने’ की परंपरा रही है। संत कबीर भी यही कह गए हैं। मीठा तो सब बोलेंगे, लेकिन आपको मधुमेह का मरीज बनाकर स्थायी नुकसान करवा देंगे – यह जीवन संघर्ष का अनुभव है।

क्वालिफाइड युवा मंत्री, जो अत्याधुनिक वंदेभारत ट्रेन के प्रोजेक्ट को पटरी पर ले आया, विश्व स्तरीय वंदेभारत ट्रेन सेट का निर्माण करने वाली टीम को प्रताड़ना से बचाया, आपसे हमें और इस देश के करोड़ों देशवासियों – रेल में रोज चलने वाले ढ़ाई करोड़ रेलयात्रियों – को बहुत उम्मीदें हैं।

आप स्वयं जानते हैं कि आप मोदी सरकार के आठ साल के कार्यकाल में चौथे रेलमंत्री हैं। आपने कभी सोचा है कि आपसे पहले के रेलमंत्री, जिनमें सुरेश प्रभु जैसे मंत्री, जो बहुत सीधे-सादे और ईमानदार माने जाते थे, और फिर पीयूष गोयल, जो बहुत तेज-तर्रार मंत्री की छवि रखते थे – उन्हें रेल मंत्रालय क्यों छोड़ना पड़ा? श्री प्रभु विकेंद्रीकरण के लिए जाने जाते हैं, वहीं श्री गोयल ने लेवल क्रॉसिंग बंद करने का जो बीड़ा उठाकर डिलीवर किया, वह भूला नहीं जा सकता। श्री गोयल स्वच्छ भारत मिशन के चलते रेलवे स्टेशनों और रेलगाड़ियों की साफ-सफाई में विजिबल परिवर्तन लाए।

हम उन्हें तब भी ये चेताते रहे थे कि कैसे रेल में छुपे हुए साँप इन राष्ट्रीय महत्व की योजनाओं को अपना मतलब साधने के लिए इस्तेमाल करते रहे – इन संपोलों का तो कुछ नहीं हुआ-अलबत्ता खामियाजा इन दोनों रेलमंत्रियों ने उठाया। लेकिन क्या कारण रहा कि बेहतर डिलीवरी के बाद भी इन दोनों मंत्रियों को जाना पड़ा? क्या आपने इस विषय पर कभी विचार किया?

कारण यह है कि रेलमंत्री बदले, लेकिन उनके नीचे रेल का “खान मार्केट गैंग” न केवल यहीं बना रहा, अपितु और मजबूत हो गया। ये आपको गलत सलाह देकर कैसे गलती करवाएंगे, आपको तब पता चलेगा, जब नुकसान हो चुका होगा। चाहें तो एक बार अपने से पहले रहे रेलमंत्रियों से इस पर चर्चा करके देख लें!

सतीश अग्निहोत्री को कौन नहीं जानता था, लेकिन क्या ये इसी सिस्टम की अपारदर्शिता नहीं थी कि आपसे उनके चयन की गलती करवाई गई? कभी आपने सोचा कि ऐसी गलती किसी अन्य मंत्रालय में क्यों नहीं हुई? कठपाल को, अशोक कुमार गुप्ता को, कौन नहीं जानता था, मगर सीबीआई से ट्रैप होने तक वह इस गैंग का सुखरूप हिस्सा रहे, और अभी ऐसे कितने हैं, जो इस गैंग की बदौलत प्राइम पोस्टों पर बैठाए गए हैं, उनके नाम हम आपको गिना सकते हैं!

इस चौकड़ी के चौथे सदस्य को इनमें से कुछ नाम काफी पहले बताए भी गए थे, मगर ऐसा लगता है कि उसका लाभ उठाकर उसने अपना हितसाधन किया, क्योंकि हर युग में जानकारी – इंफर्मेशन – इनपुट – ही किसी भी सिस्टम की असली असेट्स रही है! और सिस्टम का व्यापक हिस्सा रहते हुए यह तो आप बखूबी जानते ही होंगे कि व्यक्ति नहीं, सिस्टम महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए हमारा सारा ध्यान व्यक्ति को नहीं, सिस्टम को मजबूत करने पर होना चाहिए।

आपके कार्यालय को टेंडर के मामलों से दूर रहना चाहिए, यह तो सभी पूर्व रेल अधिकारी, जो वरिष्ठ प्रशासनिक स्तर पर रहे हैं, हमें बताते हैं। सुधीर कुमार ने जिस प्रकार से आपके दफ्तर में बैठकर मीटिंग करवाईं और रेकॉर्ड पर आते ही आपको पट्टी पढ़ाकर – कि आपकी छवि खराब करने का प्रयास किया जा रहा है – अधिकारी का ट्रांसफर करवा दिया – यह सभी जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ और सब इससे परेशान हुए, और अब यह सब रेकॉर्ड का हिस्सा है!

ये अधिकारी, जैसा हमने लिखा भी है, स्वयं बड़े मठाधीश थे और भुवन सोरेन के साथ इनका नाम जोड़कर देखा गया जिनके रेल के टेंडर और ट्रांसफर पोस्टिंग में हस्तक्षेप को हमने उजागर किया, जब पानी सिर से ऊपर हो गया। भुवन को आखिरकार निकाला ही गया। पीड़ा यह है कि ऐसा क्यों हुआ कि समय रहते फीडबैक पर ध्यान तब तक नहीं दिया गया जब तक नुकसान स्थायी न हो गया! पीड़ा इस बात की भी है कि दी गई किसी भी फीडबैक पर यथोचित संज्ञान नहीं लिया गया!

इन मठाधीश महोदय के जाने का स्वागत भी हुआ, लेकिन परिपक्व हैंडलिंग से जहां आपकी तारीफ होनी चाहिए थी, वहां आपको आलोचना का सामना करना पड़ा। सलाहकार महोदय का बोर्ड में इतना आतंक है, फिर भी आपके दफ्तर को क्यों फोन करना पड़ रहा है – जो अब मीडिया-पब्लिक फोरम – में आ गया? अगर सलाहकार महोदय के पास अधिकार है, तो उनका खुला आदेश निकले, जैसा कि रेल राज्य मंत्रियों का निकलता है!

आप इस बात को समझिए, अगर आपको अच्छी सलाह मिले, तो जो कुछ आप अच्छी भावना से – सच्ची लगन से – करना चाह रहे हैं, उसका आपको यश भी मिलेगा और आपके नाम का और आपके दफ्तर का गलत प्रयोग कदाचित नहीं हो पाएगा!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने रेल-विजन को इम्प्लीमेंट करने के लिए आपको रेल मंत्रालय सौंपा है, लेकिन रेल का “खान मार्केट गैंग” आपको अपने पुराने हिसाब-किताब में उलझाने का प्रयास कर रहा है – कई जगह ये कामयाब भी हुआ है – खाली बोर्ड, खाली जीएम की पोस्टें और एक साल तक 20 डीआरएम की पोस्टिंग को बिना कुछ किए लटकाए रखना इसके साक्षात उदाहरण हैं।

जिस तिकड़ी की बात आपको बताई गई है, उससे रेल का शीर्ष नेतृत्व आतंकित और आक्रोशित है। हमारा ये मानना है कि अमृत काल में रेल इस ‘खान मार्केट गैंग’ से नहीं चल सकती। यही कारण है कि टेंडर के मामले, जो नीचे के विभाग दशकों से करते आए हैं, वह आपके दफ्तर में आ गए। आपके पास और भी भारी भार वाले मंत्रालय हैं – निश्चित रूप से आपको सलाहकार चाहिए, क्योंकि आप अकेले हर चीज पर नजर नहीं रख सकते! मगर इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि एक ऐसे चुके हुए पूर्व रेल अधिकारी को अपना सलाहकार बनाया जाए, जिसका रेलसेवा में रहते जोड़-तोड़ करने के सिवा अन्य कोई उल्लेखनीय योगदान कभी नहीं रहा!

अब आपसे लोगों को बहुत उम्मीदें हैं, क्योंकि आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। प्रधानमंत्री ने परेशान होकर रेलमंत्री बदल दिए, लेकिन रेलमंत्री रेल के ‘खान मार्केट गैंग’ से पार नहीं पा सके। यहां कमाई की अनगिनत, असीमित संभावनाएं हैं, यहां रेल अधिकारी बहुत अच्छी तरह मंत्रियों को शीशे में उतारने की कला जानते हैं। सीधे और ईमानदार सुरेश प्रभु तथा तेज-तर्रार पीयूष गोयल जैसे मंत्रियों को इन्हीं अधिकारियों ने कैसे डिरेल किया, यह आपके समझने का विषय है!

इस ‘खान मार्केट गैंग’ के चलते ही अच्छे, सक्षम और निष्ठावान रेल अधिकारी चुपचाप साइडिंग में चले गए हैं। इस गैंग का आपको हमेशा ये बताते रहना – कि सब बेकार हैं, सब निकम्मे हैं – क्या यह सम्भव है? जिस व्यवस्था से श्रीधरन जैसे लीडर निकले, देश की सारी मेट्रो जिस व्यवस्था में पोषित अधिकारी ही बना और चला रहे हैं, क्या वहां अच्छे सलाहकार नहीं हैं? समय आ गया है, एचआर में सैन्य अधिकारी लाए जाएं, कम से कम आप इससे तो निश्चिंत रहेंगे कि फाइलें नियम के अनुसार बन रही हैं? वैसे रेल में भी सक्षम, कर्तव्यनिष्ठ और निष्ठावान प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, आवश्यकता उनकी पहचान करने की है। चाहें तो सेवानिवृत्त अच्छे नाम वाले महाप्रबंधकों और बोर्ड मेंबर्स को भी आप बुलवा सकते हैं।  

चलिए, आपको बहुत सारे वरिष्ठ सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों का फीडबैक देता हूं –
आप एक सीक्रेट जांच करवाएं किसी बाहरी एजेंसी द्वारा, ये पता करें कि कौन-कौन अधिकारी 2014 से अब तक रेलवे बोर्ड में, रेलवे की नीतियों और दिशा-दशा को प्रभावित करने वाले स्थानों/पदों पर रहे हैं। अर्थात् वह जो चार रेलमंत्री और पांच चेयरमैन, रेलवे बोर्ड के बावजूद भी न केवल सुरक्षित रहे, बल्कि अधिक पावरफुल पदों पर पहुंचते गए। क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री चुकाएंगे? अथवा केवल रेलमंत्री ही कब तक चुकाते रहेंगे?

आप जैसी समस्या बताएंगे, समाधान आपको वैसा ही मिलेगा! सीधे सवाल का सीधा जवाब!

धन्यवाद
सादर – जय श्रीकृष्ण !
सुरेश त्रिपाठी, संपादक

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