पटना कैट ने पदोन्नति घोटाले में रेलवे बोर्ड को लगाई कड़ी फटकार
सीआरबी ने कैट में दाखिल किया था दिग्भ्रमित करने वाला और विरोधाभाषी स्पीकिंग ऑर्डर
वर्ष 2001-07 : सीधी भर्ती की अपेक्षा प्रमोटी अधिकारियों को चार गुना ज्यादा दी गई पदोन्नति
कैट ने रेलवे बोर्ड के आदेशों को दरकिनार किया, डीओपीटी के ओएम पर अमल करने को कहा
संविधान के नियमों और उद्देश्यों की अवहेलना की गई है, जो सरकारी तंत्र के लिए निंदनीय है
पटना : केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने ओ. ए. नं. 050/00460.2015, आर. के. कुशवाहा बनाम भारत सरकार(रेल मंत्रालय) मामले में कड़ी फटकार लागते हुए महत्वपूर्ण निर्णय में रेलवे के विसंगतिपूर्ण पदोन्नति नियमों पर अनेक गंभीर सवाल उठाए हैं. कैट ने एन. आर. परमार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए रेलवे बोर्ड के दि. 09/12.2014 और 12.12.2014 के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा है कि उक्त दोनों आदेश अत्यंत विसंगतिपूर्ण हैं. वर्ष 2015 में आर. के. कुशवाहा ने अपने अभिवेदन में चेयरमैन, रेलवे बोर्ड से गुहार लगाई थी कि डीओपीटी के ओ. एम. नं. 20011/1/2012-ईएसटीटी.(डी), दि. 04.03.2014 के दिशा-निर्देशों को रेलवे में लागू किया जाए. डीओपीटी का उक्त ओ. एम. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले में दिए गए निर्णय पर आधारित है, जिसमें सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों की आपसी वरीयता सुनिश्चित करने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं. इसके साथ ही कुशवाहा ने कैट के समक्ष एक और बड़ा मुददा उठाया था, जिसमें उन्होंने रेलवे से 50:50 के अनुपात का पालन करने के लिए आग्रह किया था. यह 50:50 का अनुपात सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के ग्रुप ’ए’ में पदोन्नति के दौरान बनाए रखा जाता है. रेलवे बोर्ड द्वारा इसका अनुपालन वर्ष 2001 से नहीं किया जा रहा है.
उपरोक्त तथ्यों के जवाब में कैट के आदेशानुसार चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) ए. के. मितल ने अपने स्पीकिंग आर्डर में कैट को बताया था कि रेलवे एक स्वायत्त संस्था है, और रेलवे का खुद का अपना नियम है. इसलिए डीओपीटी के दिशा-निर्देश रेलवे पर मान्य नहीं होते हैं. फलस्वरूप डीओपीटी का उक्त ओ. एम. दि. 04.03.2014 रेलवे पर लागू नहीं होगा. लेकिन सीआरबी की यह गर्वोक्ति तब और भी हास्यापदक हो जाती है, जब वह अपने उसी स्पीकिंग ऑर्डर में प्रमोटी अधिकारियों की संयुक्त डीपीसी कराने के बारे में कैट से यह कहते हैं कि रेलवे में संयुक्त डीपीसी, डीओपीटी के दिशा-निर्देशों के आधार पर कराई जाती है. अर्थात सीआरबी के उक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि रेलवे बोर्ड अपने मनमानी तरीके से और अपनी सुविधा के अनुसार डीओपीटी के दिशा-निर्देशों को अपना रहा है.
कुशवाहा ने सीआरबी के इस मनमानी और विरोधाभाषी स्पीकिंग आर्डर के खिलाफ जुलाई-2015 में फिर से कैट का दरवाजा खटखटाया था. इस बार कैट के सदस्यों – ए. के. उपाध्याय (सदस्य-प्रशासनिक) एवं उर्मिता दत्ता सेन (सदस्य न्यायिक) – ने सारे तथ्यों पर गहराई से तीनों पक्षों (रेलवे, प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन एवं आर. के. कुशवाहा) की दलीलें सुनने के बाद साक्ष्य और दस्तावेजों के आधार पर बहुत ही स्पष्ट और संतुलित फैसला सुनाया है, जिसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं..