ईमानदार अधिकारी के विरुद्ध अनैतिक रणनीति
दक्षिण रेलवे के कदाचारी अधिकारियों को मिला अभयदान, ईमानदार अधिकारी हतोत्साहित
धनबल की बदौलत कतिपय लोग करवा रहे हैं ईमानदार अधिकारी के खिलाफ मिथ्या शिकायतें
मूकदर्शक बनकर भ्रष्ट अधिकारियों और भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त लोगों को बढ़ावा दे रहा रेलवे बोर्ड
सुरेश त्रिपाठी
रेलवे बोर्ड के संदिग्ध रवैये से दक्षिण रेलवे के सभी अधिकारी अत्यंत हतोत्साहित हो रहे हैं. रेलवे और राष्ट्रहित में पूरी ईमानदारी और निष्ठापूर्वक काम करने वाले अधिकारी रेलवे बोर्ड के इस रवैये से मायूसी एवं हीनभावना का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में दक्षिण रेलवे की उत्पादकता और समस्त प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होना शुरू हो गया है. पता चला है कि जब हर प्रकार से मुंह की खाने के बाद अब धनबल का इस्तेमाल करते हुए एक ईमानदार अधिकारी के खिलाफ तीन सांसदों को अप्रैल के अंतिम सप्ताह में रेलमंत्री के पास भेजा गया था. बताते हैं कि इन सांसदों ने उक्त अधिकारी के खिलाफ मिथ्या शिकायत करते हुए रेलमंत्री से कहा कि ‘वह उनके नाम का इस्तेमाल कर रहा है. इससे उनकी छवि ख़राब हो रही है.’ जबकि हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि सांसदों द्वारा कहा गया यह सरासर झूठ था, क्योंकि उन्होंने वही कहा जो उन्हें कुछ कुटिल लोगों द्वारा समझाकर भेजा गया था.
रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रेलमंत्री ने इन सांसदों की उपस्थिति में ही एक बोर्ड मेंबर को बुलाकर उसे दक्षिण रेलवे की वस्तुस्थिति का पता लगाकर उनके समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. उक्त बोर्ड मेंबर ने इसके बाद क्या वस्तुस्थिति का पता लगाया और क्या रिपोर्ट प्रस्तुत की, यह तो पता नहीं चल पाया है, मगर यह अवश्य पता चला है कि सांसदों की उपरोक्त मिथ्या शिकायत पर रेलमंत्री कुछ क्षण के लिए अवहस्य विचलित हो गए थे और थोड़े आक्रोश में आकर उन्होंने सांसदों से कहा था कि ‘वह (अधिकारी) ऐसा कैसे कर सकता है, वह उनके नाम का इस्तेमाल कैसे कर सकता है?’ इस पर बोर्ड के ही कुछ अधिकारियों का कहना है कि जब बोर्ड के बड़े अधिकारी रेलमंत्री के आदेशों का ही पालन नहीं करते हैं, उनके निर्देश को ताक पर धर देते हैं, तो उनके नाम के इस्तेमाल से किसी अधिकारी का क्या भला हो सकता है? उन्होंने यह भी कहा कि मंत्री के नाम से कौन ऐसे अधिकारी की कोई बात मानकर उसके किसी फायदे का निर्णय कर देगा?
यही नहीं, दूर की रणनीति अपनाते हुए आईएएस से इस्तीफा देकर दलितों-पिछड़ों की जातिगत राजनीति करने राजनीति में आए दिल्ली के एक भाजपा सांसद से दक्षिण रेलवे के उक्त ईमानदार अधिकारी के खिलाफ एक और शिकायत रेलमंत्री के पास भिजवाई गई है. अब सवाल यह है कि दिल्ली में बैठे किसी सांसद को यह कैसे मालूम हो सकता है कि दक्षिण रेलवे और चेन्नई में क्या हो रहा है? इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि येन-केन प्रकारेण ब्लैकमेलिंग की रणनीति अपनाते हुए एक ईमानदार अधिकारी के साथ-साथ समस्त अधिकारियों और रेल प्रशासन को भी दबाव में लेकर कुछ कतिपय लोगों द्वारा अपनी भ्रष्टाचारयुक्त योजना को सफल बनाने का प्रयास किया जा रहा है. इसमें रेलवे बोर्ड मूकदर्शक बने रहकर अथवा चुप्पी साधकर उनका ही साथ दे रहा है.
दक्षिण रेलवे की तमाम श्रमिक गतिविधियों पर ‘रेलवे समाचार’ की पहली खबर के बाद रेलवे बोर्ड ने उक्त कतिपय लोगों के पिट्ठू और उनके पे-रोल पर रहने वाले दक्षिण रेलवे के तीन अधिकारियों को आनन-फानन में दिल्ली तलब करके उनके अवश्यम्भावी तबादले के जो संकेत दिए थे, वह भी अब ऐसा लगता है कि धनबल के दबाव में कहीं गुम हो गए हैं. इससे भी दक्षिण रेलवे के सभी अधिकारी निराश हुए हैं. तथापि, उक्त ईमानदार अधिकारी को दक्षिण रेलवे के समस्त अधिकारियों और कर्मचारियों सहित चेन्नई की पूरी मीडिया और प्रतिपक्षी यूनियन के साथ सभी कैडर आधारित गैर-मान्यताप्राप्त संगठनों का जिस तरह सहयोग और सपोर्ट मिला, उसे देखकर संबंधित लोगों के समक्ष राजनीतिक दबाव लाने और कैट में जाने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं बचा था. जबकि इससे पहले एक बड़े स्थानीय राजनेता ने संबंधित लोगों को उसका नाम इस्तेमाल नहीं करने की हिदायत देकर चलता कर दिया था.
कैट के आदेश को ‘स्टे’ बताकर न सिर्फ दुष्प्रचारित किया जा रहा है, बल्कि रेलवे बोर्ड और रेल कर्मचारियों सहित सांसदों को भी दिग्भ्रमित किया जा रहा है. जबकि कैट ने ‘यथास्थिति बनाए रखने’ का जो पहला आदेश दिया था, उसे रेल प्रशासन द्वारा कैट के समक्ष जब स्थिति को स्पष्ट करते हुए यह कहा गया कि ‘जिन करीब 800 कर्मचारियों का आवधिक तबादला किया गया था, उनमें से लगभग 600 से ज्यादा कर्मचारियों ने बहुत पहले ही अपनी नई जगहों पर ड्यूटी ज्वाइन कर लिया है, ऐसे में कौन सी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश कैट ने दिया है?’ इस पर कैट ने अपने पुराने आदेश को संशोधित करते हुए यह आदेश दिया कि ‘जिन कर्मचारियों को नई जगह ज्वाइन करना है, वह कर सकते हैं, बाकी कर्मचारी अंतिम निर्णय का इंतजार करें.’ कैट के इस आदेश को ही इन कतिपय लोगों द्वारा ‘स्टे’ कहकर कर्मचारियों सहित रेलवे बोर्ड और सांसदों को भ्रमित किया जा रहा है. जबकि इन लोगों को यह भी बहुत अच्छी तरह से ज्ञात है कि जून के पहले सप्ताह में होने वाली अगली सुनवाई में उनका मामला कहीं भी टिक नहीं पाएगा.
चेन्नई के कई वरिष्ठ पत्रकारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन लोगों ने करीब छह-सात साल पुराने एक मामले में उक्त ईमानदार अधिकारी के खिलाफ हाई कोर्ट में जाकर पुलिस द्वारा बंद किए गए एक मामले को पुनः शुरू करा दिया है. पत्रकारों ने बताया कि उक्त मामले को पुलिस ने लोक अदालत में रखकर समाप्त कर दिया था. अब हाई कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामले को लोक अदालत के जरिए खत्म नहीं किया जा सकता है. अब पुलिस द्वारा उचित प्रक्रिया अपनाकर उक्त मामले में कार्रवाई संपन्न की जाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि जिस महिला कर्मचारी के नाम पर पुलिस में संबंधित अधिकारी के खिलाफ महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करने, उन्हें पिस्तौल दिखाकर धमकाने और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने की शिकायत दर्ज करवाई गई है, वह महिला अब तक न तो सामने आई है, और न ही अब तक उसने पुलिस में अपना बयान दर्ज करवाया है.
उन्होंने बताया कि जबकि इन कतिपय लोगों द्वारा उसका गलत इस्तेमाल किए जाने वाली उसकी स्वीकृति वाली ऑडियो रिकॉर्डिंग पूरी दक्षिण रेलवे में काफी पहले ही वायरल हो चुकी है. यह ऑडियो रिकॉर्डिंग रेलवे बोर्ड को भी सौंपी गई है. इसके अलावा दक्षिण रेलवे के कई अधिकारियों का कहना है कि इस सबसे उक्त अधिकारी का कोई नुकसान नहीं होने वाला है, यह भी इन कतिपय लोगों को बखूबी पता है. वह सिर्फ उसे परेशान करने की रणनीति पर चल रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि संबंधित अधिकारी ने कहीं भी रेलवे के स्थापित या निर्धारित नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है. यही वजह है कि तमाम नाक रगड़ने के बावजूद महाप्रबंधक ने भी उनके किसी तर्क को मंजूर नहीं किया है. उनका कहना है कि चारों तरफ से निराश होने के बाद ही इन लोगों ने अपने धनबल की बदौलत सांसदों के माध्यम से रेलमंत्री पर दबाव की अनैतिक रणनीति अपनाई है.
सर्वप्रथम महिलाओं का इस्तेमाल करके अधिकारी का चरित्रहनन करने की अपनी पुरानी कुत्सित योजना के फेल होने, फिर पुलिस एवं स्थानीय राजनीतिज्ञों का अपेक्षित सहयोग और मदद न मिलने, महाप्रबंधक द्वारा दुत्कार दिए जाने तथा कैट से भी अपेक्षित आदेश प्राप्त न होने के बाद सांसदों के माध्यम से रेलमंत्री को दिग्भ्रमित करने में भी नाकामयाब रहने पर अब इन कतिपय लोगों ने ‘रेलवे समाचार’ पर भी अपनी दबाव की नीति का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इनके एक शीर्ष नेता द्वारा सभी खबरों और तथ्यों को गलत बताए जाने पर जब ‘रेलवे समाचार’ ने उनसे यह कहा कि वह बताएं कि क्या-क्या गलत है, उसे ठीक कर दिया जाएगा अथवा संपूर्ण रूप से गलत साबित होने पर पूरी खबर को न सिर्फ वेबसाइट से हटाया जाएगा, बल्कि माफी भी मांगी जाएगी.
इस पर उन्होंने लीपापोती वाली बात शुरू करते हुए कहा कि ‘रेलवे समाचार’ को न तो इस मामले में पड़ना चाहिए, और न ही किसी भी तरफ से पार्टी बनना चाहिए. उनका यह कहना भी अनर्गल है, क्योंकि ‘रेलवे समाचार’ पूरी ईमानदारी से सिर्फ अपनी ड्यूटी निभाने की कोशिश कर रहा है. जबकि इस बारे में शीर्ष नेता को समय-समय पर संपूर्ण वस्तुस्थिति से ‘रेलवे समाचार’ ने अवगत कराया था और यह भी कहा था कि वह स्थिति को नियंत्रित करने के लिए यथोचित कदम उठाएं. उनसे यह भी कहा गया कि जिस तरह उनके लोग रेल अधिकारियों के साथ मिलकर तमाम तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, वैसा ‘रेलवे समाचार’ के साथ कतई संभव नहीं है.
‘रेलवे समाचार’ द्वारा शीर्ष पदाधिकारी को यह भी बताया गया कि ‘उनके ही एक बड़े नेता का मानना है कि उनके कई पदाधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए हैं, जिससे यूनियनबाजी की स्थिति बहुत ख़राब हो गई है, क्योंकि जिनकी चपरासी बनने की भी हैसियत नहीं थी, ऐसे कई लोग जोनल महामंत्री और मंडल मंत्री बन गए हैं.’ इसका सबूत भी ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद है. उनसे यह भी कहा गया कि ‘रेलवे समाचार’ जितनी आलोचना रेल प्रशासन और उसके अधिकारियों की करता है, उसके पासंग बराबर भी वह स्वयं और उनके लोग नहीं कर सकते हैं. यदि वह ऐसा करने लगें, तो रेलवे में व्याप्त प्रशासनिक भ्रष्टाचार एकदम से समाप्त हो सकता है. मगर अपने आगे-पीछे आठ-दस मुस्टंडों या बाउंसरों को लेकर चलने वाले इन तथाकथित श्रमिक नेताओं में ऐसा करने का नैतिक साहस नहीं है. इसके बाद इस शीर्ष पदाधिकारी ने पुनः कॉल करने को कहकर अपनी बात को समाप्त कर दिया. बहरहाल, दक्षिण रेलवे का यह प्रकरण अभी काफी लंबा चलेगा, यदि रेलमंत्री अथवा रेलवे बोर्ड ने जल्दी ही कोई उचित कदम नहीं उठाया, तो वहां कई वर्षों से चली आ रही इस धींगामस्ती के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा.