‘खानदानी रईस आदमी है पार्सल पोर्टर’ – शीर्ष नेतृत्व का गरिमाहीन बयान
पार्सल पोर्टर ने खरीद रखा है सबको? रे.बो. से दुबारा बदलवाई जा रही टिकट चेकिंग पालिसी
अवैध कमाई की बदौलत पार्सल पोर्टर ने शीर्ष नेतृत्व एवं रेल प्रशासन को रखा है अपनी जेब में?
रे.बो. को नहीं है दक्षिण रेलवे मुख्यालय में बीसों साल से बैठे भ्रष्ट अफसरों को हटाने की कोई चिंता
सुरेश त्रिपाठी
दक्षिण रेलवे में यूनियन की दादागीरी अथवा माफियागिरी और वर्चस्व को सर्वथा पहली बार एक ईमानदार अधिकारी के चलते जबरदस्त चुनौती मिली है. पुलिस, अदालत, सांसद, स्थानीय रेल प्रशासन और रेलवे बोर्ड इत्यादि सब जगहों से जब कोई सफलता नहीं मिली, तब अपने धनबल की बदौलत ट्रैफिक निदेशालय पर दबाव बनाकर एक बार टिकट चेकिंग पालिसी बदलवा डाली और अब वह भी मन-मुताबिक न होने से उसे फिर दुबारा बदलवाने का दबाव बनाया जा रहा है. उधर प्रशासन ने आरपीएफ को भेजकर गत दिनों यूनियन के बेसिन ब्रिज ट्रेन केयर सेंटर स्थित दो एयरकंडीशन कार्यालयों को तुड़वा दिया और वहां लगे दो-दो एयरकंडीशनर के कनेक्शन भी कटवा दिए हैं. इसके अलावा यूनियन की अवैध रूप से स्थापित की गई लगभग 100-125 शाखाओं को भी प्रशासन ने खत्म करने की तैयारी कर ली है.
सबसे पहले जब पुलिस में मनमानी नहीं चली, तो यूनियन को ईमानदार सीसीएम के खिलाफ एफआईआर लिखवाने के लिए अदालत का आदेश लाना पड़ा. मगर उक्त एफआईआर देने वाली महिला कर्मचारी आज तक पुलिस के सामने अपना प्राथमिक बयान भी दर्ज कराने के लिए उपस्थित नहीं हुई है. वह लगातार फरार चल रही है. इसके अलावा मोबाइल पर हुई बातचीत में सच की स्वीकारोक्ति भी उसके खिलाफ एक बड़ा सबूत पुलिस के पास मौजूद है. इसके अतिरिक्त यूनियन द्वारा अदालत के सहयोग से सीसीएम के खिलाफ खुलवाए गए एक पुराने मामले में भी पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाकर मामले को दाखिल दफ्तर कर दिया है.
उधर यूनियन को कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिल पाई है. मामले की अगली तारीख 22 जून को है, जिसमें अंतिम निष्कर्ष आ सकता है, जो कि यूनियन के ही खिलाफ जाने की पूरी संभावना है. इस सब को देखते हुए पार्सल पोर्टर और उनके शीर्ष नेतृत्व ने पहले कुछ सांसदों से सीसीएम के खिलाफ झूठी शिकायतें करवाई, मगर जब सांसदों को सच बता दिया गया, अथवा उन्हें किन्हीं माध्यमों से सचाई पता चल गई, तो उन्होंने भी इस मामले से अपना हाथ खींच लिया है. पता चला है कि एक सांसद ने तो कान पकड़कर कसम खाई है कि वह अब भविष्य में किसी भी यूनियन के ऐसे मामलों में कोई भी पत्र किसी मंत्रालय को नहीं लिखेंगे.
पुलिस और सांसदों से निराश होने और अदालत से भी कोई खास उम्मीद न बचने से हताश होकर अब पार्सल पोर्टर और उसके शीर्ष नेतृत्व ने रेलवे बोर्ड को घेरा है. बताते हैं कि लगातार चार-पांच दिन तक ट्रैफिक निदेशालय में बैठकर टिकट चेकिंग स्टाफ के पीरियोडिकल ट्रांसफर से संबंधित पालिसी को बदलवा दिया गया. परंतु जब बदली हुई पालिसी सामने आई, तो वह पार्सल पोर्टर के मन-मुताबिक नहीं थी. बताते हैं कि अब दुबारा इसे बदलने का दबाव बनाया जा रहा है. पता चला है कि 11 जुलाई की संभावित रेल हड़ताल को लेकर कर्मचारियों का जो जमावड़ा हो रहा है, उसमें रेलकर्मियों पर अपना रुतबा बुलंद रखने और अपनी हवा बनाए रखने के लिए पार्सल पोर्टर द्वारा स्पष्ट रूप से कहा जा रहा है कि उसने सीसीएम को ट्रांसफर कराने के लिए अब तक पांच करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं और वह उनका ट्रांसफर करवाकर ही दम लेगा?
जानकारों का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि पार्सल पोर्टर के पास अवैध कमाई का बहुत पैसा है और उसने अपने शीर्ष नेतृत्व तक को अपनी जेब में रखा है. उनका कहना है कि यही वजह है कि शीर्ष नेतृत्व चाहकर भी पार्सल पोर्टर के खिलाफ नहीं जा सकता है. इसके अलावा दक्षिण रेलवे मुख्यालय में बीसों साल से खूंटा गाड़कर बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों सहित रेलवे बोर्ड के भी कई अधिकारियों को उसने पूरी तरह खरीद रखा है. उनका कहना है कि यही वजह है कि जब एक कमेटी मेंबर रेलवे बोर्ड के एक मेंबर से मिलकर दक्षिण रेलवे की यूनियन के वर्चस्व, प्रशासनिक दुरावस्था और लगभग सभी जोनल रेलों में बीसों साल से एक ही जगह बैठे अधिकारियों को अन्यत्र ट्रांसफर नहीं किए जाने के बारे में बात करता है, तो संबंधित बोर्ड मेंबर उस पर बुरी तरह झल्ला जाता है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार शीर्ष नेतृत्व ने पार्सल पोर्टर को खानदानी रईस बताया है. पता चला है कि गत सप्ताह लखनऊ में एक वरिष्ठ पत्रकार से बात करते हुए शीर्ष नेतृत्व ने उससे कहा कि ‘रेलवे समाचार ने पार्सल पोर्टर के बारे में बहुत कुछ अनर्गल प्रकाशित कर दिया है, जबकि उक्त पार्सल पोर्टर तो खानदानी रईस है, और उसकी सारी संपत्ति खानदानी है, वह तो शाही खानदान से ताल्लुक रखता है.’ बताते हैं कि इस पर जब उक्त वरिष्ठ पत्रकार ने उनसे यह पूछा कि यदि वास्तव में उक्त पार्सल पोर्टर खानदानी रईस है, और उसके पास हजारों करोड़ की खानदानी संपत्ति रही है, तो वह रेलवे में पार्सल पोर्टर बनने क्यों आया था? उसे यूनियन लीडर बनने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? इस पर शीर्ष नेतृत्व को कोई जवाब देते नहीं बना.
पता चला है कि उक्त वरिष्ठ पत्रकार ने जब शीर्ष नेतृत्व से यह कहा कि ‘सीसीएम को लेकर वह किसी मुगालते में न रहें, क्योंकि यदि जरूरत पड़ी तो वह (वरिष्ठ पत्रकार) खुद इस समस्त मामले पर शीर्ष अदालत के समक्ष एक जनहित याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं.’ बताते हैं कि इस पर शीर्ष नेतृत्व ने कहा कि यूनियन के खिलाफ जनहित याचिका नहीं हो सकती है. मगर जब उन्हें यह बताया गया कि वह यूनियन के खिलाफ नहीं, बल्कि प्रशासनिक अव्यवस्था और नियमों के अनुपालन में प्रशासन द्वारा बरती जा रही कोताही के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले हैं, तब शीर्ष नेतृत्व के पास कोई जवाब नहीं था.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो ‘रेलवे समाचार’ खुद इस तमाम अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने की तैयारी में है. इसके अलावा पिछली बार ‘रेलवे समाचार’ ने पार्सल पोर्टर की जितनी संपत्ति का आकलन किया था, वह उससे दोगुनी बताई जा रही है. अब यह एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) और डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलिजेंस (डीआरआई) तथा सीबीआई की जांच का विषय है कि एक मामूली पार्सल पोर्टर ने हजारों करोड़ की इतनी सारी संपत्ति कहां से और कैसे जमा की है?