पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे : ‘नरनारायण ब्रिज इज फालिंग डाउन’

निर्माण के पांच साल बाद ही ‘नरनारायण सेतु’ के पिलर्स में आ गईं थीं गहरी दरारें

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की वर्ष 2012 की रिपोर्ट को रेलवे बोर्ड ने किया था दरकिनार

आईआईटी, गुवाहाटी की वर्ष 2009-10 की अध्ययन रिपोर्ट को नजरअंदाज किया गया

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल का एक प्रतिष्ठित रेलवे ब्रिज ‘नरनारायण सेतु’ ढ़हने वाला है. निर्माण के मात्र 15 सालों में ही यह महत्वपूर्ण रेल-कम-रोड ब्रिज जर्जर हो चुका है. जबकि निर्माण के मात्र पांच साल बाद ही इसके कई पिलर्स (खम्भों) में गहरी दरारें आ गई थीं. रेलवे बोर्ड और पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के अधिकारियों ने पिछले 10 वर्षों में इस पुल की जर्जर स्थिति को न सिर्फ बहुत बुरी तरह से नजरअंदाज किया है, बल्कि आईआईटी, गुवाहाटी, जिसे इस पुल की मजबूती अथवा जर्जर स्थिति का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2009 में कंसलटेंट नियुक्त किया गया था और जिसने इस पुल की हालत बहुत गंभीर बताई थी, की वर्ष 2009 एवं 2010 की रिपोर्ट को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसके अलावा पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) द्वारा वर्ष 2012 में भेजी गई रिपोर्ट पर भी रेलवे बोर्ड ने कोई तवज्जो नहीं दी.

यदि इस पर अविलंब ध्यान नहीं दिया गया तो पूर्वोत्तर सीमांत राज्यों को शेष देश से जोड़ने वाला ब्रम्हपुत्र नदी पर गुवाहाटी एवं बोंगाईगांव सेक्शन के बीच जोगीगोपा में बना यह महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित रेल/रोड ब्रिज, जो कि ‘गंभीर संरचनात्मक संकट’ (सीरियस स्ट्रक्चरल डिस्ट्रेस) में है, मध्यम स्तर के एक मामूली भूकंप के झटके से कभी-भी धराशाई हो सकता है. यह पुल जल्दी ही सामान्य भार वाहन करने के लिए भी असुरक्षित हो जाएगा. निर्माण के मात्र 15 सालों के अंदर इस पुल की संरक्षा और इसका बचा रहना अत्यंत संदिग्ध हो गया है.

इस संकट के संकेत ‘पूर्वोत्तर के आश्चर्य’ इस पुल के निर्माण के पांच साल के अंदर ही मिल गए थे, परंतु इस गंभीर समस्या के निराकरण अथवा इस पुल को बचाने हेतु पिछले 10 सालों में रेलवे बोर्ड और पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई भी प्रयास नहीं किया गया, जिससे यह समस्या और ज्यादा बिगड़ते हुए अब अत्यंत विकट स्थिति में पहुंच गई है. अतः किसी भी समय अचानक इस पुल के ढ़ह जाने से भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इससे पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र में न सिर्फ रेल, बल्कि सड़क यातायात भी काफी लंबे समय तक बंद हो सकता है.

उपरोक्त निष्कर्ष पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के चीफ ब्रिज इंजीनियर (सीबीई) आलोक कुमार वर्मा द्वारा 27 मई 2016 को मेंबर इंजीनियरिंग, रेलवे बोर्ड को लिखे गए पत्र (सं. 178/डब्ल्यू/ड्राइंग/ब्रिज/ओपनिंग/डीओसी) का है. रेलवे बोर्ड के हमारे अत्यंत विश्वसनीय संपर्कों से प्राप्त यह पत्र प्रमाण स्वरूप ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित है. इस 8 पेज के पत्र की एक प्रति चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को भी भेजी गई है. बताते हैं कि कंसलटेंट की रिपोर्टों का निष्कर्ष यह भी है कि भगवान विष्णु के एक नाम के इस अत्यंत प्रतिष्ठित ‘नरनारायण सेतु’ की न सिर्फ ड्राइंग/डिजाइन में गड़बड़ी पाई गई है, बल्कि इसके निर्माण में अत्यंत घटिया क्वालिटी की सामग्री का इस्तेमाल किया गया है.

कंसलटेंट आईआईटी, गुवाहाटी की दोनों गंभीर रिपोर्टों सहित कुल 10 संलग्नकों के साथ रेलवे बोर्ड को भेजे गए इस विस्तृत विस्फोटक पत्र का स्पष्ट रूप से कुल लब्बोलुआब यह है कि भारतीय रेल के अत्यंत प्रतिष्ठित और पूर्वोत्तर सीमांत राज्यों के रेल/रोड यातायात के लिए अति महत्वपूर्ण इस ब्रिज के मामले में पिछले 10 वर्षों के दौरान रेलवे बोर्ड सहित पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के संबंधित अधिकारियों द्वारा अक्षम्य लापरवाही बरती गई गई.

श्री वर्मा रेलवे बोर्ड को यह पत्र लिखने के तीन दिन बाद ही 31 मई 2016 को सीबीई, एनएफआर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं. ‘रेलवे समाचार’ द्वारा उनसे संपर्क करने के सभी प्रयास विफल रहे हैं, वरना शायद पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में भारतीय रेल के अब तक के सबसे लंबे समय तक के लिए बंद पड़े ब्रॉड गेज सेक्शन की हकीकत भी सामने आ जाती.

प्राप्त जानकारी के अनुसार लम्बडिंग-सिलचर सेक्शन हाल ही में सीआरएस के मंजूरी के बाद रेल ट्रांसपोर्ट के लिए खोला गया था. मगर इसमें बहुत जल्दी ही तमाम खामियां आ गईं, परिणामस्वरूप श्री वर्मा ने अपने सीबीई पद के अधिकार का प्रयोग करते हुए उक्त सेक्शन को बंद करने का आदेश दे दिया था. परंतु अयोग्य और अक्षम पूर्व मेंबर इंजीनियरिंग की सहमति से महाप्रबंधक, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने दो दिन बाद ही उक्त सेक्शन को पुनः रेल यातायात के लिए खोल दिया.

इसके फलस्वरूप एक सप्ताह के अंदर ही उक्त सेक्शन में दो बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो गईं. इसका निष्कर्ष यह है कि उक्त सेक्शन पिछले करीब दो महीने से बंद पड़ा हुआ है और अब न तो सीआरएस इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं, और न ही रेलवे बोर्ड एवं पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के संबंधित प्राधिकारीगण. इस मामले में ‘रेलवे समाचार’ को विस्तृत रिपोर्ट का इंतजार है.

इनपुट : विजय शंकर, ब्यूरो प्रमुख, गोरखपुर