उत्तर मध्य रेलवे: जिसकी जैसी पहुंच, उसके लिए बना दी जाती है वैसी व्यवस्था!
कर्मचारियों के प्रशासनिक एवं आवधिक स्थानांतरण में भी किया जाता है भेदभाव और पक्षपात
प्रयागराज ब्यूरो: उत्तर मध्य रेलवे, ट्रैफिक विभाग का कार्यकलाप हमेशा से सुर्खियों में रहा है। इसमें अच्छे काम कम और अनियमितताएं ज्यादा देखने को मिलती हैं। परिचालन विभाग में अनियमितता की छींटें मुख्यालय स्तर के एसएजी ग्रेड के अधिकारियों तक पड़ चुकी हैं, लेकिन अभी जो सूत्रों से जानकारी मिली है वह वाणिज्य विभाग से संबंधित है।
इसकी शुरुआत आगरा मंडल से होती है। आगरा मंडल में कार्यरत अनेकों वाणिज्य स्टाफ का कहना है कि यहां पर स्थानांतरण की कोई स्पष्ट नीति ही नहीं है, जिसकी जैसी पहुंच होती है, उसके लिए वैसी ही व्यवस्था बना दी जाती है।
इसका ताजा उदाहरण – इसी वर्ष फरवरी माह में वर्षों से डीसीआई, आगरा फोर्ट के पद पर कार्यरत घनश्याम मीणा को स्थानांतरित करके सीपीएस, आगरा फोर्ट बनाया गया और तत्कालीन सीपीएस सियाराम मीणा को डीसीआई, आगरा फोर्ट बनाया गया।
अब दूसरा खेल देखें! इसी अगस्त माह के नए आदेश के अनुसार मंडल कार्यालय के डीसीआई को नया सीपीएस/आगरा फोर्ट बनाने का आदेश जारी किया गया है और घनश्याम मीणा के लिए अलग से डीसीआई/सेनिटेशन का नया पद बनाया गया है।
इस पद का सृजन अभी किया गया है या पहले से था? यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। तथापि अगर यह अभी सृजित किया गया है, तो इसकी आवश्यकता क्या थी, जब डीसीआई वहां पहले से पदस्थ है? यह स्थानांतरण नीति का खुला उल्लंघन है।
यहां के कई कर्मचारियों का कहना है कि घनश्याम मीणा यूनियन का पदाधिकारी है, इसीलिए सीनियर डीसीएम ने यूनियन के दबाव में इस प्रकार का अमान्य आदेश निकाला है। उनका कहना है कि ऐसे आदेश तभी निकाले जाते हैं, जब संबंधित अधिकारी स्वयं में साफ-सुथरे नहीं होते हैं!
बहरहाल, इस प्रकार के अनावश्यक कदम से कर्मचारियों में असंतोष पैदा होता है। जब सेनिटेशन का अधिकतर कार्य ईएनएचएम विभाग करता है, फिर इस पद के सृजन की क्या आवश्यकता थी? जबकि वाणिज्य विभाग में वैसे ही मैनपावर की कमी है? भ्रष्टाचार या भ्रष्ट आचरण इसी तरह के क्रिया कलापों में निहित होता है।
स्थानांतरण में भेदभाव और पक्षपात
आगरा मंडल जैसा ही हाल प्रयागराज मंडल के वाणिज्य विभाग का भी देखने में आ रहा है। इस मंडल में कार्यरत अधिकांश कर्मचारियों ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि यहां प्रशासनिक एवं आवधिक स्थानांतरण (पीरियोडिकल ट्रांसफर) में भी भेदभाव और पक्षपात किया जा रहा है।
प्रयागराज मंडल में ऐसे बहुत से वाणिज्य कर्मचारी हैं जो कि एक लोकेशन पर चार वर्ष और उससे भी अधिक वर्षों से कार्यरत हैं, लेकिन जुगाड़ तंत्र के चलते उनका नाम पीरियोडिकल ट्रांसफर लिस्ट में नहीं आता है।
#RailSamachar ने इसके पहले भी इस बारे में लिखा था कि कैसे कुछ कर्मचारी भर्ती से लेकर पदोन्नति तक एक ही स्टेशन पर वर्षों से जमे हुए हैं। कई आरोप ऐसे भी लगे हैं कि स्टाफ को अन्यत्र स्थानांतरण कर दिया गया और उसने वहां ज्वाइन करके ट्रांसफर अलाउंस भी ले लिया। बाद में जुगाड़ लगाकर दो-तीन महीने के भीतर वापस उसी जगह पर आ गया। कुछ लोग तो इतने शातिर थे, जो एक महीने बाद ही वापस आ गए।
इससे भ्रष्टाचार पर कतई कोई अंकुश नहीं लगेगा, बल्कि भ्रष्टतंत्र और मजबूती से खड़ा हो रहा है। रेल प्रशासन को आवधिक स्थानांतरण नीति को पूर्णतः पारदर्शी तरीके से लागू करना चाहिए और किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव में नहीं आना चाहिए।
रेल प्रशासन को ऐसे मामलों में केवल एक ही उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए कि अगर एक लोकेशन के स्टाफ को निर्धारित समयांतराल पर अन्य लोकेशन पर नहीं भेजा जाएगा, तो करप्शन पर कभी कोई अंकुश नहीं लगाया जा सकेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार की असली जड़ यहीं पर है! क्रमशः
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