जयपुर मंडल: आवधिक स्थानांतरण आदेश मानने को तैयार नहीं कुछ दबंग चेकिंग स्टाफ
बाहुबली दबंग टीटियों ने अधिकारियों को दी अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी
उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर मंडल में स्क्वाड ड्यूटी (ओपन डिटेल) से कोच मैनिंग में ट्रांसफर किए जाने पर कुछ बाहुबली और दबंग टिकट चेकिंग स्टाफ (टीटियों) ने वाणिज्य अधिकारियों का काम करना मुश्किल कर दिया है। उन्होंने इस ट्रांसफर लिस्ट को तीन दिन में न बदलने पर अधिकारियों को परिणाम भुगतने की धमकी दी है। अब यही वाणिज्य अधिकारी दहशत में हैं, जो अब तक उन्हें गले लगाए हुए थे। ज्ञातव्य है कि यही अधिकारी #RailSamachar को हाल ही में एक खबर का स्रोत बताने की नोटिस भेजे थे।
भारतीय रेल के अनुशासित ढ़ांचे की दुनियाभर में मिसालें दी जाती हैं जबकि जयपुर, झांसी, भोपाल, आगरा इत्यादि जैसे मंडलों में स्क्वाड ड्यूटी कर रहे बाहुबली और छुटभैये नेता टाइप दबंग टीटियों ने वाणिज्य अधिकारियों का काम करना हराम कर रखा है।
समस्या की जड़:
कोविड महामारी के बाद इस साल उ.प.रे. जयपुर मंडल, वाणिज्य विभाग द्वारा चार साल बाद 22 अप्रैल 2022 को कुल 129 चेकिंग स्टाफ के आवधिक स्थानांतरण (पीरियोडिकल ट्रांसफर) का आदेश जारी किया गया है। प्रशासन द्वारा सूझबूझ का पर्याप्त परिचय देते हुए नियमानुसार यह सूची जारी की गई है। इस सूची में ज्यादातर स्टाफ का ट्रांसफर उनकी नेम-नोटिग के आधार पर किया गया है। तथापि इसकी चपेट मे स्क्वाड में काफी लंबे समय से काम कर रहे कुछ दबंग टीटीई आ गए हैं, जो विगत 25-30 सालों से एक ही जगह जमे हुए थे। उन्हें आज तक वहां से उखाड़ने की हिम्मत किसी अधिकारी ने नहीं की थी।
परंतु इस बार संबंधित वाणिज्य अधिकारियों ने यह ट्रांसफर आर्डर बदलने से यह कहकर साफ मना कर दिया और अपनी बला कार्मिक विभाग पर टालते हुए कह दिया कि “यह आर्डर नियमानुसार है और अब उनका इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। किसी स्टाफ को अगर कोई समस्या है, तो वह कार्मिक अधिकारियों से या डीआरएम से जाकर बात करे!”
बताते हैं कि मंडल वाणिज्य अधिकारियों की स्पस्ट “न” सुनते ही एक बार को तो ये दबंग हक्के-बक्के रह गए, मगर अब ये जाकर कार्मिक अधिकारियों के गले पड़ गए हैं।
दबंगों ने दिया तीन दिन का अल्टीमेटम:
जयपुर मंडल, वाणिज्य विभाग के अधिकारियों के सख्त रवैये को देखकर और उनके हाथ खड़े करते ही इन दबंगों का पारा आसमान पर चढ़ गया है। उन्होंने कार्मिक अधिकारियों को उनके कार्यालय में जाकर घेर लिया तथा कड़े लहजे में अल्टीमेटम दे दिया कि “तीन दिन के अंदर या तो आर्डर रिवाइज करें और उनका नाम हटाएं, या फिर अपना बोरिया बिस्तर बांधकर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाएं!”
बताते हैं कि अब कार्मिक शाखा के अधिकारी इन दबंग बाहुबलियों से बुरी तरह डरे हुए हैं, क्योंकि आर्डर तो नियमानुसार ही निकाला गया है। जानकारों का कहना है कि अब अगर इस आर्डर को बदला जाता है, तो इसका अर्थ यह होगा कि पहले वाला आर्डर गलत था, और इससे इन कुछ दबंगों बाहुबलियों का वर्चस्व एक बार फिर से मंडल में स्थापित हो जाएगा तथा मंडल अधिकारियों एवं रेल प्रशासन को नीचा देखना पड़ेगा। और अगर नहीं बदला जाता है, तो ये अधिकारियों के विरुद्ध कुछ नहीं कर पाएंगे, ज्यादा से ज्यादा कुछ फर्जी शिकायतें करवाने के सिवा!
अब अगले तीन दिनों में देखना यह है कि जयपुर मंडल में नियमानुसार काम करने वाले अफसरों की चलती है, या रेल प्रशासन के समानांतर गुंडाराज चलाने वाले इन दबंग टीटियों के ‘आदेश’ का पालन करते हुए ट्रांसफर आर्डर बदला जाता है!
समस्त स्टाफ संतुष्ट है!
वहीं मंडल के अधिकांश टिकट चेकिंग स्टाफ का कहना है कि जयपुर मंडल में इस बार अधिकारियों ने जिस तरह का आवधिक स्थानांतरण आदेश जारी किया है, उससे इन दबंगों को छोड़कर बाकी समस्त स्टाफ संतुष्ट है। उनका कहना है कि इन कुछ दबंगों को छोड़कर बाकी चेकिंग स्टाफ ने केवल इस लिस्ट से पूरी तरह संतुष्ट है, बल्कि उसने नई जगह जाकर ज्वाइन भी कर लिया है।
उक्त ट्रांसफर आर्डर के क्रमांक 25, 26, 27 पर जो लोग हैं, वह क्रमशः 20, 15 और 25 सालों से केवल स्क्वाड में ही काम कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इनका ट्रांसफर ऑन पेपर कहीं भी हो, ये स्क्वाड में ही काम करते हैं। ये लोग हमेशा नेतागीरी करते हैं और अधिकारियों को डराकर रखते हैं। इनकी दबंगई के चलते अधिकारी भी काफी दबाव में हैं और संभवतः आज या कल लिस्ट से इनके नाम हटाकर नई लिस्ट जारी की जा सकती है। उनका यह भी कहना है कि 99% स्टाफ ने नई जगह पर ज्वाइन कर लिया है, केवल इन्हीं कुछ दबंग लोगों के कारण विवाद पैदा हो रहा है।
डीआरएम अडिग हैं ट्रांसफर आदेश पर!
जयपुर मंडल प्रशासन एवं चेकिंग स्टाफ के बीच उपरोक्त विवाद पर #RailSamachar ने जयपुर मंडल के सीनियर डीसीएम और डीआरएम को उनके मोबाइल पर कॉल करके वस्तुस्थिति जानने का प्रयास किया। संभवतः व्यस्त होने के कारण सीनियर डीसीएम ने तो कॉल अटेंड नहीं की, मगर डीआरएम श्री नरेंद्र ने न केवल कॉल रिसीव की, बल्कि विषय का उल्लेख करने पर बताया कि स्टाफ द्वारा धमकी या अल्टीमेटम दिए जाने जैसी कोई बात नहीं हुई है। तथापि उन्होंने कहा कि जो कर्मचारी एक जगह पदस्थ होते हैं, निर्धारित समय पर नियमानुसार उनको दूसरी जगह ट्रांसफर किया जाता है। यहां कुछ कर्मचारी काफी लंबे समय से एक ही जगह टिके हुए थे। उनका यह भी कहना था कि कुछ कर्मचारियों को किसी कारणवश कोई समस्या हो सकती है, यह सही है, परंतु ट्रांसफरेबल सर्विस में आए हैं, तब निर्धारित नियमों और प्रक्रिया का पालन तो उन्हें करना ही होगा।
शुरू की गई स्क्वाड की गलत परंपरा
बहरहाल, जयपुर डिवीजन में पहले काम कर चुके एक सीनियर ट्रैफिक अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि जयपुर मंडल के टिकट चेकिंग स्टाफ में करीब 25-30 बाहुबली हैं, इन लोगों ने पूरे जयपुर मंडल को बदनाम करके रखा है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि ऐसे लोग भारतीय रेल के लगभग सभी मंडलों में भी हैं, ये लोग रेलवे बोर्ड के आदेशों को भी कई बार लागू नहीं होने देते हैं। उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों के विपरीत टिकट चेकिंग में ‘स्क्वाड’ की एक बहुत ही गलत परंपरा शुरू की गई है, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी और लूट का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि नियम के अनुसार किसी भी मंडल के कुल चेकिंग कैडर का केवल 7% स्टाफ ही स्क्वाड ड्यूटी अर्थात ओपन डिटेल में रखा जा सकता है। ऑफिस या पार्किंग ड्यूटी में भी चेकिंग स्टाफ को नहीं लगाया जा सकता। इसी प्रकार कोच मैनिंग स्टाफ को भी मैनिंग ड्यूटी के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं लगाया जा सकता। परंतु रेलवे बोर्ड के यह नियम/निर्देश केवल कागजी बनकर रह गए हैं। स्थिति यह है कि जहां हजारों रिजर्व्ड/अनरिजर्व्ड कोच रोज अनमैंड जा रहे हैं, वहीं कोच मैनिंग स्टाफ को नियम विरूद्ध ओपन स्क्वाड तथा अन्य अनुत्पादक कार्यों में लगाया हुआ है।
अधिकारी/प्रशासन दोनों बेबस:
ज्यों-ज्यों इस मामले की तह में जाया गया, त्यों-त्यों सनसनीखेज बातें सामने आती गईं और यह भी देखने में आया कि केवल अधिकारी ही नहीं, बल्कि पूरा रेल प्रशासन भी यूनियनों की आड़ लेकर ऊंची पहुंच रखने वाले टिकट चेकिंग के इन दबंगों के सामने बुरी तरह बेबस है और अपनी कुछ कमियों अथवा अनिच्छा के चलते इनका कोई तोड़ नहीं ढूंढ़ पा रहा है।
जानकारों का कहना है कि पूरी दबंगई से और अपनी मनमर्जी की ड्यूटी करने वालों की पहुंच जोनल मुख्यालय एवं रेलवे बोर्ड के कुछ उच्च अधिकारियों से लेकर कुछेक छुटभैये नेताओं/मंत्रियों तक से होती है। इसके चलते जो अधिकारी सिस्टम को बदलने या सुधार करने की इच्छा लेकर रेलवे में ज्वाइन करते है, वह तीन माह बीतते-बीतते अपना ट्रांसफर अन्यत्र कहीं करा देने की कामना ईश्वर से करने लगते हैं।
स्क्वाड में ही ड्यूटी क्यों करना चाहते हैं दबंग!
जानकारों का कहना है कि इन तथाकथित दबंगों के स्क्वाड में ड्यूटी करने का कारण एक ही है कि इन स्क्वाड ड्यूटी करने वाले टीटियों के ड्यूटी मूवमेंट का कोई भी माॅनिटरिंग सिस्टम नहीं है। ये लोग 10-15 मिनट में प्लेटफॉर्म पर खड़ी गाड़ी में टिकट बनाकर निकल लेते हैं। फिर सारा दिन ऐश करते हैं और पूरा टीए/डीए भी क्लेम करते हैं।
उनका यह भी कहना है कि ये लोग विजिलेंस वालों को हफ्ता देते हैं, इसलिए वे भी आंख बंद किए रहते हैं। यह सब देख/जानकर अधिकारी भी बेबस हो जाते हैं और इनके खिलाफ कुछ भी कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। तथापि अगर अधिकारी इन पर नकेल कसने की कोशिश करते हैं, तो ये अघोषित रूप से रसीदें बनाना बंद या कम कर देते हैं, तथा उनके विरुद्ध फर्जी शिकायतें करवाकर उन्हें बैकफुट पर आने के लिए मजबूर कर देते हैं।
तोड़ निकालने में फिलहाल असफल रेलवे बोर्ड
इस संदर्भ में जब रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय स्रोतों से जब चर्चा की गई और उन्हें बताया गया कि जयपुर मंडल में करीब 28-30 सालों से टिकट चेकिंग के 20-25 लोग जयपुर में स्थाई रूप से स्थापित हैं, ऐसे लोगों की लगभग इतनी ही संख्या हर डिवीजन में है। इस पर उनका कहना था कि पूरी भारतीय रेल के लगभग सभी डिवीजनों में स्क्वाड में काम करने के इच्छुक लोगों की बढ़ती संख्या एक नासूर का रूप ले चुकी है।
उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड भी फिलहाल इसका कोई तोड़ निकाल पाने में सफल नहीं हो पा रहा है। हाल ही में “रेलसमाचार” की 32 साल से चक्रधरपुर डिवीजन के टाटानगर स्टेशन पर जमे एक सीटीआई की खबर का उल्लेख करते हुए उनका कहना था कि टिकट चेकिंग स्टाफ हो या अन्य कोई फील्ड कैडर, निर्धारित पॉलिसी के अनुसार प्रत्येक चार साल में प्रत्येक कर्मचारी का मुख्यालय बदला जाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि नीचे स्तर पर “गंदगी” बहुत ज्यादा जमा हो गई है।
उन्होंने अंत में यह भी कहा कि “रेलसमाचार” लंबे समय से एक ही जगह एक ही शहर एक ही जोन में टिके अधिकारियों का ट्रांसफर भी निर्धारित नीतिगत प्रक्रिया के अनुरूप सुनिश्चित करने पर लगातार जोर देता है, उसका यह प्रयास बहुत सराहनीय है।
यह है इस बीमारी का इलाज!
रेलवे बोर्ड से रिटायर हुए एक वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी ने बताया कि इस बीमारी के कुछ बहुत आसान उपाय हैं। इनमें से उन्होंने कुछ उपायों का उल्लेख किया, जो इस प्रकार हैं-
1. पूरी भारतीय रेल के समस्त टिकट चेकिंग स्टाफ को कोच मैनिंग ड्यूटी में लगाया जाए और पूरी रेल में टिकट चेकिंग का कार्य आउटसोर्स कर दिया जाए। इसके साथ ही ऑफिस ड्यूटी/कंप्यूटर ड्युटी/लाॅबी ड्यूटी को भी आउटसोर्स कर दिया जाना चाहिए।
2. ई-ईएफटी दी जाए और पेपर ईएफटी सिस्टम को तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिए, तभी सारे स्टाफ का मूवमेंट ऑटोमेटिक फीड होता रहेगा।
3. तब तक सभी स्क्वाड के चेकिंग स्टाफ के मूवमेंट और रसीदों को उन टीआईए (एकाउंट्स विभाग) से मिलान/चेक करवाया जाए, जिनके पास आजकल कोई काम-धंधा नहीं है। जाने वाली गाड़ियों (आउटगोइंग ट्रेनों) में रसीदें होने और आने वाली (इनकमिंग ट्रेनों) में रसीदें न होने पर उस ट्रिप को अब्सेंट (अनुपस्थित) मानकर संबंधित स्टाफ के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए।
4. सभी टिकट चेकिंग स्टाफ को सीयूजी सिम दिया गया है। सबको इसको साथ लेकर चलना सुनिश्चित किया जाए और प्रत्येक महीने के अंत में चेकिंग स्टाफ के मूवमेंट/टीए-डीए और सीयूजी सिम की काॅल/लोकेशन डिटेल को इससे मैच करवाया जाना चाहिए। यह सब मैच न होने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए।
उन्होंने कहा कि अगर उपरोक्त चारों में से कोई भी एक उपाय पर अमल कर लिया जाए, तो रेलवे में व्याप्त ये नासूर, जिसके कारण ये स्क्वाड दस्ते जो निकम्मों और भ्रष्टों के अवैध ठीये बन गए हैं, वह सब स्वस्थ अंग के रूप में काम करने लगेंगे। इन दस्तों में काम कर रहे लोगों का टीए/डीए ग्राफ एक महीने में ही धड़ाम से नीचे आ जाएगा। तब इनमें काम करने के लिए मरे जा रहे टीटीई इन दस्तों में पोस्टिंग न करने की चिरौरी-विनती करते नजर आएंगे। तब गाड़ियों में जाने-आने में वर्किग करने पर रसीदों के बनने और अर्निंग होने का ग्राफ भी निश्चित रूप से काफी बढ़ जाएगा।
अब देखना यह है कि जयपुर मंडल में अगले तीन दिनों में किसकी जीत होती है – रेलवे के नियमों की, या फिर बाहुबल और दबंगई की!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी