सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली प्रमोटियों को कोई राहत

एडहाक जेएजी रिवर्शन को सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया

अरबों रुपये के पदोन्नति घोटाले में कोर्ट ने नहीं दिया स्टे

स्थाई जेएजी प्राप्त प्रमोटियों के लिए तय की समय सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने डीओपीटी को भी मामले में एक पक्ष बनाया

नेतृत्व से केस को वापस लेने की मांग करेंगे प्रमोटी अधिकारी

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल में हुए अरबों रुपये के अधिकारी पदोन्नति घोटाले के संदर्भ में अधिकारी समूहों के बीच चल रही अदालती लड़ाई पर शुक्रवार, 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. यह सुनवाई विशेष रूप से कैट/पटना के आदेश के अनुपालन में रेलवे बोर्ड द्वारा 6-7 दिसंबर को जारी किए गए एडहाक जेएजी प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों के रिवर्शन आदेश पर हो रही थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट से भी प्रमोटी अधिकारियों को कोई राहत नहीं मिली. सर्वोच्च अदालत ने रेलवे बोर्ड द्वारा कैट/पटना के दि. 03.05.2016 के आदेश के अनुपालन में उक्त तारीख के बाद एडहाक जेएजी प्राप्त सभी प्रमोट अधिकारियों को पदावनत (डिमोशन) करने हेतु जारी आदेश पर स्थगनादेश (स्टे ऑर्डर) देने से मना कर दिया. इस प्रकार प्रमोटी अधिकारियों की यह अंतिम कोशिश भी व्यर्थ चली गई है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 2 फरवरी को होगी.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टे नहीं दिए जाने से इस दरम्यान जिन दो-तीन केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरणों (कैट्स) द्वारा रेलवे बोर्ड के रिवर्शन आदेश के परिप्रेक्ष्य में जो स्थगनादेश दिए गए हैं, वह भी अब अमान्य हो गए हैं और जिन जोनल रेलों द्वारा अब तक एडहाक जेएजी प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों के रिवर्शन आदेश जारी नहीं किए गए हैं, वह भी अब अगले एक-दो कार्य-दिवसों में तुरंत जारी कर दिए जाएंगे. इसके अलावा मुख्य कैट/पटना, जिसने वास्तव में दि. 03.05.2016 का ऐतिहासिक निर्णय दिया था और जहां रेलवे बोर्ड के विरुद्ध अदालत की अवमानना का मामला चल रहा है, ने 13 दिसंबर को हुई सुनवाई में रेलवे बोर्ड के 6-7 दिसंबर के आदेश के विरुद्ध स्टे ऑर्डर देने से स्पष्ट मना कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप उसी दिन पूर्व मध्य रेलवे द्वारा कुल 18 प्रमोटी अधिकारियों का रिवर्शन ऑर्डर जारी कर दिया गया था.

अरबों रुपये के बहुचर्चित अधिकारी पदोन्नति घोटाले पर आर. के. कुशवाहा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर को हुई सुनवाई में एक बार फिर प्रमोटी अधिकारियों की दलील को सिरे से खारिज कर दिया. सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि रेलवे बोर्ड ने न्यायालय के आदेश के अनुपालन में 6 और 7 दिसंबर को आदेश जारी किया है, इसलिए उस पर कोई स्टे नहीं दिया जा सकता. यहां प्रमोटियों के लिए राहत की सिर्फ यही बात हो सकती है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई जेएजी प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों के लिए एक ‘कट ऑफ डेट’ तय करने को कहा है. चूंकि अदालत के ऑर्डर की कॉपी फिलहाल निर्गत नहीं हुई है, इसलिए ‘रेलवे समाचार’ को इस ‘कट ऑफ डेट’ की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है.

प्रभात रंजन सिंह बनाम आर. के. कुशवाहा एवं भारत सरकार (रेल मंत्रालय) (एसएलपी/सी नं. 22444/2017) पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वादी प्रभात रंजन एवं प्रमोटी अधिकारी संगठन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता ने पुनः एक बार फिर पूर्व सीआरबी के स्पीकिंग ऑर्डर में गलत तथ्यों पर आधारित डीओपीटी के ओ. एम. को रेलवे पर नहीं लागू होने की बात कही, जिसे कैट/पटना ने पहले ही खारिज कर दिया था. परंतु इसी के साथ डीओपीटी के उसी ओ. एम. के आधार पर ऑप्टिमाइजेशन के नियम का समर्थन भी किया. इसका मतलब यह है कि प्रमोटी अधिकारीगण अपने लाभ के लिए डीओपीटी के उक्त ओ. एम. की गलत व्याख्या करते और करवाते रहे हैं. चूंकि ऑप्टिमाइजेशन के नियम से प्रमोटी अधिकारी भारी संख्या में ग्रुप ‘ए’ बने थे, इस नियम से प्रमोटी अधिकारियों को भरपूर लाभ मिला है, इसलिए उसका समर्थन कर किया. जबकि उक्त दोनों बातें एक दूसरे की पूरक हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में डीओपीटी को भी पार्टी बना दिया है.

प्रतिवादी आर. के. कुशवाहा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और पटना से आए सर्विस मामलों के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता एम. पी. दीक्षित ने पूरे मामले को सरलतापूर्वक सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जजों को समझाते हुए दलील दी कि पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी का नियम बिना किसी वैधानिक प्रावधान के रेलवे में मनमानी तरीके से प्रमोटी अधिकारियों को दिया जा रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही पी. सुधाकर राव मामले में दिए गए निर्णय के खिलाफ है. इसलिए समानता के विरुद्ध होने की वजह से एंटी डेटिंग सीनियरिटी का यह नियम पूरी तरह से अवैध और असंवैधानिक है. अंततः सर्वोच्च अदालत ने प्रमोटी अधिकारियों को कोई राहत नहीं दी. परिणामस्वरूप रेलवे बोर्ड के 6-7 दिसंबर को जारी रिवर्शन आदेश पर अमल करते हुए लगभग सभी जोनल रेलों ने एडहाक जेएजी प्रमोशन सभी प्रमोटी अधिकारियों से वापस ले लिया है. कुछेक रेलवे में कैट ने रोक लगाई थी, सर्वोच्च अदालत के इस आदेश के बाद अब वह भी रेलवे बोर्ड के उक्त आदेश को अगले दो-चार कार्य-दिवसों में लागू कर देंगे.

सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त आदेश के परिणामस्वरूप भारतीय रेल के लगभग 300 सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का प्रमोशन अगले एक-दो सप्ताह में होने की उम्मीद है. सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आ जाने के बाद जल्दी से जल्दी उसका पालन करना अब रेलवे बोर्ड की भी मजबूरी हो गई है. कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि अपनी जोड़तोड़ वाली दैनंदिन दिनचर्या में व्यस्त रहने वाले अधिकांश प्रमोटी अधिकारियों को झूठा ख्वाब दिखाकर उन्हें ठगने का धंधा अब लगभग चौपट हो गया है. इस दरम्यान सुप्रीम कोर्ट में उक्त केस के हवाले से प्रत्येक जोनल रेलवे से जो दो-दो, चार-चार लाख रुपये जमा किए गए थे, अदालत से उम्मीद के मुताबिक आदेश न मिलने से उन पर भी अब पानी फिर गया है. इसी बीच प्रमोटी अधिकारियों की तरफ से यह खबर आ रही है कि वे सर्वोच्च न्यायालय से केस वापस लेने की मांग करने जा रहे हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले में दिए गए निर्णय का नियम लागू होने से डिले डीपीसी से बचा जा सकता है तथा रुकी पड़ी डीपीसी को भी जल्दी पूरा करवाया जा सकता है, अन्यथा प्रमोटी अधिकारियों का और ज्यादा नुकसान होने की संभावना है.

उल्लेखनीय है कि सभी प्रमोटी अधिकारियों ने रेलवे बोर्ड के रिवर्शन आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट से स्टे प्राप्त हो जाने की पूरी उम्मीद लगा रखी थी. तथापि, उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से इस तरह के स्पष्ट आदेश की उम्मीद कदापि नहीं की थी. इससे सभी प्रमोटी अधिकारियों को निराशा और हताशा का बहुत बड़ा झटका लगा है. परंतु उपरोक्त निर्णय से अब वह भी वास्तव में अपने नेतृत्व द्वारा ठगा गया महसूस कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूरा प्रमोटी खेमा बुरी तरह से हतोत्साहित हो गया है. एक तरफ प्रमोटी संगठन के तथाकथित मुखिया अपने-अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ करके इस सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे थे, तो दूसरी तरफ प्रमोटी अधिकारियों को भी अब समझ में आने लगा है कि कोई बहुत बड़ा गड़बड़-घोटाला किया गया है, जिसकी जानकारी उनका शीर्ष नेतृत्व आज तक उनसे छुपाए हुए था.

इस दरम्यान जानकारी मिली है कि उत्तर रेलवे कार्मिक विभाग द्वारा रेलवे बोर्ड के रिवर्शन आदेश का खुला उल्लंघन करते हुए संबंधित अधिकारियों को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी करके उनसे पूछा गया है कि ‘उन्हें क्यों न रिवर्ट कर दिया जाए,’ यह कारस्तानी डिप्टी सीपीओ/गजटेड के पद पर बैठे प्रमोटी अधिकारी द्वारा की गई है, जो कि न सिर्फ रेलवे बोर्ड के आदेश का खुला उल्लंघन है, बल्कि अदालत के आदेश की अवहेलना भी है. इसी तरह की कारस्तानी पूर्व मध्य रेलवे के प्रमोटी डिप्टी सीपीओ/गजटेड ने भी की थी, जिसको अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान कड़ी फटकार लगाई थी. तथापि, संबंधित प्रिंसिपल सीपीओ अपनी आंखें बंद करके सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. को अदालत के समक्ष बलि का बकरा बनाना चाहते हैं. अधिकारियों का मानना है कि अदालत के आदेश के अनुपालन में रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेश का पालन करने में इस तरह की घोर लापरवाही बरतने वाले संबंधित दोनों डिप्टी सीपीओ/गजटेड के विरुद्ध सख्त विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिए.