पदावनति के आदेश से प्रमोटी अधिकारियों में मचा हड़कंप
अरबों रु. के पदोन्नति घोटाले में बोर्ड ने जारी किया पदावनति का आदेश
अवमानना के चलते हठधर्मिता छोड़कर रेलवे बोर्ड ने दिया न्याय का साथ
पूरी भारतीय रेल में लगभग 300 जेएजी/एडहाक अधिकारी होंगे पदावनत
प्रमोटी अधिकारियों ने विभिन्न कैट में मामले दायर करने का लिया निर्णय
फेडरेशन और तथाकथित नेताओं पर से उठा प्रमोटी अधिकारियों का भरोसा
मामले का पूरा सच बताए बिना मीडिया को गुमराह कर रहे प्रमोटी अधिकारी
सुरेश त्रिपाठी
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने अदालत की अवमानना मामले से बचने के लिए अरबों रुपये के अधिकारी पदोन्नति घोटाले में पहले कैट/पटना और बाद में पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को स्वीकार करते हुए 6 एवं 7 दिसंबर 2017 को आदेश जारी करके सभी जोनल रेलों को जेएजी एडहाक में पदोन्नत उन सभी प्रमोटी अधिकारियों को पदावनत करने का निर्देश दिया है, जिन्हें 3 मई 2016 या उससे बाद पदोन्नति दी गई है. पूरी भारतीय रेल में ऐसे अधिकारियों की कुल संख्या करीब 300 बताई जा रही है. बोर्ड के इस आदेश से सभी जोनल रेलों के उन सभी प्रमोटी अधिकारियों में भारी हड़कंप मच गया है, जो अब तक यह मानकर बैठे थे कि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिल जाएगी अथवा कुछ राजनीतिक दबाव लाकर वह कैट एवं हाई कोर्ट के निर्णय को लागू होने से रोक लेंगे.
उल्लेखनीय है कि 3 मई 2016 को पटना कैट ने आर. के. कुशवाहा बनाम भारत सरकार (रेल मंत्रालय) मामले में अपना अंतिम निर्णय दिया था, जिसे बाद में पू.म.रे. प्रमोटी ऑफिसर्स एसोसिएशन ने पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, परंतु पटना हाई कोर्ट ने पटना कैट के निर्णय को मान्य करते हुए 12 मई 2017 को एसोसिएशन की याचिका खारिज कर दी थी. ज्ञातव्य है कि पटना हाई कोर्ट और कैट/पटना ने रेलवे बोर्ड को आदेश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन करते हुए रेलवे में भी ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की वरीयता का पुनर्निर्धारण किया जाए. इसके साथ ही अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि डीओपीटी के ओ. एम. दि. 04.03.2014 में दिए गए निर्देशों के अनुसार दि. 27.11.2012 के बाद जितने भी प्रमोटी अधिकारियों की इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण हुआ है, नए नियमों के आधार पर उन सभी की संयुक्त वरीयता निर्धारित करके अदालत को बताया जाए. परंतु रेलवे बोर्ड द्वारा अदालत के इस आदेश का पालन अब तक नहीं किया गया था.
अदालत द्वारा दिए गए आदेश का पालन निर्धारित समय के अंदर न किए जाने और रेलवे बोर्ड द्वारा अदालत के आदेश की लगातार अवज्ञा के विरुद्ध आर. के. कुशवाहा ने अदालत की मानहानि का मामला कैट पटना के समक्ष दायर किया था. अदालत ने 3 अगस्त, 29 अगस्त की दो तारीखों में पुनः रेलवे बोर्ड को ‘कंप्लायंस रिपोर्ट’ दाखिल करने का समय दिया, मगर रेलवे बोर्ड अदालत के आदेश के अनुपालन में हीलाहवाली करता रहा. इसके बाद दि. 16.11.2017 की तारीख में अदालत ने अपने लिखित आदेश में स्पष्ट कर दिया कि ‘ओ. ए. नं. 460/2015 के अंतर्गत दि. 03.05.1016 को इस ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए आदेश का व्यापक संदर्भ (जनरल एप्लीकेशन) है. अतः अदालत इस बात को पूरी तरह स्पष्ट करती है कि संदर्भित सीनियरिटी लिस्ट से सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारी को दरकिनार करके किसी भी प्रमोटी अधिकारी को तब तक कोई प्रमोशन, यहां तक कि एडहाक भी, नहीं दिया जा सकता है, जब तक कि डीओपीटी की सलाह से पालिसी सुनिश्चित नहीं कर ली जाती है, अन्यथा यह इस ट्रिब्यूनल के आदेश का उल्लंघन होगा, जो कि अदालत की अवमानना माना जाएगा.’ इसके साथ ही अदालत ने अगली तारीख में कंप्लायंस रिपोर्ट दाखिल करने का भी आदेश दिया था, अन्यथा सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. को जेल जाने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी थी. इसी चेतावनी के मद्देनजर रेलवे बोर्ड ने गत 6-7 दिसंबर को उपरोक्त पदावनति आदेश जारी किए हैं.
अरबों रुपयों के अधिकारी पदोन्नति घोटाले का यह मामला कैट, हाई कोर्ट पटना से निपटने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट चला गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोटी अधिकारियों को कोई राहत नहीं देते हुए स्टे देने से भी इंकार कर दिया है. परंतु अब ऐसा लगता है कि अगली कुछ तारीखों में सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा. ‘रेलवे समाचार’ इस पूरे मामले पर चल रही अदालती प्रक्रिया को शुरू से अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता आ रहा है और हमारा मानना है कि समय बीतने के साथ ही यह पूरा मामला एक बहुत गहरा अपराधिक षड्यंत्र साबित होने लगा है, जिसकी परतें सुनवाई-दर-सुनवाई खुलती गई हैं. अदालत को भी इस मामले में बड़े पैमाने पर घोटाले की बू आने लगी है. लगभग डेढ़ साल गुजर जाने के बाद भी आर. के. कुशवाहा मामले में दिए गए अदालत के आदेश पर रेलवे बोर्ड द्वारा अंतिम निर्णय नहीं लिए जाने से नाराज कैट/पटना ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी/रे.बो. के विरुद्ध ‘जानबूझकर अवज्ञा करने’ (विल्फुल डिस्ओबेडियंस) की कड़ी टिप्पणी की और फटकार लगाते हुए अवमानना मामले में अपना उपरोक्त निर्णय दि. 16.11.2017 को सुना दिया था.
इसके परिणामस्वरूप रेलवे बोर्ड ने दि. 06.12.2017 को सभी एडहाक जेएजी प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों को डिमोट (पदावनत) करने का आदेश जारी कर दिया, जो दि. 03.05.2016 से लागू होगा. अर्थात उन सभी प्रमोटी अधिकारियों को पदावनत किया जाएगा, जिनकी पदोन्नति 3 मई 2017 के बाद हुई है. यही नहीं, अगले दिन दि. 07.12.2017 को रेलवे बोर्ड ने 06.12.2017 के आदेश में संशोधन करते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया कि सभी सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को एडहाक जेएजी में पदोन्नति की जाए. इस आदेश के बाद जोनल रेलों में एडहाक जेएजी से प्रमोटी अधिकारियों के पदावनत होने से रिक्त होने वाले पदों पर पांच साल पूरा कर चुके सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को एडहाक में पदोन्नति देने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है. इस प्रकार लगभग 300 प्रमोटी अधिकारी अगले एक सप्ताह के दरम्यान पदावनत कर दिए जाएंगे तथा रिक्त पदों पर डीपीसी करके सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को पदोन्नत किया जाएगा.
अवमानना मामले में कैट/पटना के आदेश तथा दि. 06.12.2017 और 07.12.2017 के पत्रों के माध्यम से रेलवे बोर्ड द्वारा निर्गत निर्देश से दो स्थितियां पैदा हो गई हैं-. पहली यह कि रेलवे बोर्ड पर काफी दबाव बढ़ गया है कि जल्दी से जल्दी डीओपीटी से विचार-विमर्श करके इस पूरे प्रकरण को स्थायित्व प्रदान किया जाए. दूसरी यह कि प्रमोटी अधिकारी संगठन पर भी भारी दबाव बन गया है कि वह अब सुप्रीम कोर्ट में जल्दी-जल्दी सुनवाई कराए, क्योंकि अब डेडलॉक की स्थिति समाप्त हो चुकी है और मामला लंबित होने पर इसका खामियाजा प्रमोटी अधिकारियों को ही भुगतना पड़ेगा.
राई से पहाड़ कैसे बना आर. के. कुशवाहा प्रकरण
1. पूर्व मध्य रेलवे ने आर. के. कुशवाहा को ग्रुप ‘ए’ में 6 वर्ष की सेवा के पश्चात सीनियर स्केल में प्रमोशन दिया था, जबकि ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को धड़ल्ले से सीनियर स्केल दिया जा रहा था.
2. इस मामले में युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों द्वारा रेलवे बोर्ड को अनेकों ज्ञापन दिए गए थे और अंततः अगस्त 2016 में रेलवे बोर्ड द्वारा नियम में बदलाव किया गया, जिसमें 6 वर्ष के क्लॉज को वापस ले लिया गया.
3. इसी बीच डीओपीटी के ओ.एम. दि. 04.03.2014 की जानकारी मिली, जिस पर अमल करने से सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को वरीयता में फायदा मिल सकता था. डीओपीटी का यह ओ.एम. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले पर निर्णय के बाद जारी किया गया था.
4. वर्ष 2015 में एक ज्ञापन के साथ कैट/पटना में एक याचिका दाखिल की गई थी. अदालत ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को स्पीकिंग आर्डर देने के लिए कहा.
5. तत्कालीन सीआरबी ए. के. मितल ने स्पीकिंग आर्डर में सभी तथ्यों पर विशेष रूप से दो झूठी और पक्षपातपूर्ण बातें कही. पहली यह कि डीओपीटी का ओ.एम. रेलवे पर लागू नहीं होता है, इसलिए दि. 04.03.2014 का डीओपीटी का ओ.एम. रेलवे पर लागू नहीं होगा. दूसरी बात यह कही थी कि आईआरईएम ऐक्ट 309 के अंतर्गत आता है, जो वैधानिक नियम है.
6. नासमझ-नाकाबिल ‘स्टोरकीपर’ सीआरबी के इस दिग्भ्रमित करने वाले स्पीकिंग आर्डर को कैट/पटना ने एक झटके में खारिज करते हुए भारतीय रेलवे के इतिहास में सबसे बड़ा फैसला सुना दिया. कैट ने ग्रुप ‘ए’ में प्रमोटी अधिकारियों के इंडक्शन, जो डीआईटीएस के आधार पर होता है, को ही खारिज (क्वेश्ड) कर दिया. इससे प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता निर्धारित करने वाला एंटी डेटिंग का नियम नं. 334 अपने-आप ही खत्म हो गया तथा आईआरईएम को बदलने के बाद ही इंटर-से-सीनियारिटी की गणना किए जाने का आदेश दिया. आईआरईएम में बदलाव तथा डीआईटीएस का आधार खत्म होते ही रेलवे की सभी आठों संगठित सेवाओं के पैनल वर्ष 2012-13 और 2013-14 के सभी अधिकारियों की सीनियरटी खत्म हो गई. अर्थात जब तक आईआरईएम में बदलाव नहीं होता, तब तक के लिए प्रमोटी अधिकारियों की ग्रुप ‘ए’ की वरीयता समाप्त मानी जाएगी.
7. कैट/पटना का आदेश दि. 03.05.2016 को आया था, इसी वजह से रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों के डिमोशन की तारीख भी यही निर्धारित की है. हालांकि यह वर्ष 2012-13 से अब तक के लिए होना चाहिए था, यानि जब से वरिष्ठता का गलत निर्धारण किया गया था. मगर सरकार में बैठे लोग अदालती निर्णयों का निष्कर्ष अपनी सुविधा के मुताबिक निकालते हैं और अदालत भी इसमें कुछ नहीं कर पाती है.
8. इसके बाद बची-खुची कसर पटना हाई कोर्ट ने 12 मई 2017 को दिए अपने 29 पन्नों के आदेश में निकाल दी, जिसमें सीआरबी (तत्कालीन) को भेदभाव और पक्षपातपूर्ण कार्य-प्रणाली का दोषी पाया गया तथा अदालत में उन पर नियमों से छेड़छाड़ का आरोप भी लगा, जिससे रेलवे को अरबों रुपयों की वार्षिक चपत लगने की कहानी भी सबकी समझ में आ गई.
9. तत्पश्चात प्रमोटी अधिकारी संघ एसएलपी के साथ भागा-भागा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, परंतु वहां भी उसे कोई विशेष राहत नहीं मिली. स्थगनादेश देने से तो सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट इंकार कर दिया.
10. अवमानना मामले की लगातार सुनवाई और अदालत की फटकार और कड़ी टिप्पणियों ने रेल प्रशासन की नींद उड़ा दी थी. अंततः उपरोक्त दोनों आदेश रेलवे बोर्ड को निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा.
प्रश्न यह उठता है कि पैनल वर्ष 2012-13 और 2013-14 के प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता खत्म होने के बाद वे कैसे एडहाक जेएजी के पद पर विराजमान रह सकते हैं? अतः अब अवमानना के प्रतियुत्तर में रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किए गए उपरोक्त डिमोशन आर्डर को किस-किस अदालत में दोबारा चैलेंज किया जाता है, यह देखना काफी दिलचस्प होगा.
कैट/पटना में प्रमोटी अधिकारियों ने केस फाइल किया
दि. 06.12.2017 और 07.12.2017 के रेलवे बोर्ड के आदेश के विरुद्ध दि. 11.12.2017 को प्रमोटी अधिकारियों ने कैट/पटना में दो केस फाइल कर दिए हैं. एक केस में मैकेनिकल के पांच प्रमोटी अधिकारियों ने रेलवे बोर्ड के दोनों आर्डर को खारिज करने का निवेदन किया है, जिसकी सुनवाई 13.12.2017 को तय की गई है. दूसरा केस एसएंडटी विभाग के तीन प्रमोटी अधिकारियों द्वारा फाइल किया गया है, जिसकी लिस्टिंग भी मैकेनिकल के प्रमोटी अधिकारियों के केस के साथ ही ‘क्लब’ की गई है. इसके अलावा जबलपुर, मुंबई, दिल्ली इत्यादि कैट में भी मामले दायर करने की तैयारी सभी जोनल रेलों के प्रमोटी अधिकारियों द्वारा की जा रही है. प्रमोटी अधिकारियों द्वारा विभिन्न कैट में मामले दायर किए जाने को सर्वोच्च अदालत पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है. इस सबके अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी एक अतिरिक्त एसएलपी दायर करके रेलवे बोर्ड के उपरोक्त आदेश पर स्टे लेने की भी कोशिश की जा रही है, जिसकी तारीख 15 दिसंबर तय की गई है.
इस दरम्यान प्रमोटी अधिकारियों ने अदालती कार्रवाई और मामले की पूरी असलियत को छिपाते हुए अपने बयानों से मीडिया को गुमराह करना शुरू कर दिया है. प.म.रे. के प्रमोटी अधिकारियों ने अपने बयान में कहा है कि ‘रेलवे बोर्ड द्वारा दि. 06-07.12.17 को प्रमोटी सीनियर स्केल अफसरों को मई 2017 के बाद जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (जेएजी) के पद पर दी गई पदोन्नति को निरस्त करने के आदेश जारी किए गए हैं. रेलवे बोर्ड के इस काले कानून के विरुद्ध महाप्रबंधक को ज्ञापन सौंपकर इस काले क़ानून को रद्द करने की मांग की गई है.’
इसी क्रम में उन्होंने एक मीटिंग करके निर्णय लिया है कि रेलवे बोर्ड के इस काले-आदेश के विरुद्ध कैट/जबलपुर में एक याचिका दायर की जाएगी, क्योकि इस काले क़ानून के कारण प.म.रे. इंजीनियरिंग विभाग के पांच अधिकारी और मैकेनिकल विभाग के एक अधिकारी को जेएजी से पुनः सीनियर स्केल में रिवर्ट किया जाएगा. जबलपुर मंडल के भी कुछ प्रमोटी अधिकारियों ने महाप्रबंधक को अपनी पदोन्नति की बाधाएं दूर करने के लिए एक ज्ञापन सौंपा है. इसी तरह के ज्ञापन विभिन्न जोनल रेलों के महाप्रबंधकों को सौंपे गए हैं. ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि न्याय पाने और अपनी तर्कसंगत बात उचित स्तर पर रखने का अधिकार सबको है. परंतु मीडिया अथवा जन-मानस को बरगलाने या दिग्भ्रमित करने अधिकार किसी को नहीं है.
अब तक सोते या दिग्भ्रमित रहे और अपने अक्षम एवं जोड़तोड़ करने वाले नेतृत्व पर भरोसा करते रहे समस्त प्रमोटी अधिकारियों का विश्वास अब अपने अक्षम नेतृत्व पर से उठ गया है. तथापि, वह मीडिया को मूर्ख समझ रहे हैं और सोशल मीडिया में भ्रम फैला रहे हैं. वह मीडिया को यह नहीं बता रहे हैं कि रेलवे बोर्ड ने उक्त आदेश अवमानना मामले में अदालती कार्रवाई से बचने के लिए तब जारी किया है, जब सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. के सामने अदालत के कठघरे में खड़े होने और जेल जाने की नौबत आ चुकी थी, वरना उनके राजनीतिक दलाल तो पिछले 21 महीनों से राजनीतिक दबाव लाकर अदालत के आदेश को लागू नहीं होने दे रहे थे. प्रमोटी अधिकारी मीडिया को यह भी नहीं बता रहे हैं कि उन्होंने इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर रखी है, मगर सुप्रीम कोर्ट ने न तो अब तक उनकी एसएलपी एडमिट की है और न ही उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें इस पर स्टे दिया है.
इस पूरे मामले में जिन लोगों ने प्रमोटी अधिकारियों को न सिर्फ मूर्ख बनाया, गुमराह किया, बरगलाया, रेल प्रशासन के साथ चीटिंग की और देश को अरबों रुपये का चूना भी लगाया, बल्कि सैकड़ों प्रमोटी अधिकारियों को गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक रूप से लाभ भी पहुंचाया, सब कुछ अदालत में साबित हो चुका है. यह सब भी वह मीडिया को नहीं बता रहे हैं, बल्कि जिनकी वजह से इतना बड़ा गड़बड़-घोटाला हुआ, उन्हें जिम्मेदार ठहराने के बजाय वह मीडिया को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. वह मीडिया को पूरा सच नहीं बता रहे हैं कि कैट/पटना और पटना हाई कोर्ट का निर्णय रेलवे बोर्ड यानि उनके यानि ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के खिलाफ जाने पर रेलवे बोर्ड ने उक्त आदेश निकाला है.
वह मीडिया को यह भी नहीं बता रहे हैं कि कैट-हाईकोर्ट/पटना का निर्णय डीओपीटी के दि. 04.03.2014 के ओ.एम. पर आधारित है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने अब तक उनकी न तो एसएलपी एडमिट की है और न ही उस पर स्टे दिया है. वह अपने मौका-परस्त तथाकथित नेताओं से यह जवाब-तलब करने के बजाय कि उन्होंने प्रमोटी अधिकारियों को सच से अवगत क्यों नहीं कराया, उन्हें गुमराह क्यों किया, मूर्ख क्यों बनाया, सिर्फ मीडिया को दिग्भ्रमित करके और रेलवे बोर्ड के उपरोक्त आदेश को काला-कानून बताकर कथित न्याय पाने की गुहार लगाने में लगे हैं.
बहरहाल, अब मामला बड़ा रोचक हो गया है, पहले सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारी नियमों की दुहाई देते हुए अपनी वरीयता और पदोन्नति की मांग करते दर-दर भटक रहे थे, परंतु अब गेंद प्रमोटी अधिकारियों के पाले में आ चुकी है. सुप्रीम कोर्ट को जितना ज्यादा समय इस अत्यंत पेचीदा मामले को डिसाइड करने में लगेगा, उतना ही ज्यादा नुकसान प्रमोटी अधिकारियों को होने वाला है. इस पूरे प्रकरण पर अवसर का लाभ उठाने के लिए कई पन्नों के ज्ञापन के साथ-साथ युवा प्रमोटी अधिकारियों के भविष्य की दुहाई देते हुए कई नेता सक्रिय हो गए हैं. कई पूर्व एवं वर्तमान पदाधिकारियों के बीच इसका श्रेय लेने तथा धन उगाही की होड़ लग गई है. हर कोई अपने हिसाब से अदालत के निर्णय की विवेचना कर रहा है. परंतु समय का चक्र कब-किस तरफ घूमेगा, यह किसी को पता नहीं है. तथापि, इसका परिणाम इस पूरे मामले को गहराई से जानने के बाद ही उन्हें समझ में आएगा.