बिड कैपेसिटी घोटाले में उत्तर रेलवे निर्माण संगठन अव्वल!

बिड कैपेसिटी की नीति सिर्फ ईपीसी कांट्रेक्ट्स में ही लागू होनी चाहिए -विशेषज्ञ

कौन है बिड कैपेसिटी घोटाले से रेलवे को हुए हजारों करोड़ के नुकसान का जिम्मेदार?

बिड कैपेसिटी लागू करने के बाद क्या कान्ट्रैक्टर्स ने 30% भी काम पूरा किया या नहीं?

जांच हो कि कितने कांट्रेक्ट्स में ‘एलिजिबल कांट्रैक्टर्स’ को प्रतिस्पर्धा से बाहर होना पड़ा?

क्या है टेंडर जारी करते समय कंप्लीशन पीरियड एक-दो साल रखने के पीछे का औचित्य?

प्रतिस्पर्धा सीमित करके रेलवे को नुकसान पहुंचाने की भरपाई अधिकारियों से करवाई जाए

सुरेश त्रिपाठी

उत्तर रेलवे निर्माण संगठन पूर्व सीएओ/सी बी. डी. गर्ग के जमाने में भ्रष्टाचार, जोड़तोड़ और पक्षपात का सबसे बड़ा ‘संगठन’ बन गया था. गर्ग के समय की यह परिपाटी के अब तक यहां चल रही है. यहां टेंडर्स में बिड कैपेसिटी के लिए दो अलग-अलग फार्मूले अपनाए जा रहे हैं. तमाम कॉन्ट्रैक्टर्स और ओपन लाइन के इंजीनियरिंग अधिकारी इस असमंजस में हैं कि कहीं यह किसी पावर गेम का चक्कर तो नहीं है? अलग-अलग फार्मूले अपनाए जाने की इस दोहरी नीति का कहीं कोई उच्च-स्तरीय नमूना तो नहीं प्रस्तुत किया जा रहा है? शायद इसीलिए मोदी सरकार का ‘विकास पागल हो गया’ होने का जुमला चल पड़ा है. टेंडर प्रक्रिया के कई जानकारों का मानना है कि बिड कैपेसिटी की नीति सिर्फ ईपीसी कांट्रेक्ट्स में ही लागू होनी चाहिए.

परंतु उत्तर रेलवे सहित लगभग सभी जोनल रेलों में सामान्य टेंडर्स में भी यह बिड कैपेसिटी लागू की जा रही है. इसका नमूना सीएओ/सी/इंजी./उ.रे. द्वारा टेंडर नं. 74-डब्ल्यू-6-193-डबल्यए/टीकेजे की ‘अंडरटेकिंग्स’ के पैरा 1.1.1 में ‘अवेलेबल बिड कैपेसिटी {एxएनएक्स2}-बी’ दिए जाने की बात कही गई है. जबकि वहीं टेंडर नं. 74-डब्ल्यू-1-1-502-ए-डब्ल्यूए-यूएमबी के पैरा नं. 1.1.1 में ‘अवेलेबल बिड कैपेसिटी- {4xएxएन-74-बी}’ कैटगरी रखी गई है. ऐसा ही कुछ गड़बड़-घोटाला टेंडर नोटिस नं. 268-डब्ल्यू/डिप्टी सीई/सी/यूएमबी, दि.16.11.2017 में भी किया गया है, जो कि दिल्ली मंडल के नरवाना-कुरुक्षेत्र सेक्शन में कुल 10 सिंगल लाइन लिमिटेड हाइट सब-वे बनाने के लिए जारी किया गया है, जिसकी कुल लागत 1544.63 लाख रुपये है.

बिड कैपेसिटी टेंडर प्रक्रिया के विशेषज्ञों और जानकारों का कहना है कि सबसे पहले उत्तर रेलवे में अब तक जारी किए गए सभी बिड कैपेसिटी वाले टेंडर्स की गहन विजिलेंस और सीबीआई जांच होना जरूरी है, क्योंकि इन टेंडर्स में ठेकेदारों के हिसाब से बिड कैपेसिटी सेटिंग का बड़ा खेल किया जा रहा है, जिसमें संबंधित अधिकारियों द्वारा किसी ठेकेदार को पास, तो किसी ठेकेदार को फेल किया जा रहा है. उनका कहना है कि जब उत्तर रेलवे में 20 करोड़ से अधिक का कोई भी कार्य अब तक कभी भी चार साल अथवा पूर्व निर्धारित समय-सीमा में पूरा नहीं हुआ, तो बिड कैपेसिटी लगाकर और कंप्लीशन पीरियड को 12 से 18 महीने रखकर प्रतिस्पर्धा (कम्पटीशन) को कम या सीमित करने का क्या औचित्य है? उन्होंने इस सबके पीछे की मिलीभगत का पता लगाए जाने की मांग भी की है.

जानकारों का कहना है कि यह जांच का विषय है कि उत्तर रेलवे ने बिड कैपेसिटी लागू करने के बाद कितने निर्माण कार्य समय पर पूरे करवाए? और यदि नहीं पूरे करवाए, तो संबंधित ठेकेदारों पर कितनी पेनाल्टी लगाई? तथा संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई? उनका कहना है कि उत्तर रेलवे के इस बिड कैपेसिटी घोटाले की जांच में यह देखा जाना बहुत जरूरी है कि बिड कैपेसिटी लागू करने के बाद क्या कांट्रैक्टर ने किसी टेंडर में 30% भी काम पूरा किया है या नहीं? और यदि नहीं किया है, तो उसके विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है?

उन्होंने कहा कि उत्तर रेलवे के इस बिड कैपेसिटी घोटाले की जांच में यह भी देखा जाना बहुत जरूरी है कि कितने कांट्रेक्ट्स में ‘एलिजिबल कांट्रैक्टर्स’ को सिर्फ बिड कैपेसिटी के कारण कम्पटीशन से बाहर होना पड़ा है? उनका कहना है कि उत्तर रेलवे के इस बिड कैपेसिटी घोटाले में जांच का एक विषय यह भी होना चाहिए कि इस घोटाले के कारण रेलवे को हुए हजारों करोड़ रुपए के नुकसान का जिम्मेदार कौन है? क्या इसकी भरपाई संबंधित अधिकारियों और ठेकेदारों से करवाई जाएगी?

जानकारों का कहना है कि जब रेलवे के निर्माण, ओपन लाइन, इलेक्ट्रिकल, एसएंडटी जैसे अन्य विभागों में आपसी तालमेल न होने से इनके काम पांच साल अथवा पूर्व निर्धारित समय-सीमा में कभी-भी पूरे नहीं होते हैं, तो टेंडर जारी करते समय इनका कंप्लीशन पीरियड एक-दो साल रखने के पीछे का औचित्य क्या है? उन्होंने कहा कि उत्तर रेलवे के इस बिड कैपेसिटी घोटाले के सभी टेंडर्स की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए और इसमें प्रतिस्पर्धा को सीमित करने वाले सभी दोषी अधिकारियों से रेलवे को हुए नुकसान की भरपाई करवाई जानी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर रेलवे के अलावा भी अन्य जोनल रेलों के निर्माण संगठनों द्वारा भी इस तरह के किए गए कार्यों/कृत्यों की जांच और दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

इसके साथ ही कार्य संपादन के दौरान प्रारंभिक सर्वे के अनुरूप प्रस्तावित रेल लाइन एलाइनमेंट से अलग त्रुटिपूर्ण हुए निर्माणों की भी जांच करके संबंधित ठेकेदारों से ही दंड स्वरूप उक्त निर्माणों को ठीक करवाया जाना चाहिए. जानकारों का कहना है कि ठेकेदारों के त्रुटिपूर्ण कार्य संपादन को स्वीकार करके उनके पक्ष में अप्रूव्ड एल-सेक्शन में टेंपरिंग कर नया एलाइनमेंट रिवर्स गोलाई एल-सेक्शन में डालकर कार्य निर्माण करवाने वाले अधिकारियों से भी उसका औचित्य पूछा जाना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए, ताकि रेलवे बोर्ड के अप्रूवल के बिना कोई ऐसा कृत्य न करे.

इसके अलावा यदि प्रारंभिक सर्वे गलत एलाइनमेंट पर प्रस्तावित था, तो सर्वेक्षण करने वाले संबंधित ठेकेदार और अधिकारियों पर करवाई होना अत्यंत जरूरी है. अंशतः सुधार या त्रुटि तो स्वभाविक मानी जा सकती है, लेकिन यदि रिवर्स गोलाई बाद में डाली गई है, तो यह एक अक्षम्य अपराध है. नई लाइन की वास्तविक समय-सीमा पर ही बिल्डिंग, एफओबी, शेड इत्यादि का निर्माण किया जाना चाहिए. किसी भी नई लाइन के निर्माण में एक वर्ष से अधिक पूर्व में किए गए या कराए जा रहे बिल्डिंग निर्माण/प्लेटफार्म के ऊपर एफओबी, शेड, बेंच, टॉप सरफेस पर कंक्रीटिंग, टाइल्स, ग्रेनाइट वर्क आदि के फंड के उपयोग का औचित्य भी संबंधित अधिकारियों से पूछा जाना चाहिए, ताकि विश्व बैंक या अन्य स्रोतों से लिए गए लोन एवं ब्याज का जस्टिफिकेशन और दंड निर्धारित हो सके.

जानकारों का कहना है कि एक साजिश के तहत कई कार्यों को मर्ज करके बड़ा प्रोजेक्ट बना दिया जाता है. इस प्रकार से कुछ बड़े कॉन्ट्रैक्टर्स को लाभ पहुंचाया जा रहा है, जिससे छोटे कॉन्ट्रैक्टर्स या तो खुद ही कम्पटीशन से बाहर हो गए हैं, या उन्हें जानबूझकर इससे बाहर कर दिया गया है. एक वर्ष से अधिक अवधि से पहले के मटीरियल की परचेजिंग और निर्धारित सेवा अवधि पूरा किए बिना पुनः उसी मटीरियल की खरीदारी का औचित्य भी संबंधित अधिकारियों पूछा जाना चाहिए, क्योंकि रेलवे के वर्कशॉप, प्लांट, डिपो में अरबों रुपये से अधिक का मटीरियल बनकर वर्षों से बेकार पड़ा हुआ है, फिर वही मटीरियल प्राइवेट पार्टी से परचेज किए जाने का क्या मतलब निकाला जाना चाहिए?

बिड कैपेसिटी टेंडर प्रक्रिया के जानकारों का कहना है कि उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में कम्पटीशन सीमित करने सहित उपरोक्त प्रकार की सभी गतिविधियों की सीबीआई से जांच कराए जाने के साथ ही सभी जोनल रेलों में भी ऐसी कार्य-विधियों की गहराई से जांच करवाई जानी चाहिए, क्योंकि इनमें करोड़ों-अरबों रुपये के रेल राजस्व की हानि हुई है और संबंधित अधिकारियों एवं तमाम ठेकेदारों ने रेलवे एवं देश की जनता की गाढ़ी कमाई को पूरी मनमानी से लूटा है. इसकी भरपाई उन्हीं से करवाई जाए. उनका यह भी कहना है कि उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में पिछले पांच-दस सालों के दरम्यान पदस्थ रहे सभी अधिकारियों की ज्ञात-अज्ञात संपत्ति सहित उनके समस्त आय-व्यय की विस्तृत जांच की जानी चाहिए.