जिसका काम उसी को साजे, दूजा करे तो डंडा बाजे!
रेल का हॉकर/वेंडर आरपीएफ अधिकारियों का कमाऊ पूत!
आरपीएफ अधिकारियों की नकेल कसते हुए जिस भी सेक्शन में अवैध वेंडर पकड़े जाएं, उस सेक्शन के आरपीएफ इंस्पेक्टर का तुरंत ट्रांसफर, निलंबन और बर्खास्तगी सुनिश्चित करे रेल प्रशासन!
सुरेश त्रिपाठी
गाजियाबाद स्टेशन पर आरपीएफ द्वारा की गई कार्रवाई में बहुत विचित्रता देखने को मिली। जब उत्तर रेलवे आरपीएफ हेडक्वार्टर की एक टीम ने गाजियाबाद स्टेशन पर 29 जुलाई को गोमती एक्सप्रेस की पैंट्री कार पर छापा मारकर कथित तौर पर फर्जी मेडिकल के आरोप में 6 अनधिकृत वेंडर्स को पकड़ा और पैंट्री कार के समस्त स्टाफ को वहीं उतार लिया। परंतु कुछ ही घंटों बाद इस सारी कवायद का परिणाम शून्य रहा।
पैंट्री वेंडर्स के यह मेडिकल फर्जी थे। यह तब पता चला जब आरपीएफ टीम ने उनका मेडिकल करने वाले संबंधित डॉक्टर के दिल्ली ऑफिस से साल में जितने भी वेंडर्स के मेडिकल कार्ड बनाए गए थे, यह रिकॉर्ड देखा गया। टीम ने उनकी कॉपी ली, फिर चेक किया, तो पता चला कि इनके कार्ड की स्टाम्प भी अलग है। कुछ वेंडर ने दबी जबान में स्वीकार किया कि कार्ड घर बैठे मिल जाते हैं, हॉस्पिटल भी जाना नहीं पड़ता। कोरोना काल में कैसे जारी हुए यह मेडिकल कार्ड, यह आश्चर्यजनक है।
जानकारों का कहना है कि पैंट्री स्टाफ के सभी मेडिकल कार्ड्स फर्जी थे, यह स्थापित हो जाने के बाद ऐसे वेंडर्स को तुरंत पुलिस के हवाले करना चाहिए था, यह पता लगाने और जांच करने के लिए कि मेडिकल विभाग में वे कौन लोग हैं जो यह सारा फर्जीवाड़ा कर रहे हैं?
वेंडर्स को पुलिस के हवाले न कर आरपीएफ टीम रेलवे एक्ट की धारा 144, 155 में मुकदमा दर्ज करने में ही लगी रही। धारा 153, जो लग ही नहीं सकती थी, इसकी कोशिश भी फेल हो गई, क्योंकि वाणिज्य विभाग द्वारा इसका कड़ा विरोध किया गया। अतः उक्त धारा प्रशासनिक कारणों से नहीं लगाई जा सकी। फलत: सभी वेंडर्स को आनन-फानन में जमानत पर छोड़ दिया गया।
अब सवाल यह उठता है कि जब यही लीपापोती करना था, तो वेंडर्स को पकड़ा ही क्यों गया? पैंट्री कार के सभी लोगों को पहले ही क्यों उतार लिया गया? यात्रियों को खानपान सेवा से क्यों वंचित किया गया? उनका क्या कसूर था?
मंडल आरपीएफ हेडक्वार्टर, दिल्ली मंडल, उत्तर रेलवे द्वारा अगले दिन फरमान जारी कर दिया गया कि यदि वेंडर्स के मेडिकल एक्सटेंड नहीं हुए हैं, तो भी उन पर केस नहीं बनाया जाएगा। यानि सारे पैंट्री कार स्टाफ को एक झटके में अधिकृत कर दिया गया। अब फील्ड में कार्यरत आरपीएफ वाले यह कैसे तय करेंगे कि पैंट्री कार का कौन सा स्टाफ सही है, कौन सा अनधिकृत?
फिर दूसरा फरमान जारी हुआ कि यदि आरपीएफ ने वेंडर को पकड़ा, तो सबसे पहले उसके सामान का सैंपल लेगा। फिर उसे सीएफएसएल/एफएसएल लैब से उसे उसका टेस्ट/चेक कराना होगा। उसके बाद ही पकड़े गए उक्त वेंडर के विरुद्ध कोई कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा पकड़े गए वेंडर का मेडिकल चेकअप कराना होगा। अगर वह कोरोना पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसकी गाइडलाइंस का पालन करना जरूरी होगा।
समझ में नहीं आ रहा है कि आरपीएफ में यह क्या हो रहा है? आरपीएफ में कैसे-कैसे मूढ़ अधिकारी बैठे हैं कि उन्हें यह भी पता नहीं है कि सीएफएसएल/एफएसएल लैब में फूड आइटम्स का टेस्ट/चेक होता है, या इलक्ट्रॉनिक आइटम्स की? और यह भी कि यह काम आरपीएफ का है भी, या नहीं!
इन मूढ़धन्य आरपीएफ अधिकारियों को यह भी पता नहीं है कि खानपान का सैंपल लेना आरपीएफ का काम है या हेल्थ इंस्पेक्टर अथवा वाणिज्य निरीक्षक का? फूड सैंपल कैसे लिया जाता है, उसके लिए क्या-क्या सावधानियां बरतनी पड़ती हैं? यह भी न तो शायद उन्हें पता है, न ही इसका कोई दिशा-निर्देश या मार्गदर्शन उन्होंने अपने फरमान में देना जरूरी समझा।
“आरपीएफ पहले ही अपना काम ढ़ंग से कर नहीं पा रही है। जितना है, उसे ही पहले ढ़ंग से पूरा संभाल नहीं पा रही। तथापि उस पर रोज एक नया बोझ लाद रहे हैं इसके यह नये-नये मियां बने आईआरपीएफएस के तथाकथित इंटेलीजेंट और अधकचरे अधिकारी!” यह कहना है कई खिन्न आरपीएफ इंस्पेक्टरों और सिपाहियों का।
उनका कहना है था कि आरपीएफ हेडक्वार्टर, उत्तर रेलवे के अधिकारियों ने गोमती एक्सप्रेस की पैंट्री कार पर पूरे जोश के साथ छापा मारकर अनधिकृत वेंडर्स को पकड़ने वाले आरपीएफ जवानों की पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया। ये आरपीएफ जवान अब यह भी कह रहे हैं कि वेंडर्स को न ही पकड़ा जाए तो ही अच्छा है।
उनका यह भी कहना था कि “ये अधिकारी पहले तो वेंडर्स को पकड़ने के लिए कहते हैं। फिर अपनी मर्जी से उन पर कानून की धाराएं लगवाते हैं। बाद में पैंट्री कार कांट्रैक्टर से सेटलमेंट करके सारा केस पलट देते हैं और जो काम आरपीएफ का नहीं है, वह करने का फरमान जारी करते हैं। क्या रेल प्रशासन का इन पर कोई कंट्रोल नहीं होता कि इनकी भी कोई जिम्मेदारी तय की जाए!”
उन्होंने आगे कहा कि “शायद यही कारण है कि आईपीएस अधिकारी आरपीएफ में आकर सफल होते हैं, क्योंकि मूढ़ों को हांकना उन्हें बखूबी पता होता है। वे जानते हैं कि केस कैसे पकड़ा जाता है, उसका डिटेक्शन कैसे किया जाता है और केस कैसे बनाए जाते हैं तथा कोर्ट में अपराधियों का कन्विक्शन कैसे होता है।”
जानकारों का कहना है कि “इस समस्या का हल बहुत सरल तरीके से निकल सकता है, लेकिन आरपीएफ अधिकारी अपने वेस्टेड इंटरेस्ट के चलते जानबूझकर वेंडर्स की आड़ में समस्या को बढ़ा रहे हैं और अपने-अपने तरीके से केवल मौज कर रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही दिन पहले खंडवा-इटारसी सेक्शन में डोंगरगांव स्टेशन के पास अवैध वेंडरों ने एसी कोच अटेंडेंट को चाकू मारकर बुरी तरह से घायल कर दिया था। यह केस पूरी भारतीय रेल में सबको पता है। इसके पहले इन्हीं अवैध वेंडर्स ने खंडवा स्टेशन पर एक आरपीएफ वाले को भी बुरी तरह से मारा-पीटा था।
तथापि आरपीएफ अधिकारी न तो इन अवैध वेंडर्स का पूरी तरह से उन्मूलन करने के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं, और न ही फील्ड में तैनात आरपीएफ जवानों को करने देते हैं, क्योंकि आरपीएफ इंस्पेक्टरों की मिलीभगत से इन्हें लाखों रुपये का माहवार हफ्ता पहुंचता है। यह एक खुला सत्य है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यह वही गाजियाबाद स्टेशन है जहां दिल्ली मंडल उत्तर रेलवे के एक कथित ईमानदार पूर्व सीनियर डीएससी ने अपनी निर्धारित ड्यूटी और जिम्मेदारी से हटकर देश से बेरोजगारी दूर करने के नाम पर – जैसे भारत सरकार ने उन्हें यह महती कार्य सौंपा हो – पैंट्री कांट्रैक्टरों पर दबाव बनाकर अवैध वेंडर्स को रोजगार दिलाने के लिए “जॉब मेला” लगाया था। यह शुद्ध रूप से वसूली का ही एक प्रकार था। कुछ ही दिन बाद इन तथाकथित ईमानदार महोदय को भारी भ्रष्टाचार के आरोपों में तत्काल पद से हटा दिया गया था। तात्पर्य यह कि आरपीएफ अधिकारी अपनी निर्धारित ड्यूटी छोड़कर वह सब काम करना चाहते हैं, जो उनका नहीं है।
किसी भी पैंट्री कार वेंडर/मैनेजर का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं होता है। संभवतः इसका प्रावधान भी रेलवे ने अब तक नहीं किया है। ऐसे में पता नहीं कितने खतरनाक मुजरिम, अपराधी पैंट्री कार वेंडर्स बनकर काम कर रहे हैं। और जो लाखों की संख्या में अवैध वेंडर्स पूरी भारतीय रेल पर आरपीएफ एवं जीआरपी की मेहरबानी से उनके संरक्षण में काबिज हैं, उनका तो कहना ही क्या?
इस तरह से देखा जाए तो रेलवे में मेडिकल विभाग, वाणिज्य विभाग, विजीलेंस, आरपीएफ, जीआरपी, आईआरसीटीसी, स्टेशन मास्टर, स्टेशन मैनेजर, टिकट चेकिंग स्टाफ इत्यादि सभी की पौ बारा है। यानि इन सबकी मौज ही मौज हो रही है। इन सबके बीच कल भी ठगा जा रहा था, आज भी ठगा जा रहा है, और कल भी ठगा जाता रहेगा केवल रेलयात्री।
जिसका काम उसी को साजे, दूजा करे तो डंडा बाजे, यह बात आरपीएफ अधिकारियों सहित रेल प्रशासन को समझ में क्यों नहीं आती? रेल में हर विभाग के काम को आरपीएफ पर उसी के अधिकारी क्यों लाद रहे हैं? जबकि उन्हें अपना और अपने विभाग का ही काम सही ढ़ंग से करना नहीं आता!
रेल प्रशासन को इस विषय पर अविलंब ध्यान देना चाहिए और रेल को अवैध हॉकर/वेंडर तथा भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए आरपीएफ अधिकारियों की नकेल कसते हुए जिस भी सेक्शन में अवैध वेंडर्स पाए जाएं, उस सेक्शन के आरपीएफ इंस्पेक्टर का तुरंत ट्रांसफर, निलंबन और जांच के बाद उसकी बर्खास्तगी सुनिश्चित की जाए।
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