भ्रष्ट बनने के लिए कर्मचारियों को मजबूर करते हैं अधिकारी
पश्चिम रेलवे ने तत्काल प्रभाव से दो टिकट चेकिंग स्टाफ को बर्खास्त किया
रेलवे बोर्ड के आदेश पर पूरी भारतीय रेल में शुरू हुआ सघन टिकट चेकिंग अभियान
मुंबई : विगत दिनों जिन चार-पांच राजधानी गाड़ियों में एक मीडिया समूह द्वारा स्टिंग ऑपरेशन करके टिकट चेकिंग स्टाफ की गलत एवं भ्रष्ट हरकतों को उजागर किया गया, उससे सभी जोनल रेलों को तो शर्मशार होना ही पड़ा है, बल्कि इससे टिकट चेकिंग स्टाफ की सुविधाओं पर विशेष ध्यान देने वाले चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी को भी नीचा देखना पड़ा है. उल्लेखनीय है कि श्री लोहानी के हस्तक्षेप से हाल ही में रेलवे बोर्ड द्वारा टिकट चेकिंग स्टाफ के विरुद्ध जारी की गई ‘एडवाइजरी’ वापस ली गई थी. परंतु इस घटना के तत्काल बाद देश की तथाकथित वीआईपी ट्रेनों (राजधानी गाड़ियों) में टिकट चेकिंग स्टाफ की अस्वीकार्य गतिविधियों के उजागर होने से एक बार पुनः ट्रैफिक एवं कमर्शियल विभाग को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है. इससे ये दोनों विभाग आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार 12953/54 अगस्तक्रांति राजधानी एक्स. में एक्सपोज हुए दो टिकट चेकिंग स्टाफ – हेड टीटीई परमेंद्र श्रीवास्तव और अरविंद सिंह – को पश्चिम रेलवे द्वारा रेलवे सर्वेन्ट्स (डीएंडए) रूल्स, 1964 की धारा 14/2 के अंतर्गत तत्काल सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. ऐसी ही कार्रवाई अन्य संबंधित जोनल रेलों में भी की गई है. हालांकि रेलवे बोर्ड के हमारे सूत्रों का कहना है कि सीआरबी श्री लोहानी स्टाफ को बिना किसी सुनवाई और अपनी सफाई का मौका दिए बिना सीधे बर्खास्त कर दिए जाने के विरुद्ध हैं, मगर संबंधित जोनों के संबंधित प्रमुख मुख्य वाणिज्य प्रबंधकों ने अपनी खाल बचाने के लिए स्टिंग में एक्सपोज हुए स्टाफ को कोई मौका दिए बिना ही बर्खास्त कर दिया है, जो कि सीधे-सीधे प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है. उनका यह भी कहना है कि जनता की आँखों में इस तरह झोंकी जाने वाली धूल अदालत से जल्दी ही साफ हो जाती है.
इसके अलावा ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि वास्तविक सच्चाई यह है कि स्टाफ को उनके कुछ अधिकारियों और वरिष्ठों द्वारा ही भ्रष्ट बनने के लिए मजबूर किया जाता है. स्टाफ ने बताया कि इन तथाकथित वीआईपी गाड़ियों के लिए स्टाफ के चयन से लेकर उनकी ड्यूटी लगाने वाले अधिकारी सहित सभी को दिल्ली से कुछ न कुछ मंगाना होता है, जिसके लिए वह अपनी जेब में हाथ डालकर कभी पैसा नहीं निकालते हैं और न ही उनसे पैसा मांगने की हिमाकत कोई स्टाफ कर पाता है. उनका कहना है कि ऐसे में कोई भी स्टाफ आखिर कब तक अपनी जेब अथवा अपने बच्चों का पेट काटकर उनकी डिमांड्स को पूरा कर सकता है? इसके अलावा आए दिन मंडल या मुख्यालय के किसी न किसी अधिकारी द्वारा उसके किसी नाते-रिश्तेदार अथवा परिचित को लादकर ले जाने का फरमान आता ही रहता है. प्रशासन को यदि ईमानदारी की अपेक्षा टिकट चेकिंग स्टाफ से है, तो इसके लिए सबसे पहले उसके ऊपर के सभी स्तरों को ईमानदारी का पाठ पढ़ाया जाना आवश्यक है.
विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मुंबई सेंट्रल मंडल, पश्चिम रेलवे के ग्रांट रोड स्थित मंडल मुख्य टिकट निरीक्षक कार्यालय में पिछले करीब डेढ़ महीनों से कोई पास बनाने वाला नहीं है, जिससे यहां करीब दो-ढ़ाई सौ वर्किंग एवं रिटायर्ड स्टाफ के पास बनाने का कार्य पेंडिंग पड़ा हुआ है, मगर मंडल वाणिज्य मुख्यालय को इसकी कोई चिंता नहीं है. इस मौके पर विभिन्न रेलकर्मियों का यह भी कहना था कि रेल प्रशासन द्वारा समस्त स्टाफ के आवधिक तबादले सुनिश्चित किए जाते हैं, मगर समयानुसार यही नियम अधिकारियों पर लागू नहीं किया जाता है. बीसों बरस से एक ही जोन, एक ही शहर में अड्डा जमाकर बैठे होने से कोई भी कर्मचारी उनके हुक्म को नजरअंदाज करने की हिमाकत नहीं कर सकता है. उनका कहना है कि अधिकारियों को सिर्फ अपनी सुविधाओं की चिंता है, जबकि रेलवे की छवि वास्तव में अधिकारियों के बचकाने निर्णयों के कारण ही ज्यादा खराब होती है. इस पर उच्च प्रशासन को अविलंब ध्यान देना चाहिए.
बहरहाल, राजधानी गाड़ियों में स्टिंग ऑपरेशन की उपरोक्त घटना के बाद रेलवे बोर्ड के आदेश पर सभी जोनल रेलों ने भी अपने-अपने मंडलों को एक आदेश जारी करके चालू वित्तवर्ष के बचे हुए दो महीनों में 1 फरवरी से 31 मार्च तक लगातार सघन टिकट चेकिंग अभियान शुरू कर दिया है. इस अभियान में मंडलों के सभी अधिकारियों और समस्त वाणिज्य कर्मचारियों के साथ ही व्यापक स्तर पर विजिलेंस एवं आरपीएफ कर्मियों को भी औचक निरिक्षानो के लिए तैनात किया गया है. ऊतर मध्य रेलवे द्वारा शुरू किए गए ऐसे ‘जीरो टोलरेंस’ कार्यक्रम के अंतर्गत ही कानपुर लोको रेलवे अस्पताल के सीएमएस डॉ. आर. के. वर्मा सहित उनके असिस्टेंट मनोज कुमार को गार्ड के लिए मेडिकल हेतु आए नए उम्मीदवारों से लिए गए 70 हजार रुपये की राशि के साथ आरपीएफ सीआईबी एवं विजिलेंस की टीम ने रंगेहाथ पकड़ा.
जबकि टिकट चेकिंग कर्मियों का कहना है कि इस अभियान के जरिए उनके लिए तो चप्पे-चप्पे पर ‘बारूद’ बिछा दी गई है, ऐसे में रेल प्रशासन ने गलती होने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है. तथापि यात्रियों को आसानी से टिकट और गाड़ियों में जगह मुहैया कराने की व्यापक व्यवस्था किए जाने के बजाय रेल प्रशासन उन्हें लूटकर अपने लक्ष्य की पूर्ति करना चाह रहा है, इसे कतई जायज नहीं कहा जा सकता. जरूरत बेटिकट यात्रा के खिलाफ जन-सामान्य के मन में डर पैदा करने की है, इसके लिए दंड की वर्तमान राशि 250 रुपये को बढ़ाकर 1000 रुपये किया जाना चाहिए. प्लेटफार्म टिकट 10 रुपये के बजाय 100 रुपये किया जाए, जिससे स्टेशनों पर अनावश्यक भीड़ को रोका जा सके. परंतु इससे पहले प्रत्येक व्यक्ति/यात्री को यह टिकट आसानी से उपलब्ध कराए जाने की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए.