पिछले बजट लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाया रेल मंत्रालय
राजीनीति हस्तक्षेप से मुक्त हुए बिना भारतीय रेल का उद्धार संभव नहीं
8 महीनों में 3500 किमी के बजाय सिर्फ 970 किमी हुआ रेल लाइनों का निर्माण
देश के किस कोने में हो रहा है दोगुनी रफ्तार से ट्रैक का दोहरीकरण/विद्युतीकरण?
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री और रेलमंत्री केंद्रीय बजट के बाद सोशल मीडिया परघोषणा कर रहे हैं कि “आज देश में दोगुनी रफ्तार से रेल लाइनों का दोहरीकरण हो रहा है और लगभग दोगुनी रफ्तार से ही रेल लाइनों का विद्युतीकरण भी किया जा रहा है, हम सभी रेल योजनाओं को उस दिशा में ले जा रहे हैं, जो गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग की जिंदगी में ‘क्वालिटेटिव चेंज’ लाए.” परंतु वह यह नहीं बता रहे हैं कि ट्रैक का यह दोगुनी रफ्तार से दोहरीकरण और विद्युतीकरण देश के किस कोने में चल रहा है? इसी तरह की लफ्फाजी और हवाबाजी में सरकार के लगभग चार निकल गए हैं, मगर रेलवे में धरातल पर ऐसा कोई उल्लेखनीय सुधार या रिफार्म अथवा विकास कहीं नजर नहीं आ रहा है.
इसी प्रकार इस बार भी 1 फरवरी को केंद्रीय सामान्य बजट 2018-19 में रेलवे के लिए कई घोषणाएं की गई हैं, लेकिन वर्ष 2017-18 में की गई घोषणाएं अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं. पिछले साल के बजट में घोषणा की गई थी कि चालू वर्ष 2017-18 में 3500 किमी रेलवे लाइनें कमीशन की जाएंगी, इतना ही ट्रैक रिन्यूअल किया जाएगा, लेकिन नवंबर 2017 तक इसमें से सिर्फ 970 किमी लाइन ही कमीशन हो पाई है. इसी तरह रेलवे स्टेशन रिडेवलमेंट के मामले में भी रेलवे का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है.
पिछले बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की थी कि वर्ष 2017-18 के लिए रेलवे का कुल कैपिटल और डेवलपमेंट एक्सपेंडिचर 1.31 लाख करोड़ रुपये का होगा. इसमें से 20 हजार करोड़ रुपये रेलवे संरक्षा मद में गए थे. इसके अलावा रेलवे को 3500 किमी रेलवे लाइन कमीशन का टारगेट दिया गया था. वर्ष 2016-17 में यह टारगेट 2800 किमी था. इसके साथ ही 25 रेलवे स्टेशनों के रिडेवपलमेंट का काम शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था.
गुरुवार, 1 फरवरी को संसद में बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जब बजट डाक्यूमेंट्स जारी किया, तो उसके साथ ही वर्ष 2017-18 की बजट घोषणाओं पर अमल किए जाने की रिपोर्ट भी दी गई है. इसके अनुसार नवंबर 2017 तक रेलवे ने सिर्फ 973.57 किमी रेलवे लाइन रेलयात्रियों के लिए शुरू की हैं. इसके अलावा उम्मीद जताई गई है कि वर्ष 2017-18 यानी 31 मार्च 2018 तक 3500 किमी ट्रैक का निर्माण करके टारगेट को पूरा कर लिया जाएगा, जो कि रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री की कार्य-प्रणाली को देखते हुए संभव नहीं लग रहा है.
इसी बजट डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि पिछले बजट में 25 रेलवे स्टेशनों के रिडेवलपमेंट का काम शुरू हो जाएगा, लेकिन अब तक हबीबगंज और गांधीनगर सिर्फ दो रेलवे स्टेशनों का ही काम शुरू हो पाया है. कहने को रेलवे ने इसके लिए एक रिवाइज स्कीम शुरू की है, जिससे स्टेशन रिडेवलपमेंट के कार्य को फास्ट ट्रैक पर लाया जा सके.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2018-19 के लिए इस बजट में नई घोषणाएं की हैं. उनकी इन घोषणाओं के अनुसार वर्ष 2018-19 में 900 किमी नई रेल लाइनें बिछाई जाएंगी, जिसके लिए 28,940 करोड़ आवंटित किए गए हैं.. इसी तरह 1000 किमी रेल लाइनों का गेज कन्वर्जन किया जाएगा, जिसके लिए 4016 करोड़ आवंटित किए गए हैं. इसके अलावा सरकार ने बड़ी संख्या में रेल लाइनों के दोहरीकरण का लक्ष्य रखा है. वर्ष 2018-19 में 2100 किमी लाइनों के दोहरीकरण का लक्ष्य रखा गया है, जिस पर कुल 17,359 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है.
रेलमंत्री पीयूष गोयल ने संसद में दिए गए एक बयान में कहा है कि वह भारतीय रेल के लगभग 1.10 लाख से ज्यादा लाइन किमी सिग्नलिंग सिस्टम का संपूर्ण ट्रांसफॉर्मेशन करने जा रहे हैं. यह काम अगले 5-6 सालों में पूरा होगा. वर्तमान सरकार के लगभग सभी मंत्री अपनी सभी योजनाओं के या तो वर्ष 2022 तक पूरा होने की बात कहते हैं या फिर अगले 5-6 वर्षों में पूरा करने की बात एक रटेरटाए अंदाज में कहते नजर आते हैं. परंतु पिछले लगभग चार सालों में उनके द्वारा देश का पूरा विकास सिर्फ कागजों या विज्ञापनों में ही होता रहा है.
लक्ष्य प्राप्ति और यात्री संतुष्टि के मामले में रेलवे का रिकॉर्ड आज भी बहुत खराब है. यात्री कोचों में बायो टॉयलेट लगाने का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है. यहां तक कि अब तक इसकी कोई सर्वमान्य डिजाइन तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है. साफ-सफाई के मामले में कोई भी यात्री ट्रेन काक्रोचों और चूहों से मुक्त नहीं है. भ्रष्टाचार चरम पर है, इसमें कोई लगाम नहीं लग पाई है. टेंडर आवंटन की रफ्तार आज भी पुराने ढ़र्रे पर चल रही है. अधिकारियों-कर्मचारियों के आवधिक तबादलों में राजनीति हावी है. जब तक रेलवे को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं किया जाएगा और आतंरिक एवं प्रशासनिक रिफार्म नहीं होता है, तब तक भारतीय रेल का उद्धार होना संभव नहीं लग रहा है.