April 8, 2019

अरबों रुपये के ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाले’ में आया नया मोड़

सीजेआई की बेंच ने रे. बो. के खिलाफ स्वीकार की अवमानना याचिका

प्रमोटी अधिकारी संगठन के स्वयंभू नेताओं पर भी गिरी अवमानना की गाज

डीपीसी मामले पर डीओपीटी ने दिया प्रमोटी अधिकारियों को एक बड़ा झटका

‘राजनीतिक दबाव’ और ‘प्रमोटी प्रेम’ के चलते रेलवे बोर्ड का विरोधाभासी व्यवहार

ग्रुप ‘ए’ और ‘बी’ अधिकारियों को लड़ाकर बड़ी चालाकी से शुरू हुई रेलवे को बेचने की प्रक्रिया

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल में हुए अरबों रुपये के ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाले’ पर रेलवे बोर्ड में घमासान जारी है. मीटिंग पर मीटिंग होने के बाद भी ‘प्रमोटी प्रेम’ के कारण इस अत्यंत गंभीर मामले में अब तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है. ‘राजनीतिक दबाव’ और ‘प्रमोटी प्रेम’ के चलते रेलवे बोर्ड लगातार विरोधाभासी पत्र निर्गत करता जा रहा है, जो धीरे-धीरे रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के गले की फांस बनते जा रहे हैं. किसी सरकारी तंत्र का नीति निर्धारण में कमजोर और पक्षपातपूर्ण होना इस बात का सूचक है कि अंदरूनी भ्रष्टाचार तथा जोड़तोड़ अपनी चरम सीमा पर है और दिग्भ्रम की स्थिति लगातार बनाए रखी जा रही है. रेलवे बोर्ड का वर्तमान निजाम इस मामले में अपनी मूढ़ताओं की सारी हदें पार कर चुका है.

आर. के. कुशवाहा ने दायर की सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लंबित मामले में 12 दिसंबर 2017 को दिए गए अंतरिम आदेश को धता बताते हुए रेलवे बोर्ड ने 19 जनवरी 2018 को एक नया पत्र जारी कर दिया. इस नए पत्र के जरिए प्रमोटी अधिकारियों के साथ ही सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की पदोन्नति पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया, जबकि अदालत ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था. रेलवे बोर्ड ने यह निर्णय सर्वोच्च अदालत की अवमानना करते हुए शुद्ध राजनीतिक दबाव के चलते लिया, इसमें कोई संदेह नहीं है.

निश्चित रूप से रेलवे बोर्ड के इस बचकाना निर्णय से न सिर्फ यह मामला ज्यादा लंबित और विवादित हुआ है, बल्कि इसके जरिए नए कानूनी पहलू पर अदालती लड़ाई शुरू करवाने की चालाकीपूर्ण साजिश करके मामले को लंबा खींचने का राजनीतिक षड्यंत्र किया गया है. रेलवे बोर्ड के इस नए आदेश के खिलाफ आर. के. कुशवाहा ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की बेंच में चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी/रे.बो. के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की है. यह याचिका मुख्य न्यायाधीश की बेंच द्वारा स्वीकार भी कर ली गई है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की बेंच द्वारा यह याचिका स्वीकार कर लिए जाने का सीधा तात्पर्य यह है कि रेल प्रशासन अब अदालत की कड़ी फटकार और परेशानीपूर्ण आलोचना का सामना करना पड़ सकता है. अदालत के आदेशों को ‘ढ़ाक के तीन पात’ समझने और अपनी मनमानी करने की बुरी लत के कारण रेल प्रशासन अब सर्वोच्च न्यायालय को भी आंखें तरेरने की गैर-कानूनी और अनैतिक कोशिश करता नजर आ रहा है, जिसका खामियाजा उसे जल्दी ही सर्वोच्च अदालत के समक्ष भुगतना पड़ सकता है.

इस मामले में निश्चित तौर पर रेलवे बोर्ड से गलती हुई है, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ है, इसके लिए घटिया और अनैतिक आचरण भी किए गए हैं, लगभग तीन साल से चल रही अदालती प्रक्रिया के दौरान यह सब जग-जाहिर हो चुका है. परंतु रेल प्रशासन अब अदालती आदेशों के आलोक में अपनी इस ऐतिहासिक गलती को यथाशीघ्र सुधारने के बजाय इसमें नित-नए पेंच पैदा करके न सिर्फ मामले को लंबा खींचते हुए बुरी तरह उलझा रहा है, बल्कि अपने लिए अदालती मुसीबत भी मोल ले रहा है, जो कि अंततः केंद्र सरकार के लिए भी भारी परेशानी और आलोचना का सबब बन सकती है.

अदालत पर देश के नागरिकों का विश्वास बना रहे, इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने विगत में ऐसे मामलों पर न सिर्फ अनेकों कठिन फैसले दिए हैं, बल्कि कई बार उच्च नौकरशाहों को कठोर दंड भी सुनाए हैं. इतिहास गवाह है कि अवमानना मामलों में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने आज तक किसी को भी नहीं बख्शा है. अवमानना मामलों में बड़े-बड़े गब्बर वरिष्ठ अधिकारी भी हवालात की हवा खा चुके हैं.

कैट/पटना में चल रहे अवमानना मामले में 8 महीनों से रेलवे बोर्ड लगातार हीलाहवाली करता नजर आ रहा है. न्यायालय द्वारा बार-बार पर्याप्त समय देने के बावजूद भी रेलवे बोर्ड अधिकारियों की वरीयता का पुनर्निर्धारण नहीं कर रहा है. ऐसा लगता है कि रेलवे बोर्ड के माथे पर सवार अदालत की अवमानना का भूत सर्वोच्च न्यायालय के दंड और फटकार के बाद ही उतरने वाला है.

प्रस्तुत मामले में सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक ही दिन में चार याचिकाएं दाखिल की हैं. सीधी भर्ती अधिकारियों द्वारा वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए एक साथ चार-चार याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किए जाने का सीधा अर्थ यह है कि वह अब इस मामले में न तो पीछे हटने वाले हैं, और न ही इसे अधूरा छोड़ने वाले हैं. तात्पर्य यह है कि इस पर अब उन्होंने आरपार की लड़ाई का मन बना लिया है. मामले की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने भी सभी मामलों को स्वीकार करते हुए सुनवाई की तारीख (5 मार्च) भी सुनिश्चित कर दी है.

ये चारों मामले इस प्रकार हैं-

1. सीआरबी, सेक्रेटरी और जॉइन्ट सेक्रेटरी/रे.बो. के खिलाफ अवमानना याचिका.
2. स्वयंभू बने प्रमोटी अधिकारी संगठन के नेताओं के खिलाफ अवमानना याचिका.
3. उच्च न्यायालय, जबलपुर के क्रयित आदेश के खिलाफ एसएलपी दायर की गई है.
4. इंटर-लोकेटरी एप्लीकेशन (आईए) के तहत विभिन्न कैट में लंबित सभी मामलों को सर्वोच्च न्यायालय में एकीकृत किए जाने की याचिका.

सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रमोटी अधिकारी संगठन के खिलाफ भी अदालत की अवमानना याचिका दायर की है. उल्लेखनीय है कि इस मामले में मुख्य मुद्दई आर. के. कुशवाहा ने अपने एक ज्ञापन के माध्यम से तत्कालीन चेयरमैन, रेलवे बोर्ड से निवेदन किया था कि एन. आर. परमार मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को रेलवे पर भी लागू किया जाए. परंतु तत्कालीन चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ने उनकी इस मांग को खारिज (रिजेक्ट) कर दिया था. इस रिजेक्शन के विरुद्ध उन्होंने एक मामला कैट पटना में दाखिल किया. मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने अपना आदेश रिजर्व्ड कर दिया था.

इसकी भनक प्रमोटी अधिकारी संगठन को लग गई थी. तभी पी. आर. सिंह को प्रमोटी अधिकारी संगठन से हरी झंडी मिलने के बाद इस मामले में थर्ड पार्टी के रूप में एंट्री मिली थी. इस पर पुरजोर बहस के बाद कैट/पटना का निर्णय सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के पक्ष में आया. ग्रुप ‘सी’ से पदोन्नति प्राप्त इंजिनीरिंग विभाग के पी. आर. सिंह और सिग्नल एवं दूरसंचार विभाग के आर. के. कुशवाहा की आपसी वरीयता में विभाग अलग होने की वजह से कोई मतभेद कभी नहीं था. तथापि प्रमोटी अधिकारी संगठन के पदाधिकारी होने के नाते पी. आर. सिंह प्रमोटी अधिकारी संगठन के फंड से केस लड़ने लगे.

कैट/पटना ने अपने निर्णय में भारतीय रेल में हुए इस ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाले’ के अन्य पहलूओं को भी उजागर किया है. कैट/पटना में हारने के बाद पी. आर. सिंह ने संगठन के पदाधिकारी के नाते पटना हाई कोर्ट, पटना में रिट याचिका दाखिल की थी. इस पर लंबी बहस के बाद उन्हें पटना हाई कोर्ट में भी हार का सामना करना पड़ा था.

पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में रेलवे बोर्ड और प्रमोटी अधिकारियों की और दुर्गति तब कर दी जब उसने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड के निर्णय को गलत और पक्षपातपूर्ण बताने के साथ-साथ भरतीय रेलवे स्थापना नियमावली (आईआरईएम) के वरीयता निर्धारण के नियम को ही त्रुटिपूर्ण करार दे दिया. इसके बाद प्रमोटी अधिकारी संगठन भागकर सर्वोच्च न्यायालय की शरण में पहुंचा. परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए कैट/पटना के निर्णय की तारीख के बाद पदोन्नत हुए सभी एडहाक जेएजी प्रमोटी अधिकारियों की पदावनति का आदेश दे दिया. इसके अलावा सर्वोच्च अदालत ने प्रमोटी अधिकारी संगठन के स्टे वाली गुहार को न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि दो-तीन तारीखों में सुनवाई हो चुकने के बाद भी अब तक उसकी एसएलपी को एडमिट नहीं किया है.

इसी दरम्यान कैट/पटना में चल रहे मामले में अवमानना से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने एडहाक जेएजी प्रमोटी अधिकारियों को रिवर्ट करने का आदेश दे दिया. इस पर सर्वोच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने के बाद प्रमोटी अधिकारी संगठनों और उनसे जुड़े प्रमोटी अधिकारियों ने एक रणनीति के तहत देश के लगभग सभी कैट में तथ्यों को छुपाकर कई मेल दाखिल किए. प्रमोटी अधिकारी संगठन की इस चाल को सीधी भर्ती अधिकारियों की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने एक ही झटके में धराशायी कर दिया और एक साथ चार मामले सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करके अपनी मजबूत रणनीति का नमूना पेश किया है.

अब यह देखना अत्यंत दिलचस्प होगा कि अगली सुनवाई में अवमानना मामले पर रेल प्रशासन औए प्रमोटी अधिकारी संगठन की क्या रणनीति सामने आती है. यह तो लगभग निश्चित है कि अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में दोनों को राजनीतिक दबाव में तुगलकी निर्णय लेने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
रेलवे बोर्ड को लग सकती है सुप्रीम कोर्ट और कैट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट के 15 दिसंबर 2017 के आदेश की अवमानना रेलवे बोर्ड को बहुत भारी पड़ने वाली है, क्योंकि उसके दो आदेशों के बाद और चार महीने बीत जाने के पश्चात् भी रेलवे बोर्ड ने अब तक अपना जबाब दाखिल नहीं किया है. इसके साथ ही अदालत की अवमानना का हर्जाना अगली सुनवाई में चुकाना पड़ सकता है. उधर कैट/पटना में अवमानना मामले में सुनवाई 26 फरवरी को होने वाली है. यदि रेलवे बोर्ड तब तक वरीयता का निर्धारण करके कंप्लायंस दाखिल नहीं करता है, तो इस बार कैट उसके विरुद्ध कोई कड़ा कदम उठा सकता है, जो रेल प्रशासन के लिए शर्मनाक बात होगी.

डीपीसी मामले में डीओपीटी ने दिया प्रमोटी अधिकारियों को बड़ा झटका

पिछले अंक में ‘रेलवे समाचार’ ने कैट-मुंबई के मामले में रेल प्रशासन को ‘प्रमोटी प्रेम’ में लिए गए सभी निर्णयों पर विस्तृत जानकारी के साथ ही भविष्य में होने वाली संभावनाओं को भी बताया था, जो अब वास्तविक धरातल पर चरितार्थ होने जा रही हैं. रेलवे बोर्ड के पक्षपातपूर्ण रवैये से अदालत के साथ-साथ अब डीओपीटी और यूपीएससी भी बखूबी अवगत हो चुके हैं. इसलिए डीपीसी मामले में प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में आए कैट/मुंबई के आदेश को अमल में लाने के लिए जब रेलवे बोर्ड ने अपनी तत्त्परता दिखाई, तब डीओपीटी ने आदेश दिया कि कैट/मुंबई के निर्णय के खिलाफ रेलवे बोर्ड हाई कोर्ट में अपील दाखिल करे.

अर्थात डीओपीटी की तरफ से भी प्रमोटी अधिकारियों को लगातार झटका मिल रहा है. वास्तव में यदि देखा जाए तो इस अरबों रुपये के ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाले’ के मामले में प्रमोटी अधिकारी संगठन को न सिर्फ एक साथ चौतरफा शिकस्त मिल रही है, बल्कि उसे कानूनी समर्थन भी नहीं मिल पा रहा है. असमंजस की इस स्थिति को देखते हुए अधिकांश प्रमोटी अधिकारी अब यह मांग करने लगे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय से मामले को वापस ले लिया जाए. उनको शायद अब यह समझ आ गई है कि उनका शीर्ष नेतृत्व अपनी झूठी शान और एडहॉक जेएजी से पदावनत हुए कुछ अधिकारी अपने निजी हित के लिए मामले को और उलझाकर कोर्ट केस के नाम पर उनसे धन उगाही कर रहे हैं.

अंत मे ‘रेलवे समाचार’ का यही मामना है कि अदालत के साथ कभी भी हठधर्मिता नहीं अपनाई जानी चाहिए. खासतौर पर सरकारी तंत्र द्वारा तो बिल्कुल नहीं. इसलिए रेल हित में रेलवे बोर्ड को चाहिए कि अधिकारियों की वरीयता को अविलंब पुनर्निर्धारित कर 26 फरवरी से पहले कैट/पटना को कंप्लायंस रिपोर्ट सौंपी जाए. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में भी उसे अपना जबाब अगली सुनवाई से पहले दाखिल करके इस गंभीर मामले का अंतिम तौर पर निपटारा करने में सर्वोच्च अदालत के साथ सहयोग करना चाहिए, इससे सभी संबंधित पक्षों का सम्मान बच सकेगा.