April 8, 2019

कमीशनखोरी के चलते फाइनल नहीं हुआ बैलास्ट टेंडर?

लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा डेढ़ साल बाद रद्द किया गया बलास्ट टेंडर

डीआरएम, लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे को टेंडर रद्द होने की कोई जानकारी नहीं

पीसीई का पत्र मिलने से इंकार करते हुए जानकारी देने से कतरा रही हैं डीआरएम

पीसीई द्वारा लिखे जाने के बाद भी डीआरएम ने तय नहीं की किसी की जिम्मेदारी

टीसी मेंबर्स, पूर्व/वर्तमान डीआरएम एवं सीटीई/पीसीई की भी जिम्मेदारी तय की जाए

सुरेश त्रिपाठी

ट्रैक पर बलास्ट की अत्यंत आवश्यकता के बावजूद यदि कोई बलास्ट टेंडर डेढ़ साल में भी फाइनल न हो पाए,और अंततः टेंडर रद्द करना पड़े, तो इसे सभी संबंधित रेल अधिकारियों की घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार का ही प्रतीक माना जाना चाहिए. एक तरफ प्रधानमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है और रेलमंत्री द्वारा गाड़ियों की गति बढ़ाने और तीव्र गति से दोहरीकरण किए जाने की घोषणाएं की जा रही हैं, दूसरी तरफ भ्रष्ट और घोर लापरवाह रेल अधिकारियों द्वारा डेढ़ साल में एक बलास्ट टेंडर तक फाइनल नहीं किया जा पा रहा है. इसके अलावा रेलवे में न तो भ्रष्टाचार कम हो पा रहा है, और न ही वर्तमान ट्रैक के लिए पर्याप्त बलास्ट की आपूर्ति हो पा रही है. ऐसे में प्रधानमंत्री और रेलमंत्री का घोषित लक्ष्य प्राप्त पर पाना दूर का सपना ही है.

इसी क्रम में पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल द्वारा वर्क कांट्रेक्ट के अंतर्गत 29 जुलाई 2016 को कुल 24399.38 क्यूबिक मीटर बैलास्ट की आपूर्ति का टेंडर (नं. डब्ल्यू/362/एलजेएन/18/2016/डी-5) जारी किया गया था. टेंडर जमा करने और खुलने की अंतिम तारीख 6 सितंबर 2016 थी. इस टेंडर की कुल अनुमानित लागत 3,93,04,962 रु. (तीन करोड़ तिरान्नबे लाख चार हजार नौ सौ बासठ रुपये) थी. इस टेंडर के तहत लखनऊ मंडल के अंतर्गत मैलानी बैलास्ट डम्प में मशीन से तोड़ी हुई आरडीएसओ के स्पेसीफिकेशन आईआरएस-जीई-1, जून 2004 (अद्यतन शुद्धि पर्ची के साथ) के अनुसार प्राइवेट क्वैरी से ट्रैक बैलास्ट की आपूर्ति, चट्टा लगाने एवं रेलवे के वैगनों में लोडिंग का कार्य किया जाना था.

यह टेंडर 6 सितंबर 2016 को दोपहर बाद 3 बजे खोला गया था, जिसमें बताते हैं कि कुल 6 बैलास्ट सप्लायरों ने अपना टेंडर डाला था. प्राप्त जानकारी के अनुसार इसमें सबसे कम दरें इज्जतनगर के एक सप्लायर की थीं, जिसे इसमें लोएस्ट-1 पाया गया था. टेंडर कमेटी (टीसी) में लखनऊ मंडल के सीनियर डीईएन/समन्वय (कन्वेनर), सीनियर डीएफएम और एक अन्य ब्रांच अधिकारी शामिल था, जबकि इसके स्वीकृत अधिकारी (एक्सेप्टिंग अथॉरिटी) एडीआरएम थे. तथापि यह चारों अधिकारियों मिलकर लगभग डेढ़ साल में भी यह टेंडर फाइनल नहीं कर पाए.

बताते हैं कि इसके लिए दो बार संबंधित सप्लायर से एक्सटेंशन लिया गया था और तीसरी बार उसने एक्सटेंशन देने से तब मना कर दिया था, जब चीफ ट्रैक इंजीनियर (सीटीई) ने दि. 27.10.2017 को एक पत्र लिखकर इस टेंडर को जल्दी फाइनल करने की सख्त हिदायत कन्वेनर (सीनियर डीईएन/समन्वय) को दी थी. बताते हैं कि सीटीई के पत्र के बाद कन्वेनर महोदय इस टेंडर को फाइनल करने की बहुत जल्दबाजी में थे और इसीलिए वह सप्लायर पर पिछली तारीख में एक्सटेंशन देने का दबाव डाल रहे थे, जिसे उसने इस बार पूरी सख्ती के साथ मना कर दिया था.

कुछ बैलास्ट सप्लायरों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वास्तव में डेढ़ साल तक यह टेंडर सिर्फ कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के कारण ही फाइनल नहीं हो पाया. उनका कहना है कि संबंधित सप्लायर (एल-1) से अनुचित रूप से ज्यादा कमीशन (10 से 15%) की मांग की जा रही थी, जबकि वह परंपरागत, प्रचलित अथवा अवैध रूप से निर्धारित 2-3% कमीशन देने को खुशी से तैयार था और इसी उम्मीद पर उसने दो बार एक्सटेंशन दिया था. परंतु कन्वेनर (सीनियर डीईएन/समन्वय) महोदय को इससे संतोष नहीं था. परिणामस्वरूप टेंडर फाइनल करने की अवधि लगातार बढ़ती गई, जबकि नियमानुसार किसी भी टेंडर को उसके खुलने की तारीख से निर्धारित 90 दिन (तीन महीने) के अंदर फाइनल करना होता है.

बताया जाता है इस टेंडर में टीसी मेंबर सीनियर डीएफएम और कन्वेनर (सीनियर डीईएन/समन्वय) के बीच काफी मतभेद तब उजागर हुए, जब सीनियर डीएफएम ने एल-1 से बार-बार एक्सटेंशन लेने के बजाय टेंडर जल्दी फाइनल करने पर जोर दिया था, मगर कन्वेनर (सीनियर डीईएन/समन्वय) द्वारा लगातार ज्यादा कमीशन का दबाव एल-1 पर डाला जा रहा था, जिससे टेंडर फाइनल नहीं हो पा रहा था. इसके अलावा टेंडर एक्सेप्टिंग अथॉरिटी (एडीआरएम) सहित पूर्व एवं वर्तमान दोनों डीआरएम का ध्यान भी इस भ्रष्टाचार और जोड़तोड़ की तरफ नहीं था. जबकि मंडल में चौतरफा बैलास्ट का भीषण अकाल पड़ा हुआ है.

उधर लखनऊ मंडल के मीटर गेज (बहराइच-नानपारा-मैलानी) सेक्शन में बैलास्ट की अत्यंत और अनिवार्य आवश्यकता थी, जबकि सीटीई द्वारा पत्र लिखे जाने के दो माह बाद भी उक्त टेंडर फाइनल नहीं किया जा सका. अंततः पीसीई पी. डी. शर्मा ने 21 दिसंबर 2017 को एक डीओ लेटर वर्तमान डीआरएम, लखनऊ को लिखते हुए उक्त टेंडर तुरंत रद्द करके नया टेंडर मंगाने और लगभग डेढ़ साल में भी उक्त टेंडर फाइनल न करने के लिए जिम्मेदार सभी संबंधित अधिकारियों (तीनों टीसी मेंबर्स एवं एडीआरएम) की जिम्मेदारी तय करते हुए उनके विरुद्ध आवश्यक विभागीय कार्रवाई करने को कहा.

पीसीई ने इस डीओ लेटर में डीआरएम को लिखा था-

Sub.- Arrangement of Ballast for MG Section of LJN Division.
Ref.- CTE’s letter of even no. dated 27.10.2017.

It has been noted that there is no arrangement for ballast supply in MG Section (Bahraich, Nanpara & Mailani) of your division. A lot of speed restrictions are continuing in this section since long for want of ballast. CTR work in MG section is also being carried out but no significant advantage of the same with regard to increase in speed is being achieved for want of arrangement of ballast for MG section.

It is understood that ballast tender for supply of approximately 24,300 cum for MG section of your division had been open on 06.09.2016. It has been learnt that the validity of offers in above tender has expired long back. Final decision and conclusion of the tender is required early for further step towards procurement of ballast for MG section.

Responsibility for delay should be fixed and serious action taken without further delay for final decision in the subject tender.

P. D. Sharma
Principal Chief Engineer
21.12.2017

Copy to-
1. SrDEN(Co-ord), LJN
 for information.
2. SrDEN/II/LJN for information and taking neccessary action accordingly for calling of a fresh tender as the MG Section falls under his jurisdiction.

पीसीई का यह डीओ लेटर ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद है और उनका यह पत्र अपने आप ही इस टेंडर में हुई डेढ़ साल की भीषण और आश्चर्यजनक लापरवाही की कहानी बयान कर रहा है. तथापि, डीआरएम, लखनऊ श्रीमती राजलक्ष्मी कौशिक का कहना है कि उन्हें पीसीई का यह पत्र नहीं मिला. जबकि इस पत्र पर ‘कार्यालय मंडल रेल प्रबंधक, लखनऊ, पूर्वोत्तर रेलवे- दि 27.12.2017’ की मुहर लगी हुई है. इसके साथ ही डीआरएम के ‘काउंटर साइन’ भी इसके नीचे बाएं कोने पर मौजूद हैं. उक्त फाइल मंगाकर देखने के बजाय डीआरएम ने रेलवे समाचार’ द्वारा इससे संबंधित मांगी गई जानकारी के लिए भेजा गया एसएमएस इस मामले में सबसे ज्यादा जिम्मेदार सीनियर डीईएन/समन्वय (टीसी कन्वेनर) को ही फॉरवर्ड कर दिया.

इसके बाद जब मोबाइल पर कॉल करके ‘रेलवे समाचार’ ने डीआरएम श्रीमती कौशिक से पूछा कि डेढ़ साल बाद उक्त टेंडर अंततः किस आधार पर रद्द किया गया और जैसा कि पीसीई ने लिखा था, इस मामले में किन-किन संबंधित अधिकारियों की क्या जिम्मेदारी तय की गई और उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है? इस पर पहले तो डीआरएम ने पीसीई का ऐसा कोई भी पत्र मिलने से साफ इंकार कर दिया. बाद में कहा कि वह इस बारे में संबंधित विभाग से जानकारी प्राप्त करके कल कुछ बता पाएंगी. दूसरे दिन जब उन्हें कई बार कॉल किया गया, तो उन्होंने कोई कॉल रिसीव नहीं की, बल्कि अपना मोबाइल अपने किसी सहायक के नंबर पर डाइवर्ट कर दिया और जानकारी देने से लगातार कतराती रहीं.

इसके बाद ‘रेलवे समाचार’ ने इस बारे में मुख्य जनसंपर्क अधिकारी संजय यादव से संपर्क करके संबंधित जानकारी मुहैया कराने का अनुरोध किया. उन्होंने जब डीआरएम से बात की, तब भी डीआरएम का यही कहना था कि “उन्हें पीसीई का ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, यदि ‘रेलवे समाचार’ के पास संबंधित पत्र है, तो वह हमें फॉरवर्ड करें, तब हम कोई जानकारी दे पाएंगे.” जानकारी देने से बचने के लिए डीआरएम द्वारा की गई आनाकानी अथवा मूर्खता की यह हद है, क्योंकि जो पत्र उनके कार्यालय में मौजूद है, उसे वह ‘रेलवे समाचार’ से देने की जिद कर रही हैं. ऐसा करके डीआरएम ने यही साबित किया है कि उनके कार्यालय में क्या चल रहा है, उसकी कोई जानकारी उन्हें नहीं होती है.

जानकारों का कहना है कि यह टेंडर फाइनल करने में की गई अविश्वसनीय देरी और घोर लापरवाही का एकमात्र कारण इसके लिए सप्लायर (एल-1) से मांगा गया निर्धारित से ज्यादा कमीशन और भ्रष्टाचार ही है, जिसे देने के लिए संबंधित सप्लायर तैयार नहीं हुआ. सूत्रों का कहना है कि पार्टी (एल-1) ने इसके लिए दो बार एक्सटेंशन दिया था. हालांकि पीसीई का पत्र मिलने के बाद सीनियर डीईएन/समन्वय ने टेंडर फाइनल करने का पूरा प्रयास किया और इसके लिए पुनः संबंधित कांट्रेक्टर पर पिछली तारीख में एक और एक्सटेंशन देने का भरपूर दबाव बनाया, मगर तीसरी बार उसने एक्सटेंशन देने से साफ मना कर दिया. अंततः सीनियर डीईएन/समन्वय (टीसी कन्वेनर) 15 से 20 जनवरी 2018 के बीच विदेश भ्रमण (ट्रेनिंग) के लिए जाने से पूर्व यह टेंडर रद्द कर गए थे.

उल्लेखनीय है कि लगभग 12 हजार किमी. ट्रैक पर बैलास्ट की भारी कमी को देखते हुए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ने पिछली एक जीएम कांफ्रेंस में गहरी चिंता व्यक्त की थी और इसे संरक्षा के प्रति बरती जा रही भारी लापरवाही बताया था. जबकि यहां बैलास्ट का ही एक टेंडर संबंधित अधिकारियों द्वारा सिर्फ ज्यादा कमीशन कमाने के लालच में डेढ़ साल तक फाइनल नहीं किया गया. इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार सीनियर डीईएन/समन्वय, लखनऊ मंडल तो हैं ही, बल्कि सभी टीसी मेंबर भी इसके लिए जवाबदेह हैं, क्योंकि उन्होंने उचित अथॉरिटी को इस टेंडर को फाइनल करने में आ रही अड़चनों से समय रहते अवगत नहीं कराया.

यहां यह भी ज्ञातव्य है कि उपरोक्त टेंडर को फाइनल करने में बरती गई घोर लापरवाही सहित इस संपूर्ण प्रकरण के बारे में ‘रेलवे समाचार’ ने रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों को भी अवगत कराया था. तथापि रेलवे बोर्ड ने भी समय रहते इस पर न तो कोई कार्रवाई की और न ही उसकी तरफ से इस मामले में अब तक कोई उचित कदम उठाया गया है. रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों की इस भयानक सुस्ती के कारण पूरी भारतीय रेल में गलत संदेश जा रहा है और अधिकारी यह तक कहने को मजबूर हो रहे हैं कि सिर्फ अपने लिए न्याय पाना ही काफी नहीं है, बल्कि पद के अनुरूप संस्था (भा. रे.) के साथ भी न्याय करना आवश्यक है.

संरक्षा में हो रही घोर कोताही और जहां-तहां लगातार हो रहे गाड़ियों के अवपथन के लिए बैलास्ट एक मुख्य कारक है. इसकी कमी के चलते पिछले कई वर्षों से बहराइच-नानपारा-मैलानी सेक्शन सहित भारतीय रेल के तमाम सेक्शनों के संपूर्ण ट्रैक नवीनीकरण का कार्य (सीटीआर वर्क) नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण उक्त सेक्शनों में वर्षों से जगह-जगह गति अवरोध चल रहे हैं और आए दिन गाड़ियां गिर रही हैं.

अतः इस भीषण कोताही के लिए सीनियर डीईएन/समन्वय को तुरंत लखनऊ मंडल से बाहर शिफ्ट किया जाना चाहिए और इस पूरे मामले की गहराई से जांच करके तीनों टीसी मेंबर्स को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट देने के साथ ही निर्धारित समय पर टेंडर फाइनल न करवाने के लिए पूर्व एवं वर्तमान डीआरएम, लखनऊ मंडल सहित सीटीई एवं पीसीई की भी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए. तभी इसका एक गंभीर संदेश पूरी भारतीय रेल में जाएगा और तभी सभी संबंधित अधिकारी अपने कार्य एवं जिम्मेदारी को समझेंगे तथा निरीह-निर्दोष रेलयात्रियों के जान-माल के प्रति लापरवाही बरतना बंद करेंगे.

इनपुट सहयोग – विजय शंकर, ब्यूरो प्रमुख/एनईआर