उपयोगी चीज को सरदर्द न बनाए रेल प्रशासन
सुरेश त्रिपाठी
अक्सर देखने में आता है कि रेलवे में कुछ नया करना हो, तो स्टाफ साइड अथवा श्रमिक संगठनों की तरफ से विरोध का सामना करना पड़ता है. आखिर ऐसा क्यों होता है? या तो प्रशासन गलत होता है या कर्मचारी? दोनों तरफ से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप होते हैं और लाखों रुपए खर्च कर लाई गई उपयोगी वस्तुएं कई बार कचरे में चली जाती हैं.
यह सच है कि परिवर्तन को अधिकांशतः आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता. परंतु यदि उस परिवर्तन को परिस्थितियों के अनुरूप सही तरीके से लाया जाए, तो वह स्वागत योग्य होने के साथ ही हमारी जरूरत भी बन जाता है. कुछ दिनों से रेलवे में ऐसा ही कुछ सुनने में आ रहा है और खासतौर पर घने कोहरे या धुंध के लिए लाया गया एक बहुउपयोगी उपकरण (एफएसडी) रनिंग कर्मचारियों के लिए सिरदर्द बन गया है.
रेलवे में विशेष रूप से उत्तर भारत के क्षेत्रों, जहां सर्दियों के सीजन में घाना कोहरा पड़ता है, के लोको पायलट्स के लिए एफएसडी नामक उपयोगी उपकरण लाया गया है, जो कि लोको पायलट्स का सिरदर्द बन गया है. यदि इसकी तह में जाएं, तो इस उपकरण की रेलवे तथा लोको पायलट्स को बेहद जरूरत है, मगर जिस तरह से इसे उन पर थोपा गया है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.
क्या है एफएसडी और इसकी कार्यप्रणाली?
एफएसडी यानी ‘फाग सेव डिवाइस’, जिसको लोको पायलट लोको की अपनी डेस्क पर रखकर इसमें से निकले तार रूपी एंटीना को इंजन की छत पर चिपका देता है, जिससे यह उपकरण जीपीएस से अपना संपर्क बना लेता है. अब लोको पायलट जिस दिशा में या जिस रूट पर अपनी गाड़ी ले जाना चाहता है, उस रूट को इस उपकरण में सेट करता है. घने कुहरे में यह उपकरण लोको पायलट को सिगनल से 500 मीटर दूर रहते उस सिग्नल के नाम के साथ यथा झांसी होम, झांसी स्टार्टर, झांसी एडवांस स्टार्टर आदि के नजदीक पहुंचने तक बार-बार दूरी की घोषणा करता रहता है. यानि गाड़ी की गति नियंत्रित करने के लिए यह उपकरण लोको पायलट को लगातार सजग करता रहता है. तथापि, उत्तर क्षेत्र के तमाम लोको पायलट्स का कहना है कि इससे निकलने वाली ध्वनि इतनी कर्कश है कि इसे लगातार सुनते हुए लोको पायलट खुद अपना नियंत्रण खोने लगता है. उनका कहना है कि यदि इसकी यही ध्वनि मधुर या कर्णप्रिय हो, तो यह उपकरण उनके लिए बेहद सहायक साबित हो सकता है और काफी हद तक हादसों को टालने में यह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.
फिर इसका विरोध क्यों?
जो अधिकारी अपनी फाइल तक लेकर चलने के लिए सत्तर हजार से एक लाख रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाले रेल कर्मचारी का उपयोग करते हैं, वही अधिकारी एक लोको पायलट, जिसको अपनी ड्यूटी की समाप्ति के बाद अपना ही शरीर बोझ लगने लगता है, को खच्चर समझते हैं और उससे गधे की तरह बोझ ढ़ोने की उम्मीद करते हैं, यह बेहद शर्मनाक है. एक लोको पायलट के पास वैसे ही उसका ‘पर्सनल स्टोर्स’ तथा अपने खुद के सामान का 7 से 10 किलो बोझ होता है. इसके बाद आए दिन उसके हिस्से कुछ न कुछ नया आता ही रहता है. चाहे वह 50 ग्राम का ही वजन क्यों न हो. उसके बोझ में तो इजाफा होता ही है. फिर भी अधिकारीगण उनसे उम्मीद करें कि एफएसडी, जिसका वजह तीन से साढ़े तीन किलो हो, को भी अपने कंधे पर लेकर लोको पायलट ही जाए.
लोको पायलट की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसका बोझ भी बढ़ाते जाना कितना उचित और मानवीय है, यह विचारणीय है. हजारों रुपये के वीएचएफ सेट के साथ हजारों रुपये का एमटीआरसी सेट ही कम था क्या, जिस पर लाखों रुपये का एफएसडी भी लोको पायलट को घोने के लिए पकड़ा दिया गया. भारतीय रेल में अंधेरे में रेल लाइनों पर गिट्टी से भरे यार्डों में, स्टेशन से दूर रनिंग रूमों में, रनिंग रूम से सैकड़ों मीटर दूर लॉबियों में, दिन में, रात में लोको पायलट बिना किसी सुरक्षा के आता-जाता रहता है. आए दिन लूटपाठ की घटनाएं होती ही रहती हैं. यदि रेलवे की ये कीमती उपकरण कोई ले भागे, तो क्या उस चालक को रेलवे आसानी से छोड़ देगी? यदि यार्ड में चलते-चलते लोको पायलट इस कीमती उपकरण के साथ गिर जाए और वह टूट-फूट जाए, तो क्या चालक को रेलवे छोड़ देगी? विरोध का कारण यही है.
तो क्या करें?
इस उपयोगी उपकरण को इंजन में फिट कर देना ही एकमात्र तरीका है. परंतु एफएसडी इंजन में फिट किया ही नहीं जा सकता है. या तो रेल प्रशासन अथवा अपने किसी अज्ञात फायदे के लिए इसे खरीदने का सुझाव देने वाले संबंधित अधिकारियों की अक्ल का दीवालियापन कहें या फिर रेलवे को लूटने का एक सुनियोजित षड्यंत्र, क्योंकि इस उपकरण में जो सॉफ्टवेयर डाला गया है, वह मंडल के अनुसार है. यानी जिस मंडल का लोको पायलट जिस-जिस रूट पर चलता है, इस उपकरण में केवल वही रूट ही डाले गए हैं. जबकि वर्तमान में सभी लोको पूरी भारतीय रेल में इस छोर से उस छोर तक चलते हैं. अतः अन्य मंडलों में या जोनल रेलों में एफएसडी काम ही नहीं करेगा.
नियोजन का आभाव
कहीं इस बहाने भारतीय रेल में किया गया एक और भ्रष्टाचार या बंदरबांट तो नहीं है? जब लोको संपूर्ण भारतीय रेल में भ्रमण कर सकता है, तो जीपीएस से जुड़ा कोई उपकरण क्यों नहीं? शुरुआत में ही इस उपकरण में ऐसा प्रावधान क्यों नहीं किया गया? संबंधित रेल अधिकारीगण इसे लोको पायलट के सिर मढ़कर उसे खच्चर बनाने पर क्यों उतारू हैं? अतः आवश्यक है कि एफएसडी में उपयुक्त सॉफ्टवेयर डाला जाए और इसे लोको में ही फिट किया जाए. इसके साथ ही हर लोको में एक टूल बाक्स हो, जिसमें संपूर्ण स्टोर तथा सेफ्टी आइटम हों.
उचित व्यवस्था की जाए
यदि यह सब न हो सके, तो रेल प्रशासन द्वारा लोको पायलट्स का पर्सनल स्टोर, सेफ्टी आइटम के साथ ही वीएचएफ, एमटीआरसी और एफएसडी को लॉबी से लोको तथा लोको से लॉबी तक लाने-ले जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. यदि रेल प्रशासन के लिए संरक्षा सर्वोपरि है, तो सबसे ज्यादा संरक्षा तभी सुनिश्चित होगी, जब लोको पायलट तनावरहित होगा. अतः एफएसडी को प्रयोग में अवश्य लाया जाए, मगर इसके लिए उचित व्यवस्था भी की जाए.