सीनियर डीईएन/समन्वय/लखनऊ, पूर्वोत्तर रेलवे का ट्रांसफर
सीनियर डीईएन/समन्वय को पूर्वोत्तर रेलवे से बाहर भेजा जाए
लंबे समय से जमे सभी अधिकारियों को पूर्वोत्तर रेलवे से बाहर किया जाए
गोरखपुर ब्यूरो : ‘रेलवे समाचार’ द्वारा ‘कमीशनखोरी के चलते फाइनल नहीं हुआ बैलास्ट टेंडर’ शीर्षक से प्रकाशित खबर के बाद पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने आनन-फानन मेंसीनियर डीईएन/समन्वय, लखनऊ जीतेंद्र कुमार का तबादला मुख्यालय गोरखपुर में डिप्टी सीई/ट्रैक के पद पर कर दिया है. उनकी जगह डिप्टी सीई/निर्माण/मुख्यालय के पद पर कार्यरत रहे आर. के. श्रीवास्तव को पदस्थ किया गया है. हालांकि रेल प्रशासन द्वारा उठाए गए इस कदम को पर्याप्त नहीं माना जा रहा है, क्योंकि उनके खिलाफ सिर्फ डेढ़ साल तक एक टेंडर फाइनल नहीं कर पाने की ही शिकायत नहीं थी, बल्कि ऐसे कई अन्य टेंडर भी वह लंबे समय तक फाइनल नहीं किए हैं. इसके अलावा उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार से संबंधित अन्य कई शिकायतें भी हैं. अतः उन्हें पूर्वोत्तर रेलवे से सुदूर पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में भेजकर उनके कार्यकाल में हुए सभी कार्यों की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए.
उल्लेखनीय है कि ‘रेलवे समाचार’ ने उपरोक्त शीर्षक खबर के संदर्भ में शुक्रवार, 22 फरवरी को डीआरएम, लखनऊ श्रीमती राजलक्ष्मी कौशिक से जानकारी मांगने की शुरुआत की थी, जिसे देने में वह लगातार तीन-चार दिनों तक टालमटोल करती रहीं. उन्होंने पीसीई का पत्र मिलने से भी इंकार किया, मगर जब ‘रेलवे समाचार’ ने उक्त पत्र प्रकाशित कर दिया, तब उनकी प्रशासनिक क्षमता पूरी तरह उजागर हो गई, क्योंकि दो महीनों से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उन्होंने उक्त टेंडर फाइनल करने में हुई लापरवाही के लिए अब तक किसी भी संबंधित अधिकारी की कोई जिम्मेदार सुनिश्चित नहीं की है, जबकि उक्त पत्र में उन्हें ऐसा करने के लिए पीसीई ने साफ लिखा है.
ऐसा लगता है कि डीआरएम, लखनऊ श्रीमती कौशिक को उनके कार्यालय अथवा मंडल में क्या हो रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं होती है. प्राप्त जानकारी के अनुसार 30 नवंबर 2017 को रिटायर हो रहे रहे एक सीनियर सेक्शन इंजीनियर को सीनियर डीईएन/समन्वय/लखनऊ जब तीन चार्जशीट देकर उसका रिटायरमेंट ख़राब करने की तैयारी में थे, तब उसने किसी माध्यम से इसकी जानकारी रेलवे बोर्ड को देकर अपने बचाव की अपील की थी. इस पर जब रेलवे बोर्ड द्वारा श्रीमती कौशिक को मामले पर ध्यान देने को कहा गया, तब उन्होंने उक्त एसएसई को कार्यालय में बुलाकर हड़काया और कहा था कि वह पहले उनके पास क्यों नहीं आया? यही बात उन्होंने हाल ही में एक कांट्रेक्टर को तब कही, जब उसके कांट्रेक्ट के वेरिएशन की फाइल चार-पांच महीनों में भी डीआरएम कार्यालय से नहीं निकली थी और उसने इसकी शिकायत रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा से कर दी थी. रेल राज्यमंत्री के कार्यालय से जब डीआरएम को उनकी कार्य-प्रणाली को लेकर हड़काया गया और कांट्रेक्टर का बिल तुरंत पास करने को कहा गया, तो उन्होंने कांट्रेक्टर को बुलाकर हड़काया और तुरंत उसका बिल पास कर दिया. पर्याप्त पानी आपूर्ति को लेकर ऐशबाग कॉलोनी के रेलकर्मियों और उनके परिजनों ने हाल ही में जब शताब्दी रोक दी थी, तब भी इसकी जानकारी तुरंत डीआरएम महोदया को नहीं दी गई थी.
‘रेलवे समाचार’ द्वारा की जा रही पूछताछ के मद्देनजर पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने भले ही कामचोर, काहिल और लापरवाह सीनियर डीईएन/समन्वय/लखनऊ का आनन-फानन में तबादला कर दिया है, परंतु प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि इस मामले में नीचे से ऊपर तक के सभी संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी अविलंब सुनिश्चित की जाए. उल्लेखनीय है कि पीसीई ने उक्त पत्र सीधे डीआरएम को लिखा था और उन्हें संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने की जिम्मेदारी भी सौंपी थी, मगर वह अपनी यह जिम्मेदारी दो महीनों से भी ज्यादा समय में निभाने में सक्षम नहीं हो पाई हैं. जबकि डेढ़ साल तक टेंडर फाइनल नहीं हुआ और जैसा कि पीसीई ने स्वयं अपने पत्र में लिखा है कि बैलास्ट की अत्यंत आवश्यकता है, जिसकी कमी के कारण बहराइच-नानपारा-मैलानी सेक्शन का सीटीआर वर्क नहीं हो पाने के साथ ही तमाम गति अवरोधक भी नहीं हटाए जा पा रहे हैं.
ऐसे में मुख्यालय अथवा पीसीई की क्या जिम्मेदारी थी? उन्होंने इस टेंडर को क्यों नहीं फॉलो किया? पीसीई/सीटीई को इस टेंडर की 14 महीनों तक याद क्यों नहीं आई? 14 महीने बाद डीआरएम को पत्र लिखकर जिम्मेदारी तय करने को कहने के अलावा उन्होंने खुद इस मामले में क्या किया? क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी? इस दौरान दो-दो डीआरएम क्या करते रहे? क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? ऐसे कई अन्य टेंडर हैं, जो कि लंबे समय तक फाइनल नहीं हो पाने के कारण रद्द हो गए हैं, इसकी जिम्मेदारी किसकी है?
बीसों साल से एक ही डिपो में तैनात रहे और अब अधिकारी बनकर भी काम नहीं कर पाने के कारण कुछ एडीईएन ठेकेदारों से मार खा रहे हैं, जिन्हें अधिकारी (एडीईएन) बनने पर अन्य मंडलों में तैनात किया जाना चाहिए था, उन्हें उसी डिपो में तैनात किया गया है, जहां पहले उन्होंने अपने चपरासियों अथवा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ बैठकर बीसों साल मदिरा-पान किया था. ऐसे अधिकारियों को संज्ञान में लाए जाने के बाद भी पीसीई उन्हें एक साल में भी अन्यत्र शिफ्ट नहीं कर पाए हैं. वहीं पूर्व जीएम द्वारा दो साल से पहले किसी भी अधिकारी को उसके पद से नहीं हटाए जाने के लिखित निर्देश के बावजूद हाल ही में पुनः एक निर्माण अधिकारी को अकारण मात्र डेढ़ साल में उसके पद से हटा दिया गया है. पूर्वोत्तर रेलवे में चौतरफा फैले भयानक भ्रष्टाचार की जड़ वास्तव में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की नालायकी और भीषण कोताही है.
पूर्वोत्तर रेलवे में पैदाइसी जमे हुए तमाम अधिकारियों के कारण यहां भ्रष्टाचार, जोड़तोड़ और वसीलेबाजी की सड़ांध मची हुई है. कोई भी अधिकारी अपना शत-प्रतिशत योगदान नहीं दे रहा है. जहां एक विभाग प्रमुख द्वारा एक ठेकेदार से 70 लाख रुपये की रिश्वत मांगे जाने की चर्चा यहां जोरों पर है, वहीं कुछ ठेकेदार रेलवे की जमीन हड़पे बैठे हैं. यहां तक कि जिनके बारे में फाइल पर लिखित टिप्पणी की गई थी कि जब तक वह रेलवे की जमीन खाली नहीं करते हैं, तब तक उनकी डिपाजिट रिलीज नहीं की जाए, मगर फाइल से उक्त पेपर हटाकर और बिना जमीन खाली करवाए ही उनकी डिपाजिट रिलीज कर दी गई. ऐसे तमाम भ्रष्टाचार सीनियर डीईएन/समन्वय/लखनऊ जीतेंद्र कुमार की नाक के नीचे होते रहे हैं. ‘रेलवे समाचार’ द्वारा इन सभी कार्यों की छानबीन की जा रही है, जल्दी ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य उजागर होंगे.
दो रिटायर्ड सहित पांच इंजीनियरों को दी गई मेजर पेनाल्टी चार्जशीट
इसी क्रम में ज्ञातव्य है कि पूर्वोत्तर रेलवे के एक पूर्व चीफ इंजीनियर और एक पूर्व एक्सईएन सहित चार इंजीनियरों को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-5) दी गई है, जबकि एक डिप्टी चीफ इंजीनियर को माइनर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-11) मिली है. इनमें रिटायर्ड चीफ इंजीनियर ओ. एन. वर्मा (एसएफ-5), रिटायर्ड एक्सईएन बी. के. श्रीवास्तव (एसएफ-5), सीनियर सेक्शन इंजीनियर अरुण सिंह (एसएफ-5) और अश्वनी श्रीवास्तव (एसएफ-5) तथा डिप्टी चीफ इंजीनियर बी. के. सिंह (एसएफ-11) शामिल हैं. इन सभी अधिकारियों को यह चार्जशीटें गोरखपुर स्टेशन पर वाशेबल अप्रन के निर्माण में किए गए भ्रष्टाचार और कोताही के लिए दी गई हैं.
बताते हैं कि रिटायर्ड चीफ इंजीनियर ओ. एन. वर्मा अपने कई मोहरों का इस्तेमाल करके खुद रेलवे में ठेकेदारी करवा रहे थे, मगर पेपर अथवा फाइल पर उन्हें पकड़ पाना अपने ही जूनियर से पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगने वाले पूर्वोत्तर रेलवे के डिप्टी सीवीओ/इंजीनियरिंग और लगभग छह सालों से एसडीजीएम के पद पर जमे हुए विजिलेंस अधिकारियों के वश की बात नहीं है. लखनऊ मंडल के कई कर्मचारियों का कहना है कि यह जांच सीबीआई को सौंपकर भ्रष्ट डिप्टी सीवीओ/इंजीनियरिंग और एसडीजीएम को अविलंब उनके पदों से हटाया जाना चाहिए.
रेलवे में रसातल तक व्याप्त हो चुके भ्रष्टाचार की मूसला जड़ें लंबे समय तक एक ही रेलवे और एक ही शहर में अधिकारियों और लंबे समय तक एक ही जगह कर्मचारियों की पोस्टिंग में समाई हुई हैं. जब तक सभी बड़े शहरों और जोनल मुख्यालयों से बड़े पैमाने पर ऐसे अधिकारियों को दरबदर नहीं किया जाएगा, और सीवीसी के दिशा-निर्देशों को बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के लागू नहीं किया जाएगा, तब तक भ्रष्टाचार से निजात पाना रेल प्रशासन के लिए संभव नहीं है.