भारतीय रेल का पूरा ओएचई, पीजीसीआईएल को सौंपने की तैयारी?
तोड़-फोड़ और विभाजन को ही शायद सरकार मान बैठी है ‘विकास’?
आज ओएचई, कल एसएंडटी, रोलिंग स्टॉक, फिर अन्य की आएगी बारी
रेलवे को तोड़ने की आशंका से चिंतित हैं रेलकर्मचारी और श्रमिक संगठन
भारतीय रेल बचेगी, तभी रेलकर्मियों और अधिकारियों का अस्तित्व बचेगा
सुरेश त्रिपाठी
वर्तमान केंद्र सरकार और रेलमंत्री शायद यह मान बैठे हैं कि भारतीय रेल के 13.36 लाख अधिकारी एवं कर्मचारी निकम्मे और नालायक हो गए हैं, इसलिए अब भारतीय रेल नामक इस ‘घर’ को ‘धर्मशाला’ बना देना ही उपयुक्त होगा, अथवा उनके पास शायद यही एकमात्र उपाय बचा है. जबकि वह भारतीय रेल के किसी भी ‘स्टेक होल्डर’ से मिलना, बात या सलाह-मशवरा करना जरूरी नहीं समझते हैं. जब जो मुंह में आता है, वह बोल देते हैं. उनके इस मुंहफट अंदाज और व्यवस्था के सर्वज्ञाता होने तथा सत्ता के अहंकार ने समस्त रेल अधिकारियों तथा कर्मचारियों सहित करोड़ों रेलयात्रियों को बेहद निराश किया है. रेलकर्मी मान रहे हैं कि इससे पहले जब केंद्र में भाजपा नीत सरकार सत्तारूढ़ हुई थी, तब भी भारतीय रेल को 9 से 16 जोन में बांटकर इसका बंटाधार किया गया था, अब वर्तमान में भी ऐसा ही कुछ होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. इस आशंका ने रेलवे के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों सहित सभी मान्यताप्राप्त श्रमिक संगठनों को भी चिंता में डाल दिया है.
केंद्र में भाजपा नीत सरकार के लगभग चार साल बीतने के बाद अब पूरे देश की जनता को और खासतौर पर रेलवे वालों को यह बात समझ में आ रही है कि भाजपा नीत सरकार बने-बनाए बुनियादी ढ़ांचों को तोड़ने-फोड़ने को ही शायद विकास मानती है. देश को इसकी पिछली सरकार का भी यही अनुभव रहा है, जब इसने कई राज्यों के साथ रेलवे के भी कई टुकड़े कर दिए थे. इससे देश और रेलवे का तो कोई भला नहीं हुआ, मगर टुकड़े हुए राज्यों में भाजपा को लंबे समय तक सरकार चलाने का राजनीतिक लाभ अवश्य मिला. जबकि 9 से 16 टुकड़ों में विभाजित होकर रेलवे का बंटाधार हो गया. अब पुनः वह भारतीय रेल के गौरव ‘छत्रपति शिवाजी महराज टर्मिनस’ (विक्टोरिया टर्मिनस) की ऐतिहासिक इमारत को म्यूजियम यानि मुर्दाघर बनाकर इससे छीनने और रेलवे की अपनी फोर्स (आरपीएफ) को इससे अलग करने की तैयारी कर रही है. इसके साथ ही समस्त संपत्ति सहित भारतीय रेल का पूरा ओचई, पीजीसीआईएल को सौंपने के बहाने इसका निजीकरण करने जा रही है. इसके बाद भारतीय रेल के सिग्नल एवं दूरसंचार विभाग, फिर रोलिंग स्टॉक एवं अन्य बुनियादी संपत्तियों की भी बारी आएगी.
रेलवे बोर्ड के अपने विश्वसनीय सूत्रों के माध्यम से ‘रेलवे समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार संपूर्ण संपत्तियों के साथ भारतीय रेल का पूरा ओवर हेड इक्विपमेंट (ओएचई), पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआईएल) को सौंपे जाने की तैयारी कर ली गई है. सूत्रों का कहना है कि ईडी/डेवलपमेंट से इसका प्रस्ताव बनकर रेलमंत्री की संस्तुति के लिए उनकी टेबल पर पहुंच चुका है. इसके अलावा रेलमंत्री ने एक मौके पर इस पर खुलकर अपना मंतव्य भी व्यक्त कर दिया है, जिससे रेलवे के सभी ‘स्टेक होल्डर्स’ की चिंता बढ़ गई है. उल्लेखनीय है कि स प्रस्ताव की पुष्टि कई जोनल महाप्रबंधकों ने भी ‘रेलवे समाचार’ से अन्तरंग बातचीत में की है. इस मामले में ‘रेलवे समाचार’ द्वारा की गई गहन छानबीन के बाद पता चला है कि विगत दिनों सेंटर फॉर रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन (कोर) के महाप्रबंधक को इस संबंध में रेलमंत्री द्वारा रेल भवन में तलब किया गया था और उनसे सभी चालू ओएचई टेंडर्स की वर्तमान स्थिति का ब्यौरा मांगा गया है.
सूत्रों का कहना है कि रेलमंत्री ने जीएम/कोर से सीधे कहा कि उन्हें भारतीय रेल का संपूर्ण ओएचई पीजीसीआईएल को सौंपना है, अतः ओएचई से संबंधित सभी चालू टेंडर्स की वर्तमान स्थिति 31 मार्च से पहले उनके पास पहुंच जानी चाहिए. बताते हैं कि इस पर जीएम/कोर ने कहा कि इतने कम समय में यह समस्त प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाएगी, क्योंकि पूरी भारतीय रेल के कई खंडों में तमाम टेंडर वर्क चल रहा है. इसके अलावा इसकी पूरी तैयारी करनी होगी और सभी संपत्तियों का ब्यौरा भी इकठ्ठा करना होगा. यह एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें काफी समय लगेगा, जिससे ऐसा कोई प्रस्ताव जून-जुलाई से पहले तैयार कर पाना बहुत मुश्किल है. बताते हैं कि इस पर रेलमंत्री काफी नाराज हो गए और कहा कि रेल अधिकारी हर काम के लिए महीनों समय लगाते हैं, यह निकम्मापन है, जिसे वह बर्दास्त नहीं करेंगे. किसी भी स्थिति में यह प्रस्ताव 31 मार्च से पहले उनके सामने हाजिर होना चाहिए.
रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि वास्तव में भारतीय रेल की यह करोड़ों-अरबों रुपये की संपत्ति पीजीसीआईएल को सौंपे जाने की तैयारी हो रही है, जिसकी एवज में पीजीसीआईएल द्वारा भारतीय रेल को कुछ लाख-हजार करोड़ रुपये दिए जाएंगे, जिसका इस्तेमाल कथित रूप से रेलवे के रिफार्म में किया जाएगा. उनका कहना है कि पीजीसीआईएल को भारतीय रेल की यह करोड़ों-अरबों रुपये की संपत्ति सौंपे या बेचे जाने के लिए भारतीय रेल के ही एक पीएसयू ‘राइट्स लि.’ को मोहरा बनाया जा रहा है, जबकि उसकी भूमिका बाद में पूरी तरह से नगण्य हो जाएगी. सूत्रों का कहना है कि ‘वैसे भी राइट्स भारतीय रेल के कार्यों को आउटसोर्स करके ही जीवित है, और भा. रे. की ही एक ‘परजीवी’ संस्था है. उसे ऐसी जेवी बनाने हेतु अपनी ‘क्रेडेंशियल’ पीजीसीआईएल को इस्तेमाल के लिए देने को कहा गया है. उनका कहना है कि तब तो बिलकुल भी नहीं, जब खुद मंत्री ही अपनी संस्था को बेचने पर पूरी तरह से उतारू हो और इसके लिए पूरा दबाव बनाया हुआ हो.’
सूत्रों का कहना है कि इसके लिए राइट्स लि. को कहा गया है कि वह पीजीसीआईएल के साथ एक संयुक्त उपक्रम (जेवी-जॉइंट वेंचर) कंपनी गठित करे. सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित योजना के अनुसार भारतीय रेल का संपूर्ण ओएचई टेकओवर करने के बाद पीजीसीआईएल द्वारा रेलवे को ही इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी (आउट सोर्सिंग) सौंप दी जाएगी. सूत्रों ने कहा कि इसका मतलब यह है कि भारतीय रेल अब अपने ही बनाए मकान में किराएदार होगी और मकान का सालाना करोड़ों रुपये किराया चुकाने के साथ ही इसके संपूर्ण रख-रखाव तथा समस्त जोखिम की जिम्मेदारी भी रेलवे को ही उठानी पड़ेगी. ऐसे में जब बुनियाद ही नहीं बचेगी, तब भारतीय रेल के पास बचेगा ही क्या?
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारतीय रेल का करीब 42% ट्रैक इलेक्ट्रीफाईड है, ‘कोर’ की वेबसाइट पर दिए गए टारगेट के अनुसार यह भी चालू वित्तवर्ष 2017-18 के अंत (31 मार्च) तक पूरा होने का लक्ष्य है. इसके अलावा जिस प्रकार सरकार की सभी योजनाओं का लक्ष्य 2022-23 रखा गया है, उसकी प्रकार भारतीय रेल के बाकी 58% ट्रैक का भी इलेक्ट्रिफिकेशन पूरा करने का लक्ष्य 2022-23 निर्धारित किया गया है. भारतीय रेल का संपूर्ण इलेक्ट्रिफिकेशन होने के बाद सालाना 10 हजार करोड़ रुपये (2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की कथित ऊर्जा बचत होने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि भारतीय रेल के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के रेलमंत्री के इस अस्वाभाविक प्रस्ताव को ‘भाजपाई’ अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय ने ही पीएमओ को एक लंबा नोट लिखकर पलीता लगा दिया है. पीएमओ ने देबरॉय के इस नोट को अब अध्ययन के लिए रेल मंत्रालय को भेजा है.
Electrification Targets of Indian Railways (As per CORE)
* Annual fuel savings after full electrification: Rs. 10,000 crore (US$2 billion).
* Target date for full electrification: Fiscal year 2022-2023.
* Completed by the end of FY2017-2018: 42 percent (28,000 rkm).
* Completed during FY2018-2019: 7,500 ekm target, 31,500 crkm remaining.
* Completed during FY2019-2020: 10,500 ekm target, 20,000 crkm remaining.
#ERKM- Electrified Rout Kilo Meter. #CRKM- Cumulative Rout Kilo Meter.
रेलमंत्री को रेल अधिकारी और कर्मचारी अपने विरुद्ध मानते हैं. इसका कारण यह बताया जा रहा है कि बहुत साल पहले आरडीएसओ के तत्कालीन अधिकारियों ने उनकी एक कथित फाउंड्री द्वारा बनाए गए किसी पार्ट, जिसे वह रेलवे में सप्लाई करना चाहते थे, को अपनी संस्तुति (अप्रूवल) नहीं दी थी, जिससे उनकी उक्त कथित फाउंड्री बंद हो गई थी. ‘रेलवे समाचार’ द्वारा आरडीएसओ में तत्संबंधी फाइल की बहुत खोजबीन कराई गई, मगर बताया गया कि बात बहुत पुरानी है, इसलिए रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, क्योंकि एक निश्चित समय के बाद पुराना रिकॉर्ड नष्ट कर दिया जाता है. तभी से वह रेल अधिकारियों से खार खाए हुए हैं और इसीलिए वह कदम-कदम पर रेल अधिकारियों को न सिर्फ नीचा दिखा रहे हैं, बल्कि उनकी सरेआम बेइज्जती भी कर रहे हैं. हालांकि इसके लिए हाल ही में उन्होंने एक श्रमिक संगठन के पदाधिकारियों के सामने माफी भी मांगी. समस्त ओएचई पीजीसीआईएल को सौंपे जाने के कथित प्रस्ताव की पुष्टि ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के महामंत्री कॉम. शिवगोपाल मिश्रा ने भी करते हुए कहा कि उन्हें इस प्रस्ताव की जानकारी है और वह ऐसा कभी होने नहीं देंगे. ऐसा ही विचार नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन के महामंत्री डॉ. एम. राघवैया ने भी व्यक्त किया है.
हालांकि ‘रेलवे समाचार’ ने इस संदर्भ में रेलवे बोर्ड के उच्च अधिकारियों से जब दरयाफ्त किया, तो उनका कहना था कि ‘ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है.’ तथापि जब उनसे यह कहा गया कि सुनने में आया है कि ईडी/डेवलपमेंट की तरफ से ऐसा एक प्रस्ताव बनकर रेलमंत्री की टेबल तक पहुंच गया है, तब इस पर उनका कहना था कि ‘ऐसा कुछ नहीं हुआ है.’ बहरहाल, इस पर ‘रेलवे समाचार’ ने संबंधित बोर्ड अधिकारियों को यह स्पष्ट कर दिया कि यदि उनके रहते रेलवे की एक भी बुनियादी संपत्ति का ऐसा कोई सौदा किया गया, तो रेलवे के साढ़े तेरह लाख कर्मचारी और अधिकारी न सिर्फ उनसे घृणा करने लगेंगे, बल्कि उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे और न ही उनके साथ कभी खड़े रहेंगे, क्योंकि जब बुनियाद ही नहीं बचेगी, तो उनका साथ देने कौन आएगा तथा भारतीय रेल ही तब कहां बचेगी? इसके अलावा रेलवे की बुनियाद बेच देने के इस बदनुमा दाग को लेकर वह बाकी जिंदगी कभी सुख-चैन से नहीं बिता पाएंगे.
इसके बावजूद 635 रेलवे स्टेशनों के विकास हेतु पुनः ‘अभिनव विचार आमंत्रित’ किया गया है. पता नहीं यह ‘लोकलुभावन शब्दावली’ कहां से और कौन चुनकर लाता है, जबकि इससे पहले 720 रेलवे स्टेशनों को निजी कंपनियों को लीज पर दिए जाने के मंत्री महोदय के तथाकथित ‘अभिनव विचार’ को किसी निजी कंपनी ने घास तक नहीं डाली थी और उनकी यह योजना पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई. अधिकारियों का कहना है कि इस बार भी ऐसा ही कुछ होगा और तब तक सरकार का कार्यकाल खत्म हो जाएगा. उन्होंने कहा कि उनका काम है कुछ न कुछ प्रस्ताव देकर सरकार के ‘अभिनव प्रयासों’ को हवा देते रहना है, जिससे कुछ न होने से कुछ होते रहते दिखते रहना चाहिए.
तथापि, इस अत्यंत गंभीर मुद्दे पर जब ‘रेलवे समाचार’ ने रेलवे बोर्ड के एक पूर्व मेंबर से उनकी प्रतिक्रिया पूछी, तो तपाक से उनका कहना था कि ‘जब घर के लड़के नालायक और निकम्मे हो जाएं, तो घर को धर्मशाला बना देने में ही समझदारी है, कम से कम घर तो बचा रहेगा.’ उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारतीय रेल को बरबाद करने के लिए सिर्फ सरकारों अथवा राजनीतिज्ञों को ही सारा दोष देना ठीक नहीं है, इसके लिए ‘घर के लड़के’ यानि भारतीय रेल की नौकरशाही (अधिकारी और कर्मचारी) भी जिम्मेदार हैं.
उनका कहना था कि दिल्ली में लंबे समय से बैठे और आगे भी लंबे समय तक बैठे रहने की जुगाड़ में लगे रहने वाले कुछ रेल अधिकारी, मंत्री और सरकार दोनों को गुमराह करते रहते हैं, जिससे उन्हें कोई आंच नहीं आने पाए. यही वजह है कि कोई ठोस योजना मंत्रियों के सामने नहीं रखी जाती है. उनका कहना था कि किसी ऐतिहासिक इमारत को म्यूजियम बना देने और आरपीएफ को गृह मंत्रालय में भेज देने जैसे बचकाने बयान मंत्री से दिलवाए जाते हैं, जिससे उनका ध्यान समस्याओं की असली जड़ों तक नहीं जा पाए. इससे किसी भी बुनियादी अथवा ढांचागत समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी अपना सौ प्रतिशत योगदान नहीं दे रहे हैं. सभी सुविधा-भोगी हो गए हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान सीआरबी पर किसी प्रकार का दाग नहीं है, वह प्रधानमंत्री के बाद प्रतिदिन लगातार 16-18 घंटे काम करके भारतीय रेल की दशा और दिशा सुधारने का महती प्रयास कर रहे हैं. कहा जाता है कि ऊपर वाले को देखकर नीचे वाले अपना आचरण सुधारते हैं और उसके नक्शे-कदम पर चलने का प्रयास करते हैं. परंतु जहां ऊपर की तरफ आज सब कुछ लगभग ठीक हो गया है, वहीं नीचे वाले उसका अनुसरण नहीं कर रहे हैं. इसके फलस्वरूप सीआरबी के कड़े परिश्रम और महती प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं. उनका कहना था कि यदि भारतीय रेल के सभी 13.36 लाख लोग अपने शीर्ष अधिकारी (सीआरबी) के साथ कदम से कदम मिलाकर उसका अनुसरण करना शुरू कर दें, तो रेलवे को प्रगति पथ पर लाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
पूर्व मेंबर, रेलवे बोर्ड की उपरोक्त बातों से ‘रेलवे समाचार’ शत-प्रतिशत सहमत है. रेलवे के सभी रेलकर्मियों और अधिकारियों सहित इसके सभी मान्यताप्राप्त श्रमिक संगठनों को भी अपने बेदाग छवि वाले परिश्रमी सीआरबी का अनुसरण करते हुए उनके प्रयासों में अपना पूरा योगदान देना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें सरकार या मंत्री के ऐसे सभी अनुचित प्रयासों तथा रेलवे को और ज्यादा बरबाद करने, इसे तोड़ने अथवा इसकी संपत्तियों को बेचने, महत्वपूर्ण और धरोहर इमारतों को मुर्दाघरों में तब्दील किए जाने का पुरजोर विरोध करने सहित अपनी फोर्स को बचाने के सभी संभव उपाय करने चाहिए. भारतीय रेल बचेगी, तभी उनका अस्तित्व भी बचेगा.