December 19, 2020

तीन मेंबर पैनल के बजाय सीवीओ ने अकेले लिया एवीओ उम्मीदवारों का साक्षात्कार

Supreme Court of India

#सीवीओ / #आईआरसीटीसी द्वारा किया गया सुप्रीम कोर्ट/रे.बो. के आदेशों का उल्लंघन

जिस डिप्टी सीवीओ के खिलाफ जारी है विजिलेंस जांच, साक्षात्कार में उसे साथ बैठाया

सुरेश त्रिपाठी

इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टुरिज़म कॉर्परेशन (आईआरसीटीसी) में एक एवीओ की पोस्ट के लिए कुछ दिन पहले साक्षात्कार लिया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस साक्षात्कार में कुल 12 उम्मीदवार बुलाए गए थे। पता चला है कि एक उम्मीदवार किसी विभागीय त्रुटि के चलते विधेल्ड हो गया। अतः 11 उम्मीदवारों को बुलाया गया था।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इन 11 में से भी एक उम्मीदवार कोरोना संक्रमित होने के कारण साक्षात्कार के लिए नियत तारीख को उपस्थित नहीं हो सका। अतः उसे छोड़कर बाकी 10 उम्मीदवारों का साक्षात्कार अकेले सीवीओ/आईआरसीटीसी ने लिया। कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए एक उम्मीदवार का साक्षात्कार 14 दिसंबर को लिया गया।

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि दोनों तारीखों में सीवीओ/आईआरसीटीसी ने अकेले सभी उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया। इन दोनों मौकों पर डिप्टी सीवीओ/आईआरसीटीसी भी उनके साथ साक्षात्कार में शामिल रहीं, जिनके विरुद्ध सीवीसी के निर्देश पर पहले ही रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा किसी विजिलेंस मामले में कोताही के लिए जांच की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के 31.10.2013 के आदेश के आलोक में किसी भी साक्षात्कार/पदोन्नति/स्थानांतरण के लिए तीन सदस्यों का पैनल होना आवश्यक है। इस पर रेलवे बोर्ड ने भी सभी जोनल रेलों, उत्पादन इकाईयों और रेल मंत्रालय के मातहत आईआरसीटीसी जैसे सभी सार्वजनिक उपक्रमों को दि. 21.09.2015 को पत्र संख्या ईएन(जी)1-2013/टीआर/7 जारी किया था।

आईआरसीटीसी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह कोताही आईआरसीटीसी के कार्मिक विभाग (एचआर डिपार्टमेंट) की है, क्योंकि रिक्तियों को भरने का नोटिफिकेशन वही निकालता है, तथा हर एक चयन प्रक्रिया का पैनल बनाने तथा कोर्ट एवं रेलवे बोर्ड के आदेशों का अनुपालन करने और करवाने की जिम्मेदारी भी उसी की है।

इसके अलावा, अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि पैनल के बारे में सीवीओ द्वारा एचआर से मुँहजबानी पूछा गया था, तब “यहां ऐसा ही होता है” यह कहकर एचआर द्वारा मामले को टरका दिया गया। तथापि सूत्रों का कहना है कि इस मुँहज़बानी दरयाफ्ती का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि इसका न तो कोई रिकार्ड मौजूद है, और न ही दूसरा पक्ष (एचआर) इसे मान्य करेगा।

सूत्रों का यह भी कहना है कि डिप्टी सीवीओ को साक्षात्कार में न तो खुद बैठना चाहिए था, और न ही सीवीओ को उन्हें अपने साथ बैठाना चाहिए था, क्योंकि इसका न तो कोई औचित्य था, न ही कोई लिखित आदेश जारी किया गया था। जबकि इसके पहले भी वह इसी तरह साक्षात्कारों में शामिल होती रही हैं। इस गैरकानूनी और अमान्य व्यवस्था को यहां परंपरा बना लिया गया है।

इसके अलावा, सूत्रों का कहना है कि जब उनके खिलाफ सीवीसी के आदेश पर स्वयं रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा जांच की जा रही है, तब वह ऐसी किसी चयन प्रक्रिया में वैसे भी भागीदार नहीं हो सकती थीं।

इसके अतिरिक्त सूत्रों ने उनकी एक और चालाकी या चालबाजी का रहस्योद्घाटन किया है। उनका कहना है कि किसी विजिलेंस मामले में उनके द्वारा बरती गई लापरवाही या कोताही की जांच का आदेश सीवीसी से तब आया था, जब सीवीओ की पोस्ट खाली थी। अपने खिलाफ जांच के इस आदेश को तब डिप्टी सीवीओ/आईआरसीटीसी न तो सीएमदी/आईआरसीटीसी के संज्ञान में लाई थीं, और न ही रेलवे बोर्ड को फारवर्ड किया था। उन्होंने इसे रेलवे बोर्ड को तब फारवर्ड किया जब वर्तमान सीवीओ का चयन फाइनल हो गया था, जबकि नियम के अनुसार सीवीओ की अनुपस्थिति में सीवीसी का यह निर्देश/आदेश तत्काल सीएमडी के संज्ञान में लाया जाना चाहिए था।

इस संदर्भ में अधिकृत जानकारी लेने और दूसरा पक्ष जानने के लिए जब सीवीओ/आईआरसीटीसी पराग अग्रवाल को उनके अधिकृत मोबाइल पर कॉल की गई, तो उन्होंने रेस्पांड करना जरूरी नहीं समझा। तथापि उन्हें भेजे गए व्हाट्सऐप मैसेज का भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

अधिकारियों का कहना है कि यदि वह ईमानदार हैं, और इसका दावा करते हैं, तो उन्हें अपना अधिकृत पक्ष रखना/बताना चाहिए था। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया है, या करना जरूरी नहीं समझा, अथवा किसी अन्य के कहने पर किसी उम्मीदवार विशेष का फेवर नहीं कर रहे हैं, तो यह माना जाएगा कि वह छद्म छवि का भ्रम बनाए हुए हैं!

इसके अलावा, इस संदर्भ में सीएमडी/आईआरसीटीसी को जब कॉल की गई, तो उन्होंने न सिर्फ रेस्पांड किया, बल्कि समुचित जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह मुख्यालय से बाहर हैं, सोमवार को ऑफिस पहुँचकर मामले की जानकारी लेने के बाद ही कुछ बता पाएंगे।

इसके बाद इस मामले की जानकारी प्रमुख कार्यकारी निदेशक/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड (पीईडी/विजिलेंस/रे.बो.) को भी दी गई। उन्होंने भी मामले में पूरी दरयाफ्त करने की बात कही है।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि रेलवे और इससे जुड़े लगभग सभी महकमों में कुछ अधिकारियों की पूरी मनमानी तो चल ही रही है, बल्कि कोई जवाबदेही नहीं है। उन्होंने स्वयं को व्यवस्था से ऊपर मान लिया है, क्योंकि कोई देखने-सुनने वाला नहीं है। ऐसे में यदि एक व्यक्ति विशेष का चयन होता है, तब यह मान लिया जाएगा कि जो आशंका 24 नवंबर के ट्वीट में व्यक्त की गई थी, वह सही है!

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