द.पू.म.रे.: निहितार्थी निर्णयों के कारण हासिल नहीं हुआ लोडिंग टारगेट
मंडल से मंडल में अधिकारियों के विवादास्पद तबादलों पर उठा सवाल
लोडिंग लक्ष्य से कम, मगर अर्निंग ज्यादा होने का दिया जा रहा कुतर्क
शीर्ष स्तर पर भयानक कदाचार और भ्रष्टाचार का लगाया जा रहा आरोप
सुरेश त्रिपाठी
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे सहित लगभग सभी जोनल रेलों के वाणिज्य एवं परिचालन विभाग और इनके वरिष्ठ अधिकारी अपने किसी न किसी विवादास्पद निर्णय के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं और इसीलिए अन्य विभागों के अधिकारियों की अपेक्षा सबसे ज्यादा बदनाम भी हैं. फिर वह चाहे उत्तर रेलवे हो या दक्षिण रेलवे अथवा दक्षिण पूर्व रेलवे हो या पश्चिम रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे इत्यादि लगभग सभी जोनल रेलों के वाणिज्य एवं परिचालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी या तो भ्रष्ट और लापरवाह हैं, या उनके निर्णय निहितार्थी होते हैं, जो कि रेलवे के हित में नहीं, बल्कि स्वयं या किसी मातहत को फेवर करने वाले होते हैं, इसीलिए विवाद का कारण बनते हैं.
इसके विपरीत, अन्य विभागों के अधिकारी, जो चुपचाप अपने गलत निर्णयों से रेलवे को करोड़ों का चूना लगा रहे होते हैं, और अपेक्षाकृत वाणिज्य एवं परिचालन विभाग के अधिकारियों से ज्यादा भ्रष्ट तथा कामचोर होते हैं, उनकी चर्चा यदाकदा ही होती है और उनकी भ्रष्ट करतूतों की जानकारी कभी-कभार ही बाहर आ पाती है. प्रमुख रेल यातायात नियोजक, रेलवे की सेफ्टी, सिक्यूरिटी और पंक्चुअलिटी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार तथा कमाऊ पूत होने के बावजूद वाणिज्य एवं परिचालन अधिकारी आपसी कलह और एकता की कमी के कारण पृष्ठभूमि में ढ़केल दिए गए हैं. वर्तमान में रेलवे की संपूर्ण कार्य-प्रणाली पटरी से उतर जाने के पीछे यह एक बड़ी वजह हो सकती है.
यह एक वास्तविकता है कि इन दोनों विभागों के अलावा रेलवे के अन्य सभी विभाग कमाने वाले नहीं, बल्कि सिर्फ खर्च करने वाले विभाग हैं. इस सबके बावजूद यदि वरिष्ठ वाणिज्य एवं परिचालन अधिकारी अपने विवेक से रेलवे के हित में वाजिब निर्णय नहीं ले रहे हैं, तो उसका नुकसान सिर्फ रेलवे को ही हो रहा है, जबकि इसका लाभ इन दोनों विभागों सहित कुछ अन्य विभागों के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को भी मिल रहा है. ऐसा ही एक विवादास्पद एवं अविवेकी निर्णय दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के वाणिज्य एवं परिचालन अधिकारियों की कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी (पीसीओएम) द्वारा लिया गया है, जिसका लाभ कुछ जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों सहित एक शीर्ष अधिकारी को भी मिलने की बात कही जा रही है. तथापि पीसीओएम अपने कुतर्कों से इसे स्वीकार करने से इंकार कर रहे हैं, जो कि नितांत स्वाभाविक है, क्योंकि कोई भी सरकारी अधिकारी अपने निर्णय को कभी गलत होना स्वीकार नहीं कर पाता है. फिर भले जाहिर तौर पर उसके उक्त निर्णय से संस्था का कितना भी बड़ा नुकसान अथवा किसी का फेवर ही क्यों न हो रहा हो!
द.पू.म.रे. द्वारा बुधवार, 4 अप्रैल को तीन ट्रैफिक अधिकारियों के तबादले किए जाने का आदेश जारी किया गया है. इनमें से वर्ष 2005 बैच का एक अधिकारी, जिसे पूर्व महाभ्रष्ट सीओएम एवं सीएफटीएम द्वारा वर्ष 2012 में मध्य रेलवे से ‘इंपोर्ट’ किया गया था, पिछले 13-14 वर्षों से लगातार न सिर्फ मंडल में ही पदस्थ है, बल्कि इस दौरान लगातार कमाऊ पोस्ट पर ही रहा है. इसको अब बिलासपुर मंडल के सीनियर डीओएम से नागपुर मंडल के सीनियर डीसीएम के पद पर भेजा गया है. यह अधिकारी पहले करीब तीन साल, वर्ष 2012-14 तक, नागपुर मंडल में सीनियर डीओएम और लगभग चार साल, वर्ष 2014-18 तक, बिलासपुर मंडल में सीनियर डीओएम के पद पर रहा है. जबकि उसकी जगह वर्ष 2008 बैच के अपेक्षाकृत काफी जूनियर और कम अनुभवी नागपुर मंडल के सीनियर डीओएम को बिलासपुर लाया गया है. इसके अलावा वर्ष 2009 बैच के नागपुर मंडल के सीनियर डीसीएम को वहीँ पर सीनियर डीओएम बना दिया गया है.
उपरोक्त ट्रांसफर/पोस्टिंग आर्डर में पीसीओएम अथवा कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी को कुछ गलत या किसी का फेवर अथवा किसी के साथ अन्याय होता नजर नहीं आ रहा है. जबकि उपरोक्त तीनों अधिकारियों में से किसी एक ने भी अब तक मुख्यालय का मुंह नहीं देखा है, यानि मुख्यालय में अब तक उनकी पोस्टिंग एक बार भी नहीं हुई है. ‘रेलवे समाचार’ द्वारा कॉल किए जाने पर उनका कहना था कि जूनियर अधिकारियों को ज्यादा समय तक मंडलों में काम करने का मौका दिया जाना चाहिए. उनकी इस बात से सहमत होते हुए भी जब उनसे यह कहा गया कि क्या अन्य अधिकारियों को मंडल में काम करने का अवसर नहीं मिलना चाहिए? इस सवाल पर कन्नी काटते हुए उन्होंने कहा कि विजिलेंस के अनुसार इनमें से किसी को एक ही पोस्ट पर दुबारा नहीं भेजा गया है.
उल्लेखनीय है की वाया विजिलेंस, विभाग प्रमुख बनने वाले ज्यादातर अधिकारी अपने गलत निर्णयों का औचित्य सिद्ध करने के लिए बात-बात पर विजिलेंस की आड़ लेते नजर आते हैं, जबकि जाहिर तौर पर उनका निर्णय गलत और रेलवे को नुकसान पहुंचाने के साथ ही किसी न किसी का फेवर करने वाला होता है. इस महत्वपूर्ण तथ्य के मद्देनजर जब ‘रेलवे समाचार’ द्वारा पीसीओएम से यह कहा गया कि विजिलेंस गाइडलाइन्स के अनुसार वाणिज्य एवं परिचालन विभाग के लगभग सभी पद संवेदनशील श्रेणी के हैं, ऐसे में एक अधिकारी को सीनियर डीओएम से पुनः सीनियर डीओएम के पद पर भेजना और एक सीनियर डीसीएम को उसी जगह कुर्सी बदलकर सीनियर डीओएम बना दिए जाने वाला उनका निर्णय किस प्रकार से विजिलेंस गाइडलाइन्स को चरितार्थ करता है? इस पर उनको कोई उचित जवाब देते नहीं बना.
पीसीओएम से यह भी सवाल किया गया कि जब नागपुर मंडल के सीनियर डीसीएम को वहीँ पर सीनियर डीओएम बनाया गया है, तो इसी तर्ज पर बिलासपुर मंडल के सीनियर डीसीएम को वहीँ पर सीनियर डीओएम क्यों नहीं बनाया जा सकता था? जबकि वर्तमान पोस्टिंग आर्डर में वहां पदस्थ किए गए अधिकारी से वह काफी सीनियर हैं. इसके अलावा सीनियर डीसीएम के पद पर कुल मिलाकर उनका कार्यकाल भी लगभग चार साल से ज्यादा हो चुका है. क्या यह विजिलेंस की तथाकथित गाइडलाइन्स का उल्लंघन नहीं है? इसके साथ ही अपेक्षाकृत वरिष्ठ अधिकारी को सीनियर डीओएम के पद पर काम करने का मौका तब क्यों नहीं मिलना चाहिए, जबकि अब तक उसे एक बार भी उक्त पद पर यह मौका नहीं मिला है अथवा नहीं दिया गया है?
इसके अलावा द.पू.म.रे. मुख्यालय में पदस्थ अपेक्षाकृत वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों, जिन्हें मंडलों में काम करने का पर्याप्त मौका अब तक नहीं मिल पाया है, को भी यह मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए था? इसके साथ ही यह कहां लिखा है कि जूनियर अधिकारियों को 15-20 सालों तक लगातार मंडलों में ही काम करने का मौका मिलना चाहिए? जबकि बताते हैं कि रेलवे बोर्ड से द.पू.म.रे. मुख्यालय के कुछ ट्रैफिक अधिकारियों को मंडलों में भेजे जाने का निर्देश दिया गया था और पीसीसीएम ने भी उपरोक्त ट्रांसफर/पोस्टिंग प्रस्ताव के विरुद्ध अपना ‘डिसेंट नोट’ दिया था. इसके बावजूद यदि रेलवे बोर्ड के निर्देश और पीसीसीएम के नोट को दरकिनार किया गया है, तो निश्चित रूप से इस वर्तमान ट्रांसफर/पोस्टिंग में किसी न किसी का फेवर और उससे लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया गया है. तथापि पीसीओएम विजिलेंस के अनुसार पोस्टिंग करने का कुतर्क देकर इससे अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
उपरोक्त वाजिब स्थितियों पर पीसीओएम ने कोई तर्कसंगत जवाब देने के बजाय ‘रेलवे समाचार’ पर यह तोहमत लगाने का प्रयास किया कि किसी अधिकारी विशेष को फेवर करने के लिए उक्त गैर-जरूरी(?) सवाल किए जा रहे हैं. जाहिर है कि ऐसी तोहमत लगाने का प्रयास वही अधिकारी करते हैं, जिनके पास अपने गलत निर्णयों का कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं होता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार उपरोक्त ट्रांसफर/पोस्टिंग प्रस्ताव की फाइल हाथोंहाथ ले जाई गई और जीएम की संस्तुति के फौरन बाद तत्काल आदेश जारी कर दिया गया. यही वजह है कि जल्दबाजी में संबंधित कार्मिक अधिकारी द्वारा उक्त आदेश में क्रमांक 2 एवं 3 के दोनों अधिकारियों को ‘सीनियर स्केल’ लिखा गया है, जबकि उन्हें ‘एडहाक जेएजी’ मिल चुका है.
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017-18 के लिए रेलवे बोर्ड ने जो फ्रेट लोडिंग टारगेट द.पू.म.रे. को दिया गया था, उसे हासिल नहीं किया जा सका है. प्राप्त जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड ने द.पू.म.रे. को 31 मार्च 2018 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कुल 190 मिलियन टन फ्रेट लोडिंग का टारगेट दिया था. परंतु यह टारगेट से 10 मिलियन टन कम यानि 180 मिलियन टन ही हो पाया है, जो कि पूर्व तट रेलवे द्वारा किए गए 182.7 मिलियन टन से भी कम है. इसके लिए पीसीओएम/द.पू.म.रे. यह कहकर कुतर्क कर रहे हैं कि यह टारगेट प्राप्त नहीं होने के बावजूद द.पू.म.रे. की टोटल अर्निंग ज्यादा हुई है. उनका यह भी कुतर्क है कि रेलवे बोर्ड ने द.पू.म.रे. को लोडिंग टारगेट इस बार ज्यादा दिया था. जबकि यह बात सर्वविदित है कि हर साल रेलवे बोर्ड द्वारा सभी जोनल रेलों का लोडिंग टारगेट कुछ न कुछ बढ़ाकर ही तय किया जाता है.
यह बात भी सर्वज्ञात है कि द.पू.म.रे. में फ्रेट लोडिंग और अर्निंग की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. यह भी सही है कि पिछले वर्ष इसकी लोडिंग पूरी भारतीय रेल में सबसे ज्यादा थी. मगर जब अपेक्षाकृत अक्षम, भ्रष्ट और हर फाइल अथवा हर मामले में अपना लाभ देखने तथा निहितस्वार्थी निर्णय लेने वाले अधिकारियों, इसमें फिलहाल पीसीओएम शामिल नहीं हैं, को यहां पदस्थ किया जा रहा है, और वे अपने बंगलों में 8-10 एसी लगाकर तथा स्ट्रीट लाइट से चोरी का कनेक्शन लेकर बिजली चोरी करने, बंगले के अनावश्यक रेनोवेशन पर डेढ़-दो करोड़ फूंक देने, ऑफिसर्स के लिए निर्धारित एक पूरे बंगले को धोबी घाट बनाने, रेलवे संपत्ति पर ब्यूटी पार्लर खोलने और रेलवे के समस्त संसाधनों का इस्तेमाल करके बीवी का जन्मदिन रेलवे के ही क्लाइंट के निजी होटल या रिसॉर्ट्स में मनाने इत्यादि जैसे कदाचारीपूर्ण आचरणों में लिप्त हों, तब उनसे रेलवे के हित में पूरे मनोयोग से काम करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. क्रमशः