उ.म.रे. में भ्रष्टाचार की होड़, सीएमडी द्वारा अधिकार का दुरूपयोग
बीसों साल बाद ट्रांसफर हुए डॉक्टरों को दी गई पुनः यथावत पोस्टिंग
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की खोखली नीति का उड़ रहा खुलेआम मजाक
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख/उ.म.रे.
इलाहाबाद : उत्तर मध्य रेलवे में डॉक्टरों के बीसों साल बाद किए गए ट्रांसफरलगभग चार महीने बाद रद्द करके उन्हें पुनः उनके पूर्व स्थानों पर पदस्थ कर दिया गया है. रेल कर्मचारियों के बीच इस खेल में भारी भ्रष्टाचार समाहित होने की चर्चा हो रही है. झांसी, आगरा और कानपूर से ट्रांसफर हुए किसी भी सीनियर डॉक्टर ने चार महीनों में अपनी नई जगह पर ज्वाइन नहीं किया था. तथापि रेल प्रशासन उनके विरुद्ध कोई भी कड़ा कदम नहीं उठा पाया. रेलकर्मियों का कहना है कि भ्रष्ट डॉक्टरों के सामने रेल प्रशासन पूरी तरह से नत-मस्तक हो गया है, जिससे इन भ्रष्ट डॉक्टरों की मनमानी चरमसीमा पर पहुंच गई है.
रेलकर्मियों का कहना है कि उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय सहित इसके तीनों मंडलों में लगभग चार महीने पहले मुख्य चिकित्सा निदेशक, महाप्रबंधक और संबंधित मंडलों के मंडल रेल प्रबंधकों के साथ ही सतर्कता विभाग द्वारा भी विभिन्न रेलवे अस्पतालों में किए गए निरीक्षण के दौरान कर्मचारियों एवं मेडिकल स्टाफ से जो शिकायतें पाई गई थीं, उन शिकायतों के आधार पर ही डॉक्टरों के ट्रांसफर आदेश जारी किए गए थे. उनका कहना है कि इतना लंबा समय इसलिए दिया गया कि जिससे संबंधित डॉक्टर अपना ट्रांसफर रद्द कराने के लिए अपनी-अपनी जुगाड़ अथवा सेटिंग कर लें. उनका कहना है कि इस मामले में भारी राशि की डील होने की चर्चा है.
रेलकर्मियों का कहना है कि सोमवार, 2 अप्रैल को उ.म.रे. मुख्यालय द्वारा जारी हुए आदेश को देखने मात्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सभी डॉक्टर्स को उनकी पुरानी जगहों पर ही चॉइस पोस्टिंग बहाल कर दी गई है, जिससे उन्होंने मिठाईयां बांटकर अपनी जीत पर भारी खुशियां मनाई हैं. उनका कहना है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का ढिंढोरा पीट रही वर्तमान सरकार की खोखली नीति का इन कदाचारियों ने अपना ट्रांसफर रद्द कराकर खुलेआम मजाक उड़ाया है. इसके अलावा रेलवे बोर्ड स्थित विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि डॉक्टरों की ट्रांसफर/पोस्टिंग के इस भ्रष्ट खेल में ‘रेलवे स्वास्थ्य सेवा निदेशालय’ के डीजी/आरएचएस सहित कुछ अन्य तथाकथित उच्च स्वास्थ्य अधिकारी भी लंबे समय से लिप्त हैं.
उन्होंने कहा कि झांसी, कानपुर, आगरा और इलाहबाद में बीस-पचीस वर्षों से एक ही जगह जमे हुए डॉक्टरों को मात्र छः महीनों के भीतर पुनः उनके पूर्व स्थानों पर यथावत पदस्थ करके रेल प्रशासन ने पूरी व्यवस्था का मजाक उड़ाया है. इससे यह सिद्ध होता है कि ‘सिस्टम’ में भ्रष्टाचार का खेल किस सीमा तक पहुंच चुका है. अन्यथा रेल प्रशासन की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि इन भ्रष्ट डॉक्टरों के बिना अस्पताल नहीं चल रहे थे? जबकि चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) के स्पष्ट आदेश के मद्देनजर इन सभी का ट्रांसफर किया गया था. ऐसे में सीआरबी के आदेश का क्या हुआ? उनका कहना है कि यदि बीसों साल से एक शहर, एक ही जगह बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के बड़ी मुश्किलों से हुए तबादलों को राजनीतिक दबाव में रद्द किए जाने से यह पूरी व्यवस्था एक मजाक बनकर रह गई है.
इसके अलावा रेलकर्मियों का यह भी कहना है कि एक लैब अधीक्षक के मामले में भी लंबी डील हुई है. उन्होंने बताया कि इस लैब अधीक्षक से इसकी कानपुर वापसी के लिए एक बिचौलिए के माध्यम से आवेदन लिया गया है. कथित तौर पर यह डील डॉ. मुरमुर द्वारा की जा रही है. हालांकि जल्दी ही इसका परिणाम भी सामने आ जाएगा. रेलकर्मियों ने इस लैब अधीक्षक का ट्रांसफर पुनः कानपुर किए जाने की संभावना जताई है. जबकि उक्त लैब अधीक्षक कानपुर चिकित्सालय में पिछले करीब 15 वर्षों से जमा हुआ था. इसके विरुद्ध हुई भ्रष्टाचार की तमाम शिकायतों के आधार पर इसका ट्रांसफर हाल ही में आगरा किया गया था. परंतु बताया जाता है कि जांच में लीपापोती कर दी गई है. रेलकर्मियों का यह भी कहना है कि इस लैब अधीक्षक की कानपुर वापसी के लिए युनियन पदाधिकारियों द्वारा भी रेल प्रशासन पर भरपूर दबाब बनाया जा रहा है.