‘अधिकारी पदोन्नति घोटाला’: रेलवे बोर्ड को ‘सुप्रीम’ फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे बोर्ड को दी अपनी हद में रहने की कड़ी हिदायत
रेलवे बोर्ड के सभी आदेशों/निचली अदालतों की कार्यवाही पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 15.12.2017 के आदेश को जारी रखने का दिया निर्देश
आदेशानुसार आरबीई-33 के आधार पर पदोन्नत प्रमोटी होंगे पदावनत
सीधी भर्ती अधिकारियों के लिए एडहॉक जेएजी प्रमोशन का रास्ता साफ
सुरेश त्रिपाठी
सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे अरबों रुपये के ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाला’ मामले में रेलवे बोर्ड की कारगुजारी का धीरे-धीरे पर्दाफाश होता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में 3 मई को लगभग एक घंटे चली सुनवाई के दौरान पीठ के दोनों विद्वान न्यायमूर्ति रेलवे बोर्ड और प्रमोटी संगठन के छिपे गठजोड़ को भली-भांति समझ गए. यही कारण है कि संक्षेप में उन्होंने बहुत बड़ा आदेश निर्गत किया है. इस आदेश में पटना हाई कोर्ट सहित विभिन्न कैट में चल रहे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के आदेश के साथ ही पीठ ने अपने 15 दिसंबर 2017 के पुराने आदेश को भी जारी रखने का निर्देश दिया है.
उल्लेखनीय है कि प्रमोटी अधिकारी संगठन ने प्रमोटी अधिकारियों के डिमोशन वाले रेलवे बोर्ड के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था और उस पर स्टे भी मांगा था. परंतु 15 दिसंबर 2017 के आदेश में प्रमोटी अधिकारी संगठन के आग्रह को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 मई 2016 के बाद कंफर्म्ड जेएजी प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों को भी सुरक्षा प्रदान नहीं की है. अर्थात किसी भी प्रमोटी अधिकारी को फिलहाल एड-हॉक जेएजी नहीं मिल पाएगा तथा जिनको 9 मार्च 2018 वाली वरीयता सूची से प्रमोशन मिला है, उनको भी डिमोट करना पड़ेगा.
चूंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह रोक सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों पर नहीं लगाई गई है, इसलिए 5 साल की सेवा पूरी कर चुके सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को अब तुरंत एड-हॉक जेएजी प्रमोशन देना पड़ेगा. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में इस विषय से संबंधित अन्य सभी मामलों का भी जिक्र किया गया है, जिन्हें विभिन्न कैट और हाई कोर्टों द्वारा प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में दिया गया था. अर्थात इस पूरे मुद्दे पर अब सुनवाई सिर्फ सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही की जाएगी. इस प्रकार निचली अदालतों द्वारा अब इस मुद्दे पर कोई संज्ञान नहीं लिया जा सकेगा.
सुप्रीम कोर्ट में 3 मई को हुई सुनवाई को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
1. सुप्रीम कोर्ट को जब यह बताया गया कि रेलवे बोर्ड ने 19 जनवरी 2018 को जारी किए गए एक पत्र के माध्यम से अदालत के 15 दिसंबर 2017 वाले आदेश को ओवर-राइड कर सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की भी पदोन्नति रोक दी है, तो इस पर आश्चर्य मिश्रित नाराजगी जाहिर करते हुए पीठ के दोनों जजों ने रेलवे बोर्ड की तरफ से पेश हुए एडीशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) से सख्त लहजे में कहा कि ‘रेलवे बोर्ड को अपनी हद में रहने की सलाह दें और साथ ही उन्हें ऐसे कृत्य के अंजाम से भी अवगत करा दें.’ सर्वोच्च अदालत के इस सख्त रवैये को देखते हुए एएसजी ने तुरंत हामी भर दी.
2. प्रमोटी अधिकारी संगठन के एडवोकेट और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) की तरफ से पेश हुए एएसजी सुनवाई के दौरान आईआरईएम के वैधानिक प्रावधान (स्टेट्यूटरी प्रोविजन) होने या नहीं होने वाले मुद्दे पर आपस में ही बहस करते हुए भिड़ गए. इस पर पीठ के दोनों जजों ने हस्तक्षेप (बीच-बचाव) करते हुए कहा कि आईआरईएम स्टेट्यूटरी प्रोविजन नहीं है, इस पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट के अनेकों आदेश आ चुके हैं.
3. आरबीई-33 पर पटना हाई कोर्ट से स्टे मिलने वाले आदेश पत्र को पढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ को पूरा मामला बखूबी समझ में आ गया कि रेलवे बोर्ड इस पूरे मुद्दे पर कोई बहुत बड़ा गोलमाल कर रहा है. इसलिए बिना मामले की तह में गए पीठ ने पटना हाई कोर्ट से संबंधित मामले को सीधे सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया.
4. प्रमोटी अधिकारी संगठन के एडवोकेट बार-बार यथास्थिति (स्टेटस-को) की अपील करते रहे, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उनकी एक भी नहीं सुनी तथा 15 दिसंबर 2017 वाले अपने आदेश को जारी रखने का निर्देश देते हुए रेलवे बोर्ड की तरफ से आए एएसजी से कहा कि रेलवे बोर्ड को समझाने की जिम्मेदारी आपकी है.
5. उक्त आदेश देने से पहले पीठ ने सीधी भर्ती वाले अधिकारियों की तरफ से प्रस्तुत हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से पूछा कि यदि 15 दिसंबर 2017 के आदेश को जारी रखा जाए, तो इस पर आपकी कोई आपत्ति तो नहीं है. इस पर मुकुल रोहतगी ने उक्त आदेश को जारी रखे जाने पर तत्काल अपनी स्वीकृति दे दी, क्योंकि उन्हें मालूम था कि इससे सीधी भर्ती वाले अधिकारियों के एड-हॉक जेएजी में पदोन्नति का रास्ता साफ हो जाएगा, जिससे ग्रुप ‘ए’ में पांच साल की सेवा पूरी कर चुके सीधी भर्ती अधिकारियों को जल्दी पदोन्नति मिल सकती है.
6. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि प्रमोटी अधिकारी संगठन के महामंत्री की याचिका पर जब सर्वोच्च अदालत से कोई रिलीफ नहीं मिली थी, तो अन्य संगठन के सदस्यों ने 17 कैट में डिमोशन वाले मुद्दे पर मामले कैसे दायर किए? इसलिए रेलवे में ग्रुप ‘ए’ में हुए इस गड़बड़झाले पर सर्वोच्च अदालत ने सभी मामले अपने तक सीमित करते हुए आदेश में कहा कि चूंकि इस पूरे मामले में कानून शामिल (लॉ इनवॉल्व) है, इसलिए सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफ्टर किए जाने का आदेश दिया जाता है.
7. सुनवाई के समय अदालत में एएसजी के आने पर रेलवे के अधिकारियों को उनकी अवमानना वाली गलती पर अब आगे सुप्रीम अदालत का क्या रुख होगा, यह फिलहाल कुछ दिन के लिए टल गया है. परंतु यदि आगे इसकी पुनरावृत्ति हुई, तो शायद अंजाम इससे भी बुरा हो सकता है.
8. सुप्रीम कोर्ट के रुख से अब यह तो लगभग तय हो गया है कि पांच साल की एंटी-डेटिंग सीनियरिटी वाले नियम का जाना तय है, क्योंकि नॉन-स्टेट्यूटरी नियम के माध्यम से किसी भी केंद्रीय मंत्रालय में एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का प्रावधान नहीं है.
फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन को मिली संजीवनी
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी 3 मई का आदेश फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन (एफआरओए) के लिए संजीवनी का काम कर गया है, क्योंकि सीधी भर्ती वाले अधिकारियों की पदोन्नति न होने से लगभग दरकिनार हो चुके इस अधिकारी संगठन को जीवनदान मिल गया है, जिससे 17-18 मई को होने वाली इसकी सर्वसाधारण बैठक और चुनाव में बड़ी संख्या में अधिकारी बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लेने वाले हैं.
इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन ने खोया अपना आधार
रेलवे बोर्ड द्वारा सितंबर 2016 में जारी सीनियर स्केल में पदोन्नति का 6 साल वाला नियम खत्म हो जाने से जूनियर स्केल में कार्य कर रहे तमाम प्रमोटी अधिकारियों का अपने जोड़तोड़ और साठ-गांठ करने वाले अकर्मण्य नेताओं से तो उसी समय मोह भंग हो गया था. इसके अलावा कैडर रिस्ट्रक्चरिंग 2018 ने इसकी बची-खुची कसर भी पूरी कर दी, क्योंकि लगभग 1000 सीनियर स्केल के पद खत्म कर दिए गए. अर्थात करीब 500 प्रमोटी अधिकारी इससे प्रभावित होंगे. परंतु प्रश्न यह उठता है कि इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन ने इसके लिए अपनी गुप्त सहमति क्यों दी?
इस पूरे घटनाक्रम से अब यह स्पष्ट हो गया है कि प्रमोटी अधिकारी संगठन धन तो सभी से इकठ्ठा करता है, परंतु काम सिर्फ जेएजी अधिकारियों के लिए ही करता है. इसका मुख्य कारण संगठन के लगभग सभी प्रमुख पदों पर प्रमोटी जेएजी अधिकारियों का ही कब्जा होना है. यह जेएजी अधिकारी वर्षों-वर्षों से इन प्रमुख पदों पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं. यही वजह है कि नई पीढ़ी को संगठन में काम करने का मौका नहीं मिल पा रहा है.
परंतु सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त आदेश के बाद अब प्रश्न यह भी उठता है कि प्रमोटी नेतृत्व ने सीमित अवधि के लाभ के लिए इतनी तिकड़मबाजी क्यों की? क्यों सभी कैडर को आरबीई-33 के माध्यम से गुमराह किया गया? सभी प्रमोटी अधिकारियों को सच्चाई से अवगत क्यों नहीं कराया जाता? पूरे कैडर को गुमराह करके कहीं और ज्यादा धन इकट्ठा करने की जुगत तो नहीं की जा रही है? इस पूरे प्रकरण पर प्रमोटी अधिकारियों को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.
बहरहाल, जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त बानगी को देखने के बाद रेलवे बोर्ड के मूढ़-मति अधिकारियों को अब थोड़ी अक्ल आ जानी चाहिए. ‘रेलवे समाचार’ से उनका स्पष्ट कहना था कि इससे पहले पटना हाई कोर्ट भी उच्च रेल प्रशासन की तिकड़मबाजी और कोर्ट के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना करने की उसकी गंदी नीयत को भांप कर कड़ी नाराजगी जाहिर कर चुका है. उनका कहना था कि राजनीतिक दबाव में स्थापित नियमों का उल्लंघन और पैसे की बदौलत की जा रही अंदरूनी सांठ-गांठ अब बहुत देर तक टिकने वाली नहीं है. अतः रेल प्रशासन को चाहिए कि वह न्यायसंगत व्यवहार करे और व्यवस्था की साख तथा न्यायालय की गरिमा को बनाए रखे.