April 7, 2019

रेलमंत्री की ‘निहित-महत्वाकांक्षाओं’ पर प्रधानमंत्री का ब्रेक

सीएसटी पर नहीं बनेगा रेलमंत्री का कथित विश्व-स्तरीय म्यूजियम

70 हजार करोड़ की ब्राजीलियन सिग्नलिंग योजना भी की गई निरस्त

रेलमंत्री के ईपीसी कॉन्ट्रैक्ट्स सिस्टम से रेलवे को होगा भारी नुकसान

देश को लूटने का नया ब्यूरोक्रेटिक कंसेप्ट है ईपीसी कॉन्ट्रैक्ट्स सिस्टम

प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से देश को होने वाला अरबों रु. का नुकसान बचा

सुरेश त्रिपाठी

रेलमंत्री पीयूष गोयल की विभिन्न ‘निहित-महत्वाकांक्षाओं’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रेक लगाकर पानी फेर दिया है. छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) की विश्व-धरोहर इमारत को अब म्यूजियम यानि ‘मुर्दाघर’ में तब्दील नहीं किया जा जाएगा. इसके भारी विरोध के बावजूद रेलमंत्री गोयल इस खूबसूरत और दर्शनीय इमारत को तथाकथित विश्व-स्तरीय रेल म्यूजियम में बदलकर कुछ निहितस्वार्थी तत्वों को लाभ पहुंचाना चाह रहे थे. इसके अलावा इस इमारत को कथित म्यूजियम में तब्दील करने का उनका अन्य कोई औचित्य नहीं हो सकता था.

मध्य रेलवे के ही नहीं, बल्कि पूरी भारतीय रेल के समस्त अधिकारी और कर्मचारीगण अपनी इस वेशकीमती इमारत को अपने से छिनते और अलग होते देखकर अत्यंत दुखी और नाराज थे, परंतु वे रेलमंत्री की जिद के सामने मजबूर नजर आ रहे थे. रेलकर्मियों की इसी नाराजगी को देखकर सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ (सीआरएमएस) के अध्यक्ष डॉ. आर. पी. भटनागर ने रेलमंत्री के निर्णय के खिलाफ लगातार एक महीने तक सीएसटी पर क्रमिक धरना दिया. इसके बाद भी जब उनकी कोई बात नहीं सुनी गई, तब उन्होंने 3 मार्च से अनिश्चितकालीन भूख-हड़ताल करने की घोषणा कर दी.

डॉ. भटनागर की उक्त घोषणा के बाद रेलवे बोर्ड को कुछ होश आया. इसके लिए बोर्ड में एक बैठक का आयोजन किया गया. इस बैठक में सीआरएमएस की तरफ से एनएफआईआर के महामंत्री डॉ. एम. राघवैया, अध्यक्ष गुमान सिंह, सीआरएमएस के अध्यक्ष डॉ. भटनागर, महामंत्री प्रवीण बाजपेई और रेल प्रशासन की तरफ से मेंबर स्टाफ डी. के. गायन, डीजी/पर्सनल आनंद माथुर, एडीशनल मेंबर स्टाफ मनोज पांडेय, ईडी/आईआर आलोक कुमार आदि अधिकारीगण शामिल थे. सीआरएमएस के महामंत्री प्रवीण बाजपेई के अनुसार इस बैठक में यह तय हुआ था कि जीएम ऑफिस के साथ ही प्रिसिपल सीपीओ ऑफिस को भी सीएसटी इमारत से नहीं हटाया जाएगा. जबकि उनकी मांग यह थी कि पूरी सीएसटी इमारत को म्यूजियम बनाने के बजाय रेलवे से अलग न करके रेलवे द्वारा ही सुरक्षित और संरक्षित किया जाए.

‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा’ की तर्ज पर इसके अगले हप्ते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलमंत्री पीयूष गोयल की सीएसटी इमारत को म्यूजियम में तब्दील करने कि उक्त कथित महत्वकांक्षी योजना को सिरे से नकार दिया और इसका कोई औचित्य नहीं होने का हवाला देते हुए पूरी योजना को खारिज कर दिया. बहरहाल, जिस भी तरह से रेलमंत्री की यह योजना खारिज हुई हो, परंतु जहां एक तरफ इसका पूरा श्रेय सीआरएमएस के संघर्ष को जाता है, वहीँ दूसरी तरफ मुंबई के कुछ बंदरछाप अंग्रेजी पत्रकारों को प्रधानमंत्री के इस निर्णय से एक बड़ी चपराक पड़ी है, जो कि सीएसटी को मुर्दाघर में तब्दील करने की रेलमंत्री पीयूष गोयल की योजना पर अनावश्यक हो-हो करके उनकी चापलूसी कर रहे थे.

दिल्ली के शानदार रेल म्यूजियम के अलावा लगभग सभी जोनल मुख्यालयों ने रेलवे की समस्त धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित रखा है. ऐसे में विश्व-धरोहर सीएसटी इमारत को एक और रेल म्यूजियम में तब्दील करने का कोई औचित्य किसी की भी समझ से परे था. प्रधानमंत्री ने उचित समय पर एक मजबूत कदम उठाकर न सिर्फ रेलवे के 13.50 लाख रेलकर्मियों की भावनाओं और संवेदनाओं को समझा, बल्कि उन्होंने अपने इस निर्णय से देश के करोड़ों जन-मानस की भावनाओं की भी कद्र की है. इस योजना के पीछे कुछ तो गलत हो रहा है, शायद प्रधानमंत्री को भी इन संकेतों का अहसास हो चुका था. इसके अलावा रेलमंत्री की इस योजना का यह भी संकेत जा रहा था कि वर्तमान सरकार रेल संपत्तियों का संरक्षण करने के बजाय उन्हें बेचने में ज्यादा रुची ले रही है. यह संकेत भाजपा नीत केंद्र सरकार की राजनीतिक रणनीति के भी विरुद्ध था.

रेलमंत्री पहले तो पूरी सीएसटी इमारत को ही म्यूजियम बना देना चाहते थे, परंतु जब मान्यताप्राप्त रेल संगठनों और ‘रेलवे समाचार’ की तरफ से विरोध दर्ज कराया गया, तब वह तल एवं पहली मंजिल लेने पर अड़ गए थे. जबकि मध्य रेल प्रशासन उन्हें रेलकर्मियों और जन-भावनाओं के हवाले से सिर्फ तल मंजिल लेने के लिए मना रहा था. तथापि वह इस पर मानने के लिए तैयार नहीं थे. उनका कहना था कि जीएम कार्यालय इस इमारत में रहने देकर वह रेलवे पर पर्याप्त मेहरबानी कर रहे हैं. ज्ञातव्य है कि मध्य रेलवे का नया मुख्यालय बनाने में करीब दो हजार करोड़ रुपये का खर्च संभावित था. जबकि ट्रांसफार्मर इत्यादि अन्य स्थापनाओं को शिफ्ट करने में ही रेलवे के लगभग 50 करोड़ रुपये खर्च हो रहे थे. उल्लेखनीय है कि महाप्रबंधक/म.रे. देवेंद्र कुमार शर्मा के व्यक्तिगत प्रयासों से विश्व धरोहर सीएसटी इमारत के संरक्षण के लिए रेलवे बोर्ड ने 41 करोड़ रुपये दिए हैं. जबकि सीएसआर के तहत विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों एवं बैंकों से भी इसके संरक्षण और रखरखाव के लिए पर्याप्त निधि उपलब्ध हो रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 70 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली ब्राजीलियन सिग्नलिंग योजना को भी लगे हाथों निरस्त करके रेलमंत्री पीयूष गोयल को एक बड़ा झटका दिया है. ट्रेन कंट्रोल सिस्टम लेवल-2 पर आधारित इस सिग्नलिंग प्रणाली को खारिज किए जाने के पीछे इसकी भारी-भरकम लागत बताया गया है. जबकि जानकारों का कहना है कि ब्राजील की यह प्रणाली भी उसी तरह से काफी पुरानी हो चुकी है, जैसे एलएचबी कोचों की तकनीक तब काफी पुरानी हो चुकी थी, जब इसको भारतीय रेल के लिए खरीदा गया था और भारतीय रेल के मैकेनिकल इंजीनियरों पर लानत इस बात की भेजी जा रही है कि वे अब तक इसकी झटके देने और हिचकोले खाने वाली कपलिंग को ठीक नहीं कर पाए हैं. उनका कहना है कि जिस तरह एलएचबी तकनीक खरीदने में तब करोड़ों-अरबों का भ्रष्टाचार किया गया था, उसी प्रकार का कदाचार अब इस अत्यंत महंगी ब्राजीलियन सिग्नलिंग प्रणाली को खरीदे जाने में भी होने के गहरे संकेत मिल रहे थे.

यह तो माना जाता है कि रेलमंत्री पीयूष गोयल मुंहफट हैं, मगर वह इस बात के अपवाद हो सकते हैं, क्योंकि मुंहफट होने के बावजूद उन्हें ईमानदार नहीं माना जाता है. कोयला मंत्रालय के साथ ही रेल मंत्रालय का पदभार संभालने के तुरंत बाद उत्तर रेलवे मुख्यालय बड़ोदा हाउस के सभागार में रेलवे बोर्ड के सभी उच्च अधिकारियों के साथ 7 सितंबर 2017 को हुई पहली बैठक में ही बतौर रेलमंत्री उन्होंने बिहार के मढ़ौरा में डीजल इंजन फैक्ट्री बंद कर देने का फरमान जारी कर दिया था. उनका यह फरमान सर्वप्रथम ‘रेलवे समाचार’ ने उक्त बैठक की मिनिट्स के साथ “अंतरराष्ट्रीय समझौता रद्द किए बिना क्या मढ़ौरा फैक्ट्री बंद करना संभव होगा?” शीर्षक से 16 सितंबर 2017 को प्रकाशित किया था.

ज्ञातव्य है कि एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत वर्तमान सरकार के पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने ही अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘जनरल मोटर्स’ के साथ मढ़ौरा में एक हजार डीजल इंजन और फ्रांस की ‘अल्स्टोम’ के साथ मधेपुरा में एक हजार विद्युत् इंजन बनाने का समझौता किया था. रेलमंत्री गोयल द्वारा बिना सोचे-समझे मढ़ौरा प्रोजेक्ट रद्द करने की घोषणा पर अमेरिका तत्काल भारत पर चढ़ दौड़ा था और जनरल मोटर्स का सीनियर वाईस प्रेसीडेंट अगले ही हप्ते भारत में था. इस पर गोयल को न सिर्फ मुंह की खानी पड़ी, बल्कि प्रोजेक्ट को जारी रखने की घोषणा करने के साथ ही उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी भी मंगनी पड़ी थी.

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने भारतीय रेल के संपूर्ण विद्युतीकरण (इलेक्ट्रिफिकेशन) की योजना को भी रद्द करके रेलमंत्री पीयूष गोयल को बड़ी चपराक लगाई है. कुछ बड़े उद्योग-घरानों को लाभ पहुंचाए जाने के कथित उद्देश्य से गोयल की यह योजना भी औचित्य के सिद्धांत के अनुरूप नहीं थी. विश्व के किसी भी देश ने अपनी रेलवे का संपूर्ण विद्युतीकरण नहीं किया है, क्योंकि रेलवे का संपूर्ण विद्युतीकरण पर्यावरण के लिए भारी नुकसानदेह तो है ही, बल्कि रेलवे की कार्य-प्रणाली के अनुरूप भी नहीं है. इसीलिए डीजल एवं विद्युत् उपयोग का एक औसत अनुपात प्रत्येक देश की रेलवे में आज भी बना हुआ है. अमेरिका और यूरोप में चार-पांच सौ वैगंस की मालगाड़ियां डीजल इंजन ही खींच रहे हैं, जबकि भारत में आज भी 60-65-70 वैगंस से ज्यादा की मालगाड़ी नहीं चलाई जा रही है.

इसी दरम्यान उपरोक्त योजना के एक भाग के रूप में रेलमंत्री गोयल ने भारतीय रेल के ओवर हेड इक्विपमेंट्स (ओएचई) को भी संपूर्ण संपत्ति के साथ पॉवर ग्रिड कारपोरेशन को सौंपने की तैयारी कर ली थी. जिस तरह पूरी भारतीय रेल का विद्युतीकरण करने की सोच भ्रष्ट मेंबर ट्रैक्शन के भ्रष्ट दिमाग की उपज थी, उसी प्रकार पूरा ओएचई पीजीसीआईएल को सौंपे की योजना भी मेंबर ट्रैक्शन के ही भ्रष्ट दिमाग की उपज मानी जा रही है. तथापि उनकी यह योजना रेलवे बोर्ड के स्तर पर ही धराशाई हो गई, क्योंकि इस मुद्दे पर रेलमंत्री को रेलवे बोर्ड से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसके कारण यह योजना उनकी टेबल से आगे नहीं बढ़ पाई थी. इस पर रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त संगठनों – नेशनल फेडरेशन ऑफ़ रेलवेमेंस और ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन – ने भी कड़ा विरोध जताया था. जबकि‘रेलवे समाचार’ ने “भारतीय रेल का पूरा ओएचई, पीजीसीआईएल को सौंपने की तैयारी” शीर्षक से 6 मार्च 2018 को प्रकाशित खबर के माध्यम से इस योजना का पूरा पर्दाफाश करके इसे देश और रेलहित के खिलाफ बताया था.

इसी प्रकार बिना सोचे-समझे आईपीएस के दबाव में आरपीएफ को केंद्रीय गृह-मंत्रालय के अधीन भेजे जाने और आरपीएफ कर्मियों तथा उनके मान्यताप्राप्त संगठन – ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन – के खिलाफ रेलमंत्री गोयल की धमकी भरी सार्वजनिक बयानबाजीन सिर्फ हजारों आरपीएफ कर्मियों के अनावश्यक उत्पीड़न एवं प्रताड़ना का कारण बनी, बल्कि रेलवे में भारी औद्योगिक अशांति का सबब भी बन गई. रेलमंत्री की इन ऊल-जलूल बयानबाजियों ने रेलवे के सभी मान्यताप्राप्त संगठनों को उद्वेलित कर दिया. रेलमंत्री का रेलवे के स्टेक होल्डर सभी मान्यताप्राप्त संगठनों के साथ कोई बैठक और समन्वय स्थापित न करना भी अब तक उनके दायित्व के विपरीत रहा है. जबकि देश-व्यापी हड़ताल को टालने के लिए 11 जुलाई 2016 को सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त संगठनों के साथ किए गए कर्मचारी हितों के समझौतों से सरकार का पूरी तरह मुकर जाना भी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. इससे लाखों रेलकर्मियों में वर्तमान सरकार के प्रति स्थाई रोष कायम हो गया है.

वर्तमान केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ भले ही खूब ढिंढोरा पिटती नजर आती है, मगर रेलवे में न तो तनिक भी भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही भ्रष्ट रेल अधिकारियों को संरक्षण मिलना बंद हो पाया है. यही कारण है कि इलेक्ट्रिकल कामकाज में बड़े पैमाने पर ईपीसी कॉन्ट्रैक्ट्स सिस्टम लागू किया जा रहा है, जिससे हजारों करोड़ के एकमुश्त बड़े-बड़े टेंडर जारी करके भारी कमीशन कमाया जा सकेगा. मेंबर ट्रैक्शन के भ्रष्ट आदेशों को नहीं मानने पर कोर के जीएम को बदल दिया गया, क्योंकि वह टेंडर्स की कंडीशन बदलने और दो-तीन साल की अवधि के जारी टेंडर्स को टर्मिनेट करने के नियम-विरुद्ध आदेश का पालन करने के लिए तैयार नहीं थे. औसत रूट किमी. की योग्यता को हटाकर अब जो टेंडर कंडीशन बनाई गई है, उनके अनुसार सिर्फ बड़ी कंपनियां ही उसके योग्य रह गई हैं, जबकि अब तक टेंडर लागत की 35% वित्तीय अथवा इतने ही रूट किमी की औसत योग्यता रखने वाली छोटी या जेवी फर्में इसके लिए योग्य थीं. अब सिर्फ 35% वित्तीय औसत रखकर इन तमाम छोटी-छोटी फर्मों को बाहर या बेरोजगार करके देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी को बढ़ावा दिया जा रहा है.