नई दिल्ली-विशाखापट्नम एक्सप्रेस में भीषण आग, तीन बोगियां स्वाहा
विद्युत्/यांत्रिक विभाग द्वारा रखरखाव में लापरवाही, शार्ट सर्किट से लगी आग
देखना यह है कि रेलवे बोर्ड किस विभाग को जिम्मेदार मानकर कार्रवाई करता है?
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख, एनसीआर
ग्वालियर : झांसी मंडल, उत्तर मध्य रेलवे के अंतर्गत 21 मई को बिरला नगर रेलवे स्टेशन से निकलकर बमुश्किल कुछ सौ मीटर आरओबी के पास पहुंची गाड़ी संख्या 22416 नई दिल्ली-विशाखापट्नम एक्सप्रेस की तीन बोगियों में भीषण आग लग गई. घटना में दो कोच पूरी तरह जल गए. उधर दिल्ली की ओर जाने वाली सभी ट्रेनें इससे प्रभावित हुईं. प्राथमिक जानकारी के अनुसार थ्री-एसी कोच में हुए शार्ट सर्किट के कारण यह आग लगी. यात्रियों द्वारा की गई चेन-पुलिंग के बाद ट्रेन को रोका गया और यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया. हालांकि कोई जनहानि होने की खबर नहीं है, तथापि यात्रियों का सामान नहीं निकाला जा सका, वह पूरी तरह जल गया. सूचना मिलने के तुरंत बाद जिला प्रशासन ने आसपास की तमाम दमकल गाड़ियां बुलाकर आग बुझाने में लगाई. करीब दो-तीन घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका.
उत्तर मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी गौरव बंसल के अनुसार जिन डिब्बों में आग लगी थी, उन्हें काटकर अलग कर दिया गया था, और उनके यात्रियों के लिए खाने-पीने और उनकी आगे की यात्रा का प्रबंध रेल प्रशासन द्वारा किया गया. यह भी बताया जा रहा है कि जिस बोगी में आग लगी, उसमें 37 डिप्टी कलेक्टर यात्रा कर रहे थे, जो ट्रेनिंग कर वापस लौट रहे थे. सूचना मिलने के बाद झांसी मंडल के अधिकारी भी घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. गौरव बंसल के अनुसार इस घटना की उच्च-स्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं. यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले डेढ़-दो सालों के दरम्यान झांसी मंडल के दायरे में हुई कुछ बड़ी दुर्घटनाओं के कारण झांसी मंडल खास सुर्खियों में रहा है.
यात्रियों का कहना है कि ट्रेन के अंदर मौजूद आग बुझाने के साधनों का उपयोग किया गया, लेकिन फिर भी आग नहीं बुझी और बढ़ती चली गई. कुछ यात्रियों का यह भी कहना था कि गाड़ी में उपलब्ध आग बुझाने वाले कई यंत्र काम नहीं कर रहे थे. घटना के बाद हजारों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. वहां काफी अफरा-तफरी का माहौल था, लोगों ने देखा कि सिवाय एक दमकल गाड़ी के अन्य दमकल गाड़ियां घटनास्थल पर नहीं पहुंच पा रही थीं. इससे आग बुझाने में काफी समय लगा और परेशानी का सामना भी करना पड़ा.
रेल प्रशासन सुरक्षा और संरक्षा के तमाम दावे करता रहता है, परंतु आए दिन हो रही इस तरह की घटनाएं उसके दावों की पूरी कलई खोल देती हैं. कुछ दिन पहले ही इटारसी रेलवे स्टेशन पर स्थित रेलवे रिफ्रेशमेंट रूम में लगी भयानक आग के कारण प्लेटफार्म नं.1 का पूरा स्थापत्य जलकर स्वाहा हो गया था. इसके पहले बिलासपुर मंडल के अंतर्गत एक चलती हुई मिलीटरी ट्रेन में भीषण आग लग गई, जिससे उसमें लदे तमाम मिलीटरी ट्रक जलकर खाक हो गए. पारपथन, आग और मानवरहित समपारों पर हो रही घटनाओं को देखते हुए रेल प्रशासन कुछ सतर्क तो हुआ है, परंतु जमीनी स्तर पर सुरक्षा एवं संरक्षा के पुख्ता इंतजामों और उनके अमल में भारी कोताही बरती जा रही है, यह इन घटनाओं के मद्देनजर सही साबित हो रहा है.
एसी बोगी में शार्ट सर्किट से लगी आग का सीधा मतलब है कि रेलवे के विद्युत् और यांत्रिक विभाग द्वारा कोचों के रखरखाव में भारी लापरवाही बरती जा रही है. यही नहीं, रेलवे के सभी चारों इंजीनियरिंग विभागों यथा- इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग, मैकेनिकल और एसएंडटी- के रेलवे इंजीनियर, जिन्हें अब ‘कांट्रेक्ट मेनेजर’ कहा जाने लगा है, जो कि पांच-दस साल पहले से ही एडवांस टेंडर करने और अपना कमीशन वसूलने में लगे हुए हैं. ‘रेलवे समाचार’ के पास इसके पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं. इस तरह का भ्रष्टाचार ही ऐसी दुर्घटनाओं की पृष्ठभूमि का वास्तविक कारण बताया जा रहा है. एक तरफ अंधाधुंध ब्लाक लेकर गाड़ियों की पंक्चुअलिटी का पूरा सत्यानाश कर दिया गया है, तो दूसरी तरफ ढ़ांचागत सुधार के नाम पर लिए जा रहे इन ब्लाकों की प्रॉपर मॉनिटरिंग न होने से इनका वास्तविक उद्देश्य विफल साबित हो रहा है.
प्राथमिक रूप से शार्ट सर्किट से कोच में आग लगने की बात सामने आने पर मैकेनिकल कैडर के एक पूर्व महाप्रबंधक का कहना है कि यदि यह बात सही है कि आग शार्ट सर्किट से लगी है, और यह बात जांच में भी सही साबित होती है, तो इसके लिए मैकेनिकल विभाग को दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि रेलवे बोर्ड के हाल ही में जारी निर्देशानुसार वर्तमान में संपूर्ण कोच के रखरखाव और मरम्मत की जिम्मेदारी मैकेनिकल विभाग की है. अतः विद्युत् विभाग के साथ ही संबंधित कैरिज एंड वैगन मेंटीनेंस डिपो के अधिकारियों और कर्मचारियों की भी जिम्मेदारी तय करते हुए उनके विरुद्ध अविलंब दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए.
इसके अलावा कई जानकारों का यह भी कहना है कि उनकी जानकारी में संभवतः अब तक रेल प्रशासन ने किसी भी एसी, स्लीपर अथवा जनरल कोच में धुआं निकलने पर सतर्कता अलार्म बजाने वाला यंत्र (स्मोक/फायर डिटेक्टर) नहीं लगाया है. इसका मतलब यह है कि भारतीय रेल की लगभग 19 हजार यात्री गाड़ियां (21 कोच की एक ट्रेन/रेक के औसत से करीब 3.99 लाख कोच) बिना स्मोक डिटेक्टर के ही मौत के डिब्बों के रूप में दौड़ रही हैं.
अपने स्रोतों से ‘रेलवे समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक आरसीएफ, कपूरथला द्वारा सिर्फ हमसफर एवं तेजस कोचों में ही यह स्मोक/फायर डिटेक्टर यंत्र लगाए गए हैं. जबकि पिछले करीब एक साल से आरसीएफ एवं एमसीएफ, रायबरेली द्वारा बनाए जा रहे नए मॉडर्न एलएचबी कोचों में उक्त यंत्र लगाए जाने का प्रावधान किया गया है. इसका सीधा तात्पर्य यह है कि बाकी किसी कोच में फायर अलार्म और स्मोक डिटेक्टर नहीं लगाए गए हैं. जो इंजीनियर मोबाइल चार्जिंग पॉइंट सही ढ़ंग से नहीं लगा सकते हैं, उनसे कोच की पूरी डिजाइन बनाने और कपलिंक को सुधारने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
जानकारों का यह भी कहना है कि हाल ही में विद्युत् एवं यांत्रिक विभाग के बीच जो इंटर डिपार्टमेंटल कार्य का बंटवारा रेलवे बोर्ड द्वारा किया गया है, उसे इन दोनों विभागों के कार्य के स्वरूप और परिस्थितियों को देखते हुए उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इससे दोनों विभागों के कर्मचारियों एवं अधिकारियों के बीच कार्य को लेकर उलझन, गड़बड़ी और अव्यवस्था पैदा हो रही है तथा साथ ही परस्पर जिम्मेदारी का पूरी तरह से घालमेल हो गया है.
कुछ अधिकारियों का कहना है कि रेल संरक्षा (रेलवे सेफ्टी) के प्रति सर्वाधिक लापरवाही और कोताही चार विभागों – मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल इंजीनियरिंग और एसएंडटी – द्वारा बरती जा रही है, जिसके तथाकथित इंजीनियर अधिकारीगण अब सिर्फ ‘कांट्रेक्ट मैनेजर’ बनकर रह गए हैं. उनका यह भी कहना था कि ऐसी आग की दुर्घटनाओं के लिए ट्रैफिक/कमर्शियल डिपार्टमेंट को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रेलवे बोर्ड इसके लिए किस विभाग को जिम्मेदार मानकर क्या कार्रवाई करता है?