पंक्चुअलिटी को लेकर कितना लापरवाह है रेल प्रशासन, एक बानगी
उच्च अधिकारियों की मनमानी, लापरवाही और कदाचार लगातार जारी
लगता है सीआरबी भी रेलवे के करप्ट सिस्टम के आगे हार मान चुके हैं?
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख, एनसीआर
कानपुर : पंक्चुअलिटी के साथ लापरवाही और अपने कर्तव्य के निर्वाह में रेलवे के उच्च अधिकारी कितने सतर्क और कर्तव्यपरायण हैं, इसकी एक बानगी कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर रविवार, 20 मई को देखने को मिली. ‘रेलवे समाचार’ को अपने स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर मध्य रेलवे, इलाहबाद मंडल के नए डीआरएम अमिताभ शनिवार, 19 मई से ही कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर अपना सैलून लेकर डेरा डाले हुए थे. डीआरएम साहब 19 मई को गाड़ी सं. 22431 में अपना सैलून (आरए) लगाकर करीब 17.30 बजे कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंचे थे.
डीआरएम साहब के कानपुर कार्यक्रम का नाम दिया गया था इलाहबाद-कानपुर सेक्शन की विंडो ट्रेलिंग और कानपुर में आरपीएफ बैरक तथा जीएमसी एरिया का निरीक्षण करना बताया गया था. कई रेलकर्मियों का कहना है कि कानपुर एरिया में रेलवे संबंधी घटनाओं की कवरेज सही ढ़ंग से करने वाला कोई समाचार रिपोर्टर नहीं है और न ही उन्हें रेलवे की बारीकियां की कोई समझ है, उन्हें बस इतना पता रहता है कि रात को चिकन और दारू की पार्टी कौन करा रहा है, उसी आधार पर यहां के अखबारों के रिपोर्टर्स की रिपोर्टिंग तय होती है. यही वजह है कि रेलवे के तमाम अधिकारी और कर्मचारीगण की यहां अक्सर मौज-मस्ती चलती रहती है और उसकी कोई खबर किसी को नहीं लग पाती है.
खैर, पता चला है कि डीआरएम साहब को इलाहाबाद में फिलहाल कोई बंगला अलॉट नहीं हुआ है, इसलिए वह अभी इलाहाबाद में रेस्ट हाउस में अकेले रह रहे हैं. इसीलिए वह लगभग हर सप्ताहांत में इंस्पेक्शन के नाम पर घूमने का प्रोग्राम कानपुर का बना रहे हैं और वह भी दो-दो दिन का. कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा कौन डीआरएम होगा, जिसके पास इतना फालतू समय है कि वह दो-दो दिन किसी एक स्टेशन पर गुजारे और मंडल मुख्यालय से बाहर रहे, वह भी सैलून लेकर?
कर्मचारियों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि पिछली बार डीआरएम महोदय जब पहली बार कानपुर आए थे, तब भी दो दिन रुके थे. उनका कहना है कि रेल मंत्रालय बिल्कुल ही पटरी से उतर चुका है, रेल अधिकारियों पर उसका कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रह गया है, उच्चाधिकारी अपने इंस्पेक्शंस को बेशर्मी के साथ जस्टिफाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल जब रेल मंत्रालय का निजाम बदला था, तब रेलकर्मियों को उससे बहुत उम्मीदें बंधी थीं, परंतु आज आठ महीने बीत जाने के बाद जो स्थिति सामने है, उससे ऐसा लगता है कि कोई भी शरीफ निजाम रेल मंत्रालय और भारतीय रेल की वर्तमान दुर्दशा को बदलने में सक्षम साबित नहीं हो सकता है. उनका कहना था कि भ्रष्टाचार चरम पर है और उच्च अधिकारियों की मनमानी लगातार जारी है, पक्षपाती और उठल्लू निर्णयों-नीतियों के कारण भ्रष्टाचारियों तथा कदाचारियों पर कोई लगाम नहीं लग पा रही है.
बात पंक्चुअलिटी को लेकर शुरू हुई थी, तो आगे की कहानी यह है कि रविवार, 20 मई को डीआरएम साहब का सैलून गाड़ी सं. 12308 में लगना था और यह गाड़ी 10.55 पर कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर आ भी गई थी, परंतु डीआरएम साहब के समय से न आने के कारण यह गाड़ी अनावश्यक रूप से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर विलंबित की गई और 11 बजे की इस गाड़ी को आधे घंटे की देरी से 11.30 बजे कानपुर से प्रस्थान कराया गया.
कई कर्मचारियों का कहना था कि सीआरबी साहब ने प्रोटोकॉल को पूरी तरह खत्म करने का निर्देश दिया था, परंतु पिछले दरवाजे (बैक डोर) से कागज पर बंद हुआ ये प्रोटोकॉल अभी भी चल रहा है. यहां डीआरएम साहब का ही ताजा उदाहरण देख लें, जिसमें उनके लश्कर (आरए-08887) में ही अधिकारियों और कर्मचारियों की कुल संख्या 15 के आसपास थी तथा कानपुर सेंट्रल पर यहां के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या भी लगभग 40 थी, अर्थात कुल करीब 50-60 कर्मचारियों-अधिकारियों का लश्कर केवल डीआरएम साहब की अगवानी और खातिरदारी में लगा हुआ था. उनका कहना था कि देखिये कि मानव संसाधन की यह कितनी बड़ी बर्बादी है, यदि यही स्टाफ अपने-अपने निर्धारित कार्यक्षेत्र में रहता, तो कम से कम कुछ तो कार्य रेलवे के लिए करता!
कर्मचारियों का सवाल है कि उच्च अधिकारियों अथवा मंडल प्रमुख की यह राजशाही आखिर क्यों? जबकि किसी कर्मचारी अथवा लोको पायलट की तनिक सी लापरवाही से यदि कोई गाड़ी थोड़ी सी भी लेट हो जाती है, या गलत जगह लगे सिग्नलों की कन्फ्यूजन में स्पेड हो जाता है, तो उसे फौरन टांग दिया जाता है. अब यह देखना है कि रेल प्रशासन डीआरएम साहब की उपरोक्त राजशाही के विरुद्ध क्या कदम उठाता है?
कर्मचारियों का कहना है कि चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी साहब ने जो जोश शुरू में दिखाया था, लगता है कि वह भी अब रेलवे के इस करप्ट सिस्टम के आगे हार मान चुके हैं, क्योंकि उन्हें ऐक्टिव तभी माना जा सकता है जब उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन न करने पर दोषी के विरुद्ध तुरंत कड़ी कार्यवाही की जाए. परंतु जमीनी स्तर पर ऐसा देखने में नहीं आ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अधिकारियों की मनमानी, लापरवाही और भारी कदाचार लगातार जारी है.
इलाहाबाद मंडल की अकर्मण्यता का एक और उदाहरण
इलाहाबाद मंडल, उत्तर मध्य रेलवे की अकर्मण्यता का एक और उदाहरण यह है कि इलाहाबाद और कानपुर सेंट्रल दोनों बड़े रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई से संबंधित कांट्रेक्ट जनवरी 2018 से खत्म हो चुका है और सफाई कांट्रेक्टर से एक्सटेंशन पर काम कराया जा रहा है. रेलवे बोर्ड की नई पालिसी के अनुसार उक्त दोनों स्टेशनों की साफ-सफाई का जिम्मा वाणिज्य विभाग से हटाकर मैकेनिकल विभाग के अंतर्गत कार्यरत विंग ईएनएचएम के हवाले किया गया है. लापरवाही की हद यह है कि कांट्रेक्ट अवधि बीतने के पांच महीने बाद भी अब तक किसी पार्टी को टेंडर अवार्ड नहीं किया गया है. ईएनएचएम द्वारा दो-दो बार टेंडर की प्रक्रिया तकनीकी खामी के कारण रद्द की जा चुकी है. यही कारण है कि हाल के एक सर्वे में कानपुर सेंट्रल स्टेशन देश का सबसे गंदे रेलवे स्टेशनों में शुमार हुआ है.
इस संबंध में रेलकर्मियों का कहना है कि अब इतनी बड़ी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है, जबकि साफ-सफाई प्रधानमंत्री के प्रमुख एजेंडे में है. उनका कहना है कि रेल प्रशासन द्वारा आखिर में प्यास लगने पर ही कुंआ क्यों खोद जाता है? इसकी योजना पहले से क्यों नहीं तय की जाती है? ये रेलवे में व्याप्त अस्त-व्यस्त सिस्टम की एक झलक मात्र है. उन्होंने कहा कि रेलमंत्री महोदय और रेल मंत्रालय इस प्लान में व्यस्त हैं कि आने वाले 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर ट्रेनों में नॉनवेज खाना नहीं परोसा जाएगा. गोया ये लोग रेल परिवहन के बजाय कैटरिंग का व्यवसाय कर रहे हैं. जहां रेलवे की मूलभूत आवश्यकताओं के सुधार की जरुरत है, वहां पर ये लोग ऐसे आलतू-फालतू कार्यों और फर्जी निरीक्षणों से लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से डाइवर्ट कर रहे हैं.