राष्ट्रपति ने अनूप सत्पथी को मामूली दंड से भी साफ बरी किया
अनूप सत्पथी को आखिर 9 साल बाद मिला उचित न्याय
केस था 2003-04 का, मेजर चार्जशीट दी 2009 में, माइनर में बदला 2014 में, फाइनल हुआ 2019 में
सुरेश त्रिपाठी
रेलवे बोर्ड के खास सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वरिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी अनूप सत्पथी को 9 साल बाद भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनको मिले दो महीने का इंक्रीमेंट बंद करने के मामूली दंड को भी खारिज करते हुए बाइज्जत बरी कर दिया गया है। श्री सत्पथी वर्तमान में रेलवे के एक अत्यंत कमाऊ उपक्रम ‘कंटेनर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (कांकोर) की नागपुर यूनिट में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।
उल्लेखनीय है कि श्री सत्पथी को यह दंड उस समय के अपने वरिष्ठ अधिकारियों के कंट्रोल मैसेज द्वारा दिए गए आदेश के पालन और एक स्टेशन मास्टर को कथित रूप से दो बार निलंबित करने जैसे सामान्य प्रशासनिक निर्णयों के लिए दिया गया था, जब वे चक्रधरपुर मंडल में बतौर सीनियर डीओएम कार्यरत थे।
ज्ञातव्य है कि श्री सत्पथी के विरुद्ध यह बोगस एवं निरर्थक विजिलेंस केस दक्षिण पूर्व रेलवे में एसडीजीएम के पद पर लगभग दस साल तक रही तत्कालीन ‘पाप की गठरी’ उर्फ पपिया लाहिड़ी (IRAS) ने बनाया था और इस पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के तत्कालीन अहंमन्य एसडीजीएम असित चतुर्वेदी ने अमल सुनिश्चित करवाया था तथा इस साजिश में इन सब के साथ रेलवे बोर्ड के तत्कालीन ईडी/ट्रैफिक/विजिलेंस सहित उड़िया लाबी के कुछ अन्य वरिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी भी शामिल थे।
यह पूरा मामला वर्ष 2003-04 का था, जब श्री सत्पथी, सीनियर डीओएम, चक्रधरपुर मंडल, दक्षिण पूर्व रेलवे के पद पर कार्यरत थे। इस मामले में उन पर अपने तत्कालीन सीओएम द्वारा दिए गए कंट्रोल मैसेज पर अमल करने का आरोप लगाया गया। ऐसे में यह पूरा मामला अपने-आप ही बहुत बड़ी मूर्खता को दर्शाता है। इसके अलावा एक स्टेशन मास्टर को दो बार निलंबित करने का आरोप भी श्री सत्पथी पर लगाया गया, जो कि पूरी तरह से निराधार था।
इस मामले में श्री सत्पथी को वर्ष 2009 में मेजर पेनाल्टी चार्जशीट जारी की गई थी। तत्पश्चात इसे वर्ष 2014 में काफी हील-हुज्जत के बाद रेलवे बोर्ड ने माइनर पेनाल्टी चार्जशीट में बदल दिया था। इस पूरे मामले की जांच रिटायर्ड सीसीआरएस राजामणि ने की थी, जिनकी पूरी सर्विस ही सेफ्टी मामलों और नियमों की जांच करते गुजरी थी। उन्होंने इस पूरे मामले की जांच पूरी ईमानदारी से की थी और निष्कर्ष स्वरूप उन्होंने जांच में श्री सत्पथी को कहीं भी दोषी नहीं पाया था और उन्हें निर्दोष घोषित किया था।
यह शायद ऐसा पहला मामला था जिसकी जांच में खुद संबंधित विजिलेंस इंस्पेक्टर ने भी श्री सत्पथी को अपनी पूरी जांच में कहीं भी दोषी नहीं पाया था और उसने भी अपनी रिपोर्ट में श्री सत्पथी को निर्दोष करार दिया था। इसके अलावा एस.सी.जेठी, एस.एन.अग्रवाल एवं इंद्र घोष, जिनके साथ श्री सत्पथी ने काम किया था और जो जोनल जीएम से होकर रेलवे बोर्ड से रिटायर हुए हैं, जिन्हें पैसे से खरीदा नहीं जा सकता, ने भी उन्हें निर्दोष माना था।
तमाम उठा-पटक और किसी भी तरह से श्री सत्पथी को दोषी ठहराए जाने की अथक कोशिशों के बावजूद कहीं से भी यह मामला पुख्ता साबित नहीं हुआ। अहंमन्य असित चतुर्वेदी के बाद द.पू.म.रे. के एसडीजीएम बनकर आए राजीव चौधरी, जो कि वर्तमान में जीएम/उ.म.रे. हैं, ने भी माना था कि पूरा मामला बोगस है और यह न सिर्फ जल्दी बंद हो जाना चाहिए, बल्कि इसमें श्री सत्पथी को पूरी तरह बरी भी किया जाना चाहिए। तथापि उड़िया लाबी की साजिशों और विजिलेंस की अहंमन्यता के चलते तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक रेलवे बोर्ड देवीप्रसाद पांडेय ने श्री सत्पथी को दो महीने की वेतन वृद्धि रोकने का दंड दिया।
इस अन्याय के खिलाफ श्री सत्पथी ने रेल मंत्रालय से लेकर कोर्ट तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। मुंबई कैट ने पहली ही सुनवाई में पूरी विभागीय कार्रवाई पर स्टे ऑर्डर दे दिया था। तथापि लाबी की कुचालों के चलते और तत्कालीन जीएम इंद्र घोष द्वारा करीब तीस पेज का लंबा-चौड़ा जस्टीफिकेशन लिखकर उन्हें पूरी तरह बरी किए जाने के बावजूद एमटी देवीप्रसाद पांडेय ने उनको दो माह की वेतन वृद्धि रोकने का दंड इसलिए दिया था, क्योंकि पपिया लाहिड़ी के पाप, उड़िया लाबी की साजिशों और विजिलेंस की नाक का सवाल था।
श्री सत्पथी को भली-भांति जानने वाले कई ट्रैफिक अधिकारियों का कहना था कि हालांकि इस मामूली दंड से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था, परंतु एक ईमानदार और पूरी तरह से निर्दोष अधिकारी के कैरियर पर यह मामूली दिखने वाला दंड भी एक बड़ा धब्बा था।
उनका यह भी कहना था कि इसीलिए श्री सत्पथी जैसा एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी इसे दंड को हजम नहीं कर सकता था और यही कारण था कि उन्होंने इसके विरुद्ध राष्ट्रपति को अपील की। यह सुखद है कि श्री सत्पथी को अब उचित न्याय मिला है। परंतु इस दरम्यान श्री सत्पथी जैसे एक अत्यंत परिश्रमी और हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहने वाले अधिकारी के नौ कीमती साल अनावश्यक जाया हो गए।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि श्री सत्पथी के साथ हुए इस अन्याय के संबंध में एक विस्तृत खबर तब रेलवे की एक्सक्लूसिव कवरेज करने वाले ‘रेलवे समाचार’ ने प्रकाशित की थी।