पैंट्रीकारों में स्वच्छता का आभाव, रेलनीर की आपूर्ति नहीं

जेडआरयूसीसी सदस्यों द्वारा किए गए निरीक्षण में पाई गई खामियां

अहमदाबाद : पश्चिम रेलवे की जोनल रेलवे उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति (जेडआरयूसीसी) के सदस्य योगेश मिश्रा एवं किंजल पटेल ने शनिवार, 29 जून को अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर आने वाली लगभग सभी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों की पैंट्रीकारों का निरीक्षण किया. इस निरीक्षण में विभिन्न यात्री गाड़ियों की पैंट्रीकारों में उन्होंने देखा कि वहां रेलनीर की आपूर्ति नहीं थी. इसके अलावा सभी पैंट्रीकारों में साफ-सफाई और स्वच्छता का भारी आभाव देखने को मिला.

दोनों सदस्यों ने पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक अनिल कुमार गुप्ता और मंडल रेल प्रबंधक, अहमदाबाद दीपक कुमार झा को अपने इस निरीक्षण से संबंधित भेजी गई एक रिपोर्ट में उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया है कि अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर आने वाली सभी ट्रेनों में खाने के उपयोग में लिए जाने वाले पानी में स्वच्छता का अभाव देखने को मिला.

अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि पैंट्रीकारों में यात्रियों के खाने लिए बनाई जाने वाली सब्जियों, विशेषकर के आलू का स्तर बहुत ही निम्न प्रकार का पाया गया है. उन्होंने इसकी कई तस्वीरें भी साथ में भेजी हैं. इसके अलावा जिस सड़ी और कीड़े लगी हुई लौकी की फोटो उन्होंने भेजी है, वह किसी भी तरह इंसानों के खाने लायक नहीं दिखाई दे रही है.

जेडआरयूसीसी सदस्य योगेश मिश्रा एवं किंजल पटेल ने महाप्रबंधक से यात्रियों के हित में उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पैंट्रीकारों में सप्लाई किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की नियमित जांच कराए जाने का अनुरोध किया है. उन्होंने पैंट्रीकारों में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के साथ ही वहां से यात्रियों को परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता की भी नियमित जांच किए जाने को कहा है.

यह बात सही है कि रेल मंत्रालय ने भले ही चलती गाड़ियों में यात्रियों के खानपान के प्रबंधन की समस्त जिम्मेदारी आईआरसीटीसी को सौंप दी है, मगर इससे यात्रियों को न तो क्वालिटी फूड की आपूर्ति हो रही है, न ही उनके निरीक्षण की कोई उचित व्यवस्था कायम की गई है, और न ही यात्रियों को निर्धारित कीमत पर भोज्य-सामग्री तथा अन्य खाद्य-पदार्थ उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इसके बजाय यात्रियों को जमकर लूटा जा रहा है. यात्रियों की शिकायतों का न तो उचित निवारण किया जा रहा है, और न ही उन्हें कोई संतोषजनक जवाब दिया जा रहा है. गाड़ियों में रेलनीर की आपूर्ति नगण्य है, जबकि रेलवे बोर्ड के आदेश से यह अनिवार्य किया गया है.

उपरोक्त तमाम लापरवाही का एकमात्र कारण यह है कि आईआरसीटीसी ने खानपान की पूरी जिम्मेदारी खुद उठाने के बजाय दूसरे वेंडर्स को सब्लेट करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली है. यात्रियों द्वारा की जाने वाली शिकायतों पर वेंडर पर दिखावे के लिए कोई मामूली दंड राशि थोपकर वह अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ लेते हैं. जबकि मुख्य वेंडर होने के नाते रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) को चाहिए कि वह आईआरसीटीसी पर ऐसी प्रत्येक यात्री शिकायत पर भारी दंड राशि का जुर्माना लगाए, स्थिति में तभी कोई सुधार की उम्मीद की जा सकती है.

इसके अलावा इस कोताही का एक और कारण रेलवे की खानपान सेवाओं में भारी भ्रष्टाचार भी है. इसका उदाहरण भी योगेश मिश्रा एवं एक अन्य सदस्य मेहुल व्यास ने ट्विटर पर दिया है. उन्होंने आईआरसीटीसी और रेल प्रशासन से पूछा है कि जो अमूल फ्लेवर्ड मिल्क बाजार में 20 रुपये के एमआरपी पर उपलब्ध है, वही मिल्क रेलवे स्टेशनों और रेलगाड़ियों में 30 रुपये में क्यों बेचा जा रहा है?

इस पर आईआरसीटीसी के धूर्तो द्वारा उनसे प्रमाण सहित ट्रेन नंबर एवं अन्य जानकारी मुहैया कराने के लिए कहा गया. इसे धूर्तता नहीं, तो क्या कहा जाना चाहिए? रेल प्रशासन और रेलमंत्री यात्री सुविधाओं का बोगस ढिंढोरा पीटने के बजाय यदि यात्रियों की शिकायतों का उचित संज्ञान लें, और निरीक्षण एवं कार्रवाई की कठोर व्यवस्था कायम करें, तो शायद रेलयात्रियों और रेलवे का ज्यादा भला होगा.