कानपुर सेंट्रल स्टेशन की साफ-सफाई के ठेकेदार हैं हेल्थ इंस्पेक्टर?

Kanpur Central Railway Station

परिणामस्वरूप प्रतिदिन 100-125 कम लगाए जा रहे हैं सफाईकर्मी

नतीजा : प्रतिदिन रेलवे राजस्व को लग रहा है लाख रुपये का चूना

इलाहाबाद मंडल की लचर कार्य-प्रणाली और मुगालते में पीसीसीएम

प्रयागराज ब्यूरो : रेल प्रशासन अपने बड़े रेलवे स्टेशनों के रखरखाव और विकास का ठेका निजी कंपनियों को सौंप रहा है, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है. वैसे भी अब स्टेशनों के लगभग 70 प्रतिशत से ज्यादा कार्य आउटसोर्सिंग के माध्यम से ही किए जा रहे हैं. भले ही इसमें ठेकेदार और रेलवे के बीच आउटसोर्सिंग का कर्मचारी पिस रहा है. न तो उसे न्यूनतम वेतन मिल रहा है, और न ही निकट भविष्य में उसे स्थाई रोजगार का कोई आसरा है. ठेकेदार बैंकों और रेल अधिकारियों से सांठगांठ करके कर्मचारी के खाते का नियंत्रण स्वयं कर रहा है और महीने का निर्धारित वेतन न्यूनतम 15 हजार रुपए के बजाय 7-8 हजार रुपये कर्मचारी को दे रहा है, जो विरोध करता है, उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

इसी क्रम में उल्लेखनीय है कि उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) के कानपुर और इलाहाबाद रेलवे स्टेशनों का ठेका भी निजी कंपनियों के हाथों सौंप दिया गया है. ऐसे में इस खबर का संदर्भ भी इन्हीं दोनों स्टेशनों का है. यह सर्वविदित है कि यदि भारतीय रेल के सबसे ‘नकारा मंडल’ की बात की जाए तो इसमें इलाहाबाद मंडल अव्वल रहेगा. यहां अधिकांश अधिकारियों का काम रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों को सिर्फ ऊपर से नीचे तक अग्रेषित करना ही रह गया है.

ऐसे में यदि इलाहाबाद और कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन की साफ-सफाई, पार्किंग, सुरक्षा व्यवस्था और डेवलपमेंट के ठेके यदि निजी कंपनी को दिए जा रहे हैं, तो इसमें कोई हाय-तौबा नहीं होनी चाहिए. कम से कम रेलवे को इससे एकमुश्त रकम तो मिल रही है, क्योंकि जिन क्षेत्रों को निजी कंपनी के हवाले किया जा रहा है, उनको बनाए रखने में रेलवे को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है और भ्रष्टाचार के कारण जो फायदा रेलवे को होना चाहिए, वह कुछ रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को हो रहा है.

ताजा उदाहरण कानपुर सेंट्रल स्टेशन की साफ-सफाई का ठेका निजी एजेंसी सेंगर सर्विसेज, ग्वालियर की फर्म को दिए जाने का है. यह ठेका दो साल के लिए 14.50 करोड़ रुपये में दिया गया है. इसमें भी पूरे स्टेशन की साफ-सफाई शामिल नहीं है. ऐसा जानबूझकर किया गया है, क्योंकि इसके आधार पर विभागीय सफाई कर्मचारियों को यहां रोके रखने का उद्देश्य निहित है, जो अधिकारियों और सुपरवाइजरों के घरों में काम कर रहे हैं, जबकि कागजों में इनकी ड्यूटी स्टेशन पर दिखाई जा रही है. यह परंपरा अभी भी जारी है.

स्टेशन की साफ-सफाई का विषय जब वाणिज्य विभाग के अधीन था, तो यही ठेका मात्र 3.5 करोड़ रुपये का था. अब जब यह मैकेनिकल विभाग को सौंपा गया है, तो इसका रेट चार गुना बढ़ गया है. किसी ने भी इसके औचित्य की समीक्षा करने की जहमत नहीं की. अब इसका नियंत्रण ईएनएचएम विंग के पास है, जिसके तहत इलाहाबाद में बैठकर कानपुर सेंट्रल का काम देखा जा रहा है. अब सारा खेल ही यहीं से शुरू होता है.

निर्धारित 264 सफाईकर्मियों की जगह लगते हैं मात्र 100-150 सफाईकर्मी

विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार ठेकेदार द्वारा यहां का काम स्टेशन के स्वास्थ्य निरीक्षकों को ही सौंप दिया गया है, यानि हेल्थ इंस्पेक्टर ही मुख्य ठेकेदार के उप-ठेकेदार बन गए हैं और वही लोग स्टाफ का प्रबंधन भी करते हैं तथा प्रतिदिन निर्धारित 264 सफाईकर्मियों की जगह 100-150 सफाईकर्मी ही आवश्यकता के अनुसार साफ-सफाई के लिए लगाए जाते हैं, यानी प्रतिदिन लगभग 100-125 सफाईकर्मी कम लगाए जाते हैं और इस प्रकार प्रतिदिन रेलवे को करीब एक लाख रुपये की चपत लगाई जा रही है और ठेकेदार द्वारा इसके बदले मोटी रकम स्वास्थ्य निरीक्षकों के साथ-साथ उनके हेड अर्थात संबंधित ईएनएचएम अधिकारियों को पहुंचाई जा रही है.

दिखावे के लिए कभी-कभार निरीक्षण कर लिया जाता है और वह भी पहले से निर्धारित प्रोग्राम बताकर, अर्थात चोरी करने वाले को पहले ही सतर्क कर दिया जाता है कि ‘सावधान! हम आ रहे हैं.’ हालांकि इलाहाबाद जंक्शन स्टेशन की साफ-सफाई में भी भ्रष्टाचार की गंध है, लेकिन फिलहाल वह इसलिए छिप रहा है, क्योंकि वहां ठेकेदार खुद काम देख रहा है, जबकि कानपुर सेंट्रल में ठेकेदार ग्वालियर से झांकने भी नहीं आता है.

स्टेशन की सुरक्षा भगवान भरोसे

इसी प्रकार स्टेशन की सुरक्षा का जिम्मा जिनके पास है, वही सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे बनते जा रहे हैं. चाहे स्टेशन परिसर में अवैध वेंडिंग हो, अपराधियों, अराजकतत्वों का जमावड़ा हो, या गाड़ियों में चोरी, लूटपाट, इन सब घटनाओं में सुरक्षा महकमे, यानि आरपीएफ की भूमिका संदेह के घेरे में है. इसलिए यदि साफ-सफाई के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था भी निजी कंपनी को सौंपी जा रही है, तो यह भी गलत नहीं है. अब बचे-खुचे रेलकर्मियों को किसी यूनियन पर भरोसा नहीं रह गया कि वे रेलवे को निजीकरण से बचाएंगे. इसका कारण सबको बखूबी पता है.

अन्यत्र शिफ्ट नहीं किए गए विभागीय सफाईकर्मी

कानपुर सेंट्रल और इलाहाबाद जंक्शन के लगभग सौ-सवा सौ विभागीय सफाई कर्मचारियों को निजी ठेका होने के बाद अन्य रेलवे स्टेशनों पर शिफ्ट किया जाना था, यह काम आज तक नहीं हुआ, अर्थात रेल राजस्व को हर तरफ से जमकर चूना लगाया जा रहा है. सरप्लस हुए सफाई कर्मियों को उचित जगह पर शिफ्ट न करके स्टेशन पर ही इधर-उधर काम में लगाया गया दिखाकर घरों में उनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

बुकिंग सुपरवाइजर ने दिखाया पीसीसीएम को ठेंगा

इलाहाबाद मंडल की लचर कार्य-प्रणाली का एक और नमूना यह भी है कि विगत 15.05.19 को उत्तर मध्य रेलवे के प्रमुख मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (पीसीसीएम) ने एक घोषित भ्रष्ट बुकिंग सुपरवाइजर को कार्य में लापरवाही के चलते सीएमआई के पद से हटाकर उसको उसके मूल कार्य ‘टिकट बुकिंग’ में लगाने का आदेश दिया था. लेकिन हैरानी की बात यह है कि उक्त बुकिंग सुपरवाइजर ने अपनी पोस्टिंग अपने मन-मुताबिक कानपुर अनवरगंज पार्सल कार्यालय में करा लिया है और एक दिन भी टिकट खिड़की पर टिकट बांटने नहीं बैठा.

वस्तुतः उक्त टिकट बुकिंग कर्मचारी को पार्सल में आय की कमी के कारण ही पार्सल से हटाया गया था. अब ऐसे में यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि इलाहाबाद मंडल की क्या स्थिति है! जब वाणिज्य महकमें के मुखिया (पीसीसीएम/उ.म.रे.) के आदेश को एक अदना सा बुकिंग स्टाफ ठेंगा दिखाए, तो आगे कुछ भी कहना व्यर्थ है. खबर तो यहां तक है कि उसने अभी भी सीएमआई का पूरा चार्ज नहीं सौंपा है और पीसीसीएम इस मुगालते में हैं कि उनके आदेश पर तुरंत अमल किया गया.

अच्छी खबर

तथापि, उपरोक्त तमाम अनियमितताओं के बावजूद एक अच्छी खबर यह भी है कि कानपुर सेंट्रल स्टेशन के नए उप मुख्य यातायात प्रबंधक सह स्टेशन डायरेक्टर हिमांशु उपाध्याय की छवि अब तक बेदाग है और फिलहाल वह रेल हित के प्रति पूरी तरह समर्पित नजर आ हैं. इससे कानपुर एरिया के हित में स्टाफ को उनसे बहुत सकारात्मक कदम उठाए जाने की उम्मीद है. इसके अलावा उनके द्वारा आगरा में पोस्टिंग के दौरान किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें 7 जुलाई को मुंबई में आयोजित किए जा रहे राष्ट्रीय रेल पुरस्कार समारोह में रेलमंत्री के हाथों रेलवे बोर्ड पुरस्कार से भी नवाजा जाने वाला है.

रेलकर्मियों की खुशी को समर्पित:

बारिश की तरह कोई बरसता रहे हम पर !
मिट्टी की तरह हम भी महकते चले जाएं !!