सेवानिवृत्ति के दिन सौंपी गई सीईई/सी अग्रवाल को मेजर चार्जशीट
महाप्रबंधकी के मद में चूर घुमक्कड़ी और मौजमस्ती में व्यस्त महाप्रबंधक
राज्यपाल के राजकीय शोक पर भी जगमगाती रहीं द. पू. म. रे. की इमारतें
बिलासपुर : शुक्रवार, 31 अगस्त को रिटायर हो रहे दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के सीईई/सी एच. पी. अग्रवाल को एक अत्यंत शर्मनाक घटनाक्रम के अंतर्गत उनके रिटायरमेंट से मात्र कुछ घंटे पहले दोपहर करीब 1.30 बजे मेजर पेनाल्टी चार्जशीट थमाकर रेल प्रशासन द्वारा उनकी लगभग 30-35 साल की रेल सेवा और समस्त कार्यालयीन एवं सामाजिक गरिमा को एक मिनट में मिट्टी में मिला दिया गया. यह शर्मनाक और गरिमाविहीन कार्य मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड के मार्गदर्शन और हस्ताक्षर से अंजाम दिया गया, जो कि खुद एक सुपरिचित कदाचारी माने जाते हैं.
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार मेंबर ट्रैक्शन (एमटीआर) द्वारा उसी दिन हस्ताक्षरित मेजर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-5) रेलवे बोर्ड, नई दिल्ली से चलकर हवाई जहाज के माध्यम से हाथोंहाथ बिलासपुर पहुंचाई गई. बताते हैं कि इससे पहले फोन के माध्यम से सीएओ/सी को तमाम आवश्यक निर्देश दिए जा चुके थे. इनमें से एक निर्देश यह भी था कि सीईई/सी श्री अग्रवाल कहीं गायब न हो जाएं, इसलिए उन्हें पहले से ही बुलाकर अपने चैम्बर में बैठाए रखा जाए और जैसे ही चार्जशीट उनके पास पहुंचे, उसे तुरंत उन्हें थमाकर उनसे पावती (रिसीविंग) ले ली जाए. सूत्रों का कहना है कि ऐसा ही किया भी गया. बताते हैं कि इस दरम्यान घुमक्कड़ जीएम कोटा मंडल की तफरीह में व्यस्त थे.
सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि श्री अग्रवाल को उक्त एसएफ-5 चार्जशीट किसी टेंडर में हुए बड़े घोटाले के संदर्भ में दी गई है. उन्होंने बताया कि इसी मामले में द.पू.म.रे. निर्माण संगठन के अन्य कई विद्युत अधिकारी भी नपने वाले हैं. चूंकि श्री अग्रवाल 31 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे थे, इसलिए रेलवे बोर्ड ने रिटायरमेंट से कुछ घंटे पहले आनन-फानन में यह चार्जशीट उन्हें पकड़ा दी है. इस चलते श्री अग्रवाल के सभी सेवानिवृत्ति लाभ भी रोक दिए गए हैं. उन्हें सिर्फ उनका प्रोविडेंड फंड और तदर्थ पेंशन ही मिलेगी. जानकारों का कहना है कि रेल प्रशासन का यह एक अत्यंत शर्मनाक एवं अमानवीय कृत्य है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि श्री अग्रवाल भी एक बहुत बड़े खिलाड़ी रहे हैं. उन्हें करीब दो साल पहले जबलपुर से उनके कुछ कथित कुकृत्यों के कारण ही ट्रांसफर किया गया था और प्रशासन ने उन्हें बंगला प्यून देने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा दी थी.
जानकारों का कहना है कि जब प्रशासन को पहले से संबंधित अधिकारी के रिटायरमेंट, जिसकी तैयारी 6-7 महीने पहले शुरू हो जाती है, की जानकारी होती है, तो उसे यह प्रक्रिया गरिमापूर्ण तरीका अपनाते हुए रिटायरमेंट से पर्याप्त समय पहले पूरी करनी चाहिए. इस तरह 30-35 साल की सेवा के अंतिम दिन किसी वरिष्ठ अधिकारी को उसके मातहतों और परिवार एवं समाज के सामने बेइज्जत करना कतई उचित नहीं माना जा सकता, भले ही उक्त अधिकारी कितना ही बड़ा कदाचारी क्यों न रहा हो. इस संदर्भ में द.पू.म.रे. के कई क्षुब्ध अधिकारियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ‘रेल समाचार’ से कहा कि अब देखना यह है कि जीएम/द.पू.म.रे. और खुद मेंबर ट्रैक्शन (एमटीआर) जैसे बड़े कदाचारियों के मामले में भी क्या रेलवे बोर्ड यही तरीका अपनाएगा?
घुमक्कड़ी और मौजमस्ती में व्यस्त महाप्रबंधक
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में जहां एक तरफ भारी फिजूलखर्ची की जा रही है, वहीं कार्यालयीन कामकाज से दुश्मनी रखने वाले महाप्रबंधक/द.पू.म.रे. अपनी घुमक्कड़ी और मौजमस्ती में व्यस्त हैं. बताते हैं कि किसी भी फाइल पर अपना अनुमोदन और हस्ताक्षर न करने वाले महाप्रबंधक अपनी घुमक्कड़ी, मौजमस्ती और सैलून की आलीशान सवारी करने का कोई अवसर नहीं गंवाते हैं, बल्कि ढूंढ़-ढूंढ़कर ऐसे अवसर निकालते रहते हैं. इसी क्रम में 25 अगस्त को उन्होंने जोन से बाहर जाकर झारसुगड़ा से करीब 20 किमी दूर सुरम्य स्थल हीराकुंड स्थित महानदी कोल फील्ड (एमसीएल) के आलीशान रेस्ट हाउस में हरियाली तीज मनाई. इसके लिए उन्होंने एमसीएल के अधिकारियों के साथ बैठक करने का नायाब बहाना बनाया और बैठक के लिए डीआरएम/बिलासपुर सहित डीआरएम/संबलपुर को भी बुलाया.
इस बैठक के लिए जाने हेतु 24 अगस्त की शाम को महाप्रबंधक का सैलून गाड़ी संख्या 12809, मुंबई-हावड़ा मेल में लगाया गया था. जबकि डीआरएम/बिलासपुर अपना सैलून गाड़ी संख्या 12829 में लगाकर जीएम के पीछे-पीछे हीराकुंड पहुंचे थे. ‘रेल समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वापसी में 25 अगस्त को गाड़ी संख्या 18477 से डीआरएम और महाप्रबंधक एकसाथ झारसुगड़ा से बिलासपुर एक ही सैलून में आए. जानकारों का कहना है कि एक सैलून खाली आया अथवा एमसीएल वालों ने महाप्रबंधक को इतनी ज्यादा सौगात दे दी कि एक सैलून का इस्तेमाल उक्त सौगात लाने के लिए करना पड़ा, यदि ऐसा नहीं था, तो जाने के समय भी दोनों अधिकारी एक ही सैलून में क्यों नहीं गए थे?
जानकारों का कहना है कि 24 अगस्त को झारसुगड़ा जाने के समय बिलासपुर स्टेशन से सैलून में सवार होने से पहले महाप्रबंधक ने मीडिया से बचने की पूरी सावधानी बरती थी. इसके लिए कथित रूप से सैलून की अंदरूनी व्यवस्था पहले से ही चाक-चौबंद कर दी गई थी. ‘खानपान’ की समस्त सामग्री आगे के किसी स्टेशन से सैलून में चढ़ाई गई थी. उन्होंने बताया कि इसी सावधानी के मद्देनजर जीएम ने उक्त बैठक को बकायदे ‘ऑफिसियल’ बनाते हुए अपने ट्वीटर हैंडल पर बैठक की तीन तस्वीरें पोस्ट करते हुए लिखा कि ‘आज डीआरएम, संबलपुर और एमसीएल के अधिकारियों के साथ झारसुगड़ा(?) में बैठक करके ऑन-गोइंग इस्युज पर चर्चा की. इसके साथ ही ट्रैफिक बढ़ाने और बुनियादी कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए.’
जानकारों का कहना है कि महाप्रबंधक ने अपनी बहुप्रसिद्ध कदाचारिता अथवा घुमक्कड़ी और मौजमस्ती के आरोपों से बचने के लिए अपने ट्वीटर पर उक्त दिग्भ्रमित करने वाली और झूठी जानकारी दी है. उनका कहना है कि उक्त तथाकथित बैठक हीराकुंड में एमसीएल के रेस्ट हाउस में हुई है, जबकि महाप्रबंधक इसे झारसुगड़ा में हुई बता रहे हैं. इसके अलावा ट्वीटर पर जो फोटो डाले गए हैं, उनमें सिवाय मेल-मुलाकात के अलावा बैठक का कोई माहौल नजर नहीं आ रहा है. जानकारों का कहना है कि सैलून के आवश्यक इस्तेमाल पर रेलवे बोर्ड ने कोई पाबंदी नहीं लगाई है, मगर उसे लेकर जोन से बाहर हीराकुंड और नांदेड़ आदि जगहों पर घूमने और मौजमस्ती करने जाने का कोई औचित्य नहीं है. उनका कहना है कि जिसके विरुद्ध गंभीर कदाचार के कई मामलों की बोर्ड विजिलेंस द्वारा जांच की जा रही है, उसे ही जीएम/प.म.रे., जबलपुर का अतिरिक्त कार्यभार सौंपकर बोर्ड ने एक अत्यंत गलत उदाहरण प्रस्तुत किया है.
राज्यपाल के राजकीय शोक पर भी जगमगाती रहीं द.पू.म.रे. की इमारतें
महाप्रबंधक की कथित कदाचारपूर्ण गतिविधियों के चलते दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के कुछ अधिकारियों की करतूतों पर भी कोई लगाम नहीं रह गई है. पूरे देश को मालूम था कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलराम दास टंडन का निधन 14 अगस्त को हुआ. राज्यपाल के निधन पर राज्य सरकार ने तीन दिन, 14-15-16 अगस्त, का राजकीय शोक घोषित किया था. इसके साथ ही यह आदेश भी जारी किया गया था कि 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राज्य में कोई भी सांस्कृतिक और मनोरंजन कार्यक्रम नहीं किया जाएगा, बल्कि साधारण तरीके से सभी कार्यक्रम सिर्फ झंडारोहण तक ही सीमित रहेंगे.
चूंकि राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है, अतः इस मामले में राज्य सरकार का उपरोक्त आदेश राज्य के अंतर्गत आने वाले केंद्र सरकार के भी सभी कार्यालयों पर सामान रूप लागू होता है. लेकिन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे पर इसका कोई असर नहीं दिखाई दिया. यहां बिलासपुर मंडल के वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता/सामान्य ने अपनी एक चहेती फर्म ‘मेसर्स वैभव सेल्स, बिलासपुर’ को जोनल मुख्यालय, मंडल मुख्यालय एवं बिलासपुर रेलवे स्टेशन बिल्डिंग को एलईडी झालरों से सजाने का ठेका पहले से ही दे रखा था. राज्यपाल के निधन पर तीन दिवसीय शोक की परवाह किए बिना उक्त तीनों इमारतों पर विद्युत झालरें लगा दी गईं. हालांकि इन्हें उतार लिया जाना चाहिए था अथवा बंद रखना था, मगर यह बाकायदा 15 अगस्त को भी जगमगाती रहीं.
बिलासपुर मंडल और मुख्यालय के कई वरिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों का कहना है कि जाहिर सी बात है, सीनियर डीईई/जी के इस निंदनीय कृत्य पर महाप्रबंधक तथा मंडल रेल प्रबंधक ने कोई ध्यान नहीं दिया, तभी तो उनकी नाक के नीचे शोक के समय भी ये विद्युत झालरें जगमगाती रहीं. उनका कहना था कि इससे पता चलता है कि यह उच्च अधिकारी भी सरकारी पैसों की बरबादी करके जिंदगी की रंग-बिरंगी चहल-पहल का लुत्फ उठाने का कोई मौका गवाना नहीं चाहते हैं, फिर चाहे वह राज्य के मुखिया राज्यपाल के देहांत के शोक का अवसर ही क्यों न हो.
कर्मचारियों का कहना है कि यह तो सर्वज्ञात ही है कि सरकारी पैसे को ऊल-जलूल तरीकों से जितना ज्यादा खर्च करते हैं, उसकी एवज में इन अधिकारियों को उतनी ही मोटी रकम कमीशन के रूप में प्राप्त होती है. अब इसी एलईडी झालर का एक दिन का किराया सुनकर सबका माथा ठनकना लाजमी है, क्योंकि इन चायनीज झालरों का एक दिन का किराया 2,29,510 रु. का भुगतान किया गया, जबकि इतनी रकम में जितनी झालर लगी थी, उसकी दोगुना खरीदी जा सकती थी. उनका कहना है कि स्वच्छ छवि वाले चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी को बिलासपुर जोन के संबंधित अधिकारियों के इस अस्वच्छ एवं निंदनीय कृत्य पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अब यदि इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो भविष्य में यह नंगा-नाच इसी तरह बदस्तूर जारी रहेगा और फिजूलखर्ची नहीं करने के उनके आदेश को ये ऐसे ठेंगा दिखाते रहेंगे.