रेलवे बोर्ड ने दिया ट्रैकमैनों को रिस्क एंड हार्डशिप एलाउंस का तोहफा
रेलवे पर पड़ेगा सालाना सामान्यतः 222 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ
ट्रैक एवं पैसेंजर सेफ्टी को लेकर अत्यंत चिंतित अभियांत्रिकी अधिकारी
रेलवे के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द साबित हो रहे हैं उच्च शिक्षित ट्रैकमैन
मुंबई : ऐसा लगता है कि वर्षों से प्रताड़ना और जिल्लत की मार झेल रहे भारतीय रेल के ट्रैकमैनों (ट्रैक मेंटेनर) के बुरे दिन अब खत्म होने वाले हैं. मध्य रेलवे, सोलापुर मंडल के दौंड-अहमदनगर खंड पर गत दिनों ट्रैकमैन बबलू कुमार की दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या की पृष्ठभूमि में रेलवे बोर्ड ने ट्रैकमैनों के साथ ही रेलवे की दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशनों की लंबे समय से लंबित मांग मानकर ट्रैकमैनों के लिए रिस्क एवं हार्डशिप एलाउंस दिए जाने की घोषणा की दी है. रेलवे बोर्ड ने 28 अगस्त को तत्संबंधी एक पत्र वित्त मंत्रालय की संयुक्त सचिव श्रीमती एनी जी. मैथ्यू को लिखा है. रेलवे बोर्ड के उक्त नोटिफिकेशन के अनुसार ट्रैकमैनों को रिस्क एंड हार्डशिप एलाउंस दिए जाने से रेलवे पर सालाना सामान्यतः 222 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ पड़ेगा.
इस एलाउंस की मांग रेलवे कर्मचारी ट्रैक मेंटेनर एसोसिएशन (आरकेटीए) द्वारा भी लंबे समय से किया जा रहा था. लंबे संघर्ष के कारण अब रेलवे बोर्ड की तरफ से एक-एक सुखद समाचार मिलने लगा है, यह कहना है आरकेटीए के महामंत्री जी. गणेश्वर राव का. ‘रेल समाचार’ को भेजी एक विज्ञप्ति में राव ने कहा है कि ट्रैकमेन को उसके मूलभूत अधिकार से लंबे समय से रेल प्रशासन ने वंचित कर रखा था, परंतु हम लगातार अपनी मांगो के समर्थन में आंदोलन और मीटिंग करके अपनी बातों को रेलवे बोर्ड तक पहुंचाने में सफल रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त 2018 को रेलवे बोर्ड की ओर से एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी करके की-मेन और मेट को 2700 रु. के बजाय अब 6000 रु., स्पेशल तथा ए-क्लास समपार गेटमेन को 4100 रु. रिस्क एवं हार्डशिप एलाउंस दिया जाएगा. इसी प्रकार ट्रैकमेन, जो पेट्रोलिंग ड्यूटी करता है, को अब 4100 रूपये मिलेंगे तथा ब्लैक-स्मिथ के मिस्त्री एवं हेल्पर को भी अब अन्य ट्रैकमेन की तरह रिस्क एवं हार्डशिप एलाउंस के तहत 2700 रु. एलाउंस देने की बात कही गई है.
इस संदर्भ में एआईआरएफ ने 14 दिसंबर 2017 और एनआरएमयू, म.रे. ने 19 सितंबर 2017 को तथा एनएफआईआर ने भी सचिव/स्थापना, रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर फिटर, ब्लैकस्मिथ, हैमरमैन, कारपेंटर, पेंटर, वेल्डर, मेसन एवं यूएसएफडी खलासी इत्यादि कैटेगरी के पी-वे कर्मचारियों को भी यह कहते हुए रिस्क एवं हार्डशिप एलाउंस दिए जाने की मांग की थी कि इन पी-वे कैटेगरीज को ट्रैकमेंटेनर्स से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. यही मांग आरकेटीए भी कर रही थी.
ज्ञातव्य है कि पिछले साल 10 अक्टूबर 2017 को आरकेटीए के पदाधिकारियों ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी से मिलकर ट्रैकमैनों की सभी मांगों को उनके समक्ष रखा था. श्री लोहानी ने उसी समय यह संकेत दे दिया था कि की-मेन, मेट, गेटमेन और पेट्रोलमेन को विशेष आर्थिक लाभ मिलना चाहिए, जिसे उन्होंने एक वर्ष बीतने से पहले ही अंजाम तक पहुंचा दिया है. यह एक अच्छा संकेत है कि रेलवे बोर्ड अब ट्रैकमेन की कठिन कार्य-स्थितियों को लेकर पर्याप्त रूप से गंभीर हुआ है. उम्मीद है कि जल्दी ही न सिर्फ उनकी अन्य मांगों पर भी आवश्यक कदम उठाया जाएगा, बल्कि उनके रिक्त पड़े लाखों पदों को भी भरने हेतु तत्परता दिखाई जाएगी.
उल्लेखनीय है कि बबलू कुमार की आत्महत्या के बाद पैदा हुए आक्रोश के मद्देनजर मध्य रेलवे के प्रमुख मुख्य अभियंता एस. के. अग्रवाल ने ट्रैकमैनों की 10 दिन की छुट्टी की मंजूरी का अधिकार अब सेक्शनल एसएसई/पी-वे को बहाल कर दिया है. इसके अलावा बोर्ड के निर्देशानुसार नोडल अधिकारी की नियुक्ति करके ट्रैकमैनों की समस्याओं के पर चर्चा की गई है और तदनुरूप समस्याओं का समाधान किया जा रहा है.
तथापि, उच्च शिक्षित ट्रैक मेंटेनर रेलवे सहित सभी जेई एवं एसएसई/पी-वे के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द साबित हो रहे हैं, क्योंकि उनसे नियमानुसार काम लेना अत्यंत कठिन साबित हो रहा है. इसके चलते जोनों के लगभग सभी अभियांत्रिकी अधिकारी एवं फील्ड सुपरवाइजर ट्रैक एवं पैसेंजर सेफ्टी को लेकर अत्यंत चिंतित हो रहे हैं. रेलवे बोर्ड को इस गंभीर समस्या का कोई उचित एवं सर्वमान्य समाधान जल्दी ही करना पड़ेगा और फील्ड में बढ़ती अनुशासनहीनता पर कड़ी लगाम लगानी पड़ेगी.