मेंबर ट्रैक्शन की सनक से त्रस्त जोनल अधिकारी और ठेकेदार
ट्रांसफर/पोस्टिंग में दलाली और अनावश्यक टेंडर टर्मिनेशन का आरोप
कदाचारी एमटीआर को ईमानदार बताने वाले मंत्री की विश्वसनीयता संदिग्ध!
नई दिल्ली : टेंडर शर्तों में पूर्व निर्धारित अवधि से पहले प्रोजेक्ट्स को पूरा करवाने का अनावश्यक दबाव बनाने वाले मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड की मनमानी (सनक) से जोनल रेलों के तमाम विद्युत अधिकारी बुरी तरह से त्रस्त हो गए हैं. उनके इस दबाव पर संबंधित अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच यह कहकर मजाक चल रहा है कि मेंबर ट्रैक्शन नौ महीने के बजाय नौ दिन में बच्चे की डिलीवरी करवाना चाहते हैं. स्थिति यह बताई जा रही है कि अपनी इसी सनक के चलते अथवा मंत्री की नजर में स्वयं को अत्यंत कार्यक्षम दर्शाने के लिए मेंबर ट्रैक्शन ने अब तक सैकड़ों महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स के टेंडर टर्मिनेट करवा दिए हैं. कई वरिष्ठ विद्युत अधिकारियों का कहना है कि इस तानाशाही के कारण न सिर्फ कार्यों की गुणवत्ता के साथ भयानक समझौता किया जा रहा है, बल्कि उनकी प्रगति भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है.
वरिष्ठ विद्युत अधिकारियों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार विभिन्न जोनों के अंतर्गत चल रहे ज्यादातर जेवी कॉन्ट्रैक्ट्स मेंबर ट्रैक्शन (एमटीआर) के दबाव में टर्मिनेट कर दिए गए हैं, जबकि ओपन लाइन के अन्य सैकड़ों टेंडर भी इसी मनमानी की भेंट चढ़ चुके हैं. उनका कहना है कि एमटीआर चाहते हैं कि नौ महीने का काम नौ दिन में पूरा कराया जाए और उनका यह दबाव अथवा तानाशाहीपूर्ण रवैया पिछले एक साल से चल रहा है, जब से उनको कोर का प्रभारी बनाया गया है. उनका कहना है कि जब से मंत्री द्वारा बोर्ड की कुछेक बैठकों में एमटीआर के कामकाज की तारीफ की गई है, तब से उनके उत्साह में मानो नदी की बाढ़ जैसा उफान आ गया है.
अधिकारियों ने उदाहरण स्वरूप बताया कि यदि किसी प्रोजेक्ट को तीन साल या 36 महीनों में पूरा करने का लक्ष्य देकर कांट्रेक्ट दिया गया है, तो एमटीआर ने उसे एक साल (12 महीनों) से भी कम समय में पूरा करने का दबाव डाला है. उनका कहना है कि पहले उनका यह दबाव सीधे तौर पर नहीं था, मगर पिछले साल 12 सितंबर 2017 को जब से ‘कोर’ को उनके मातहत किया गया है, तब से उन्होंने अपना यह दबाव सीधे संबंधित जोनल या डिवीजनल अधिकारियों पर डालना शुरू कर दिया था. उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में तब ‘रेल समाचार’ ने दि. 17.12.2017 को “घनश्याम सिंह, मेंबर ट्रैक्शन हैं या जीएम/कोर?” शीर्षक से एक विस्तृत खबर प्रकाशित की थी.
अधिकारियों का कहना है कि उच्च पदस्थों द्वारा वर्क प्रोग्रेस को फॉलो करना तो ठीक है, मगर प्रोजेक्ट्स को उनकी पूर्व निर्धारित समय-सीमा के बजाय एक तिहाई से भी कम समय में उनको पूरा करवाने का दबाव बनना न सिर्फ गलत है, बल्कि टेंडर शर्तों का भी घोर उल्लंघन है. इसके बावजूद मनमाने तरीके से तमाम टेंडर रद्द कर दिए गए और उनकी बैंक गारंटी जबरन जप्त कर ली गईं. इसके चलते कई बड़े ठेकेदार अपनी बैंक गारंटी की नियम विरुद्ध जप्ती के खिलाफ अदालतों से स्टे आर्डर ले आए हैं. उनका कहना है कि एमटीआर के इस मनमानी व्यवहार के चलते रेलवे पर अदालती मामलों की संख्या में भारी इजाफा भी हुआ है.
नाम न उजागर करने की शर्त पर अधिकारियों का कहना है उपरोक्त मनमानी के अलावा आजकल रेलवे बोर्ड के विद्युत निदेशालय में कनिष्ठ/वरिष्ठ प्रशासनिक वेतनमान (जेएजी/एसएजी) अधिकारियों की मनचाही ट्रांसफर/पोस्टिंग के लिए उत्तर रेलवे मुख्यालय में पदस्थ एक अधिकारी विशेष द्वारा दलाली की जा रही है. उनका कहना है कि इसके लिए क्रमशः पांच और दस लाख का रेट चल रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे ‘अधिकारी विशेष’ अन्य जोनल रेलों में भी हो सकते हैं अथवा मनचाही पोस्टिंग चाहने वालों को उत्तर रेलवे मुख्यालय की तरफ घुमा दिया जाता है. उन्होंने बताया कि उक्त अधिकारी विशेष के खिलाफ लंबे समय से मेजर पेनाल्टी चार्जशीट पेंडिंग है, तथापि उसे संवेदनशील पद पर बनाए रखा गया है.
हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि उक्त अधिकारी विशेष ने अंबाला में बतौर एडीआरएम तत्कालीन सीनियर डीईई/जी के साथ मिलकर एक सोलर टेंडर की बैंक गारंटी की तारीख में हेराफेरी की थी, जिसे विजिलेंस की जांच में सही पाया गया था. इस मामले में उक्त अधिकारी विशेष की बर्खास्तगी निश्चित है. यही कारण है कि इसकी गंभीरता के मद्देनजर पिछले दो एमटीआर ने इस मामले में कोई अंतिम निर्णय किए बगैर ही इसे पेंडिंग छोड़ गए थे. सूत्रों का यह भी कहना है कि इसके साथ ही सेंट्रल हॉस्पिटल, उत्तर रेलवे, नई दिल्ली में हुए कदाचार के गंभीर मामले के बाद जिस अधिकारी को पू.त.रे. भुवनेश्वर ट्रांसफर किया गया था, उसे भी फेवर करके दिल्ली ले आया गया है. जबकि खुद एमटीआर उक्त मामले में आरोपी हैं और आज भी उनके विरुद्ध सीबीआई एवं उत्तर रेलवे और बोर्ड विजिलेंस द्वारा संयुक्त रूप से जांच की जा रही है.
हालांकि कुछ ठेकेदारों का कहना है कि उनके साथ किसी प्रकार की डीलिंग नहीं हो रही है, मगर उनके साथ ही कई अधिकारियों का भी कहना है कि यदि मंत्री द्वारा एमटीआर जैसे किसी कदाचारी बोर्ड मेंबर की खुलेआम तारीफ या प्रशंसा करके उसे ईमानदार बताया जा रहा हो, तब स्वयं मंत्री की नैतिकता और विश्वनीयता संदिग्ध हो जाती है. क्रमशः