हत्या के आरोपियों को सवा साल से मिला हुआ है पुलिस का संरक्षण
किदवईनगर थाने का नकारापन, कोर्ट ऑर्डर पर भी महाराजपुर थाने की कार्रवाई सिफर
सीओ जीआरपी ने हत्या मानी, आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य, एसपी/साउथ ने भी की जांच
संपत्ति हड़पने के लिए हत्या करके घटना को आत्महत्या दर्शाया गया, पुलिस की लीपापोती
कानपुर के सरसौल क्षेत्र में 12 अप्रैल 2018 को रेलवे ट्रैक के किनारे मिला था व्यवसायी का शव
यह समाचार कानपुर में एक व्यक्ति की करोड़ों रुपये की संपत्ति के लालच में उसे चंगुल में फंसाने और उसकी हत्या किए जाने की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिस पर अब तक स्थानीय मीडिया का उचित ध्यान नहीं गया है. पिछले वर्ष 12 अप्रैल को उक्त व्यक्ति का शव रेलवे लाइन के किनारे मिला था, मात्र इसका छोटा सा सूचनात्मक समाचार चुनिंदा स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उक्त व्यक्ति द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात कही गई थी. जबकि परिस्थितियों से ही साफ था कि मृतक की हत्या कर मामला आत्महत्या का बनाया गया था. इस षड्यंत्र में आरोपियों से कुछ पुलिसकर्मियों की मिलीभगत रही. इसके बाद मृतक के प्रतिष्ठित ससुरालीजन लगातार पैरवी और भागदौड़ कर रहे हैं. उन्होंने जिन लोगों पर स्पष्ट आरोप लगाए, स्थानीय पुलिस उनको बचा रही है.
इस पर उन्होंने राजधानी लखनऊ स्तर पर भी शासन-प्रशासन से अनेक शिकायतें कीं. एसपी/जीआरपी/प्रयागराज के निर्देश पर सीओ/जीआरपी कानपुर ने जांच में स्पष्टतः मामला आत्महत्या के बजाय हत्या का पाया और आरोपियों के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य एवं तथ्य मिले. साथ ही सीओ ने पुलिसकर्मियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाए. वहीं शासन के आदेश पर एसपी साउथ कानपुर की जांच में भी आरोपों की पुष्टि हुई. इसके बावजूद अधीनस्थ पुलिसकर्मी केस दबाए हुए हैं. पीड़ित पक्ष अदालत की शरण में गया. अदालत के आदेश पर भी पुलिस कुछ नहीं कर रही है. प्रशासन से किदवईनगर थाने को और अदालत से महाराजपुर पुलिस को जांच मिली, मगर दोनों थानों की पुलिस कोई जांच या कार्रवाई नहीं कर रही है. घटना के एक साल दो माह बीतने पर भी मामला ठंडे बस्ते में है और स्थानीय पुलिस के सहयोग से सभी आरोपी निश्चिंत खुले घूम रहे हैं.
कानपुर : गत वर्ष रेलवे ट्रैक के किनारे मिले शव के मामले में परिस्थितियों, साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर घटना के आत्महत्या के बजाय हत्या होने की पुष्टि होने पर भी पुलिस ने प्रकरण दबा रखा है. आरोप है कि मृतक की करोड़ों रुपए की संपत्ति हड़पने के लिए कथित दूर के रिश्तेदारों ने उसकी हत्या कर पुलिसकर्मियों के सहयोग से इसे आत्महत्या का रूप दे दिया. जीआरपी सीओ और एसपी साउथ कानपुर की जांचों में घटना को हत्या करार देते हुए मृतक के परिजनों के आरोपों को सही माना. पुलिस अफसरों ने आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य पाए, साथ ही पुलिसकर्मियों की कार्यप्रणाली को भी संदिग्ध करार दिया. जबकि जीआरपी दारोगा ने आरोपियों का सहयोग किया और थाना पुलिस के विवेचकों ने जांच दबाकर आरोपियों को संरक्षण दे रखा है. पैरवी कर रहे मृतक के ससुर तथा भाजपा नेता पूर्व पार्षद लखनलाल त्रिपाठी और साले आशुतोष त्रिपाठी ने इंसाफ पाने के लिए साल भर से भरसक कोशिश की, मगर पुलिस की तिकड़मों के आगे वह भी हताश हो चुके हैं.
विगत 12 अप्रैल 2018 को कानपुर के सरसौल क्षेत्र में प्रयागराज रेलवे लाइन के किनारे एक व्यक्ति का शव मिला. सूचना पर जीआरपी कानपुर के दारोगा श्यामलाल कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल पा पहुंचे. कुछ मिनट बाद ही भीतरगांव निवासी राजेश मिश्रा एवं उनके पुत्र सौरभ और शिवम भी मौके पर पहुंचे, जिन्होंने मृतक की पहचान कानपुर के जूही थानाक्षेत्र अंतर्गत ‘एम’ ब्लॉक, किदवईनगर निवासी व्यवसायी रवींद्र कुमार शुक्ला के रूप में की और खुद को मृतक रवींद्र का रिश्तेदार बताया. कथित रिश्तेदारों ने बताया कि फेसबुक से रवींद्र की मौत का पता चलने पर वे लोग आ गए. मृतक रवींद्र का उन लोगों के अलावा और कोई रिश्तेदार नहीं है. पुलिस को मृतक के पास से मोबाइल फोन, आधार कार्ड, एटीएम कार्ड, बाइक की चाबी, आरसी, डीएल के अलावा एक कथित सुसाइड नोट भी मिला. दारोगा श्यामलाल ने कथित रिश्तेदारों के कथन और सुसाइड नोट के आधार पर घटना को आत्महत्या मानकर कार्यवाही की, मृतक का सामान और बाइक इन कथित रिश्तेदारों को सौंप दिया तथा शव कानपुर सेंट्रल स्थित जीआरपी थाने के बाहर प्लेटफॉर्म-1 के चबूतरे पर रख दिया. पुलिस ने घटना और मृतक की बाबत जांच-पड़ताल किए बगैर अगले दिन पोस्टमॉर्टम के बाद शव कथित रिश्तेदारों राजेश मिश्रा आदि को सौंप दिया.
घटना की जानकारी मृतक रवींद्र के परिजनों, बहन-बहनोई, चचेरे भाईयों और ससुराल पक्ष को दूसरे दिन मिली. परिजन इधर-उधर से पूछताछ कर बदहवास हालत में मृतक के घर और फिर पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे. परिजनों का आरोप है कि सगे रिश्तेदारों के पहुंचने के बाद भी आरोप राजेश मिश्रा आदि खुद मालिक-मुख्तार बने रहे और रवींद्र का अंतिम संस्कार घाट पर होने की बात कही, मगर फिर सुनियोजित ढंग से तय नंबर के बजाय पहले ही रवींद्र के शव का पोस्टमॉर्टम करा लिया और गुपचुप शव ले जाकर आनन-फानन में विद्युत शवदाह गृह में लावारिस की तरह रवींद्र का अंतिम संस्कार कर दिया. अनेक बातें संदिग्ध होने पर भी पुलिस ने प्रकरण दबाया और शासन-प्रशासन एवं न्यायालय के आदेशों के बाद भी साल भर से पुलिस लगातार हीलाहवाली कर रही है. मृतक के सगे परिजनों का आरोप है कि रवींद्र की करोड़ों रुपये की जायदाद हड़पने के लिए इन कथित रिश्तेदारों ने उनकी हत्या की और पुलिस से मिलीभगत कर इसे आत्महत्या का रूप दिया. शव से बरामद बताया जा रहा सुसाइड नोट फर्जी है. कई पुलिसकर्मी हत्यारों से मिले हुए हैं और रिश्वत खाकर उनका साथ दे रहे हैं. उन सबने हत्या के सबूत नष्ट कर दिए हैं.
मृतक के ससुर लखनलाल त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि इस कथित रिश्तेदार का पूरा परिवार रवींद्र को चंगुल में फंसाए था और उनसे लाखों रुपए ऐंठ चुका था. पूरी संपत्ति हड़पने के लिए उन सबने रवींद्र की हत्या कर दी. कथित रिश्तेदार आरोपी राजेश मिश्रा आदि मृतक रवींद्र के नौ साल के बेटे को भी अपने पास रखे हुए हैं. लखनलाल न्याय पाने के लिए एसपी जीआरपी प्रयागराज, एसएसपी कानपुर से लेकर एडीजी लॉ एंड ऑर्डर और मुख्यमंत्री तक हर चौखट नाप चुके हैं. एसपी जीआरपी प्रयागराज के आदेश पर सीओ जीआरपी कानपुर ने मामले की पूरी जांच की और बयानों-साक्ष्यों के आधार पर घटना को हत्या मानते हुए आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दी. शासन के आदेश पर एसपी साउथ कानपुर ने भी जांच कर आरोप सही पाए. इसके बाद भी धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. केस जीआरपी से किदवईनगर थाने को मिला, मगर यहां जांच अटकी हुई है. लखनलाल लगभग एक साल पहले न्यायालय की शरण में गए. कोर्ट ने घटनास्थल सरसौल में होने पर महाराजपुर थाने को शीघ्र जांच करने और सप्ताहवार रिपोर्ट देने को कहा, मगर यहां भी केस दबा दिया गया. इस तरह पुलिस शासन-प्रशासन और अपने उच्च विभागीय अफसरों से बेखौफ है, अदालत की अवहेलना से भी नहीं चूकी. बकौल लखनलाल, वह आठ साल पहले बेटी को खो चुके हैं, अब साल भर पहले दामाद की भी हत्या हो गयी और सभी आरोपी खुले घूम रहे हैं.
सात साल पहले मृतक की पत्नी की मौत, पति पर हत्या का आरोप
मृतक रवींद्र की ससुराल कानपुर के सीसामऊ थानाक्षेत्र के अंतर्गत पी रोड पर बनखण्डेश्वर मंदिर के बगल में है. ससुर लखनलाल त्रिपाठी पूर्व पार्षद और प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं तथा विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. श्री त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी ज्योति (सपना) की शादी वर्ष 2000 में शहर के ही किदवईनगर निवासी रवींद्र शुक्ला से की थी. शादी के बाद उनकी दो संतानें, एक पुत्र अपार (मून) एवं एक पुत्री खुशी (जैसमिन), हुईं. हालांकि रवींद्र का चाल-चलन ठीक नहीं था. वर्ष 2011 में ज्योति की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हो गयी. लखनलाल त्रिपाठी का आरोप है कि उनकी बेटी ज्योति की हत्या पति ने साथियों के साथ मिलकर की थी और शव को फंदे से लटकाकर घटना को आत्महत्या करना बता दिया था. उन्होंने इसका मुकदमा भी कर रखा था और अपनी नातिन जैसमिन को साथ ले आए थे. तब नाती अपार एक साल का था और सपना के ससुराल पक्ष की महिलाओं ने उसका लालन-पालन ठीक से करने की बात कही थी.
संपत्ति हड़पने के लिए मार डाला, साजिशन हत्या को आत्महत्या बनाया
मृतक रवींद्र कुमार शुक्ला के ससुर लखनलाल त्रिपाठी ने बताया कि उनका दामाद रवींद्र करोड़ों रुपये की संपत्ति का मालिक था. उसके नाम केमिकल कंपनी, रायपुर, उड़ीसा में पेट्रोल पंप, लाखों रुपए का बंगले सहित करोड़ों रुपए की चल-अचल संपत्ति है. भीतरगांव निवासी आरोपी राजेश मिश्रा और उसके भाई राकेश मिश्रा रवींद्र के दामाद के बहुत दूर के नातेदार लगते हैं. इस पहचान के आधार पर वह लोग पहले से ही रवींद्र को अपने चंगुल में फंसाए हुए थे. आरोप है कि राकेश की बेटी से उनके दामाद के अवैध संबंध थे और यह राजेश के पूरे परिवार की जानकारी में था, बल्कि वे लोग खुद इसके लिए उसे दुष्प्रेरित करते थे. इसी कारण उनका दामाद अक्सर उनके यहां भीतरगांव में ही रुक जाता था. इन्हीं सबने षड्यंत्र करके उनकी बेटी ज्योति को भी मार डाला. राकेश की बेटी की शादी लखनऊ में हुई. इन सबने एक बार रात में राकेश की बेटी की ससुराल में धावा बोला था और राकेश की बेटी ने ही घर के अंदर से कुंडी खोली थी, फिर इन लोगों ने घरवालों के साथ बुरी तरह मारपीट और लूटपाट की थी.
पीड़ितों ने इन सब पर डकैती का मुकदमा भी दर्ज कराया था. रवींद्र ने ही राकेश की बेटी के तलाक का केस कर रखा था और तलाक के बाद समाज को दिखाने के लिए खुद उससे शादी करने की तैयारी में था. इन सात वर्षों में आरोपी राजेश मिश्रा, उसके भाई राकेश मिश्रा तथा राजेश के बेटों सौरभ उर्फ पंडित एवं शिवम उर्फ गोलू आदि ने रवींद्र से लाखों रुपए हड़पे, उनकी केमिकल कंपनी पर कब्जा कर लिया. घटना वाले दिन भी उक्त लोगों ने रवींद्र की बुरी तरह पिटाई की थी. आरोपियों ने जायदाद संबंधी जानकारी लेने के बाद उनकी हत्या कर दी और शव को अपने यहां से 50 किमी दूर रेलवे ट्रैक के किनारे डालकर आत्महत्या का रूप दिया. फिर पुलिस के पहुंचते ही आरोपी खुद भी मौके पर पहुंच गए. यहां उनके कहने पर दारोगा श्यामलाल ने उनको ही रिश्तेदार और घटना को आत्महत्या मान लिया तथा उन्होंने अगले दिन मृतक रवींद्र का शव उन्हीं को सौंप दिया. आरोपियों ने आनन-फानन में शव ठिकाने लगाने के लिए उसे विद्युत शवदाह गृह में फूंक दिया.
शरीर पर चोटें, गर्दन ट्रेन से कटी होने पर संदेह, सुसाइड नोट फर्जी
शव मिलने के स्थान पर पुलिस के पहुंचते ही आरोपी भी ठीक मौके पर पहुंच गए. उन्होंने बड़ा अजीब तर्क दिया कि उनको फेसबुक से घटना की जानकारी मिल गयी, जिस पर वे तुरंत बोलेरो से निकल पड़े और यहां आ गए. जीआरपी दारोगा श्यामलाल ने बिना किसी जांच-पड़ताल के घटना को खुदकुशी मान लिया. पोस्टमॉर्टम में मृतक रवींद्र के शरीर पर चोटों के निशान मिले, जो मारपीट के थे. मृतक की गर्दन जिस तरह कटी थी, वह ट्रेन से कटने का परिणाम नहीं हो सकता था. इसके अलावा पुलिस द्वारा सुसाइड नोट के परीक्षण में निरंतर कोताही बरतने पर रवींद्र के ससुर ने शासन द्वारा अधिकृत एक्सपर्ट से जांच कराई, जिसमें सुसाइड नोट फर्जी पाया गया, मगर पुलिस ने अब तक अपने स्तर से सुसाइड नोट की जांच नहीं कराने की जहमत नहीं की है.
पुलिस आरोपियों की रक्षक, उच्च पुलिस अधिकारियों और कोर्ट की भी अनदेखी
मृतक रवींद्र शुक्ला के साले भाजपा नेता एवं पूर्व पार्षद आशुतोष त्रिपाठी ने आरोप लगाते हुए बताया कि कानपुर जिला पुलिस से निराशा हाथ लगी है. थानों की पुलिस आरोपियों से मिली हुई है और सबूतों के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, बल्कि जांच ही नहीं पूरी कर रही है. प्रशासन ने जीआरपी से केस किदवईनगर थाने को दिया, मगर थाना पुलिस मामले की जांच और कार्रवाई में रुचि नहीं ले रही है. न्यायालय में अपनी ओर से केस डालने पर न्यायाधीश ने शव मिलने का स्थान सरसौल होने के चलते महाराजपुर थाने को जांच एवं कार्रवाई के आदेश दिए, साथ ही प्रति सप्ताह प्रगति रिपोर्ट मांगी, मगर इस थाने की पुलिस ने न्यायालय के आदेश को भी नहीं माना और करीब एक साल बीतने के बाद भी अब तक जांच तथा आरोपियों की गिरफ्तारी की कार्रवाई नहीं की गई.
सीओ जीआरपी ने हत्या और अन्य आरोप माने, पुलिस की भूमिका को गलत बताया
एसपी जीआरपी प्रयागराज के आदेश पर सीओ जीआरपी कानपुर राजेश कुमार द्विवेदी ने जांच कर रिपोर्ट दी थी. इसमें साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर घटना को आत्महत्या के बजाय हत्या माना गया. साथ ही सीओ ने जीआरपी दारोगा श्यामलाल को भी स्पष्ट रूप से दोषी पाया और उनकी भूमिका पर उंगली उठाई. जांच में दारोगा और हमराह सिपाहियों के बयानों में अंतर पाया गया, सुसाइड नोट की बरामदगी को लेकर भी सबकी बातें अलग-अलग मिलीं. आरोपी ठीक समय पर पहुंचे और फेसबुक से घटना का पता लगने की बात कही, यह तर्क भी गले से नहीं उतरा. मृतक रवींद्र का मोबाइल फोन एयरप्लेन मोड में पाया गया था, जिस पर सीओ ने माना कि आरोपियों ने हत्या से पहले ऐसा किया होगा, ताकि वह किसी को अपने साथ हो रही घटना की जानकारी न दे सके और बाद में रवींद्र की सही लोकेशन भी न ट्रेस हो सके. जांच में मृतक रवींद्र की बेटी जैसमिन ने भी आरोपियों पर उंगली उठाई है. जैसमिन ने बताया कि उसकी मां के साथ मारपीट और उनकी मौत में यह सभी आरोपी भी शामिल थे.
रवींद्र के दो वसीयतनामे, दूसरे से बेटी का नाम हटाया, आरोपी बने संरक्षक
लखनलाल त्रिपाठी ने बताया कि आरोपियों ने उनकी बेटी ज्योति की मौत के बाद दामाद रवींद्र को बरगलाकर 13 जनवरी 2012 को उनकी संतानों बेटी जैसमिन और बेटे अपार के नाम वसीयतनामा तैयार करवाया, जिसमें जैसमिन एवं अपार के बालिग होने तक राजेश कुमार मिश्रा निवासी भीतरगांव को संरक्षक बनाया गया. इसके बाद 24 मई 2017 को रवींद्र से फिर से वसीयतनामा तैयार करवाया गया, जो केवल बेटे अपार के नाम था. इसमें ननिहाल में रह रही बेटी जैसमिन का नाम हटवा दिया गया. संरक्षकों में राजेश मिश्रा के साथ उसके भाई राजेश मिश्रा का नाम भी जोड़ा गया और बतौर गवाह आकाश एवं अमन पुत्रगण राकेश मिश्रा से हस्ताक्षर कराए गए. सीओ जीआरपी राजेश कुमार द्विवेदी ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस वसीयत के गवाहों के बयानों के आधार पर भी रवींद्र की मौत को सुनियोजित हत्या माना है.
जिला प्रशासन ने आरोपितों से नहीं दिलाया बेटा, हाई कोर्ट की शरण
रवींद्र के सगे बहन-बहनोई, चचेरे भाई समेत अनेक रिश्ते-नातेदार होने के बाद भी आरोपियों ने पुलिस से झूठ कहा कि मृतक का उनके अलावा और कोई रिश्तेदार नहीं है. यही नहीं, आरोपी राजेश मिश्रा, रवींद्र के आठ साल के बेटे अपार को भी अपने पास रखा हुआ है. मृतक के ससुर लखनलाल त्रिपाठी ने बताया कि रवींद्र की बेटी 13 वर्षीया जैसमिन उनके पास अपने ननिहाल में रहती है. वह आरोपियों से बेहद घृणा करती है और उन्हीं को अपनी मां की मौत का जिम्मेदार भी मानती है. रवींद्र के सगे रिश्तेदारों के होने और बड़ी बेटी के ननिहाल में रहने के बाद भी आरोपियों ने उनके बेटे अपार को बहनों एवं अन्य रिश्तेदारों से दूर कर जबरन अपने पास रखा हुआ है. लखनलाल द्वारा डीएम और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से कई बार गुहार लगाने के बावजूद किसी ने भी बच्चे अपार को आरोपियों के चंगुल से छुड़ाकर उनके सुपुर्द नहीं करवाया. थक-हारकर उन्होंने उच्च न्यायालय प्रयागराज में केस दायर किया और हैवियस कॉर्पस के तहत गुहार लगाकर बच्चे की सुपुर्दगी उन्हें सौंपे जाने की मांग की.