अरुण कुमार ने महानिदेशक, रेलवे सुरक्षा बल का कार्यभार संभाला
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने नियुक्ति में दिखाई अतिरिक्त चुस्ती-फुर्ती
नई दिल्ली : वर्ष 1985 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अरुण कुमार ने रविवार, 30 सितंबर को रेल भवन पहुंचकर महानिदेशक, रेलवे सुरक्षा बल (डीजी/आरपीएफ) का अपना नया पदभार संभाल लिया. इस मौके पर अतिरिक्त महानिदेशक, रेलवे सुरक्षा बल (एडीजी/आरपीएफ) पी. के. अग्रवाल ने पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत किया. बिहार के मिथिलांचल (दरभंगा) में 14 जून 1961 को जन्में अरुण कुमार ने एम.टेक. की डिग्री हासिल की है. डीजी/आरपीएफ में नियुक्ति होने से पहले वह बीएसएफ के विशेष महानिदेशक के रूप में कार्यरत थे. नियुक्ति आदेश के अनुसार अरुण कुमार डीजी/आरपीएफ के पद पर 30 जून 2021 तक रहेंगे.
फोटो परिचय : नवनियुक्त डीजी/आरपीएफ अरुण कुमार का रेल भवन में स्वागत करते हुए एडीजी/आरपीएफ पी. के. अग्रवाल.
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने अरुण कुमार की नियुक्ति में अतिरिक्त फुर्ती दिखाई. रेलवे बोर्ड के सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड ने शुक्रवार, 28 सितंबर को ही रेलमंत्री के हस्ताक्षर के बाद अरुण कुमार एवं दो अन्य आईपीएस अधिकारियों का पैनल पीएमओ (एसीसी) को भेजा था. एसीसी ने शनिवार, 29 सितंबर को उनकी नियुक्ति को हरी झंडी दिखा दी और उसी दिन नियुक्ति आदेश जारी होने के तुरंत बाद अरुण कुमार ने अपना नया पदभार ग्रहण कर लिया.
सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने इस नियुक्ति में यह जल्दबाजी इसलिए दिखाई, क्योंकि उसे कहीं यह आशंका थी कि ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन कहीं नए डीजी की नियुक्ति में भी कोर्ट का स्टे न ले आए. उल्लेखनीय है कि ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ने आरपीएफ में आईपीएस अथवा ऐसे किसी भी बाहरी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति के विरोध में और संसद द्वारा पारित कानून का पालन करवाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की हुई है. इस याचिका की सुनवाई वर्तमान में तीन जजों की एक पीठ कर रही है.
ज्ञातव्य है कि उक्त याचिका पर हाई कोर्ट ने आईपीएस की प्रतिनियुक्ति पर स्टे लगा दिया था, जिसे पिछले साल रेल मंत्रालय और सरकार ने अदालत में तिकड़मी झूठ बोलकर वैकेंट करा लिया था और धर्मेंद्र कुमार की नियुक्ति कर दी थी. उक्त विचाराधीन मामले के कारण ही धर्मेंद्र कुमार और एसोसिएशन के रिश्तों में काफी खटास आ गई थी. इसी के चलते धर्मेंद्र कुमार ने रेलमंत्री को गुमराह करके उनसे मुंबई में आरपीएफ एसोसिएशन के विरुद्ध बयान दिलाया था. जिस पर बाद में एसोसिएशन ने रेलमंत्री की गलतफहमी दूर करते हुए उन्हें बताया था कि उनकी ही अटलबिहारी बाजपेई सरकार ने एसोसिएशन को मान्यता प्रदान की थी. इसके बावजूद धर्मेंद्र कुमार ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर एसोसिएशन को पंगु करने और इसके तमाम पदाधिकारियों तथा आरपीएफ कर्मियों का उत्पीड़न करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.
तथापि नए डीजी/आरपीएफ के रूप में अरुण कुमार की नियुक्ति और उनके पदभार ग्रहण करने के बाद ‘रेल समाचार’ ने जब इस बारे में ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन के महामंत्री यू. एस. झा और अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी से उनकी प्रतिक्रिया पूछी, तो उनका कहना था कि यह सरकार और रेल प्रशासन का काम था, जो कि उन्होंने किया. उनका विरोध किसी अधिकारी विशेष को लेकर नहीं है. उनका कहना था कि तमाम पत्राचार के बाद भी जब रेल मंत्रालय अथवा सरकार ने कानून का पालन नहीं किया, तब मजबूर होकर इसके लिए एसोसिएशन को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है. उन्होंने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि अरुण कुमार अपने पूर्ववर्तियों जैसा व्यवहार आरपीएफ कर्मियों के साथ नहीं करेंगे और एसोसिएशन के साथ सौहार्दपूर्ण समन्वय बनाकर रेलवे में अपराधों के नियंत्रण और स्टाफ के कल्याण हेतु महती प्रयास करेंगे.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन और ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन द्वारा दायर उपरोक्त मामले में न सिर्फ सभी विभागीय आरपीएफ अधिकारी भी एक पक्ष (वादी) के रूप में शामिल हैं, बल्कि एडीजी/आरपीएफ पी. के. अग्रवाल ने भी अपनी वरिष्ठता के मद्देनजर डीजी/आरपीएफ के पद पर दावा करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. प्राप्त जानकारी के अनुसार उनकी याचिका की सुनवाई जनवरी में होने वाली है. जानकारों को इस बात पर आश्चर्य है कि जब 30 सितंबर को डीजी का पद खाली हो रहा था, तब श्री अग्रवाल द्वारा इतनी लंबी डेट लेने अथवा अदालत द्वारा इतनी लंबी तारीख दिए जाने का क्या औचित्य था? उनका कहना है कि कहीं इसमें भी प्रशासन की कोई चालबाजी तो नहीं छिपी हुई है? हालांकि इस मुद्दे पर श्री अग्रवाल ने ‘रेल समाचार’ से कोई बात करने से इंकार कर दिया.