डीसीएम के विरुद्ध फर्जी आरोप लगाना महिला चीफ ओएस को महंगा पड़ा

चीफ ओएस शिवानी कुकरेती द्वारा निहित उद्देश्य से अनावश्यक विवाद खड़ा करके डीसीएम देवानंद यादव के विरुद्ध पहले एफआईआर और फिर प्रेस कांफ्रेंस करके रेलवे की छवि धूमिल किए जाने पर पूरे प्रकरण के लिए शिवानी कुकरेती को दोषी ठहराते हुए डीआरएम/लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे श्रीमती विजयलक्ष्मी कौशिक अपने कार्यालय में प्रेस वार्ता करते हुए.

डीसीएम देवानंद के पक्ष में होकर सभी रेल संगठनों ने जारी की विज्ञप्तियां

मंडल/जोनल मुख्यालयों में कामचोर कर्मचारियों से काम लेना हो गया दुश्वार

महिलाओं एवं अनुसूचित कार्मिकों को चैम्बर में बुलाने से डरने लगे हैं अधिकारी

DCM/LJN Devanand Yadav

लखनऊ ब्यूरो : पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के मंडल वाणिज्य प्रबंधक (डीसीएम) देवानंद यादव (आईआरटीएस) के विरुद्ध फर्जी आरोप लगाना वाणिज्य विभाग की महिला चीफ ओएस शिवानी कुकरेती को बहुत महंगा पड़ा है. नियम और कार्यालयीन शिष्टाचार के विरुद्ध प्रेस क्लब, लखनऊ में की गई उनकी प्रेस कांफ्रेंस के बावजूद स्थानीय मीडिया ने कुकरेती का साथ नहीं दिया, बल्कि उनकी कलई खुलने के बाद मीडिया ने उनकी खाल उतारकर रख दी. इसके अलावा डीआरएम विजयलक्ष्मी कौशिक ने भी प्रेस कांफ्रेंस करके रेलवे की छवि खराब के लिए शिवानी कुकरेती को दोषी मानते हुए उनका साथ देने प्रेस कांफ्रेंस में पहुंची महिला संगठनों की प्रतिनिधियों को यह कहते हुए आड़े हाथों लिया कि ऐसा कोई कदम उठाने अथवा प्रेस कांफ्रेंस करने से पहले महिला संगठनों की पदाधिकारियों को उनसे मिलकर मामले की हकीकत जानना चाहिए था.

प्राप्त जानकारी के अनुसार महिला चीफ ओएस शिवानी कुकरेती और डीसीएम देवानंद यादव के बीच विवाद की शुरुआत 18 फरवरी 2019 को तब हुई थी, जब लखनऊ जं. पर कार्यरत मुख्य कोचिंग अधीक्षक ए. के. बाल्मीकि के सेवानिवृत्ति की फाइल लेकर कुकरेती देवानंद के चैम्बर में पहुंची थी. बताते हैं कि किसी व्यक्तिगत खुन्नस के चलते कुकरेती चाहती थी कि डीसीएम उक्त फाइल पर उनके मुताबिक टिप्पणी करके हस्ताक्षर कर दें, जिससे बाल्मीकि को चार्जशीट दे दी जाए और उनका अंतिम भुगतान रोक दिया जाए. प्राप्त जानकारी के अनुसार डीसीएम ने ऐसा करने से मना कर दिया और साथ ही यह भी पूछा कि जब यह फाइल उनके अधिकार क्षेत्र की नहीं है, तो वह उसे लेकर कैसे आई, जबकि उक्त फाइल की डीलर कार्यालय में मौजूद है? बस, इसी के बाद विवाद की शुरुआत हुई और कुकरेती ने चैम्बर के बाहर ही खड़े होकर रोना-धोना यानि अपना त्रिया-चरित्र दिखाना शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि डीसीएम ने उनके साथ बदसलूकी की और अपशब्दों का प्रयोग किया.

उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि डीसीएम देवानंद द्वारा डीआरएम को दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरण से भी होती है और कार्यालय में उस समय उपस्थित तमाम कर्मचारियों द्वारा दिए गए बयानों से भी हो रही है. यह पुष्टि इस बात से भी होती है कि वाणिज्य कार्यालय के किसी भी कर्मचारी (महिला/पुरुष दोनों) ने शिवानी कुकरेती का साथ नहीं दिया है. मगर ‘ढ़ोल का साक्षी डंडा’ की तर्ज पर एक कुख्यात कर्मचारी ने उनका भरपूर साथ दिया और प्रेस क्लब में हुई कांफ्रेंस में भी उसने यह दावा किया कि उसी ने कथित महिला संगठन बनवाया था. बताते हैं कि अपने अधिकार क्षेत्र में न होते हुए भी शिवानी कुकरेती उक्त फाइल पर एसीएम-2 एवं डीलर की नोटिंग के नीचे अपने हाथों से ‘कर्मचारी की संपूर्ण डीसीआरजी रोकी जा सकती है’ लिखकर ले गई थी और उसी पर डीसीएम देवानंद पर हस्ताक्षर करने का दबाव बनाया था. जबकि कुकरेती का उक्त मामले से कोई संबंध नहीं था.

बताते हैं कि उक्त मामले में सेवानिवृत हो रहे कर्मचारी ए. के. बाल्मीकि का कोई दोष नहीं था, क्योंकि इस मामले से संबंधित डीलर शंकरी दासगुप्ता ने विलंब से फाइल प्रस्तुत की थी और 15 फरवरी को एनओसी के लिए पत्र लिखा था. संपूर्ण डीसीआरजी रोकने हेतु डीसीएम पर दबाव बनना, डीसीएम द्वारा नोटिंग पर दिए गए लिखित आदेश का उल्लंघन करना, सीनियर डीसीएम के पास फाइल प्रस्तुत नहीं करना, एसीएम-2 की टाइप की हुई नोटिंग में अपने हाथों से कूट-रचना (करेक्शन) करते हुए संपूर्ण डीसीआरजी रोकने हेतु लिखना और डीसीएम पर अनावश्यक दबाव बनना इत्यादि से जाहिर है कि चीफ ओएस शिवानी कुकरेती ने अपनी गलत मंशा की पूर्ति हेतु डीसीएम दवानंद यादव को माध्यम बनाने की कोशिश की थी. इससे यह भी स्पष्ट है कि वह अपनी कुत्सित मंशा की पूर्ति हेतु किसी भी हद को पार कर सकती हैं. बताते हैं कि इससे पहले भी वह दो बार अपने त्रिया-चरित्र का यह हथियार चलाकर दो अधिकारियों की इज्जत उतार चुकी हैं और उन्हें ट्रांसफर कराने में सफल भी रही हैं. इनमें से एक अधिकारी ने हाल ही में वीआरएस ले लिया है.

बताते हैं कि 19 फरवरी को जिस कागज पर शिवानी कुकरेती द्वारा डीसीएम देवानंद यादव पर हस्ताक्षर करने का अत्यधिक दबाव बनाया गया था, उस पर डीसीएम-3 एवं डीलर में से डिटेल एवं नोटिंग साइड में किसी के भी तरफ हस्ताक्षर नहीं थे और न ही तैयार किए गए जवाब में संकलन/संदर्भ स्रोत आदि की कोई जानकारी संलग्न की गई थी. जबकि यह फाइल जीएम के आगामी वार्षिक निरीक्षण के संदर्भ में सांसदों/विधायकों एवं अन्य जन-प्रतिनिधियों द्वारा लिखे गए पत्रों/सुझावों पर की गई कार्यवाही की अद्यतन स्थिति से मुख्यालय को अवगत कराने के लिए बनाई जा रही थी. इसके बावजूद कुकरेती द्वारा डीसीएम पर उस पर हस्ताक्षर करने का भारी दबाव बनाया गया. जबकि इस बारे में उन्हें बार-बार समझाया गया था कि जीएम निरीक्षण के लिए बहुत सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड तैयार करने कि जरूरत होती है. उसी के अनुरूप रिकॉर्ड तैयार करके लाने को कहा गया था.

इसके बावजूद जब पुनः डीसीएम के माध्यम से उक्त लूज फाइल डीसीएम देवानंद के पास आई, तब भी रिकॉर्ड/ऑफिस कॉपी में से किसी पर भी डीलर (चीफ ओएस) शिवानी कुकरेती के हस्ताक्षर नहीं थे. इसे जब उनके पास हस्ताक्षर करने हेतु वापस भेजा गया, तब भी उन्होंने सिर्फ ऑफिस कॉपी के कवरिंग लेटर पर ही हस्ताक्षर करके फाइल फिर से डीसीएम को लौटा दी. इस बाद भी ऑफिस कॉपी पर साइन करने के लिए फाइल उनके पास पुनः भेजी गई. इस पर एकदम तैश में आई शिवानी कुकरेती लात मारकर डीसीएम के चैम्बर में घुसी और तेज आवाज में जोर-जोर से डीसीएम देवानंद पर चिल्लाने लगी तथा नारेबाजी करते हुए अनर्गल आरोप लगाने सहित धमकियां और अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए गालियां देना शुरू कर दिया कि ‘ये साला डीसीएम बहुत कानून झाड़ता है, किसी दिन मार खाएगा.. उन्होंने तेज आवाज में धमकी देकर अभद्रतापूर्ण व्यवहार करते हुए यह भी कहा कि “तेरे जैसे तमाम डीसीएम देखे हैं, कई आए और गए, इस ऑफिस में काम तेरी नहीं, मेरी मर्जी से होगा, मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगी, देखती हूं, तू मेरा क्या करता है, मैं तेरे जैसे किसी आईआरटीएस को भी कुछ नहीं समझती!”

शिवानी कुकरेती के उपरोक्त तमाम त्रिया-चरित्र और हंगामे के गवाह न सिर्फ कार्यालय के सभी कर्मचारी हैं, बल्कि इसकी पुष्टि के लिए सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग भी मौजूद है. खासतौर पर महिला वाणिज्य लिपिक उपासना सिंह इस पूरे ‘त्रियाचरित्रम’ की प्रत्यक्ष गवाह हैं, जो कि उस समय डीसीएम देवानंद यादव के चैम्बर में पहले से ही मौजूद थीं और किसी एग्रीमेंट पर उनके हस्ताक्षर लेने आई हुई थीं. यही नहीं, कार्यालय में जोर-शोर से हुए इस हंगामे को सुनकर डीआरएम ने भी तत्काल शिवानी कुकरेती के खिलाफ मेजर पेनाल्टी चार्जशीट जारी करने का आदेश दिया था. प्राप्त जानकारी के अनुसार इससे पहले भी कुकरेती द्वारा नियम विरुद्ध कार्य कराने और गलत हस्ताक्षर लेने के कई प्रयास किए गए थे, जिस पर बार-बार डीसीएम ने उन्हें मौखिक चेतावनी देकर भविष्य में ऐसा नहीं करने को कहा था. तथापि उनकी कार्य-प्रणाली और व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ.

पता चला है कि वाणिज्य लिपिक उपासना सिंह को बाद में धमकाते हुए शिवानी एवं उसके एक अन्य करप्ट साथी ने कहा कि जब वह डीसीएम पर चिल्ला रही थी, तो उन्हें चैम्बर से बाहर चला जाना चाहिए था. इस बात की पुष्टि उपासना द्वारा दी गई लिखित गवाही से भी होती है. इसका अर्थ यह है कि शिवानी कुकरेती उस दिन सिर्फ चिल्ल-पों ही नहीं करना चाहती थी, बल्कि उसके द्वारा डीसीएम के साथ मारपीट करने सहित उन पर अन्य स्त्रियोचित, अमर्यादित, मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगाने की भी सुनियोजित योजना थी. परंतु उपासना सिंह के चैम्बर में मौजूद रहते शिवानी कुकरेती की घटिया एवं कुत्सित योजना फलीभूत नहीं हो पाई.

ऐसे कुछ सोद्देश्य अनैतिक घटनाक्रमों के चलते मंडल/जोनल मुख्यालयों का वातावरण अत्यंत दूषित हो चुका है. ऐसे माहौल में कार्यालयीन कर्मचारियों, और खासकर महिला एवं अनुसूचित वर्ग के रेलकर्मियों से काम करवाना अधिकारियों के लिए अत्यंत मुश्किल हो गया है. कुछ अकर्मण्य कर्मचारी काम न करने और केवल नेतागीरी तथा अनर्गल एवं झूठे आरोप लगाने का दबाव बनाकर हमेशा काम करने से बचने की कोशिश करते हैं. यदि ऐसे में किसी कर्मचारी से जवाब तलब किया जाता है, तो वह या तो और ज्यादा आरोप लगाकर मनगढ़ंत जवाब देता है, अथवा जवाब देने की जरूरत ही नहीं समझता है. इसके अलावा यह भी देखने में आया है कि ऐसे कामचोर और अकर्मण्य कर्मचारियों को कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का ही संरक्षण प्राप्त होता है, जो उन्हें बचाते हैं और बदले में अपने मातहत कनिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ झूठी साजिशों/शिकायतों के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं.

डीसीएम देवानंद यादव से संबंधित उपरोक्त विवाद में भी यही स्थिति है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस मामले में सीनियर डीसीएम सहित प्रिंसिपल सीसीएम की भी मिलीभगत है, जो कि शिवानी कुकरेती का कुत्सित इस्तेमाल अपनी खुन्नस निकालने के लिए कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि पीसीसीएम देवानंद को हटाकर अपने एक चहेते को उनकी जगह पदस्थ करना चाहते हैं. ऐसी कोशिश वह प्रिंसिपल सीओएम रहते भी कर चुके हैं, मगर तब तत्कालीन जीएम ने उन्हें उनके घटिया इरादों में सफल नहीं होने दिया था और उनकी सिफारिश को रद्द कर दिया था. अब वह पुनः एक महिला के त्रिया-चरित्र के जरिए अपने कुत्सित इरादे पर अमल सुनिश्चित करने चले थे, मगर न सिर्फ सभी कर्मचारी संगठन, सभी कार्यालयीन कर्मचारी और दोनों ऑफिसर्स एसोसिएशन भी डीसीएम देवानंद के साथ खड़े हो गए हैं. सूत्रों का कहना है कि पीसीसीएम को देवानंद यादव से नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी से परेशानी है, क्योंकि उनकी ईमानदारी के चलते पीसीसीएम अपनी घटिया करतूतों को सही ढ़ंग से अंजाम नहीं दे पा रहे हैं. जबकि भीतरघाती सीनियर डीसीएम बहुत पहले से ही उनका बगलबच्चा रहा है, अतः उससे ईमानदारी की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

बताते हैं कि जिस दिन उपरोक्त विवाद हुआ, उससे पहले ही शिवानी कुकरेती ने हजरतगंज थाने में डीसीएम के विरुद्ध झूठी आईपीसी की धाराओं 379, 337 एवं 506 के तहत एफआईआर लिखा दी थी. जिस दिन विवाद हुआ, उसकी भी खबर देने वह कार्यालय में किसी बताए बिना ही हजरतगंज थाने जा रही थी. जहां रास्ते में किसी कार ने उसकी स्कूटी को टक्कर मार दिया, मगर इसका आरोप उसने यह कहकर डीसीएम पर ही मढ़ दिया कि उन्होंने ही यह टक्कर मरवाई है. बिना बताए कार्यालय से गायब रहना उसकी आदतों में शुमार है. ऐसा उसने उस दिन भी किया था. कहने का तात्पर्य यह है कि कुकरेती के त्रिया-चरित्र का कोई अंत नहीं है. कार्यालय के हाजिरी रजिस्टर सहित उपरोक्त पूरे मामले से संबंधित सभी आवश्यक दस्तावेज ‘रेल समाचार’ के पास मौजूद हैं.

नियम और शिष्टाचार के विरुद्ध प्रेस क्लब, लखनऊ में पत्रकारों के सामने अपना पक्ष रखती हुई चीफ ओएस, लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे शिवानी कुकरेती.

चीफ ओएस शिवानी कुकरेती द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि पूर्वोत्तर रेलवे के अधिकारियों द्वारा महिलाओं के उत्पीड़न और शोषण किया जा रहा है. प्रेस क्लब में 27 मई को उनके साथ अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन एवं ऑल इंडिया डेमोक्रेटिव वूमेन एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष श्रीमती मधु गर्ग, प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती आशा मिश्रा, श्रीमती रेनू मिश्रा और हमसफर एसोसिएशन की श्रीमती ममता, आइपा की श्रीमती मीना शामिल थीं. जबकि डीसीएम देवानंद यादव के पक्ष में खड़े होकर ऑल इंडिया एससी/एसटी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन के मंडल अध्यक्ष संपत राम मीना, मंडल मंत्री रामप्रकाश, ऑल इंडिया ओबीसी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन के मंडल अध्यक्ष सी. पी. वर्मा, आईआरटीसीएसओ, पूर्वोत्तर रेलवे के महामंत्री रमेश चंद्र मिश्रा, पूर्वोत्तर रेलवे श्रमिक संघ के मंडल अध्यक्ष यू. सी. तिवारी ने प्रेस विज्ञप्तियां जारी करके शिवानी कुकरेती के तमाम कुकर्मों को न सिर्फ उजागर किया है, बल्कि मंडल कार्यालय के सामने प्रदर्शन करके कुकरेती को लखनऊ से बाहर ट्रांसफर किए जाने की भी मांग की है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार डीआरएम विजयलक्ष्मी कौशिक ने उपरोक्त तमाम घटनाक्रम और विवाद पर सीनियर डीपीओ की अध्यक्षता में एक आतंरिक जांच समिति गठित की थी. समिति ने अपनी जांच में शिवानी कुकरेती को उनके दुर्व्यवहार सहित कार्य-प्रणाली इत्यादि के लिए पूरी तरह दोषी पाया और मेजर पेनाल्टी चार्जशीट सहित उनका मंडल कार्यालय से बाहर ट्रांसफर किए जाने की सिफारिश की थी. डीआरएम श्रीमती कौशिक ने भी समिति की उक्त सिफारिशों को मंजूर करते हुए तदनुसार कार्यवाही करने हेतु फाइल सीनियर डीसीएम को अग्रसारित किया था. परंतु जो खुद उपरोक्त तमाम साजिश में शामिल रहा हो, वह ऐसा कोई काम क्यों करेगा. परिणामस्वरूप डीआरएम के आदेश का उल्लंघन करते हुए सीनियर डीसीएम ने मेजर को माइनर पेनाल्टी में बदल दिया और वाणिज्य विभाग से पीआरओ कार्यालय में ट्रांसफर करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी. तथापि मंडल कार्यालय में कार्यरत लगभग सभी कर्मचारियों का कहना है कि जब तक शिवानी कुकरेती जैसी महिला का वहां से बाहर तबादला नहीं किया जाएगा, तब तक यहां शांति स्थापना की कल्पना व्यर्थ है.

इस मामले को लेकर 14 मई को पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के सभागार में डायरेक्ट एवं प्रमोटी दोनों ऑफिसर्स एसोसिएशनों के अधिकारियों/पदाधिकारियों की बैठक हुई. बैठक में सीधी भर्ती ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं एडीआरएम/टी गौरव गोविल, एडीआरएम/ऑपरेशन प्रवीण पांडेय, सचिव एवं सीनियर डीएसओ अनिल कुमार, सीनियर डीपीओ मनोज कुमार पांडेय, सीनियर डीओएम डॉ. वीणा वर्मा, सीनियर ईडीपीएम श्रीमती ज्योति भास्कर कैरो, सीनियर डीएफएम रतनेश कुमार सिंह, सीनियर डीएमई/ओएंडएफ सुधीर कुमार सिंह, सीनियर डीएमई/सामाडि एस. एस. कैरो, सीनियर डीईई/सामान्य राघवेंद्र कुमार, सीनियर डीईई/टीआरडी जितेंद्र यादव, सीनियर डीएसटीई एस. डी. पाठक, डीएमई-2 वी. पी. सिंह, डीएमई-3 पावस यादव, डीसीएम देवानंद यादव, डीओएम/संचालन संजीव शर्मा, डीएमई/सामाडि राहुल मिश्रा, डीईई/टीआरडी धनंजय मिश्रा, डीईई/सामान्य सत्येंद्र यादव, डीएमई/ईएनएचएम एवं अध्यक्ष, प्रमोटी ऑफिसर्स एसोसिएशन कार्तिकेय सिंह, डीएफएम एवं सचिव प्रमोटी ऑफिसर्स एसोसिएशन तौकीर अहमद, सीडीओ रमाशंकर, पीआरओ आलोक श्रीवास्तव और एडीईएन सुनील कुमार सिंह इत्यादि अधिकारी उपस्थित थे.

बैठक में डीसीएम देवानंद यादव ने विस्तार से पूरे घटनाक्रम की जानकारी उपस्थित अधिकारियों को दी, जिसकी पुष्टि घटनाक्रम से संबंधित अन्य अधिकारियों ने भी की. इसके आधार पर पदाधिकारियों ने निष्कर्ष निकाला कि चीफ ओएस शिवानी कुकरेती द्वारा डीसीएम देवानंद यादव के विरुद्ध जान से मारने की झूठी एफआईआर पुलिस में दर्ज कराई गई है. 31 मई को सचिव अनिल कुमार द्वारा जारी की गई बैठक की मिनट्स के अनुसार बैठक में 9 प्रस्ताव पारित किए गए, जिनके तहत पूरे घटनाक्रम का विस्तार से उल्लेख किया गया है. इसमें कहा गया है कि यदि इस प्रकार की घटनाओं को रोकने हेतु जल्दी ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो निकट भविष्य में अन्य अधिकारियों को भी इस तरह की अनुचित घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है. अतः भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर कदम उठाए जाने के संबंध में सभी उपस्थित अधिकारियों ने सहमति व्यक्त की. इसके अलावा झूठी एफआईआर को निरस्त कराने हेतु रेल प्रशासन द्वारा हाई कोर्ट में अपील दायर किए जाने पर भी सहमति व्यक्त की गई.

इसके अंतिम प्रस्ताव में ‘रेल समाचार’ द्वारा बार-बार उल्लेख किए जाने वाली बात की पुष्टि करते हुए साफ कहा गया है कि मिनिस्टीरियल स्टाफ के कर्मचारियों की एक ही स्थान पर लगातार 20-25 वर्षों तक पदस्थापना रहने से भी ऐसे अकर्मण्य, उद्दंड एवं उच्छ्रंखल तत्वों को बढ़ावा मिलता है. अतः फील्ड कर्मचारियों की ही भांति मिनिस्टीरियल/कार्यालयीन कर्मचारियों पर भी प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर अंतरमंडलीय स्थानांतरण नीति लागू किए जाने की आवश्यकता है. इसके लिए जीएम, सीआरबी और रेलवे बोर्ड को लिखित रूप से अवगत कराया जाएगा. उक्त प्रस्ताव की प्रतियां ओएसडी/सीआरबी, ओएसडी/एमटी सहित सेक्रेटरी/जीएम, एसडीजीएम, पीसीओएम, पीसीसीएम, पीसीपीओ, डीआरएम, दोनों एडीआरएम, दोनों ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष/सचिव, अध्यक्ष/महासचिव/एफआरओए/रे.बो. और लखनऊ मंडल के सभी शाखाधिकारियों को भी भेजी गई हैं. अब देखना यह है कि सब कुछ साबित और स्पष्ट होने के बाद रेल प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठता है अथवा दुम दबाकर बैठ जाएगा?

इनपुट सहाय्य : गोरखपुर ब्यूरो