उत्तर मध्य रेलवे में चल रहा भयंकर भ्रष्टाचार और स्थानांतरण उद्योग

उच्चाधिकार ने किया सभी विभाग प्रमुखों के विशेषाधिकार का अपहरण

वर्दी/रेनकोट की खरीद में खास सप्लायर के पक्ष में की जा रही सिफारिश

प्रयागराज ब्यूरो : उत्तर मध्य रेलवे में इस समय स्थानांतरण उद्योग तेजी से फलफूल रहा है. सारे विभाग प्रमुख अपने उच्चाधिकार के सामने नत-मस्तक हैं. पहली बार ऐसा हो रहा है कि शाखाधिकरियों का स्थानांतरण और पदस्थापना खुद उच्चाधिकार द्वारा की जा रही है, जबकि डिवीजनल ब्रांच अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग हमेशा विभाग प्रमुख का ही विशेषाधिकार रहा है. मगर यहां उच्चाधिकार ने सबके अधिकारों का अपहरण कर लिया है. यह कहना है कई विभाग प्रमुखों का. उनका यह भी कहना है की इस अनावश्यक हस्तक्षेप से पूरी व्यवस्था चौपट हो रही है. इसके अलावा वर्दी और बरसाती तक की खरीद में कमीशनखोरी के लिए उच्चाधिकार द्वारा अपने खास सप्लायरों और अन्य ठेकेदारों के पक्ष में की जा रही सिफारिशों ने यहां भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी हैं.

नाम न उजागर करने की शर्त पर कुछ अधिकारियों ने ‘रेल समाचार’ को जानकारी देते हुए कहा कि झांसी मंडल के वरिष्ठ मंडल सामग्री प्रबंधक, जिनका एसएजी आने वाला है. को पहले झांसी से हटा दिया गया, परंतु जब वह कुछ प्रसाद चढ़ा दिए, तो उन्हें पुनः झांसी में ही पोस्ट कर दिया गया. इसी तरह ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों को पहले स्थानांतरण की धमकियां दी गईं, मगर जब जिस-जिस से मामला सेट हो गया, उस-उसको वहीं रोक दिया गया.

उन्होंने बताया कि पहले वरिष्ठ मंडल वित्त प्रबंधक (सीनियर डीएफएम) की पत्नी को झांसी पोस्ट किया गया और एक महीने बाद ही खुद सीनियर डीएफएम का, उनके निवेदन की अनदेखी करते हुए, बेवजह और नियम-विरुद्ध इलाहाबाद में इसलिए ट्रांसफर कर दिया गया, ताकि वह कुछ चढ़ावा चढ़ाने को तैयार हों. सुना है सीनियर डीएफएम भी इसका प्रयास कर रहे हैं और संभवतः कुछ वायदा भी करके आए हैं. इसलिए आदेश पेंडिग कर दिए गए हैं. जैसे ही प्रसाद पहुंच जाएगा, उनका भी ट्रांसफर आदेश रद्द कर दिया जाएगा.

इसी तरह चिकित्सा विभाग के कुछ डॉक्टरों का स्थानांतरण किया गया, जो कि झांसी, इलाहबाद और कानपुर सहित उत्तर मध्य रेलवे में लंबे समय से एक ही जगह कार्यरत हैं. हालांकि उन्होंने अभी तक नए पदों पर ज्वॉइन नहीं किया है. बताया जा रहा है कि बात अगर बन गई और यदि भरपूर मात्रा में प्रसाद पहुंच गया, तो ये स्थानांतरण भी रद्द कर दिए जाएंगे और कुछ तो रद्द कर भी दिए गए हैं.

इसके अतिरिक्त जोनल प्रमुख के विषय में सुना जा रहा है कि ठेकेदारों पर बहुत मेहरबान रहते हैं. खुद अपनी पसंद के ठेकेदारों से काम करवाने के लिए डीआरएम और शखाधिकरियों पर सीधे दबाव डालते हैं. कुछ दिन पहले आगरा में ट्रैकमैंनों के लिए सर्दी की जैकेटों की खरीद में लाखों रुपयों का गोलमाल किया गया, जिसका बड़ा हिस्सा मुखिया को भेजा गया. वहीं यही वर्दियां झांसी मंडल में बहुत कम दरों पर खरीदी गई हैं. ये सीबीआई द्वारा जांच किए जाने वाला एक बड़ा मुद्दा हो सकता है. कर्मचारियों की मांग है कि जिस ठेकेदार ने यह वर्दियां सप्लाई की हैं, उसके और जोनल मुखिया के बीच संबंधों की जांच की जानी चाहिए. इनके फोन कॉल रिकार्ड्स की भी जांच होनी चाहिए. इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

इसके अलावा झांसी मंडल के एक मामले का और पता चला है. वह यह कि यहां इंजीनियरिंग विभाग के लाइन पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए रेनकोट (बरसाती) खरीदने के लिए ओपन टेंडर करने के बजाय यह कहकर स्पॉट परचेज कमेटी बनाई गई कि कमेटी द्वारा बेहतर गुणवत्ता की बरसाती का चयन किया जाएगा. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि उच्चाधिकार ने यह परचेज ऑर्डर उनकी एक खास पार्टी को देने की सिफारिश की थी, जिसका कोटेशन प्रति बरसाती 2000 रु. का था, परंतु कमेटी ने उससे बेहतर गुणवत्ता की बरसाती 1200 रु. प्रति में खरीदने की सिफारिश कर दी.

सूत्रों का कहना है कि इससे नाराज उच्चाधिकार ने यह कहकर मामला विजिलेंस को सौंप दिया कि कमेटी ने गुणवत्ताविहीन बरसाती की खरीद की है. इसके बाद विजिलेंस ने सीनियर डीएफएम सहित स्पॉट परचेज कमेटी के सभी सदस्यों को एक प्रश्नावली थमा दी. यह मामला 21-22 मई को तब खुला, जब विजिलेंस की प्रश्नावली मिलने के बाद सीनियर डीएफएम भागे-भागे रेलवे बोर्ड पहुंचे. बताते हैं कि यह मामला रेलमंत्री के भी संज्ञान में लाया गया. मगर तब चूंकि सरकार के गठन की प्रक्रिया चल रही थी, इसलिए इसे पेंडिंग कर दिया गया था. अब जब पुनः रेलमंत्री के रूप में पीयूष गोयल ने कार्यभार संभाल लिया है, तो उक्त मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

उपरोक्त तमाम प्रकरण सिर्फ एक जोनल रेलवे के हैं, वह भी वे जो ‘रेल समाचार’ के संज्ञान में आए हैं. जबकि यहां ऐसे कई प्रकरण और हो सकते हैं. इनको देखने मात्र से पता चलता है कि रेलवे में किस कदर भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है कि वर्दी और बरसाती तक की खरीद में जब खुद उच्चाधिकार द्वारा ही कमीशन उगाहा जा रहा है, तब नीचे के अधिकारियों के भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की बात ही क्या की जा सकती है? इसके अलावा उच्चाधिकार एवं कुछ विभाग प्रमुखों द्वारा इलाहबाद-कानपुर और झांसी सेक्शन के नियमित दौरे भी अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं. स्थिति यह है कि जो जहां बैठा है, वहां अपने पद और अधिकार का दुरुपयोग करते हुए रेलवे को लूटने में मगन है, जबकि विजिलेंस, सीवीसी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सत्ताधारियों की तरफ देख रही हैं.