मुंबई राजधानी की विशेषता को कुछ रेलकर्मियों ने पुनः किया शर्मशार

एक अधिकारी सहित विजिलेंस इंस्पेक्टर और दो अन्य कर्मी पकड़े गए

‘उचित सेवा’ न होने पर रे.बो.विजिलेंस के लोगों ने की बदले की कार्रवाई?

रेल प्रशासन कर रहा ‘कौवा कान ले गया’ की तर्ज पर विभागीय कार्यवाही

मुंबई : शुक्रवार, 5 अप्रैल को मुंबई सेंट्रल से नई दिल्ली के लिए चली 12951 मुंबई राजधानी की विशेषता एक बार पुनः शर्मशार हुई. इसके साथ ही अपने ही मातहतों की गलत हरकतों के कारण रेल प्रशासन को भी शर्मशार होना पड़ा है. इस बार भी इस विवाद के लिए रेलकर्मी और रेल अधिकारी ही जिम्मेदार रहे हैं. जहां तक यात्रियों की बात है, तो वह एक बार गलती करने और दंड भुगतने के बाद अमूमन सुधर जाते हैं तथा उसी गलती को पुनः नहीं दोहराते हैं, मगर यही बात कुछ रेलकर्मियों और अधिकारियों पर लागू नहीं होती है, क्योंकि वे चेतावनी और दंड मिलने के बाद भी नहीं सुधरते हैं, बल्कि वही गलती बार-बार दोहराते पकड़े जाते हैं. इस बार भी यही हुआ है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार, 5 अप्रैल को गाड़ी में रेलवे बोर्ड विजिलेंस के दो इंस्पेक्टर – मानस घोष और रवीन्द्र बॉथम – भी थे, जो कि मुंबई सेंट्रल से ही ट्रेन में सवार हुए थे, जबकि उनके दो अन्य साथी सूरत से आने वाले थे. पता चला है कि यह चारों आईआई/रे.बो. मुंबई और सूरत में उस मामले की जांच करने आए थे, जिसमें स्टेशन ड्यूटी करने वाले वरिष्ठ टिकट चेकिंग स्टाफ द्वारा फर्जी टीए क्लेम किए जाने की शिकायत रेलवे बोर्ड विजिलेंस को प. रे. के ही किसी टिकट चेकिंग स्टाफ ने की है. हालांकि मिली जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड के सक्षम प्राधिकारी के आदेश पर स्टेशन ड्यूटी करने वाले वरिष्ठ टिकट चेकिंग स्टाफ द्वारा फर्जी टीए क्लेम करने के इस मामले की जांच रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा भारतीय रेल के सभी जोनों/मंडलों में की जा रही है.

बहरहाल, प्राप्त जानकारी के अनुसार उस दिन ट्रेन इंचार्ज सीटीआई के. डी. शुक्ला थे, जिनके मातहत फर्स्ट और सेकेंड एसी के कोच थे. बताते हैं कि गाड़ी में उस दिन सहायक वाणिज्य प्रबंधक (एसीएम), मुंबई सेंट्रल राजेश मथूरिया, प. रे. मुख्यालय में मुख्य सतर्कता निरीक्षक (सीवीआई) राजेश भाटिया के साथ मुख्य वाणिज्य निरीक्षक (सीएमआई) द्वय अमित वर्मा एवं एस. आर. गावड़े भी थे. पता चला है कि यह सभी लोग गाड़ी चलने से पहले पीछे वाली पैंट्री में एक-दूसरे से मिले, साथ में पानी-वानी भी पिया. फिर गाड़ी चलने के बाद जैसे ही मानस घोष और रवीन्द्र बॉथम सीटीआई शुक्ला द्वारा बताई गई सेकेंड एसी कोच की बर्थ पर चले गए, वैसे ही यह चारों – मथूरिया, भाटिया, वर्मा एवं गावड़े – फर्स्ट एसी कोच एचए-1 की खाली केबिन ‘बी’ में जाकर जम गए. बताते हैं कि इन्होंने रेलवे बोर्ड वालों को ज्यादा भाव भी नहीं दिया अथवा उन्हें भी अपने साथ फर्स्ट एसी में बुला लेने की जरूरत नहीं समझी.

अपुष्ट जानकारी के अनुसार एसीएम मथूरिया का आरक्षण किसी अन्य कोच में था. जबकि सीवीआई राजेश भाटिया और सीएमआई द्वय वर्मा एवं गावड़े का कोई आरक्षण नहीं था, वह दोनों तो एक एसीएम और एक सीवीआई के रहते मात्र हुक्म के गुलाम थे. बताते हैं कि इसीलिए गाड़ी में अपना सीवीआई रहते ट्रेन इंचार्ज के. डी. शुक्ला ने भी रेलवे बोर्ड वालों को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी. प्राप्त जानकारी के अनुसार फर्स्ट एसी में कब्जा जमाने के बाद कथित तौर पर उक्त चारों लोगों ने शराब पीने का दौर शुरू कर दिया. यह भी पता चला है कि आईआई/रे.बो. द्वय घोष एवं बॉथम को इनकी सभी गतिविधियों की जानकारी पैंट्री वेंडर्स के हवाले से मिल रही थी. जबकि पैंट्री से निकलकर इन चारों लोगों द्वारा फर्स्ट एसी में कब्जा जमा लेने की जानकारी उन्हें पहले ही हो चुकी थी.

यह भी पता चला है कि सीवीआई राजेश भाटिया अक्सर राजधानी एक्सप्रेस से ही रतलाम तक जाते रहते हैं. उल्लेखनीय है कि इससे पहले भाटिया रेलवे बोर्ड के सेंट्रल टिकट चेकिंग (सीटीसी) स्क्वाड में भी रह चुके हैं. इसलिए उनके साथ दो-दो विशेषताएं लगी होने से ऑन बोर्ड टिकट चेकिंग स्टाफ द्वारा उनकी कुछ ज्यादा ही आवभगत की जाती है. बताते हैं कि रतलाम में उतरकर वह वहां से इंदौर जाते हैं, जहां के वह मूल निवासी बताए जाते हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार सूरत तक तो घोष बाबू और बॉथम ने इन चारों की गतिविधियों को वाच किया. सूरत में उनके दो अन्य साथी भी गाड़ी में आ गए. सूरत से गाड़ी चलने के तुरंत बाद चारों आईआई/रे.बो. ने मानस घोष के नेतृत्व में फर्स्ट एसी के उक्त केबिन में अचानक धावा बोलकर उन्हें कथित तौर पर शराब पीते हुए पकड़ा.

बताते हैं कि मानस घोष ने अपने मोबाइल का कैमरा ऑन करके केबिन में प्रवेश किया था, जिसे देखकर चारों के होश उड़ गए थे. उनके साथ ट्रेन इंचार्ज सीटीआई के. डी. शुक्ला भी थे. कैमरे में फोटो/वीडियो रिकॉर्डिंग होते देखकर एसीएम राजेश मथूरिया, सीवीआई राजेश भाटिया और सीएमआई द्वय अमित वर्मा एवं एस. आर. गावड़े ने पूरी तरह सरेंडर कर दिया. बताते हैं जब उनकी ट्रेवल अथॉरिटी के बारे में पूछा गया, तो वह उनमें से किसी के पास नहीं थी. तब आईआई मानस घोष के आदेश पर ट्रेन इंचार्ज शुक्ला ने चारों की रसीद बनाई.

पता चला है कि प्रत्येक पर 5,750 रुपये दंड लगाकर उनकी रसीद बनाई गई. इस तरह दंड स्वरूप इन चारों से कुल 34,000 रुपये वसूले गए. हालांकि अधिकृत तौर पर राजधानी के फर्स्ट एसी का एकतरफा सामान्य किराया 4,750 रुपये होता है. बिना टिकट अथवा अवैध टिकट पाए जाने पर राजधानी में नियमानुसार टिकट राशि के बराबर ही दंड राशि की वसूली होती है. इस प्रकार देखा जाए तो प्रत्येक से दंड राशि सहित न्यूनतम 9,500 रुपये (कुल 38,000 रुपये) की वसूली होनी चाहिए थी. इस प्रकार देखा जाए तो वसूली गई राशि 4,000 रुपये कम है.

बताते हैं कि इस पूरे मामले में उक्त चारों लोगों द्वारा फर्स्ट एसी कूपे में बैठकर शराब पीने का जिक्र रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने बाद में बनाए गए जॉइंट नोट में कहीं भी नहीं किया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि उक्त चारों लोगों के शराब पीने की बात मीडिया को आखिर किसने बताई? हालांकि परंपरा के अनुसार विजिलेंस वाले गाड़ी में केस बनाने के बाद अगले स्टापेज पर उतर जाते हैं. मगर इस बार उक्त चारों आईआई सीधे दिल्ली तक गए. मगर राजधानी एक्सप्रेस में शराब पीने और विजिलेंस द्वारा केस बनाए जाने की खबर कोटा के एक दैनिक अखबार ने सबसे पहले प्रकाशित की. इसलिए आशंका इस बात की व्यक्त की जा रही है कि यह खबर उक्त अखबार को रेलवे बोर्ड विजिलेंस के ही किसी इंस्पेक्टर ने लीक की थी. वैसे भी यह बात तमाम स्टाफ में जगजाहिर है कि घोष बाबू ऐसे मामलों में हमेशा आगे इसलिए रहते हैं, जिससे बाद में उनके बनाए केस में उच्च अधिकारियों द्वारा किसी प्रकार की जोड़तोड़ न की जा सके.

बहरहाल, पता चला है कि अब पश्चिम रेलवे मुख्यालय और जोनल विजिलेंस द्वारा एक बार फिर अपनी नाक कट जाने के बाद ‘कौवा कान ले गया’ की तर्ज पर विभागीय जांच कार्यवाही की जा रही है और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इस मामले की खबर मीडिया को किसने दी? हालांकि पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी रवीन्द्र भाकर ने पत्रकारों को बताया कि इस मामले में रेलवे बोर्ड की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

इस प्रकार एक बार फिर अपने मातहतों की ही बदौलत रेल प्रशासन को शर्मशार होना पड़ा है और उन्हीं की बदौलत रेलवे की छवि धूमिल हुई है. यह भी सर्वज्ञात है की अधिकांश विजिलेंस इंस्पेक्टर नियमनुसार यात्रा नहीं करते हैं और ज्यादातर विवाद उनकी अनियामितातापूर्ण कार्यवाही के कारण ही पैदा होते हैं. इस मामले में भी सीवीआई राजेश भाटिया को अपने ओहदे और रुतबे का दुरुपयोग करते हुए पाया गया है. इससे पहले भी पूर्व सीवीआई एम. के. सिंह को इन्हीं आरोपों के चलते विजिलेंस से खदेड़ा गया था. अब शायद राजेश भाटिया के साथ भी वैसा ही किया जाएगा. परंतु यह भी सच है कि रेल प्रशासन द्वारा भ्रष्ट और अहंमन्य विजिलेंस इंस्पेक्टरों के विरुद्ध तत्काल वैसी कोई उचित कार्रवाई नहीं की जाती है, जैसी कार्रवाई सामान्य रेलकर्मियों के खिलाफ गलती पाए जाने पर की जाती है. इसका ज्वलंत उदाहरण पूर्व सीवीआई एम. के. सिंह हैं, जिन्हें करीब छह माह बाद रिवर्ट किया गया था. प्रस्तुत मामले में सीवीआई राजेश भाटिया को भी जांच और प्रक्रिया के नाम पर इतना ही समय दिया जाएगा, जो कि उन्हें फेवर करने के बराबर है.

यह भी जगजाहिर है कि ऑन बोर्ड टिकट चेकिंग स्टाफ द्वारा विजिलेंस इंस्पेक्टरों (वीआई) की आवभगत अपने किसी दामाद, जीजा या फूफा की तरह की जाती है. चूंकि वे लगभग हमेशा ही बिना रिजर्वेशन कराए आते हैं. जिस गाड़ी में उन्हें जाना होता है, उसकी सूचना पहले से ही उक्त गाड़ी के कंडक्टर को दे दी जाती है. फलस्वरूप उक्त कंडक्टर द्वारा चार्ट देखकर उनके लिए उनकी पसंद के अनुरूप उचित बर्थ की व्यवस्था पहले से कर ली जाती है. कुछ वीआई यदि थर्ड एसी में अपना रिजर्वेशन कराकर भी आते हैं, तो भी उन्हें सेकेंड एसी अथवा केबिन खाली होने पर फर्स्ट एसी में शिफ्ट कर दिया जाता है.

यही नहीं, गाड़ी चलते ही कोच अटेंडेंट को कहकर कंडक्टर द्वारा उनका बिस्तर भी बिछ्वाया जाता है और पैंट्री वेंडर से उनके लिए दो पानी की बोतलें और थर्मस में गर्मागरम बढ़िया चाय भी तत्काल भेजवाई जाती है. बाद में उनकी पसंद के अनुसार शराब और खाने का भी इंतजाम किया जाता है. इस प्रकार ऑन बोर्ड टिकट चेकिंग स्टाफ द्वारा हर कदम पर ‘वीआईयों’ की सुख-सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है. यह भी सही है कि यदि टिकट चेकिंग स्टाफ गलत काम नहीं करे, तो उसे किसी अहंमन्य वीआई को दामाद, जीजा या फूफा बनाने की जरूरत ही न पड़ेगी. कुछ वीआई तो इतने अहंकारी बताए जाते हैं कि यदि उन्हें ‘व्हील’ के ऊपर वाली बर्थ दे दी गई अथवा अंदर की लोअर बर्थ उपलब्ध नहीं कराई, तो जाते-जाते संबंधित कंडक्टर के खिलाफ ही केस बना दिया.

शुक्रवार, 5 अप्रैल का प्रस्तुत मामला भी कुछ इसी प्रकार की बदले की कार्रवाई बताया जा रहा है. एक तो सीवीआई भाटिया के चक्कर में एसीएम मथूरिया और दो सीएमआई अमित वर्मा एवं एस. आर. गावड़े मुफ्त में फंस गए हैं. दूसरे लुंज-पुंज कंडक्टर के. डी. शुक्ला द्वारा चारों आईआई/रे.बो. के बजाय सीवीआई को ज्यादा तवज्जो दी गई और उन्हें फर्स्ट एसी में खाली पड़ा केबिन ऑफर करने के बजाय सेकेंड एसी में भेज दिया गया. यहां यह भी एक विडंबना देखने में आई है कि पिछले कुछ समय से मुंबई राजधानी में शुक्ला टाइप का ही ज्यादातर लुंज-पुंज स्टाफ लगाया गया है, जिसे सलीके से अपनी वर्दी तक पहननी नहीं आती है, जबकि रेलमंत्री पीयूष गोयल की रेल आसमान पर दौड़ रही है, तथापि रेल प्रशासन यात्रियों की रोजमर्रा की शिकायतों का भी निवारण नहीं कर पा रहा है!