मुंबई मंडल, म. रे. में विद्युत् अधिकारियों के ट्रांसफर पर अमल नहीं

विभाग प्रमुख द्वारा स्वहित को ध्यान में रखकर फेंटे जा रहे अधिकारी

टीएल/एसी टेंडर आवंटन, कोच मेंटीनेंस आदि में हो रहा खुला भ्रष्टाचार

एसएसई के कार्य में बदलाव के नाम पर दिया जा रहा भ्रष्टाचार को प्रश्रय

मुंबई : मध्य रेलवे, मुंबई मंडल में गत 5 फरवरी को जिन पांच जेएजी अधिकारियों के ट्रांसफर का आदेश जारी किया गया था, उस पर प्रशासन द्वारा अब तक अमल नहीं करवाया जा सका है. पता चला है कि इनमें से सिर्फ एक अधिकारी का फेवर करने के लिए ट्रांसफर का यह सारा नाटक खेला गया. यही कारण है कि किसी भी अधिकारी ने उक्त ट्रांसफर ऑर्डर पर अमल करने और अपनी वर्तमान जगह छोड़ने से मना कर दिया. इसमें से एक अधिकारी का रिटायरमेंट अगले छह महीनों में होने वाला है, जबकि उसे भीषण स्वाथ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. वर्तमान में भी वह लंबी छुट्टी लेकर अपना इलाज करवा रहा है. अतः बताते हैं कि उसने इस अनावश्यक ट्रांसफर को स्वीकार करने से मना कर दिया है.

जबकि एक अन्य अधिकारी को अभी वर्तमान जगह पर पदस्थ हुए एक साल भी शायद पूरा नहीं हो पाया है, फिर भी विभागीय प्रमुख द्वारा अपने निजी स्वार्थ में वर्कशॉप से उसका ट्रांसफर मंडल कार्यालय में कर दिया गया, जिससे उसकी निजी सेवाओं में कोई बाधा न आए. प्राप्त जानकारी के अनुसार सीडब्ल्यूएम द्वारा उक्त अधिकारी को रिलीव करने से मना करने और प्रिंसिपल सीएमई द्वारा उसके ट्रांसफर पर असहमति जाता देने से उसे भी नहीं छोड़ा गया. बताते हैं कि एक सेवा-भावी अधिकारी के जाने से उक्त कमाऊ पद पर दूसरे सेवा-भावी अधिकारी को लाने की मजबूरी विभाग प्रमुख की थी. वैसे भी बताते हैं कि इस विभाग प्रमुख की नियुक्ति जोन के शीर्ष अधिकारी की पसंद से नहीं, बल्कि एमटीआर की पसंद पर हुई थी. इसी का परिणाम है कि मध्य रेलवे में इलेक्ट्रिकल मेंटीनेंस सहित लगभग सभी विद्युत् स्थापनाओं का बंटाधार हुआ पड़ा है.

जब उक्त दो अधिकारियों को रिलीव नहीं किया गया, तो बाकी अधिकारी भी बच गए. इनमें एक अधिकारी ऐसा भी है, जिसे यहां कुछ ही दिनों की पोस्टिंग के बाद दुबारा इंटर रेलवे ट्रांसफर कर दिया गया. जबकि यह अधिकारी अन्य डिविजन से यहां आने के लिए पहले ही मना कर रहा था. मगर उसे जबरन यहां लाया गया. अब इंटर रेलवे ट्रांसफर किए जाने पर वह अड़ गया है और ट्रांसफर पर अमल करने से साफ मना कर दिया है. उल्लखेनीय है कि रेलवे बोर्ड की पालिसी को ताक पर रखते हुए ऐसे कई अधिकारी हैं, जो कि ग्रुप ‘सी’ में ज्वाइन करने से लेकर ग्रुप ‘बी’ में प्रमोट होने और जेएजी/एसजी तक पहुंचने के बावजूद अपने वरिष्ठों की ‘सेवा’ की बदौलत अब तक का अपना पूरा कार्यकाल मंडल में ही बिता रहे हैं. इस प्रकार इस ट्रांसफर ऑर्डर पर अमल नहीं हो सका है.

यह सर्वविदित है कि मध्य रेलवे विद्युत् विभाग में पिछले करीब एक साल में जितने भी विद्युत् अधिकारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग हुई है, वह विभाग प्रमुख द्वारा अपने निजी हितों को ध्यान में रखकर की गई है. इसके अलावा इस ट्रांसफर/पोस्टिंग में बिरादरीगत प्रभाव भी देखा गया है. बताते हैं कि विभाग प्रमुख की यह मनमानी इसलिए भी जारी है, क्योंकि उक्त पद पर पसंद के अधिकारी की पोस्टिंग नहीं दिए जाने के कारण जोन के शीर्ष अधिकारी का इस विभाग से बहुत पहले ही मोह भंग हो चुका था. इसके परिणामस्वरूप विभाग प्रमुख सहित कई विद्युत् अधिकारी भीषण भ्रष्टाचार में संलग्न रहे हैं. इसी के चलते विजिलेंस ने भी विद्युत् अधिकारियों के इस भ्रष्टाचार से अपनी आंखें पूरी तरह बंद रखी हैं.

यही कारण है कि जिस एसी यूनिट्स के मेंटीनेंस को विभागीय तौर पर कराए जाने का बोगस कारण बताकर दो-दो बार और 9-9 महीनों बाद तत्संबंधी दो टेंडर (सं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/सीएसटीएम/2017/36 एवं 09/2017) रद्द किए गए, उसी काम को कोटेशन पर अपने चहेते ठेकेदार को दिया गया. यही नहीं, नियमानुसार कोटेशन में भी ओईएम को वरीयता दिए जाने की अनिवार्यता को भी दरकिनार किया गया. ‘रेल समाचार’ द्वारा मामला उजागर किए जाने पर संबंधित अधिकारी को ट्रांसफर करके विजिलेंस जांच से बचाया गया. यही नहीं, जहां कोटेशन में ओईएम को नियम विरुद्ध दरकिनार किया गया, वहीं दि. 05.01.2018 को जारी हुए और दि. 05.02.2018 को खुले डीजी सेट्स, मोबाइल वैन, पॉवर कार एवं टावर वैगंस इत्यादि के कॉम्प्रीहेंसिव मेंटीनेंस कांट्रेक्ट के एक अन्य टेंडर में ओईएम को महत्त्व देने के नाम पर एक फर्म विशेष को फेवर करने के लिए एल-1 आए बिडर को बोगस कारणों से बाहर कर दिया गया.

इसके अलावा जिस फर्म (एलओए नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/2017/3, दि. 23.08.2018) को उपरोक्त टेंडर देने के लिए ओईएम के नाम पर फेवर किया गया, उसने इस टेंडर को एक अन्य फर्म को बिना किसी विभागीय अनुमति के सब्लेट कर दिया. यही नहीं, बताते हैं कि आज तक भी उक्त फर्म के पास इस टेंडर को सब्लेट करने की विभागीय अनुमति नहीं है. तथापि ‘इंडियन रेलवे जनरल कंडीशन ऑफ कांट्रेक्ट’ के पैरा-7 (पेज नं. 25) में दी गई शर्त के अनुसार उक्त फर्म के विरुद्ध आज तक कोई प्रशासनिक कदम नहीं उठाया गया. यह सारा मामला पूरी तरह संज्ञान में लाए जाने के बावजूद विजिलेंस सहित सभी संबंधित अधिकारी कान में तेल डालकर सोये हुए हैं और संबंधित फर्म 30% अपना मुनाफा लेकर टेंडर की सब्लेटिंग करके मौज कर रही है. प्रधानमंत्री और रेलमंत्री गला फाड़-फाड़कर भ्रष्टाचार मिटाने और ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का राग अलापते हैं, मगर उनकी नाक के नीचे रेलवे में भयानक भ्रष्टाचार हो रहा है.


एसएसई के ट्रांसफर के नाम पर व्यवस्था के साथ मजाक

प्रशासन और यूनियन द्वारा भ्रष्टाचार को दिया जा रहा खुला समर्थन

एडीईई/टीएल/सीएसएमटी ने दि. 22.02.19 को टीएल/एसी/एलटीटी डिपो में ट्रांसफर के नाम पर विवादास्पद एसएसई के कार्य में तथाकथित बदलाव का जो आदेश जारी किया है, वह रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा जारी आदेश को मुंह चिढ़ा रहा है, क्योंकि इससे उक्त एसएसई की न तो कुर्सी बदली है और न ही डिपो बदला गया है. व्यवस्था के साथ इससे बड़ा कोई मजाक नहीं हो सकता. ठेकेदारों से मिलीभगत करके एलटीटी स्थित ट्रेन लाइटिंग/आरएमपीयू मेंटीनेंस डिपो में हो रहे भारी भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए लोगों की आंखों में धूल झोंकने वाले इस बचकाना आदेश से रेलकर्मियों में भारी नाराजगी और आक्रोश व्याप्त है. उनका कहना है कि यूनियन के दबाव में एडीईई द्वारा एसएसई के फेवर वाला मूर्खतापूर्ण आदेश निकाला गया है. उन्होंने बोर्ड लगाकर जीएम/म.रे. से इस आदेश को अविलंब बदलने और संबंधित एसएसई को एलटीटी से बाहर ट्रांसफर करने की मांग की है.

परंतु रेल प्रशासन और खासतौर पर विभाग प्रमुख के कानों में अब तक जूं भी नहीं रेंगी है. इसका कारण यह बताया जाता है कि उक्त एसएसई न सिर्फ संबंधित मंडल अधिकारियों, बल्कि विभाग प्रमुख का भी सेवा प्रदाता है. इसके अलावा यूनियन के लिए भी वह एक बड़ा कमाऊ पूत है. यही कारण है कि उक्त डिपो में करीब 15 सालों से जमे रहने के बावजूद प्रशासन और यूनियन दोनों ने मिलकर उक्त कथित कार्य-बदलाव के नाम पर पूरी व्यवस्था की आँखों में धूल झोंकी है. जानकारों का कहना है कि यह कार्य-प्रणाली दर्शाती है कि रेल प्रशासन और यूनियन द्वारा भ्रष्टाचार को खुला समर्थन दिया जा रहा है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में एक व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई आरटीआई का भी जवाब आज तक मंडल प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया है. यह मनमानी इस बात की द्योतक है कि वर्तमान सरकार की ही तरह रेल अधिकारियों ने भी यह तय कर लिया है कि कोई चाहे जितनी शिकायत करे या चिल्लाए, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देना है. जानकारों का कहना है कि क्या इसका मतलब यह निकाला जाना चाहिए कि ‘भ्रष्टाचार मिटाने’ और ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ की आड़ में सरकार ने नौकरशाही को खुलकर लूटने और भ्रष्टाचार करने की छूट दे रखी है?