मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल मैनपावर प्लानिंग पर पुनरीक्षण समिति का गठन

दोनों विभागों के स्टाफ एवं ऑफिसर्स के घालमेल से प्रभावित हो रहा कामकाज

मैनपावर प्लानिंग/मेंटीनेंस के घालमेल से सर्वाधिक असंतुष्ट हैं विद्युत अधिकारी

बिबेक देबरॉय कमेटी की मुख्य सिफारिश पर अमल न करके किया गया घालमेल

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड ने आखिर यह मान लिया है कि मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल के अधिकारियों और कर्मचारियों के घालमेल से डीजल मेंटीनेंस एवं ऑपरेशन तथा ईएमयू, मेमू, ट्रेन लाइटिंग, एसी मेंटीनेंस इत्यादि का दैनंदिन कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसके चलते दोनों विभागों के बीच न सिर्फ आपसी खींचतान बढ़ी है, बल्कि स्टाफ एवं ऑफिसर्स में भारी असंतोष भी पैदा हुआ है. इसी खींचतान और असंतोष के मद्देनजर कई जोनल महाप्रबंधकों ने पिछले दिनों रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर इस मामले का पुनरीक्षण किए जाने की जरूरत पर जोर दिया था.

दोनों विभागों की उपरोक्त खींचतान और कामकाज को प्रभावित होते देखकर ‘रेल समाचार’ ने 27 फरवरी 2019 को इस संबंध में रेलवे बोर्ड को दो ट्वीट किए थे. इनमें कहा गया था कि “मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल विभाग के कुछ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के घालमेल से इन दोनों विभागों का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है. रेकों एवं कोचों के प्रॉपर मेंटीनेंस पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इससे यात्री शिकायतों का अंबार लग रहा है. अतः रेलवे बोर्ड के दि. 23.03.2018 और दि.01.05.18 के दोनों आदेश रद्द कर पूर्व व्यवस्था कायम की जाए.

इसी प्रकार ‘रेल समाचार’ ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा था कि “रेलवे बोर्ड के दि. 01.05.18 के आदेश (अटैच्ड) का दोनों लेबर फेडरेशन – एआईआरएफ एवं एनएफआईआर – ने भी लिखित में यह कहकर विरोध किया था कि इससे मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल दोनों विभागों का कामकाज प्रभावित होगा और दोनों विभागों के कर्मचारियों एवं अधिकारियों को कठिनाई होगी, यह बात सही साबित हुई है. अतः रेलवे बोर्ड को अपने इन दोनों आदेशों को रद्द करके पूर्व व्यवस्था अविलंब बहाल करना चाहिए.”

उल्लेखनीय है कि रेलवे बोर्ड ने ‘रेल समाचार’ के उक्त दोनों ट्वीट्स का उचित संज्ञान लेते हुए दि. 19.03.2019 (पत्र सं. ईआरबी-1/2019/23/15) जारी किया है. रेलवे बोर्ड ने चार एडीशनल मेंबर्स की समिति का गठन करके दोनों विभागों के दैनंदिन कामकाज में पेश आ रही दिक्कतों का निवारण करने और कार्यों का पुनर्वितरण, दोनों विभागों के स्टाफ एवं ऑफिसर्स का कैडर कंट्रोल/मैनपावर मैनेजमेंट इत्यादि अन्य संबंधित विषयों का परीक्षण/पुनरीक्षण करके अपने सुझाव देने को कहा है. इस समिति में एडीशनल मेंबर/प्लानिंग पीयूष अग्रवाल (कन्वेनर) सहित एडीशनल मेंबर/मैकेनिकल इंजीनियरिंग (मेंबर), एडीशनल मेंबर/इलेक्ट्रिकल (मेंबर) और एडीशनल मेंबर/स्टाफ (मेंबर) को शामिल किया गया है. एएम/प्लानिंग पीयूष अग्रवाल ने शुक्रवार, 22 मार्च को एक पत्र जारी करके उक्त सभी कमेटी मेंबर्स से उपरोक्त विषय पर अपने सुझाव शुक्रवार, 29 मार्च तक देने को कहा है.

ज्ञातव्य है कि बिबेक देबरॉय कमेटी की सिफारिश पर रेलवे बोर्ड द्वारा दि. 23.03.2018 को एक नोटिफिकेशन जारी करके मैकेनिकल डिपार्टमेंट के डीजल मेंटीनेंस एवं ऑपरेशन से संबंधित स्टाफ एवं ऑफिसर्स को इलेक्ट्रिकल के मातहत तथा ईएमयू, मेमू, ट्रेन लाइटिंग, एसी मेंटीनेंस इत्यादि से संबंधित स्टाफ एवं ऑफिसर्स को मैकेनिकल के मातहत किया गया था. इसके बाद इसमें कुछ सुधार करते हुए दि. 01.05.2018 को एक अन्य नोटिफिकेशन रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किया गया था. जानकारों का मानना है कि तत्कालीन सीआरबी का यह कोई सुविचारित निर्णय नहीं था, बल्कि अपने कैडर और विभाग को फेवर करने के चक्कर में वह भी विभागवाद से स्वयं को नहीं बचा पाए थे.

इस संबंध में जानकारों का कहना है कि यदि बिबेक देबरॉय कमेटी की सिफारिश पर अमल ही करना था, तो सबसे पहले उस सिफारिश पर अमल किया जाना चाहिए था, जिसमें देबरॉय कमेटी ने कहा था कि रेलवे की अलग-अलग आठों संगठित सेवाओं को तकनीकी (टेक्निकल) एवं गैर-तकनीकी (नॉन-टेक्निकल) दो सेवाओं में मर्ज कर दिया जाना चाहिए. तब इस सिफारिश पर हो-हल्ला तो खूब मचाया गया था, मगर जमीनी स्तर पर कोई अमल नहीं किया गया. उनका कहना है कि जहां तक मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल दोनों विभागों के कुछ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मातहती बदले जाने की बात है, तो अपने कैडर के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए और विभागीय वर्चस्व कायम रखने के उद्देश्य से तत्कालीन सीआरबी द्वारा यह अनावश्यक निर्णय लिया गया था. इसके अलावा उक्त निर्णय का कोई आधार परिलक्षित नहीं हो रहा है, और न ही अब तक इसके कोई सुखद परिणाम सामने आ पाए हैं.

हालांकि यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जानकारों की उपरोक्त राय और इलेक्ट्रिकल अधिकारियों एवं कर्मचारियों में बढ़ते असंतोष के मद्देनजर ‘रेल समाचार’ ने उपरोक्त जो दो ट्वीट किए थे, उसके बाद कुछ मैकेनिकल अधिकारियों ने ‘रेल समाचार’ से इस मुद्दे को नहीं उठाने का अनुरोध किया था. तथापि कई वरिष्ठ मैकेनिकल अधिकारियों का यह भी मानना था कि कुछ इलेक्ट्रिकल अधिकारियों को मैकेनिकल के मातहत आना नागवार गुजर रहा है. इसके अलावा स्टाफ और कामकाज को लेकर कहीं कोई समस्या नहीं है. मगर जानकारों का मानना है कि मैकेनिकल अधिकारी इस निर्णय से इसलिए खुश हैं, क्योंकि उन्हें बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है. परंतु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इलेक्ट्रिकल अधिकारियों एवं कर्मचारियों के असंतोष के चलते दैनंदिन जमीनी कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

इस कोताही के प्रत्यक्षदर्शी हम स्वयं हैं. हम 14 फरवरी को लोकमान्य तिलक टर्मिनस-हरिद्वार एक्सप्रेस के एसी-2 में कल्याण से निजामुद्दीन की यात्रा कर रहे थे. उस दिन एसी-2 कोच के वेस्टर्न स्टाइल टॉयलेट की टंकी में भारी लीकेज था और गाड़ी में ब्रेक लगते ही टॉयलेट की छत से हर तरफ से पानी धार बनकर गिर रहा था. इसकी शिकायत ट्वीटर पर की गई थी. झांसी स्टेशन पर सीएंडडब्ल्यू स्टाफ भी आया, मगर वह किंकर्तव्यविमूढ़ था, क्योंकि टंकी बाहर निकाले बिना उसका कुछ नहीं किया जा सकता था. उक्त स्टाफ ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा, यह तो पता नहीं, मगर यह जरूर पता चला है कि अगली ट्रिप में भी उक्त समस्या का समाधान किए बिना ही कोच वैसे ही भेज दिया गया था.

यह भी पता चला है कि उक्त टंकी की समस्या पिछली कई ट्रिप से बनी हुई थी, मगर एलटीटी के संबंधित स्टाफ एवं ऑफिसर्स ने समस्या का समाधान नहीं किया. इसी प्रकार ईएमयू एवं एसी मेंटीनेंस की भी भयानक दुर्दशा है. कहीं एसी फेल होने, कहीं लाइट नहीं जलने, कहीं चार्जिंग पॉइंट्स के काम नहीं करने, तो कहीं पंखे नहीं चलने की ऐसी हजारों शिकायतें पूरी भारतीय रेल में रोजाना हो रही हैं. परंतु ‘मैटर एस्केलेटेड’, ‘योर कंप्लेंट फ़ॉर्वर्डेड’ जैसे कुछ रटे-रटाए जुमले चिपकाने के अलावा किसी भी अधिकारी या स्टाफ की जिम्मेदारी अथवा उत्तरदायित्व आज तक तय नहीं किया गया. इसके विपरीत कभी-कभार किसी मरीज को दवा या किसी लूले-लंगड़े-अपाहिज यात्री को व्हील चेयर पहुंचा दी गई, तो उसका खूब बढ़-चढ़कर बखान कई-कई दिनों तक सोशल मीडिया में किया जाता रहता है.

पिछले एक सप्ताह में ही लगभग 10-12 आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं. इसके अलावा कपलिंग टूटकर आधा रेक आगे निकल जाने, पूरी ट्रेन को पीछे छोड़कर इंजन के आगे चले जाने, खिड़की जाम होने, पर्दों की पाइप नहीं लगे होने, सीटें गंदी होने, सीटों पर खटमल, कोचों में चूहे दौड़ते रहने, मच्छर-मक्खियां भिनभिनाने और यात्रियों के कीमती सामानों को कुतर डालने, पहले 10-10 लाख और अब 80-90 हजार की कीमत वाले तथाकथित बायो-टॉयलेट की भीषण गंदगी और दुर्गन्ध से पूरा कोच गंधाने इत्यादि की हजारों-लाखों शिकायतें रोज हो रही हैं.

मैकेनिकल अधिकारी चाहे कोई भी कारण बताएं, मगर वह आज तक एलएचबी कोचों की कपलिंग को ठीक नहीं कर पाए हैं. ऐसी हजारों बुनियादी खामियां गिनाई जा सकती हैं. तथापि सभी जोनल जीएम, डीआरएम और यहां तक कि कोर, जिसकी रेल परिचालन में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है, को भी प्रचार में लगाकर भारतीय रेल की बोगस उज्जवल छवि बनाकर जनता और यात्रियों का ध्यान भटकाने अथवा उन्हें दिग्भ्रमित करने के मंत्री के आदेश पर अमल करने में कोई कोताही नहीं की जा रही है. परंतु जो उपरोक्त जमीनी समस्याएं हैं, वह निश्चित रूप से मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल विभागों के घालमेल की ही पैदावार हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है. अब रेलवे बोर्ड ने इसका संज्ञान लिया है और एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए की उपरोक्त सभी समस्याओं का उचित समाधान अविलंब किया जा सकेगा.