गोरखपुर: यांत्रिक कारखाने के मुख्य टाइमकीपर की भ्रष्ट कार्य-प्रणाली
इंटर रेलवे ट्रांसफर हो चुके रेलकर्मी का बना रहा था चार माह से वेतन
घर बैठे वेतन ले रहे सैकड़ों रेलकर्मी, करोड़ों का घपला होने की आशंका
भंगेडी लेखाधिकारी के कारनामें, प्रशासन मौन
विजयशंकर, ब्यूरो प्रमुख
गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर स्थित यांत्रिक कारखाने में गुरूवार, 14 मार्च को उस समय हड़कंप मच गया, जब ‘रेल समाचार’ के इस प्रतिनिधि द्वारा एक ट्वीट किया गया कि “पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर स्थित यांत्रिक कारखाने में मुख्य टाइम कीपर की लापरवाही से करोड़ों रुपये के घोटाले की संभावना है. एक कर्मचारी को इंटर रेलवे ट्रांसफर हुए चार महीने हो गए, फिर भी उसका वेतन कारखाने के अकाउंट पर ही बन रहा है. कर्मचारी की अटेंडेंस आए बिना ही उसका वेतन बना दिया जा रहा है. इसके अलावा कारखाने के सैकड़ों कर्मचारी घर बैठे वेतन ले रहे हैं.”
भगवान भरोसे चल रहे पूर्वोत्तर रेलवे के इस यांत्रिक कारखाने में उक्त ट्वीट के बाद हड़कंप मचना स्वाभाविक ही था. कई कर्मचारियों का कहना है कि यहां न तो किसी कर्मचारी की छुट्टियों का रिकार्ड व्यवस्थित रखा गया है और न ही किसी सामान का कोई हिसाब-किताब है. पता चला है कि उक्त ट्वीट के बाद फौरन जोनल रेलवे विजिलेंस ने कारखाने में धाड़ मारकर कारखाने के टाइम ऑफिस का समस्त रिकॉर्ड अपने कब्जे में ले लिया है. कारखाने में अब तक चल रही समस्त अनियमित गतिविधियों की व्यवस्थित विजिलेंस जांच के बाद पूरे मामले पर रोशनी पड़ेगी कि वहां क्या-क्या घपलेबाजी हो रही थी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार यांत्रिक कारखाना, गोरखपुर की कुमारी नागमणिनामक एक महिला कर्मचारी का इंटर रेलवे ट्रांसफर पूर्व मध्य रेलवे, दानापुर मंडल में करीब चार महीने पहले हो चुका था. खुद मुख्य टाइम कीपर ने उक्त कर्मचारी को रिलीव किया था. परंतु बताते हैं कि टाइम कीपर ने उक्त कर्मचारी के समस्त व्यक्तिगत रिकार्ड्स (डीसीआरजी) दानापुर मंडल को अब तक नहीं भेजा था. जबकि उक्त कर्मचारी ने वहां बकायदे ज्वाइन कर लिया था. तथापि कारखाने में उसकी बिना उपस्थिति के ही उसका वेतन कारखाने के अकाउंट पर आजतक बनाया जा रहा था.
जानकारों का कहना है कि इस मामले में लेखा विभाग भी समान रूप से दोषी है, क्योंकि यदि टाइम कीपर से गलती हो रही थी, अथवा वह जानबूझकर ऐसा कर रहा था, तो चार महीनों तक लेखा विभाग कहां सो रहा था? जबकि किसी भी कर्मचारी के रिलीव होने का पत्र सभी संबंधित विभागों एवं अधिकारियों को सर्कुलेट किया जाता है. इसके अलावा जिन कर्मचारियों को घर बैठे वेतन का भुगतान किया जा रहा था, उसमें भी लेखा विभाग को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती है. जानकारों का कहना है कि इस मामले में कुछ सुपरवाइजरों एवं संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों सहित सभी संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है.
भंगेडी लेखाधिकारी के कारनामें, प्रशासन मौन
पूर्वोत्तर रेलवे के एक महा-कामचोर और भ्रष्ट लेखाधिकारी पर रेल प्रशासन इतना ज्यादा क्यों मेहरबान है, यह किसी की भी समझ से परे है. जबकि अब तक उसकी कम से कम छह-सात भयानक गलतियां सार्वजनिक रूप से प्रशासन के संज्ञान में आ चुकी हैं. इसके बावजूद प्रशासन ने न तो उसे अन्यत्र शिफ्ट कर रहा है, और न ही उसके विरुद्ध विजिलेंस जांच बैठाई गई है. जबकि उसके द्वारा लगातार ऐसी गलतियां दोहराई जा रही हैं और सभी संबंधित कर्मचारी एवं अधिकारी उसकी इन भ्रष्ट हरकतों से अजीज आ चुके हैं. रेल प्रशासन की छवि धूमिल हो रही है, सो अलग.
पूर्वोत्तर रेलवे लेखा मुख्यालय, गोरखपुर में सहायक वित्त सलाहकार/प्रशासन (एएफए/एडमिन) के पद पर कार्यरत इस ‘भंगेड़ी’ लेखाधिकारी की जिन भ्रष्ट करतूतों का ‘रेल समाचार’ को अब तक पता चला है, वह इस प्रकार हैं-
1. अपेंडिक्स-2 की विभागीय परीक्षा में शिवशंकर श्रीवास्तव, विनोद त्रिपाठी, राजीव जायसवाल इत्यादि परीक्षार्थियों को कथित तौर पर पैसा लेकर नकल कराते हुए इस लेखाधिकारी को विजिलेंस ने रंगेहाथ पकड़ा था. सीसीटीवी फुटेज में भी इसकी करतूतें साफ-साफ दिखाई दी थीं, तथापि इस मामले को विजिलेंस ने इसलिए रफादफा कर दिया था, क्योंकि यह पूर्व में विजिलेंस में ही कार्यरत था.
2. इस लेखाधिकारी द्वारा वरिष्ठता के आधार पर नियम विरूद्ध एक ही जगह लगभग 20-22 सालों से जमे कर्मचारियों का ट्रांसफर नहीं किया गया. इसके अलावा ट्रांसफर किए गए अपने कुछ खास चहेते लेखाकर्मियों को इस लेखा अधिकारी द्वारा एक साल के अंदर ही पुनः उनकी पुरानी जगहों पर वापस पदस्थ कर दिया गया.
3. कुछ सेवानिवृत्त लेखाधिकारियों के डुएल चार्ज अलाउंस का मामला भी इस भंगेड़ी लेखाधिकारी ने सिर्फ उन्हें परेशान करने के लिए अब तक हल नहीं किया है. डिप्टी एफए एंड सीएओ के पद से सेवानिवृत्त एक लेखाधिकारी जी. पी. प्रभाकर के डुएल चार्ज एलाउंस का भुगतान करने के बजाय इसने उक्त फाइल पश्चिम रेलवे को भेज दी थी. पश्चिम रेलवे ने यह कहते हुए फाइल वापस कर दी कि संबंधित मामले का उसके यहां से कोई संबंध नहीं है. श्री प्रभाकर को और ज्यादा परेशान करने के लिए अब इस मामले को रेलवे बोर्ड रेफर किया जा रहा है. इस मामले में नियम स्पष्ट होने के बावजूद प्रिसिपल एफए एंड सीएओ और जोनल प्रशासन द्वारा उक्त भंगेड़ी लेखाधिकारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है.
4. इसी प्रकार एक लेखा कर्मचारी को एमएसीपी का लाभ देने के लिए उक्त भंगेड़ी लेखाधिकारी द्वारा पिछले तीन सालों की उसकी एसीआर देखे जाने के बजाय आगे के तीन सालों की एसीआर देखी जा रही थी और संबंधित लेखाकर्मी को जानबूझकर उसका लाभ नहीं दिया जा रहा था. जाहिर है कि भंगेड़ी लेखाधिकारी द्वारा रिश्वत की चाहत में ऐसा जानबूझकर किया जा रहा था. इस मामले को जब ‘रेल समाचार’ द्वारा उजागर किया गया, तब उक्त लेखा कर्मचारी को न्याय मिला और उसे एमएसीपी का लाभ प्राप्त हुआ.
5. इस भंगेड़ी लेखाधिकारी द्वारा कुछ कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति (रिइंगेजमेंट) के मामले में आरपीएफ के थ्री-आरपीयूपी ऐक्ट के आरोपी अपने एक चहेते कर्मचारी का नियम विरूद्ध न सिर्फ चयन किया गया, बल्कि बकायदे उसका नाम फाइनल लिस्ट में भी डालकर पत्र जारी कर दिया गया. इस मामले को भी जब ‘रेल समाचार’ द्वारा उजागर किया गया, तब भंगेड़ी लेखाधिकारी द्वारा नया पत्र जारी करके उक्त आरोपी कर्मचारी का नाम हटा दिया गया.
6. छठवें वेतन आयोग के वेतन निर्धारण को सातवें वेतन आयोग में पिछली तारीखों में आवेदन लेकर रेलवे को करोड़ों का चूना लगाने की कुटिल चाल उक्त भंगेड़ी लेखाधिकारी ने चली थी. टेस्ट केस के तौर पर फिलहाल दो लेखाकर्मियों के लिए यह प्रयास किया गया था, जबकि इस लाइन में करीब 50-60 लेखाकर्मी और थे. उक्त दोनों लेखाकर्मियों के वेतन भुगतान की पे-स्लिप भी बन चुकी थी कि तभी ‘रेल समाचार’ द्वारा पूरे मामले का भंडाफोड़ कर दिया गया और विजिलेंस द्वारा पूरे मामले की जांच शुरू कर दी गई. इस तरह रेलवे का करोड़ों रुपये का नुकसान होने से बच गया, क्योंकि इस चालबाजी के तहत ऐसे प्रत्येक लेखाकर्मी को कम से कम 18 से 20 लाख रुपये के एरियर्स का भुगतान मिलना निश्चित था. जानकारों का कहना है कि इस मामले में प्रिंसिपल एफए सहित दो अन्य लेखाधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा फ्रॉड हो पाना संभव नहीं था.
7. यांत्रिक कारखाना, गोरखपुर से दानापुर मंडल, पूर्व मध्य रेलवे में चार महीने पहले इंटर रेलवे ट्रांसफर होकर जा चुके कर्मचारी का वेतन भी इसी भंगेड़ी लेखाधिकारी के मातहत बनता रहा और यह सोता रहा. ‘रेल समाचार’ द्वारा इस मामले को उजागर करने के बाद अब यह प्रक्रिया बंद करने की तैयारी की जा रही है.
बहरहाल, कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि इतनी सारी गलतियां करने के बावजूद भी यदि इस भ्रष्ट और कामचोर भंगेड़ी लेखाधिकारी द्वारा लगातार गलतियां दोहराई जा रही हैं और प्रशासन द्वारा इसके विरुद्ध समयानुसार कोई उचित दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा रही है, तो आखिर इसका क्या कारण हो सकता है? क्या यह मान लिया जाए कि प्रशासन ही खुद निकम्मा है अथवा वह किसी संभावित डर के कारण कोई उचित कदम उठाने से बच रहा है? सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि एक घोषित भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध इतने सारे मामले सार्वजनिक रूप से सामने आने के बाद भी प्रशासन द्वारा कोई प्रशासनिक कदम नहीं उठाए जाने से क्या इस तरह भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना संभव है?